Saturday 20 June 2015

आदिपर्व-धृतराष्ट्र के पुत्रों के जन्म और नाम

धृतराष्ट्र के पुत्रों के जन्म और नाम

एक बार महर्षि व्यास हस्तिनापुर में गान्धारी के पास आये। गान्धारी ने सेवा-सुश्रुषा करके उन्हें बहुत ही संतुष्ट किया। तब उन्होंने उससे वर माँगने को कहा। गान्धारी ने अपने पति के समान ही बलवान् सौ पुत्र होने का वर माँगा। इससे समय पर उसके गर्भ रहा और वह दो वर्ष तक पेट में ही रुका रहा। इस बीच कुन्ती के गर्भ से युधिष्ठिर का जन्म हो चुका था। स्त्री स्वभाव-वश गान्धारी घबरा गयी और अपने पति धृतराष्ट्र से छिपाकर गर्भ गिरा दिया। इसके पेट से लोहे के समान एक माँस-पिण्ड निकला । दो वर्ष पेट में रहने के बाद उसका यह कड़ापन देखकर गान्धारी ने फेंक देने का विचार किया। भगवान् व्यास अपनी योगदृष्टि से यह सब जानकर झटपट उसके पास पहुँचे और बोले, बेटी, तू यह क्या करने जा रही है। गान्धारी ने महर्षि व्यास से सारी बात सच-सच कह दी। उसने कहा, भगवन्, आपके आशीर्वाद से गर्भ तो मझे पहले रहा, परन्तु सन्तान कुन्ती को ही पहले हुई। दो वर्ष पेट में रहने के बाद भी यह माँसपिण्ड पैदा हुआ है। व्यासजी ने कहा, गान्धारी, मेरा वर सत्य होगा। मेरी बात कभी झूठी नहीं हो सकती, क्योंकि मैने कभी हँसी में भी झूठ नहीं कहा है। अब तुम चटपट सौ कुण्ड बनवाकर उन्हें घी से भर दो और सुरक्षित स्थान में उनकी रक्षा का विशेष प्रबंध कर दो तथा इस मांस-पिण्ड पर ठण्ढा जल छिड़को। जल छिड़कने पर उस पिण्ड के सौ टुकड़े हो गये। प्रत्येक टुकड़ा अंगूठे के बराबर था। उनमें से एक टुकड़ा सौ से अधिक भी था। व्यासजी के आज्ञानुसार जब सब टुकड़े कुण्डों में रख दिये गये, तब उनेहोंने कहा कि इन्हें दो वर्ष के बाद खोलना। इतना कहकर वे तपस्या करने के लेये हिमालय पर चले गये। समय आने पर उन्हीं मांस-पिण्डों में से पहले दुर्योधन और पीछे गान्धारी के अन्य पुत्र उत्पन्न हुए। जिस दिन दुर्योधन का जन्म हुआ उसी दिन परम पराक्रमी भीमसेन का भी जन्म हुआ था। दुर्योधन जन्मते ही गधे की भांति रेंकने लगा। उसका शब्द सुनकर गधे, गीध और कौए भी चिल्लाने लगे, आँधी चलने लगी, कई स्थानों में आग लग गयी। इन उपद्रवों से भयभीत होकर धृतराष्ट्र ने ब्राह्मण, भीष्म, विदुर आदि सगे-सम्बन्धियों तथा कुरुकुल के श्रेष्ठ पुरुषों को बुलवाया और कहा, हमारे वंश में पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर ज्येष्ठ राजकुमार हैं। उन्हें तो उनके गुणों के कारण ही राज्य मिलेगा। युधिष्ठिर के बाद मेरे इस पुत्र को राज मिलेगा या नहीं, यह बात आपलोग बताइये। अभी