Saturday 20 June 2015

आदिपर्व-चित्रांगद और विचित्रवीर्य का चरित्र,भीष्म का पराक्रम और दृढप्रतिज्ञा तथा धृतराष्ट्र आदि का जन्म

चित्रांगद और विचित्रवीर्य का चरित्र,भीष्म का पराक्रम और दृढप्रतिज्ञा तथा धृतराष्ट्र आदि का जन्म

 राजर्षि शान्तनु की पत्नी सत्यवती से दो पुत्र हुए, चित्रांगद और विचित्रवीर्य। दोनो ही बड़े होनहार और पराक्रमी थे। अभी चित्रांगद ने युवावस्था में प्रवेश भी नहीं किया था कि राजर्षि शान्तनु स्वर्गवासी हो गये। भीष्मजी ने सत्यवती की सम्मति से चित्रांगद को राजगद्दी पर बैठाया। उसने अपने पराक्रम से सभी राजाओं को पराजित किया। गन्धर्वराज चित्रांगद ने यह देखकर कि शान्तनुनंदन चित्रांगद अपने बल-पराक्रम से देवता, मनुष्य और असुरों को नीचा दिखा रहा है, उसपर चढाई कर दी तथा दोनो में कुरुक्षेत्र के मैदान में घमासान युद्ध हुआ। सरस्वती नदी के तट पर तीन वर्ष तक लड़ाई चलती रही। गन्धर्वराज चित्रांगद बहुत बड़ा मायावी था। उसके हाथों राजा चित्रांगद की मृत्यु हो गयी। देवव्रत भीष्म ने भाई की अन्त्येष्टि-क्रिया करने के पश्चात् विचित्रवीर्य का राजगद्दी पर अभिषेक किया। विचित्रवीर्य भी अभी जवान नहीं हुए थे, बालक ही थे। वे भीष्म के आज्ञानुसार अपने पैतृक राज्य का शासन करने लगे। विचित्रवीर्य थे आज्ञाकारी और भीष्म रक्षक। जब भीष्म ने देखा कि मेरा भाई विचित्रवीर्य यौवन में प्रवेश कर चुका है, तब उन्होंने उसके विवाह का विचार किया। उन्हीं दिनों उन्हें यह समाचार मिला कि काशीनरेश की तीन कन्याओं का स्वयंवर हो रहा है। उन्होंने माता की सम्मति लेकर अकेले ही रथ पर सवार हो काशी की यात्रा की। स्वयंवर के समय जब सब राजाओं का परिचय दिया जाने लगा तब शान्तनु-नंदन भीष्म को अकेला और बूढा समझकर सुन्दरी कन्याएँ घबराकर आगे बढ गयीं। उन्होंने समझा कि यह बूढा है। वहाँ बैठे हुए राजालोग भी आपस में हँसी करते हुए कहने लगे कि भीष्म ने तो ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ले ली थी, अब बाल सफेद होने और झुर्रियाँ पड़ने पर यह बूढा लज्जा छोड़कर यहाँ क्यों आया है। यह सब देख-सुनकर भीष्म को रोष आ गया। उन्होंने अपने भाई के लिए बलपूर्वक हरकर कन्याओं को रथ पर बैठाया और कहा कि क्षत्रिय स्वयंवर विवाह की प्रशंसा करते हैं और बड़े-बड़े धर्मज्ञ मुनि भी। किन्तु राजाओं, मैं तुमलोगों के सामने राजाओं का बलपूर्वक हरण कर रहा हूँ। तुमलोग अपनी पूरी शक्ति लगाकर मुझे जीत लो या हारकर भाग जाओ। मैं तुमलोगों के सामने युद्ध के लिये डटकर खड़ा हूँ। इस प्रकार समस्त राजाओं और काशीनरेश को ललकारकर वे कन्याओं को लेकर चल पड़े। भीष्म की इस बात से चिढकर सभी राजा ताल ठोंकते और ओठ चबाते हुए उनपर टूट