पुरुवंश का वर्णन
पुरु की पत्नी का नाम कौशल्या था। उससे जन्मेजय का
जन्म हुआ। उसने तीन अश्वमेध और एक विश्वजीत यज्ञ किया था। जन्मेजय की पत्नी थी अनंता।
उससे प्राचिन्वान् हुआ। प्राचिन्वान् की पत्नी थी अशमकि, उससे संयति हुआ। संयति की
वराङ्गी नामक पत्नी से अहंयाति का जन्म हुआ। अहंयाति की पत्नी भानुमति सर्वभौम, सर्वभौम
की पत्नी सुनंदा से जयत्सेन, जयत्सेन की पत्नी सुश्रुवा से अवाचीन, अवाचीन की पत्नी
मर्यादा से अरिह.......इस तरह और पाँच पीढियों के बाद दुष्यंत और शकुन्तला से भरत हुआ।
भरत की पत्नी सुनंदा से भुभन्यु, भुभन्यु की पत्नी विजया से सुहोत्र, सुहोत्र की पत्नी
सुवर्णा से हस्ति का जन्म हुआ। उन्होंने ही हस्तिनापुर बसाया। हस्ति की पत्नी यशोधरा
से विकुन्ठन, विकुन्ठन की सुदेवा से अजमीठ, अजमीठ की विभिन्न पत्नियों से एक सौ चौबीस
पुत्र हुए। सभी विभिन्न वंशों के प्रवर्तक हुए। उनमें भरत वंश के प्रवर्तक का नाम था
संवरण। संवरण की पत्नी तपती से कुरु का जन्म हुआ। कुरु से विदूरथ, विदूरथ से अनश्रवा,
अनश्रवा से परीक्षित, परीक्षित से भीमसेन, भीमसेन से प्रतिश्रवा और प्रतीप। प्रतीप
के तीन पुत्र हुए। देवापि, शान्तनु और वाह्लीक। देवापि बचपन में ही तपस्या करने चले
गये। शान्तनु राजा हुए। वे जिस बूढे को अपने हाथों से छू देते थे, वह फिर से जवान और
सुखी हो जाता था।इसी से उनका नाम शान्तनु पड़ा था।शान्तनु का विवाह भागीरथी गंगा से
हुआ था। जिससे देवव्रत का जन्म हुआ। वे जगत्
में भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हैं। भीष्म ने अपने पिता की प्रसन्नता के लिये सत्यवती
के साथ उनका विवाह करा दिया था। उनके दो पुत्र हुए, विचित्रवीर्य और चित्रांगद। चित्रांगद
बचपन में ही गन्धर्व के हाथ से युद्ध में मारा गया। विचित्रवीर्य राजा हुए। उनकी दो
स्त्रियाँ थी, अम्बिका और अम्बालिका। विचित्रवीर्य संतान होने के पहले ही मर गये। उनकी
माता सत्यवती ने सोचा कि अब तो दुष्यंत वंश का उच्छेद हुआ। उसने व्यास का स्मरण किया
और उनके आने पर कहा कि तुम्हारा भाई विचित्रवीर्य बिना संतान के ही मर गया। तुम उसकी
वंश रक्षा करो। व्यासजी ने माता की आज्ञा स्वीकार करके अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका
से पाण्डु और उनकी दासी से विदुर को उत्पन्न किया। व्यासजी के वरदान से धृतराष्ट्र
के सौ पुत्र हुए। उनमें चार प्रधान थे--दुर्योधन, दुःशासन, विकर्ण और चित्रसेन। पाण्डु
की पत्नी कुन्ती से तीन पुत्र हुए--युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन। उनकी दूसरी पत्नी
माद्री से दो पुत्र हुए--नकुल और सहदेव। द्रुपदराज की पुत्री द्रौपदी से पाँचो का विवाह
हुआ। पाँचों पाण्डवों से प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक और श्रुतकर्मा
का जन्म हुआ। युधिष्ठिर की एक और पत्नी का नाम देविका था। उनसे यौधेय हुआ। भीमसेन की
पत्नी काशीराज की कन्या बलन्धरा से सर्वंग नाम का पुत्र हुआ। अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण
की बहन सुभद्रा विवाह करके अभिमन्यु नामक पुत्र उत्पन्न किया। वह बड़ा गुणवान् और भगवान्
श्रीकृष्ण का प्रीतिपात्र था। नकुल की पत्नी करेणुमति से निरमित्र और सहदेव की पत्नी
विजया से सुहोत्र का जन्म हुआ। भीमसेन के इनसे पहले हिडिम्बा से घतोत्कच नाम का पुत्र
हो चुका था। इस प्रकार पाण्डव के ग्यारह पुत्र हुए। परन्तु वंश का विस्तार अभिमन्यु
से ही हुआ। इनके अतिरिक्त अर्जुन के दो पुत्र और थे। उलूपी से इडावान् और चित्रांगदा
से बभ्रुवाहन। वे दोनो अपनी-अपनी माता के साथ नाना के घर रहे और उन्हीं के उत्तराधिकारी
हुए। अभिमन्यु का विवाह विराटकुमारी उत्तरा के साथ हुआ था। इनसे एक मृत बालक का जन्म
हुआ जिसे भगवानन् श्रीकृष्ण ने जीवित किया। उसकी मृत्यु अश्र्वत्थामा के अस्त्र से
हुई थी। कुरुवंश के परिक्षीण होने परीक्षित् का जन्म हुआ था,
वह परीक्षित् के नाम से प्रसिद्ध हुआ। परीक्षित् के पुत्र जनमेजय। जनमेजयके दो पुत्र,
शतानीक और शंकुकर्ण। शतानीकके पुत्र अश्वमेधदत्त।
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