Tuesday 23 June 2015

आदिपर्व-पाण्डवों को वारणावत जाने की आज्ञा

पाण्डवों को वारणावत जाने की आज्ञा

        दुर्योधन ने देखा कि भीमसेन की शक्ति असीम है और अर्जुन का अस्त्र-ज्ञान तथा अभ्यास विलक्षण है।उसका कलेजा जलने लगा।उसने कर्ण और शकुनि के साथ मिलकर पाण्डवों के मारने के बहुत उपाय किये, परन्तु पाण्डव सबसे बचते गये। विदुर की सलाह से उन्होंने यह बात किसी पर प्रकट भी नहीं की। नागरिक और पुरवासी पाण्डवों के गुण देखकर भरी सभा में उनके गुणों का बखान करने लगे। वे जहाँ कहीं चबूतरों पर इकट्ठे होते, सभा करते, वहीं इस बात पर जोर डालते कि पाण्डु के ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठिर को राज्य मिलना चाहिये। धृतराष्ट्र को तो पहले ही अंधे होने के कारण राज्य नहीं मिला। अब वे राजा कैसे हो सकते हैं। भीष्म भी बड़े सत्यसंध एवं प्रतिज्ञापरायण हैं, वे पहले भी राज्य अस्वीकार कर चुके हैं, तो अब कैसे ग्रहण करेंगे। इसलिये हमें उचित है कि सत्य और करुणा के पक्षपाती, पाण्डु के ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठिर को ही राजा बनायें। इसमें कोई संदेह नहीं कि उनके राजा होने से भीष्म और धृतराष्ट्र आदि को कोई असुविधा न होगी। प्रजा की यह बात सुनकर दुर्योधन जलने लगा। वह जल-भुन और कुढकर धृतराष्ट्र के पास गया और कहने लगा, पिताजी लोगों के मुँह से बड़ी बकझक सुनने को मिल रही है। वे भीष्म को और आपको हटाकर पाण्डवों को राजा बनाना चाहते हैं। भीष्म को तो इससे कोई आपत्ति है नही, परंतु हमलोगों के लिए यह बहुत बड़ा खतरा है। पहले ही भूल हो गई पाण्डु ने राज्य स्वीकार कर लिया और आपने अपनी अंधता के कारण मिलता हुआ राज्य भी अस्वीकार कर दिया। यदि युधिष्ठिर को राज्य मिल गया तो फिर यह उन्हीं की वंश-परंपरा चलेगा और हमें कोई नहीं पूछेगा। हमें और हमारी संतान को दूसरों के आश्रित रहकर नरक के समान कष्ट न भोगना पड़े इसके लिये आप कोई-न-कोई युक्ति सोचिये। यदि पहले ही आपने राज्य ले लिया होता तो कहने की कोई बात ही नहीं होती। अब क्या किया जाय। धृतराष्ट्र अपने पुत्र दुर्योधन की बात और कणिक की नीति सुनकर दुविधा में पड़ गये। दुर्योधन ने कर्ण, शकुनी और दुःशासन से विचार करके धृतराष्ट्र से कहा, पिताजी, आप कोई सुन्दर सी युक्ति सोचकर पाण्डवों को यहाँ से वारणावत भेज दीजिये। धृतराष्ट्र सोच-विचारमें पड़ गये। धृतराष्ट्र ने कहा, बेटा मेरे भाई पाण्डु बड़े धर्मात्मा थे। सबके साथ और विशेष रुप से मेरे साथ वे बड़ा उत्तम व्यवहार करते थे। वे अपने खाने-पीने की भी परवा नहीं रखते थे, सबकुछ मुझसे कहते और मेरा ही राज्य समझते। उनका पुत्र युधिष्ठिर भी उतना ही धर्मात्मा, गुणवान्, यशस्वी एवं वंश के अनुरुप है। हमलोग बलपूर्वक उसे वंशपरंपरागत राज् से कैसे च्युत कर दें, विशेष करके जब उसके सहायक भी बहुत बड़े-बड़े हैं। पाण्डु ने मंत्री, सेना और उनकी वंशपरंपरा का खूब भरण-पोषण किया है। सारे नागरिक युधिष्ठिर से संतुष्ट रहते हैं। वे बिगड़कर हमलोगों को मार डालें तो दुर्योधन ने कहा, पिताजी, इस भावी आपत्ति के विषय में मैंने पहले ही सोचकर और सम्मान के द्वारा प्रजा को प्रसन्न कर लिया है। वह प्रधानतया हमारी सहायता करेगी। खजाना और मंत्री मेरे अधीन हैं ही। इस समय यदि आप नम्रता के साथ पाण्डवों को वारणावत भेज दें तो राज्य पर मैं पूरी तरह कब्जा कर लूँगा। उसके बाद वे आ जायँ तो कोई हानि नहीं। धृतराष्ट्र ने कहा, बेटा, मैं भी तो यही चाहता हूँ। परन्तु यह पापपूर्ण बात उनसे कहूँ कैसे। भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य और विदुर की इसमें सम्मति नहीं है। उनका कौरवों और पाण्डवों पर समान प्रेम है। दुर्योधन ने कहा, पिताजी, भीष्म तो मध्यस्थ हैं। अश्त्थामा मेरे पक्ष में हैं ,इसलिये द्रोण उसके विरुद्ध नहीं जा सकते। कृपाचार्य अपनी बहिन, बहनोई और भांजे को कैसे छोड़ेंगे। रह गई बात विदुर की, वे छिपे-छिपे पाण्डवों से मिले हैं। पर वे अकेले करेंगे क्या। इसलिये आप बिना शंका-संदेह के पाण्डवों को वारणावत भेज दीजिये तभी मेरी जलन मिटेगी। यह कहकर दुर्योधन तो प्रजा को प्रसन्न करने में लग गया और धृतराष्ट्र ने कुछ ऐसे चतुर मंत्रियों को नियुक्त किया, जो वारणावत की प्रशंसा करके पाण्डवों को वहाँ जाने के लिये उकसायें। कोई उस सुन्दर और सम्पन्न देश की प्रशंसा करता तो कोई नगर की। कोई वहाँ के मेले का बखान करते नहीं अघाता। इस प्रकार वारणावत नगर की बहुत प्रशंसा सुनकर पाण्डवों का मन कुछ-कुछ वहाँ जाने के लिये उत्सुक हो गया। अवसर देखकर धृतराष्ट्र ने कहा, प्यारे पुत्रों, लोग मुझसे वारणावत की बड़ी प्रशंसा करते हैं। यदि तुमलोग वहाँ जाना चाहते हो तो जाओ। आजकल वहाँ मेले की बड़ी धूम है। युधिषठिर धृतराष्ट्र की बात तुरंत समझ गये। उन्होंने अपने को असहाय देखकर कहा, जैसी आपकी आज्ञा, हमें क्या आपत्ति है। उन्होंने कुरुवंश के बाह्लीक, भीष्म, सोमदत्त आदि बड़े-बूढों, द्रोणाचार्य आदि तपस्वी ब्राह्मणों तथा गांधारी आदि माताओं से दीनतापूर्वक कहा, हम राजा धृतराष्ट्र की आज्ञा से अपने साथियों सहित वारणावत जा रहे हैं। सबने कहा, सर्वत्र  तुम्हारा कल्याण हो।

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