पाण्डवों का धौम्य मुनि को पुरोहित बनाना
गन्धर्वराज के मुख से पुरोहित की महिमा और प्रसंगवश
महर्षि वशिष्ठ की क्षमाशीलता सुनकर अर्जुन ने पूछा, गन्धर्वराज तुम तो सबकुछ जानते
हो। यह बतलओ कि हमलोगों के योग्य वेदज्ञ पुरोहित कौन होगा। गन्धर्व ने कहा, अर्जुन,
इसी वन के उत्कोचक तीर्थ में देवल के छोटे भाई तपस्या कर रहे हैं।आपलोगों की इच्छा हो तो उन्हें
पुरोहित बना लें। इसके बाद अर्जुन ने गन्धर्वराज को विधिपूर्वक आग्नेयास्त्र दिया और
प्रसन्नता से कहा, गन्धर्वराज, तुम जो घोड़े देना चाहते हो वह अभी तुम्हारे पास रहे।
समय आने पर उन्हें ले लेंगे। इस प्रकार आपस में एक-दूसरे का सत्कार करके गन्धर्व और
पाण्डव गंगा-तट से अभीष्ट स्थान की ओर चल पड़े। पाण्डवों ने उत्कोचक तीर्थ में धौम्य
मुनि के आश्रम पर जाकर उनसे पुरोहित बनने की प्रार्थना की। धौम्य ने कन्द, मूल, फल
से पाण्डवों का स्वागत किया और पुरोहित बनना स्वीकार कर लिया। इससे पाण्डवों को इतनी
प्रसन्नता हुई और उन्हें ऐसा मालूम हुआ सारी सम्पत्ति और राज्य मिल गया। उन्हें इस
बात का पक्का विश्वास हो गया कि अब स्वयंवर में द्रौपदी हमें ही मिलेगी। पाण्डव सनाथ
हो गये। धौम्य मुनि को ऐसा दीखने लगा कि इन धर्मात्मा वीरों को इनकी विचारशीलता शक्ति
और उत्साह के फलस्वरुप शीघ्र ही राज्य की प्राप्ति होगी। मंगलाचार के अनन्तर पाण्डवों
ने स्वयंवर के लिये यात्रा की।
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