पाण्डवों का विवाह
अब भगवान् वेदव्यास
ने द्रुपद के साथ युधिष्ठिर के पास आकर कहा, आज ही विवाह के लिये शुभ दिन और शुभ मुहूर्त
है। आज चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र पर है।इसलिये आज तुम द्रौपदी का पाणिग्रहण करो। आज ही
विवाह सम्पन्न होगा यह निर्णय होते ही द्रुपद और धृष्टधुम्न आदि ने विवाह के लिये आवश्यक
सामग्री जुटाने का प्रबंध किया।द्रौपदी को नहला-धुला कर उत्तम-उत्तम वस्त्र और आभूषण
पहनाये गये।समय होने पर द्रौपदी मण्डप में लायी गयी। राजपरिवार के इष्टमित्र ,मंत्री,
ब्राह्मण, परिजन, पुरजन बड़े आनंद से विवाह देखने के लिये आ-आकर अपने योग्य स्थानों
पर बैठने लगे। उस समय विवाह-मंडप का सौन्दर्य अवर्णनीय हो रहा था। पाँचों पाण्डव भी
वस्त्रालंकार से सज-धज कर महारज द्रुपद के आँगन में आये। उनके आगे-आगे तेजस्वी पुरोहित
धौम्य चल रहे थे। वेदी पर अग्नि प्रज्वलित की गयी। युधिष्ठिर ने विधिपूर्वक द्रौपदी
का पाणिग्रहण किया, हवन हुआ और अंत में भाँवरे फिराकर विवाहकर्म समाप्त किया गया। इसी
प्रकार शेष भाइयों ने भी क्रमशः एक-एक दिन द्रौपदी का पाणिग्रहण किया। इस अवसर पर सबसे
विलक्षण बात यह हुई कि देवर्षि नारद के कथनानुसार द्रौपदी पुनः प्रतिदिन कन्याभा को
प्राप्त हो जाया करती थी। विवाह के अनन्तर राजा द्रुपद ने दहेज में बहुत से रत्न, धन
और श्रेष्ठ सामग्रियाँ दी। रत्नों से जड़ी रासें, लगाम, उत्तम जाति के घोड़ं से जुते
सौ रथ, सौ हाथी, वस्त्राभूषण सविभूषित सौ दासियाँ प्रत्येक दामाद को दी गयीं। इसके
अतिरिक्त भी बहुत सा धन, रत्न और अलंकार पाण्डवों को दिये गये। इस प्रकार पाण्डव अपार
संपत्ति और स्त्री-रत्न द्रौपदी को प्राप्त करके राजा द्रुपद के पास ही सुख से रहने
लगे। द्रुपद की रानियों ने कुन्ती के पास आकर, उनके पैरों पर सिर रखकर प्रणाम किया।
रेशमी साड़ी पहने द्रौपदी भी सास को प्रणाम करके हाथ जोड़े नम्र भाव से उनके सामने खड़ी
हो गयी। तब कुन्ती ने बड़े प्रेम से अपनी शीलवती पुत्र-वधू द्रौपदी को आशीर्वाद देते
हुए कहा, जैसे इन्द्राणी न इन्द्र से, स्वाहा ने अग्नि से, रोहिणी ने चन्द्रमा से,
दमयन्ति ने नल से, अरुन्धति ने वशिष्ठ से, और लक्ष्मी ने भगवान नारायण से प्रेम निभाया
है, वैसे तुम भी अपने पतियों से निभाना। तुम आयुष्मति, वीरप्रसविनी, सौभाग्यवती और
पतिव्रता होकर सुख भोगो। अतिथि, अभ्यागत, साधु, बूढे और बालकों की आवभगत तथा पालन-पोषण
में ही तुम्हारा समय व्यतीत हो। तुम अपने सम्राट पतियों की पटरानी बनो। जगत् के सारे
सुख तुम्हें मिले और तुम सौ वर्ष तक उसका उपभोग करो। भगवान् श्रीकृष्ण पाण्डवों का
विवाह हो जाने पर भेंट के रूप में वैदूर्य आदि मणियों से जड़े हुए स्वर्णालंकार, कीमती
कपड़े, देश-विदेश के बहुमूल्य कंबल, दुशाले, सैकड़ों दासियाँ, बड़े-बड़े घोड़े, हाथी, रथ
करोड़ों मोहरें और छकड़ों सोना भेजा। युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण क प्रसन्नता के लिये
सब कुछ बड़े हर्ष से स्वीकार किया।
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