Thursday 18 June 2015

आदिपर्व-दक्ष-प्रजापति से ययाति वंश का वर्णन

दक्ष-प्रजापति से ययाति वंश का वर्णन
ब्रह्माजी के दाहिने अंगूठे से उत्पन्न दक्ष-प्रजापति ही प्राचेतस दक्ष हुये। उन्हीं से सारी प्रजा उत्पन्न हुई। उन्होंने पहले अपनी पत्नी वीरणी से एक सहस्त्र पुत्र उत्पन्न किये। नारद मुनि ने उन्हें मोक्षप्रद ज्ञान का उपदेश करके विरक्त बना दिया। तब उन्होंने पचास कन्याएँ उत्पन्न की। उन्होंने उनके प्रथम पुत्र को अपना बनाने की शर्त पर उनका विवाह किया। उन्होंने अपनी तेरह क्नयाओं का विवाह कश्यप से किया था। कश्यप की श्रेष्ठ पत्नी अदिति से इन्द्र और विवस्वान् आदि पुत्र हुये। विवस्वान् के ज्येष्ठ पुत्र मनु थे और कनिष्ठ यमराज। मनु बड़े धर्मात्मा थे। उन्हीं से मानव जाति की उत्पत्ति हुई और सूर्यवंश मनुवंश कहलाया। मनु के दस पुत्र थे।मनु के पचास पुत्र और भी थे परन्तु वे आपस की फूट के कारण लड़ मरे। इला के पुरुरवा नाम का पुत्र हुआ। पुरुरवा समुद्र के तेरह द्वीपों का शासक था। वह मनुष्य होने पर भी अमानुष  था।अपने बल-पौरुष के मद से उन्मत्त होकर पुरुरवा ने ब्राह्मणों का बहुत सा धन एवं रत्न छीन लिया।सनत्कुमार ने ब्रह्मलोक से आकर उसे बहुत समझाया भी, परन्तु उसपर कोई असर न पड़ा। ऋषियों ने क्रोधित होकर शाप दिया और उसका नाश हो गया। यह वही पुरुरवा है जो उर्वशी को ले आया था। उर्वशी के छः पुत्रों में आयु सबसे बड़ा था।आयु के पाँच पुत्रों में नहुष सबसे बड़े थे।नहुष बड़े बुद्धिमान और सच्चे वीर थे। उन्होंने धर्म के अनुसार अपने महान् राज्य का शासन किया। उनके राज्य में सभी सुखी थे। उन्होंने अभिमानवश ऋषियों से पालकी ढुवायी।वही उनके नाश का भी कारण हुआ। नहुष के छः पुत्र हुये। यति,ययाति, संयाति, आयाति, अयति और ध्रुव। यति योग साधना करके ब्रह्मस्वरुप हो गये। इसलिये नहुष के दूसरे पुत्र ययाति राजा हुये। उन्होंने बहुत से यज्ञ किये और बड़ी भक्ति से पितर आदि की उपासना करते हुये प्रेम से प्रजा का पालन किया। उनकी दो पत्नियाँ थी--देवयानी और शर्मिष्ठा। देवयानी के दो पुत्र हुये--यदु और तुर्वसु। शर्मिष्ठा के तीन पुत्र हुये--द्रह्यु,अनु और पुरु।    

No comments:

Post a Comment