Wednesday 17 June 2015

आदिपर्व-परिक्षित की मृत्यु का कारण

परिक्षित की मृत्यु का कारण


                              अब जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित के जीवन की घटनाओं के बारे में उग्रश्रवा से पूछा। तब मंत्रियों ने जनमेजय से कहा कि परीक्षित बड़े ही धर्मात्मा उदार और प्रजापालक राजा थे। उनका पराक्रम अतुलनीय था। उन्होंने कृपाचार्य से धनुषविद्या सीखी थी। कुरुवंश के परिक्षीण होने पर उनका जन्म हुआ था। इसी से उनका नाम परीक्षित हुआ। वे प्रजापालक और पाण्डु के तरह शिकार प्रेमी थे। एक बार वे शिकार करने वन में गये हुये थे। उन्होंने बाण से एक हरिण को मारा और उसके भागने पर उसका पीछा किया। वे अकेले ही बहुत दूर तक वन में हरिण को ढूंढते हुये चले गये,परन्तु उसे पा नहीं सके। उसी समय उन्हें एक मुनि का दर्शन हुआ। वे मौनी थे। उन्होंने उन्हीं से प्रश्न किया। परन्तु वे कुछ नहीं बोले। उस समय राजा भूखे और माँदे थे। इसलिये मुनि को कुछ बोलते न देख क्रोधित हो गये। उन्होंने यह नहीं जाना कि वे मौनी हैं। इसलिये उनका तिरस्कार करने के लिये धनुष की नोक से मरा साँप उठाकर उनके कंधे पर डाल दिया। मौनी मुनि राजा के इस कृत्य पर भला-बुरा कुछ नहीं कहा। वे चुपचाप शांत-भाव से बैठे रहे। राजा ज्यों-के-त्यों उल्टे पाँव राजधानी में लौट आये। मौनी ऋषि शमीक के पुत्र का नाम था श्रृंगी। वह बड़ा तेजस्वी और शक्तिशाली था।जब महातेजस्वी श्रृंगी ने अपने सखा के मुँह से यह बात सुनी कि राजा परीक्षित ने मौन और निश्र्च्ल अवस्था में मेरे पिता का तिरस्कार किया है तो वह क्रोध से आग-बबूला हो गये। उसने हाथ में जल लेकर परीक्षित को शाप दिया---जिसने मेरे निरपराध पिता के कंधे पर मरा हुआ साँप डाल दिया, उसको तक्षक नाग क्रोध करके अपने विष से सात दिनों के भीतर ही जला देगा। इस प्रकार शाप देकर श्रृंगी अपने पिता के पास गया और सारी बातें सुना दी। शमीक मुनि ने यह सब सुनकर अच्छा नहीं समझा और परीक्षित के पास अपने अपने शीलवान् और गुणी शिष्य गौरमुख को भेजा। गौरमुख ने आकर परीक्षित से कहा---हमारे गुरुदेव ने आपके लिये यह संदेश भेजा है कि राजन्, मेरे पुत्र ने आपको शाप दे दिया है,आप सावधान हो जायें। तक्षक अपने विष से सात दिन के भीतर ही आपको जला देगा। सातवें दिन जब तक्षक आ रहा था,तब उसने कश्यप नामक ब्राह्मण को देखा। उसने पूछा,आप इतनी शीघ्रता से कहाँ जा रहे हैं। कश्यप ने कहा, जहाँ आज परीक्षित को तक्षक साँप जलायेगा, वहीं जा रहा हूँ। मैं उन्हें तुरत जीवित कर दूँगा। मेरे पहुँच जाने पर तो सर्प उन्हें जला भी नहीं सकेंगे।तक्षक ने कहा,मैं ही तक्षक हूँ। आप मेरे डँसने के बाद उस राजा को क्यों जीवित करना चाहते हैं। मेरी शक्ति देखिये।मेरे डँसने के बाद आप उसे जीवित नहीं कर सकते।यह कहकर तक्षक ने एक वृक्ष को डँस लिया।उसी क्षण वह वृक्ष जलकर खाक हो गया। कश्यप ने अपनी विद्या के बल से उस वृक्ष को उसी समय हरा-भरा कर दिया। अब तक्षक ब्राह्मण को प्रलोभन देने लगा। उसने कहा,जो चाहो मुझसे ले लो। तुम राजा से जितना धन लेना चाहते हो, मुझसे लो, और लौट जाओ। तक्षक के ऐसा कहने पर कश्यप मुँहमाँगा धन लेकर लौट गये। उसके बाद तक्षक आया और परिक्षित को विष की आग से भष्म कर दिया। तदनन्तर जन्मेजय का राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ।   

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