पड़े। बड़ा रोमांचकारी युद्ध हुआ। सबने भीष्म पर एक साथ ही दस हजार बाण चलाये, परन्तु उन्होंने अकेले ही सबको काट डाला। उन्होंने बाणों की बौछार से भीष्म को रोकना चाहा, परन्तु भीष्म के सामने किसी की एक न चली। वह भयंकर युद्ध देवासुर-संग्राम जैसा था। भीष्म ने उस युद्धस्थली में सहस्त्रों धनुष, बाण, ध्वजा, कवच और सिर काट डाले। भीष्म का अलौकिक और अपूर्व शक्ति देखकर शत्रुपक्ष के होने पर भी सब उनकी प्रशंसा करने लगे। भीष्म विजयी होकर कन्याओं के साथ हस्तिनापुर लौट आये। वहाँ उन्होंने तीनों कन्याएँ विचित्रवीर्य को समर्पित कर दी और विवाह का आयोजन किया। तब काशीनरेश की बड़ी कन्या अम्बा ने भीष्म से कहा, भीष्म, मैं पहले मन-ही-मन राजा शाल्य को अपना पति मान चुकी हूँ। इसमें मेरे पिता की भी सम्मति थी। मैं स्वयंवर में भी उन्हें ही चुनती। आप तो बड़े धर्मज्ञ हैं। मेरी यह बात जानकर आप धर्मानुसार आचरण करें। भीष्म ने ब्राह्मणों के साथ विचार करके अम्बा को उसकी इच्छानुसार जाने की अनुमति दे दी और शेष दो कन्याएँ अम्बिका और अम्बालिका को विचित्रवीर्य के साथ व्याह दिया।विवाह के बाद विचित्रवीर्य दोनो पत्नियों के साथ रहने लगे। सात वर्ष तक कामासक्त रहने के कारण भरी जवानी में विचित्रवीर्य को क्षय-रोग हो गया और बहुत चिकित्सा करने पर भी वे चल बसे। इससे धर्मात्मा भीष्म के मन पर बड़ी ठेस लगी। परंतु उन्होंने धीरज धरकर उनकी क्रिया सम्पन्न की। कुछ दिनों बाद वंश-रक्षा के विचार से सत्यवती ने भीष्म को बुलाकर कहा, तुम काशीनरेश की कन्याओं द्वारा संतान उत्पन्न करके वंश की रक्षा करो। तुम स्वयं राजसिंहासन पर बैठो और प्रजा का पालन करो। केवल माता सत्यवती ने ही नही, सभी सगे-संबंधियों ने भी ऐसी प्रेरणा दी। उस समय देवव्रत भीष्म ने कहा कि, मैं त्रिलोकी का राज्य, ब्रह्मा का पद और इन दोनो से अधिक मोक्ष का भी परित्याग कर दूँगा। परन्तु सत्य नहीं छोड़ूँगा। मैं अपनी सत्य प्रतिज्ञा छोड़ने का संकल्प भी नहीं कर सकता। भीष्म की भीषण प्रतिज्ञा की पुनरावृति सुनकर सत्यवती ने फिर उनसे सलाह की और व्यास का स्मरण किया। व्यास ने उपस्थित होकर कहा, माता मैं आपकी क्या सेवा करूँ। सत्यवती ने कहा, बेटा, तुम्हारा भाई विचित्रवीर्य निःसंतान ही मर गया है। माता की आज्ञानुसार व्यासजी ने अम्बिका से धृतराष्ट्र और अम्बालिका से पाण्डु को उत्पन्न किया। जब अपनी-अपनी माता के दोष के कारण धृतराष्ट्र अंधे और पाण्डु पीले हो गये, तब अम्बिका की प्रेरणा से उसकी दासी ने व्यासजी के द्वारा ही विदुर को उत्पन्न किया। महात्मा माण्डव्य के शाप से धर्मराज ही विदुर के रुप में अवतीर्ण हुए थे।      

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