Saturday 22 August 2015

वनपर्व---किर्मीर-वध की कथा

किर्मीर-वध की कथा
मैत्रेय मुनि के चले जाने पर धृतराष्ट्र ने विदुरजी से पूछा---'विदुर ! भीमसेन से किर्मीर राक्षस की भेंट कहाँ हुई ? तुम मझे किर्मीर वध की कथा सुनाओ।' विदुरजी ने कहा---' राजन् ! पाण्डवों के सभी काम अलौकिक हैं। मुझे तो बार-बार उन्हें सुनने का अवसर मिलता है। राजन् ! जिस समय पाण्डव जूए में हारकर वनवास के लिये हस्तिनापुर से रवाना हुए उस समय लगातार तीन दिन तक चलते ही रहे। जिस मार्ग से वे काम्यक वन में प्रवेश करना चाहते थे, आधी रात को उस मार्ग को रोककर किर्मीर राक्षस खड़ा हो गया। वह हाथ में जलती हुई लूक लिये हुये था। भुजाएँ लम्बी थी और डाढें भयंकर। आँखें लाल-लाल। सिर के खड़े-खड़े बाल, मानो आग की लपटें हों। वह कभी तरह-तरह के माया फैलाता तो कभी बादलों की तरह गरजता। उसकी गर्जना से सारे वनपशु भयभीत होकर खलबला उठे। आँधी चलने लगी। धूल से आकाश आच्छादित हो गया। द्रौपदी तो उसके दर्शनमात्र से बेहोश-सी हो गयी। उसकी यह चाल देखकर पुरोहित धौम्य ने रक्षोघ्न मंत्र का पाठ करके राक्षसी माया नष्ट कर दी। उसी समय किर्मीर राक्षस भयावने वेश में पाण्डवों के सामने आकर खड़ा हो गया। पाण्डवों का परिचय जानकर किर्मीर ने कहा कि 'मैं बकासुर का भाई और हिडिम्ब का मित्र हूँ। इसी भीमसेन ने उनको मारा है। इसलिये आज अच्छा अवसर मिला। इसे मैं अभी नष्ट किये डालता हूँ।' उसी समय भीमसेन ने एक बहुत बड़ा पेड़ उखाड़ा और उसके पत्ते तोड़-ताड़कर फेक दिये। उन्होंने वृक्ष को उठाया और राक्षस के सिर पर दे मारा। परन्तु इससे राक्षस को कोई घबराहट नहीं हुई। राक्षस ने उनके ऊपर एक जलती हुई लकड़ी फेंकी, परन्तु भीमसेन ने पैर से मारकर अपने को बचा लिया। इसके बाद दोनों में भयंकर वृक्षयुद्ध हुआ, जिससे आस-पास के बहुत से वृक्ष नष्ट हो गये। भीमसेन ने हाथी के समान झपटकर राक्षस को अपनी बाँहों में बाँध तो लिया अवश्य, परंतु वह जोर करके निकल गया और उलटे भीमसेन को ही पकड़ लिया। तदनन्तर बलवान् भीमसेन ने उसको जमीन पर गिरा दिया और उसकी कमर घुटनों से दबाकर गला घोंट दिया। उसका शरीर ढीला पड़ गया। आँखें निकल आयीं। इस प्रकार किर्मीर राक्षस के मर जाने पर पाण्डवों को बड़ी प्रसन्नता हुई। सबलोग भीमसेन की प्रशंसा करने लगे और फिर काम्यक वन में प्रवेश किया।' इस प्रकार विदुरजी से किर्मीर-वध की बात सुनकर राजा धृतराष्ट्र उदास हो गये और उन्होंने लम्बी साँस ली। 

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