Friday 4 August 2017

दूसरा दिन___कौरवों का व्यूहरचना और अर्जुन तथा भीष्म का युद्ध


संजय ने कहा___राजन् ! दुर्योधन ने जब उस दुर्भेद्य क्रौन्चव्यूह की रचना देखी और अत्यन्त तेजस्वी अर्जुन को उसकी रक्षा करते पाया तो द्रोणाचार्य के पास जाकर वहाँ उपस्थित सभी शूरवीरों से कहा___’वीरों ! आप सब लोग नाना प्रकार के अस्त्रसंचालन की विद्या जानते हैं और युद्ध की कला में प्रवीण हैं। आपमें से एक_एक वीर भी युद्ध में पाण्डवों को मारने की शक्ति रखता है; फिर यदि सभी महारथी एक साथ मिलकर उद्योग करें, तब तो कहना ही क्या है ?’ उसके इस प्रकार कहने से भीष्म, द्रोण और आपके सभी पुत्र मिलकर पाण्डवों के मुकाबले में एक महान् व्यूह की रचना करने लगे। भीष्मजी बहुत बड़ी सेना साथ लेकर सबसे आगे चले। उनके पीछे कुन्तल, दशार्ण, मगध, विदर्भ आदि देशों के वीरों को साथ लेकर महाप्रतापी द्रोणाचार्य चले। गान्धार, सिन्धुसौवीर, शिबि और वसाति वीरों के साथ शकुनि द्रोणाचार्य की रक्षा में नियुक्त हुआ। इनके पीछे अपने सभी भाइयों के साथ दुर्योधन था। उसके साथ अव्श्रातक, विकर्ण, अम्बष्ठ, कोसल दरद, शक, क्षुद्रक और मालव देश के योद्धा थे। इन सबके साथ वह शकुनि की सेना की रक्षा कर रहा था। भूरिश्रवा, शल, शल्य, भगदत्त और विन्द_अनुविन्द___ये व्यूह के वाम भाग की रक्षा करने लगे। सोमदत्त का पुत्र, सुशर्मा, कम्बोजराज सुदक्षिण, श्रुतायु और अच्युतायु___ये दक्षिण भाग के रक्षक हुए। अश्त्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा__ये बहुत बड़ी सेना के साथ व्यूह के पृष्ठभाग में खड़े हुए। इनके पृष्ठपोषक थे केतुमान्, वसुदान, काशीराज के पुत्र तथा और दूसरे_दूसरे देशों के राजालोग। राजन् ! तदनन्तर, आपके पक्ष के सब योद्धा युद्ध के लिये तैयार हो गये और बड़े आनन्द के साथ शंख बजाने एवं सिंहनाद करने लगे। हर्ष में भरे हुए सैनिकों के सिंहनाद सुनकर कौरवों के पितामह भीष्म ने भी सिंह के समान दहाड़कर उच्च स्वर से शंख बजाया। तदुपरान्त शत्रुओं ने भी अनेकों प्रकार के शंख, भेरी, पेशी और आनक आदि बाजे बजाये; उनकी तुमुल ध्वनि सब ओर गूँजने लगी। श्रीकृष्ण, अर्जुन, भीमसेन, युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव ने भी अपने_अपने शंख बजाये तथा काशिराज, शैब्य, शिखण्डी, धृष्टधुम्न, विराट, सात्यकि, पांचालदेशीय वीर और द्रौपदी के पुत्र भी बड़े_बड़े शंख बजाकर सिंहों के समान दहाड़ने लगे। उनके शंखनाद की ऊँची आवाज पृथ्वी से लेकर आकाश तक गूँज उठी। इस प्रकार कौरव और पाण्डव एक_दूसरे को पीड़ा पहुँचाते हुए युद्ध के लिये आमने_सामने खड़े हो गये। धृतराष्ट्र ने पूछा___जब दोनों ओर की सेना व्यूहरचनापूर्वक खड़ी हो गयी तो योद्धाओं ने किस प्रकार एक_दूसरे पर प्रहार करना शुरू किया ? संजय ने कहा___जब दोनों समानरूप से सेनाओं की व्यूहरचना हो गयी और सब ओर सुन्दर ध्वजाएँ फहराने लगीं, तब दुर्योधन ने अपने योद्धाओं को युद्ध करने की आज्ञा दी। कौरववीरों ने जीवन का मोह छोड़कर पाण्डवों पर आक्रमण किया। फिर तो दोनों ओर की सेनाओं में रोमांचकारी युद्ध होने लगा। रथ से रथ और हाथी से हाथी भिड गये। हाथी और घोड़ों के शरीरों में असंख्य बाण घुसने लगे। इस प्रकार घमासान युद्ध आरम्भ हो जाने पर पितामह भीष्म अपना धनुष उठाकर अभिमन्यु, भीमसेन, सात्यकि, कैकय, विराट, और धृष्टधुम्न आदि वीरों पर तथा केकय और मत्स्य देश के राजाओं पर बाणों का वर्षा करने लगे। उनकी मार से पाण्डवों का व्यूह टूट गया, सारी सेना तितर_बितर हो गयी। कितने ही सवार और घोड़े मारे गये, रथियों के झुंड_के_झुंड भाग चले। अर्जुन महारथी भीष्म के ऐसे पराक्रम देखकर क्रोध में भर गये और भगवान् श्रीकृष्ण से बोले, ‘जनार्दन ! अब पितामह भीष्म के पास रथ ले चलिये, नहीं तो ये हमारी सेना का अवश्य ही संहार कर डालेंगे। सेना को बचाने के लिये आज मैं भीष्म का वध करूँगा।