पाण्डवों का गंगापार होना,कौरवों के द्वारा उनकी अन्त्येष्टिक्रिया और
वन में भीमसेन का विषाद
उसी समय विदुर का भेजा एक
विश्वासपात्र मनुष्य पाण्डवों के पास आया। उसने पाण्डवों को विदुर का बतलाया हुआ संकेत
सुनाया और कहा, मैं विदुरजी का विश्वासपात्र सेवक हूँ। मैं अपने कर्तव्य को ठीक-ठीक
समझता हूँ। आप विदुरजी के कथनानुसार शत्रुओं पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे।यह नौका
तैयार है। आप इसपर चढकर गंगापार हो जाइये। जब पाण्डव अपनी माता के साथ नाव में बैठ
गये तब उसने कहा, विदुरजी ने बड़े प्रेम से कहा है कि आपलोग निर्विघ्न अपने मार्ग पर
बढते चलें। घबरायें बिलकुल नहीं। उसने गंगापार पहुँचाकर पाण्डवों का जय-जयकार किया
और उनका कुशल संदेश लेकर विदुर के पास चला गया तथा पाण्डव भी गंगापार होकर लुकते छिपते
बड़े वेग से आगे बढने लगे। इधर वारणावत में पूरी रात बीत जाने पर सारे पुरवासी पाण्डवों
को देखने के लिये आये। आग बुझाते-बुझाते उनलोगों को मालूम हुआ कि यह घर लाख का बना
है और मंत्री पुरोचन भी इसी में जल गया है। उन्होंने निश्चय किया कि पापी दुर्योधन
का ही यह षडयंत्र है। अवश्य ही यह बात धृतराष्ट्र की जानकारी में हुई है। भीष्म विदुर
और दूसरे कौरव भी धर्म का पक्ष नहीं ले रहे हैं। आओ हमलोग धृतराष्ट्र के पास संदेश
भेज दें कि तुम्हारा मनोरथ पूरा हो गया।अब तुम्हारी करतूत से पाण्डव जलकर मर गये। जब
सब लोग आग हटाकर देखने लगे तो अपने पाँचों पुत्रों के साथ मरी भीलनी मिली।उन लोगों
ने उन्हें पाँच पाण्डव और कुन्ती समझा। सुरंग खोदनेवाले मनुष्य ने घर साफ करते-करते
राख से सुरंग पाट दी। इसलिये किसी को भी उसका पता न चल सका।पुरवासियों ने यह संदेश
धृतराष्ट्र के पास हस्तिनापुर भेज दिया।यह अशुभ समाचार सुनकर धृतराष्ट्र ने ऊपर-ऊपर
से बहुत दुःख प्रकट किया। उन्होंने कौरवों को आज्ञा दी कि तुमलोग शीघ्र-से-शीघ्र वारणावत
में जाकर पाण्डवों और उनकी माता का विधिपूर्वक अन्त्येष्टि-संस्कार करो। विदुर ने सब
हाल मालूम होने पर भी थोड़ी-बहुत सहानुभूति प्रकट की। इधर पाण्डव नाव से उतरने के बाद
दक्षिण दिशा की ओर बढने लगे। उस समय नींद के मारे सबकी आँखें बन्द हो रही थी। सभी थके
और प्यासे थे।घना जंगल था। दिशाओं का पता नहीं चलता था। यद्यपि पुरोचन जल गया था फिर
भी उन्हें छिपकर ही जाना था। इसलिये युधिष्ठिर की आज्ञा से भीमसेन ने सबको पूर्ववत्
लाद लिया और तेजी के साथ चलने लगे। भीमसेन इतने वेग से चल रहे थे कि सारा वन काँपता
हुआ सा जान पड़ता था। इस समय पाण्डव लोग प्यास, थकावट और नींद से बेचैन हो रहे थे। उन्हें
आगे बढना कठिन हो रहा था। वे ऐसे घोर वन में जा पहुँचे, जहाँ पानी का कहीं पता न था।
इस समय कुन्ती ने तृषातुर होकर जल की इच्छा प्रकट की। तब भीमसेन ने उन सबको एक वट-वृक्ष
के नीचे उतारकर कहा, तुमलोग थोड़ी देर यहाँ विश्राम करो। मैं जल लाने के लिये जा रहा
हूँ। निश्चय ही यहाँ से थोड़ी दूर पर कोई बड़ा जलाशय है। तभी तो जल में रहनेवालों सारस
पक्षियों की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ रही है। युधिष्ठिर की आज्ञा मिलने पर सारस पक्षियों
की ध्वनि के आधार से भीमसेन तालाब के पास जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने जल पीया, स्नान
किया और उनलोगों के लिये अपने दुपट्टे में पानी भरकर ले आये। वट-वृक्ष के नीचे पहुँचकर
भीमसेन ने देखा कि माता और सब भाई सो गये हैं। वे दुःख और शोक से भरकर उन्हें बिना
जगाये मन-ही-मन कहने लगे ----मेरे लिये इससे बढकर और कष्ट की बात क्या होगी कि आज मैं
अपने उन भाइयो को, जिन्हें बहुमूल्य सुकोमल सेज पर भी नींद नहीं आती थी, खुली जमीन
पर सोते देख रहा हूँ। मेरी माता वसुदेव की बहिन और कुन्तिभोज की पुत्री है, महात्मा
पाण्डु की पत्नी और हमारे जैसे पुत्रों की माता है। फिर भी खुली धरती पर लुढक रही है।
मेरे लिये इससे बढकर और
दुःख की बात क्या होगी कि जिन्हें धर्मपालन के फलस्वरुप तीनों लोकों का शासक होना चाहिये,
वे युधिष्ठिर थककर सधारण मनुष्य की भाँति जमीन पर लेटे हुए हैं। हाय, हाय, आज मैं अपनी
आँखों से अर्जुन, नकुल और सहदेव को आश्रयहीन की तरह वृक्ष के नीचे नींद लेते देख रहा
हूँ। दुरात्मा दुर्योधन ने हमलोगों को घर से निकाल दिया और जलाने का प्रयत्न किया।
किन्तु भाग्यवश हमलोग बच गये। आज हम वृक्ष के नीचे हैं। उनलोगों को थके-माँदे सोते
देखकर उन्होंने उन्हें नहीं जगाया और स्वयं जागकर पहरा देने लगे।
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