उनकी बात पूरी भी नहीं हो पायी थी कि मांसभोजी जन्तु गीदड़ आदि चिल्लाने लगे। इन अमंगलसूचक अपशकुनों को देखकर ब्राह्मणों के साथ विदुरजी ने कहा, राजन् आपके इस ज्येष्ठ पुत्र के जन्म के समय जैसे अशुभ लक्षण प्रकट हो रहे हैं, उनसे तो मालूम होता है कि आपका यह पुत्र कुल का नाश करनेवाला होगा। इसलिये इसे त्याग देने में ही शान्ति है। इसका पालन करने पर दुःख उठाना पड़ेगा। यदि आप अपने कुल का कल्याण चाहते हैं तो सौ में एक कम ही सही, ऐसा समझकर इसे त्याग दीजिये और अपने कुल तथा सारे जगत का मंगल कीजिये। शास्त्र स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि कुल के लिये एक मनुष्य का, ग्राम के लिये एक कुल का, देश के लिये एक ग्राम का और आत्मकल्याण के लिये सारी पृथ्वी का परित्याग कर दें। सबके समझाने-बुझाने पर भी पुत्रस्नेहवश राजा धृतराष्ट्र दुर्योधन को नहीं त्याग सके। उनके एक-सौ-एक टुकड़ों से सौ पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुईं। जिन दिनों गान्धारी गर्भवती थी और धृतराष्ट्र की सेवा करने में असमर्थ थी, उन दिनों एक वैश्य कन्या उनकी सेवा में रहती थी, उसी से धृतराष्ट्र के युयुत्सु नाम का पुत्र हुआ था। वह बड़ा यशस्वी और विचारशील था। धृतराष्ट्र के पुत्रों के नाम---दुर्योधन सबसे बड़ा था और उससे छोटा था युयुत्सु। तदन्तर दुःशासन, दुस्सह, दुश्शल, जलसन्ध, सम,सह,विन्द,अनुविन्द,दुदधर्ष,सुबाहु,दुष्प्रधर्षण,दुर्मषण,दुर्मुख,दुष्कर्ण,कर्ण,विविंशति,विकर्ण,शल,सत्व,सुलोचन,चित्र,उपचित्र,चित्राक्ष,चारुचित्र,शरासन,दुर्मद,दुर्विगाह,विवित्सु,विकटानन,ऊर्णनाभ,सुनाभ,नन्द,उपनन्द,चित्रवाण,चित्रवर्मा,सुवरमा,दुर्विमोचन,आयोबाहु,महाबाहु,चित्रांग,चित्रकुण्डल,भीमवेग,भीमबल,बलाकी,बलवर्धन,उग्रायुध,सुषेण,कुण्डधार,महोदर,चित्रायुध,निषंगी,पाशी,वृन्दारक,दृढवर्मा,दृढक्षत्र,सोमकीर्ति,अनूदर,दृढसन्ध,जरासन्ध,सत्सन्ध,सदःसुवाक,उग्रश्रवा,उग्रसेन,सेनानी,दुष्पराजय,अपराजित,कुण्डशावी,विशालाक्ष,दुराधर,दृढहस्त,सुहस्त,बातवेग,सुवर्मा,आदित्यकेतु,बह्लाशी,नागदत्त,अग्रयायी,कवची,क्रथन,कुण्डी,उग्र,भीमरथ,वीरबाहु,अलोलुप,अभय,रौद्रकर्मा,दृढरथाश्रय,अनाधृष्य,कुण्डभेदी,विरावी,प्रमथ,प्रमाथी,दीर्घरोमा,दीर्घबाहु,महाबाहु,व्यूढोरस्क,कनकध्वज,कुण्डाशी, और विरजा। कन्या का नाम दुश्शला था। सभी बड़े शूरवीर, युद्धकुशल तथा शास्त्रों के विद्वान थे। धृतराष्ट्र ने समय पर योग्य कन्याओं के साथ सबका विवाह किया। दुश्शला का विवाह राजा जयद्रथ के साथ हुआ। 

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