‘ श्रीकृष्ण ने कहा___’अच्छा धनन्जय ! अब सावधान हो जाओ। यह देखो, मैं अभी तुम्हें पितामह के रथ के पास पहुँचाये देता हूँ।‘ ऐसा कहकर श्रीकृष्ण अर्जुन के रथ को भीष्म के पास ले चले। भीष्म ने जब देखा अर्जुन अपने बाणों से शूरवीरों का मर्दन करते हुए बड़े वेग से आ रहे हैं, तो आगे बढ़कर उनका सामना किया। उस समय अर्जुन के ऊपर भीष्म ने सतहत्तर, द्रोण ने पच्चीस, कृपाचार्य ने पचास, दुर्योधन नो चौंसठ, शल्य और जयद्रथ नो नौ_नौ, शकुनि ने पाँच और विकर्ण ने दस बाण मारे। इस प्रकार चारों ओर से तीखे बाणों से बिंध जाने पर भी महाबाहु अर्जुन तनिक भी व्यथित या विचलित नहीं हुए। उन्होंने भीष्म को पचीस, कृपाचार्य को नौ द्रोणाचार्य को साठ, विकर्ण को तीन और दुर्योधन को पाँच बाणों से बींधकर तुरन्त बदला चुकाया। इतने में ही सात्यकि, विराट, धृष्टधुम्न, द्रौपदी के पाँच पुत्र और अभिमन्यु अर्जुन की सहायता के लिये आ पहुँचे और उन्हें चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये।
तब भीष्म ने अस्सी बाण मारकर अर्जुन को बींध दिया। यह देख कौरवपक्ष के योद्धा हर्ष के मारे कोलाहल मचाने लगे। उन महारथी वीरों का हर्षनाद सुनकर प्रतापी अर्जुन उनके बीच में घुस गया और महारथियों को निशाना बनाकर अपने धनुष के खेल दिखाने लगा। अपनी सेना को अर्जुन से पीड़ित देख दुर्योधन भीष्म के पास जाकर बोला, ‘तात ! श्रीकृष्ण के साथ यह बलवान अर्जुन हमारी सेना की जड़ काट रहा है। आप और आचार्य द्रोण के जीते_जी यह दशा हो रही है ! कर्ण हमारा सदा हित चाहनेवाला है, मगर वह भी आपही के कारण अपने हथियार छोड़ चुका है; इसलिये वह अर्जुन से लड़ने नहीं आता। पितामह ! ऐसा उद्योग कीजिये, जिससे अर्जुन मारा जाय।‘ दुर्योधन के ऐसा कहने पर भीष्मजी ‘क्षत्रिय धर्म को धिक्कार है' ऐसा कहकर अर्जुन के रथ की ओर बढ़े। अश्त्थामा, दुर्योधन और विकर्ण ने भीष्म का साथ दिया। उधर, पाण्डव भी अर्जुन को घेरकर खड़े थे। फिर संग्राम छिड़ा। अर्जुन ने बाणों का जाल फैलाकर भीष्म को सब ओर से ढक दिया। भीष्म ने भी बाण मारकर उस जाल को तोड़ डाला। इस प्रकार दोनों एक_दूसरे के प्रहार को विफल करते हुए बड़े उत्साह से लड़ने लगे। भीष्म के धनुष से छूटे हुए बाणों के समूह अर्जुन के बाणों से छिन्न_भिन्न होते दिखायी देते थे। इसी प्रकार अर्जुन के छोड़े हुए बाण भी भीष्म के सायकों से कटकर पृथ्वी पर गिर जाते थे। दोनों ही बलवान् थे दोनों ही अजेय। दोनों एक_दूसरे के योग्य प्रतिद्वंद्वी थे। उस समय कौरव भीष्म को और पाण्डव अर्जुन को उनके ध्वजा आदि चिह्नों से ही पहचान पाते थे। उन दोनों वीरों के पराक्रम को देखकर सभी प्राणी आश्चर्य करते थे। जैसे धर्म में स्थित रहकर वर्ताव करनेवाले पुरुष में कोई दोष नहीं निकाला जा सकता, उसी प्रकार उनकी रणकुशलता में कोई भूल नहीं दीखती थी। उस समय कौरव और पाण्डवपक्षों के योद्धा तीखी धारवाली तलवारों, फरसों, बाणों तथा नाना प्रकार के दूसरे अस्त्र_शस्त्रों से आपस में मार-काट मचा रहे थे। इस प्रकार जब वह दारुण संग्राम चल रहा था, उसी समय दूसरी ओर पांचाल-राजकुमार धृष्टधुम्न और द्रोणाचार्य में गहरी मुठभेड़ हो रही थी।

