Thursday 18 June 2015

आदिपर्व-भू-भार-हरण के लिये देवताओं के अवतार-ग्रहण के निश्चय

भू-भार-हरण के लिये देवताओं के अवतार-ग्रहण के निश्चय
वैशम्पायनजी कहते हैं---जनमेजय ,जमदग्निनंदन परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी के क्षत्रियों का संहार किया था। यह काम करके वे महेन्द्र पर्वत पर चले गये,और वहाँ तपस्या करने लगे। क्षत्रियों के संहार हो जाने पर क्षत्रियों की वंशरक्षा तपस्वी,त्यागी,संयमी ब्राह्मणों के द्वारा हुई। कुछ ही दिनों बाद फिर क्षत्रिय-राज्य की पुनःस्थापना हो गयी। क्षत्रियों के धर्मपूर्वक प्रजापालन करने से ब्राह्मण आदि वर्णाश्रमधर्मी सुखी हो गये। राजालोग काम, क्रोध और उनके कारण होनेवाले दोषों को छोड़कर धर्मानुसार शासन और पालन करने लगे। समय पर वर्षा होती। बचपन में कोई भी न मरता। सभी लोग अपने-अपने वर्ण और आश्रम के अधिकारानुसार अपना-अपना काम करते थे। धर्म-हानि का तो कोई प्रसंग ही नहीं आता था। उस समय सतयुग था। जिस समय इस प्रकार आनंद छा रहा था, उसी समय क्षत्रियों में राक्षस उत्पन्न होने लगे। उस समय देवताओं ने युद्ध में दैत्यों को बार-बार हराया। पृथ्वी असुरों के भार से त्रस्त हो गयी। दैत्य और दानव तरह-तरह का रुप धारण करके पृथ्वी को भर दिये और सारी प्रजा को सताने लगे।उनसे पीड़ित होकर पृथ्वी ब्रह्माजी के शरण में गयी। उस समय वह इतनी भाराक्रान्त हो रही थी कि शेष,कच्छप और दिग्गज भी उसे उठाने में असमर्थ हो गये। प्रजापति भगवान ब्रह्मा ने शरणागत पृथ्वी से कहा ,देवी तू जिस कार्य के लिये मेरे पास आयी है,उसके लिये मैं सब देवताओं को नियुक्त करुँगा। ब्रह्माजी ने देवताओं को आज्ञा दी कि तुमलोग पृथ्वी का भार उतारने के लिये अपने-अपने अंशों से अलग-अलग पृथ्वी पर अवतार लो। उसके बाद गन्धर्व और अप्सराओं को भी बुलाकर कहा,तुमलोग भी स्वेच्छानुसार अपने-अपने अंश से जन्म लो। सब देवताओं ने ब्रह्माजी के सत्य हितकारी और प्रयोजनानुकूल वचन को स्वीकार किया।इसके बाद सबने शत्रुनाशक भगवान् नारायण के पास जाने के लिये बैकुण्ठ की यात्रा की। इन्द्र ने उनसे प्रार्थना की कि आप धरती का भार उतारने के लिये अंशावतार ग्रहण कीजिये। भगवान् ने तथास्तु कहकर स्वीकार किया। अब देवतालोग प्रजा के कल्याण और राक्षसों के संहार के लिये क्रमशः पृथ्वी पर अवतीर्ण होने लगे। वे स्वेच्छानुसार ब्रम्हर्षियों अथवा राजर्षियों के वंश में जन्म लेकर असुरों का संहार करने लगे। वे बचपन में ही इतना बलवान थे असुरगण उनका बाल भी बाँका नहीं कर सकते थे । 

No comments:

Post a Comment