हस्तिनापुर में पाण्डवों का आगमन तथा पाण्डु की अन्त्येष्टि
क्रिया
पाण्डु की मृत्यु देखकर दिव्यज्ञान सम्पन्न महर्षियों
ने आपस में सलाह की। उन्होंने सोचा कि परम यशस्वी महात्मा पाण्डु अपना राज्य और देश
छोड़कर इस स्थान में तपस्या करने के लिये हम तपस्वियों की शरण में आये थे। अब हमलोगों
के लिये उचित है कि उनके पुत्र, अस्थि और पत्नी को ले चलकर वहाँ पहुँचा दें। यही हमारा
धर्म है। ऐसा विचार करके तपस्वियों ने भीष्म और धृतराष्ट्र के हाथों पाण्डवों को सौंपने
के लिये हस्तिनापुर की यात्रा की। थोड़े ही दिनों में वे हस्तिनापुर के वर्द्धमान द्वार
पर आ पहुँचे। अनेक चारण आदि देवताओं के साथ मुनियों का आगमन सुनकर लोगों को बड़ा आश्चर्य
हुआ। वे अपने बाल-बच्चों के साथ उनके दर्शन के लिये आने लगे। भीष्म, सोमदत्त, बाह्लीक,
धृतराष्ट्र, विदुर, सत्यवती, काशीराज की कन्या, गान्धारी और दुर्योधन आदि धृतराष्ट्रकुमार
सभी वहाँ आये। सब उन महर्षियों को प्रणाम करके बैठ गये। भीड़ का कोलाहल शान्त होने पर
भीष्म ने ऋषियों का सत्कार किया और अपने राज्य तथा देश का कुशल समाचार निवेदन किया।
सबकी सम्मति से एक ऋषि ने कहना शुरु किया--कुरुवंशशिरोमणि राजा पाण्डु विषयों का त्याग
करके शतश्रृंग पर रने लगे थे। वे तो ब्रहमचर्य व्रत का पालन करते थे, परन्तु दिव्य
मंत्र के प्रभाव से धर्मराज के अंश से युधिष्ठिर, वायु के अंश से भीमसेन, इन्द्र के
अंश से अर्जुन और अश्विनीकुमारों के अंश से नकुल और सहदेव का जन्म हुआ है। पहले तीनों
कुन्ती के पुत्र हैं और पिछले दोनो माद्री के। आज सतरह दिन की बात है कि पाण्डु पितृलोकवासी
हो गये। माद्री भी उन्हीं के साथ सती हो गयी। अब आपलोग जो उचित समझें वह करें। ये हैं
उन दोनो के शरीर की अस्थियाँ और ये हैं उनके पुत्र। आपलोग इन बच्चों और इनकी माता पर
कृपा रखें। इतना कहकर वे ऋृषि और उनके सभी साथी अन्तर्धान हो गये। सभी लोग इन सिद्ध
तपस्वियों के दर्शन करके विस्मित हुये। अब राजा धृतराष्ट्र की आज्ञा
से विदुर ने राजा पाण्डु और महारानी माद्री का श्राद्ध गंगा तट पर सम्पन्न कराया।
अब राजा धृतराष्ट्र की आज्ञा
से विदुर ने राजा पाण्डु और महारानी माद्री का श्राद्ध गंगा तट पर सम्पन्न कराया।
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