राजसूय-यज्ञ की समाप्ति
परम
प्रतापी युधिष्ठिर का यज्ञ समस्त एश्वर्यों से परिपूर्ण था। उसे देखकर उत्साही वीरों
को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसमें आनेवाले विघ्न अपने आप शान्त हो गये। धन-सम्पत्ति आवश्यकता
से अधिक आयी। असंख्य मनुष्य के खाते-पीते रहने पर भी अन्न के गोदाम भरे रहे। इसका कारण
यही था कि स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण उसके संरक्षक थे। धर्मराज युधिष्ठिर ने बड़ी प्रसन्नता
से यह यज्ञ पूर्ण किया। जबतक यज्ञ समाप्त नहीं हो गया तबतक सर्वशक्तिमान भगवान् श्रीकृष्ण
उसकी रक्षा में तत्पर रहे। जब धर्मराज युधिष्ठिर यज्ञान्त में अवभृत स्नान कर चुके
तब सभी राजाओं ने जाने की आज्ञा ली। भीमसेन, अर्जुन आदि ने बड़े-भाई की आज्ञा से प्रत्येक
राजा को सत्कारपूर्वक विदा किया। जब सभी वहाँ से पधार गये तब भगवान् श्रीकृष्ण ने द्वारका
जाने की अनुमति ली।
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