Thursday 3 August 2017

युधिष्ठिर की चिंता, कृष्ण का आश्वासन और क्रौंचव्यूह की रचना

धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ,! सेनापति श्वेत जब युद्ध में शत्रुओं के हाथ मारा गया तो उसके पश्चात् महान् धनुर्धर पांचालवीरों ने पाण्डवों के साथ मिलकर क्या किया ? संजय ने कहा___महाराज ! स्थिर होकर सुनिये___उस भयंकर दिन के  पूर्वाह्न का अधिकांश भाग बीत जाने पर लगभग दोपहर के समय आपकी तथा शत्रु की सेनाओं में पुनः युद्ध होने लगा। विराट के सेनापति श्वेत को मरा हुआ और कृतवर्मा के साथ शल्य को युद्ध के लिये तैयार देखकर आहुति पड़ने से प्रज्वलित हुई अग्नि के समान राजकुमार शंख क्रोध से जल उठा। उस बलवान् वीर ने अपना महान् धनुष चढ़ाकर मद्रराज शल्य को उनको मार डालने की इच्छा से उन पर आक्रमण किया। उस समय बहुत से रथ चारों ओर से शंख की रक्षा कर रहे थे। वह बाणों की रक्षा करता हुआ शल्य के रथ के पास पहुँच गया। उस समय बहुत से रथ चारों ओर से शंख की रक्षा कर रहे थे। वह बाणों की रक्षा करता हुआ शल्य के रथ के पास पहुँच गया। तब मौत के मुँह में पड़े हुए मद्रराज शल्य को बचाने के लिये आपकी सेना के सात महारथी___बृहद्वल, जयत्सेन, रुक्मरथ, विन्द, अनुविन्द, सुदक्षिण और जयद्रथ उन्हें चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये और शंख के मस्तक पर बाणों की वर्षा करने लगे। उन सातों को एक साथ प्रहार करते देख सेनापति शंख क्रोध में भर गया और भल्ल नामक सात तीखे बाणों से उन सातों के धनुष काटकर सिंहनाद करने लगा। तब महाबाहु भीष्म मेघ के समान गर्जना करते हुए विशाल धनुष हाथ में लेकर शंख पर चढ़ आये। उन्हें आते देखकर पाण्डवी सेना भय से थर्रा उठी। इतने में ही भीष्म से शंख की रक्षा करने के लिये अर्जुन उसके आगे आकर खड़े हो गये; फिर तो भीष्मजी के साथ इन्हीं का युद्ध छिड़ गया। इधर, शल्य ने हाथ में गदा ले अपने रथ से उतरकर शंख के चारों घोड़ों को मार डाला। जब घोड़े  मर गये तो शंख भी तलवार हाथ में लेकर तुरंत रथ से कूद पड़ा और अर्जुन के रथ पर जा बैठा। वहाँ जाने पर ही उसे कुछ शान्ति मिली। अब भीष्मजी पांचाल, मत्स्य, केकय और प्रभद्रकदेशीय योद्धाओं को बाणों से मार_मारकर गिराने लगे। फिर, उन्होंने अर्जुन का सामना छोड़कर पांचालराज द्रुपद पर धावा किया और उनकी सेना भीष्मजी के बाणों से दग्ध होती दिखायी देने लगी। वे पाण्डवपक्ष के महारथियों को ललकार_ललकारकर मारने लगे। सारी सेना उन्मथित हो उठी, उसका व्यूह भंग हो गया। इसी बीच सूर्य भी अस्त हो गया; अतः अंधेरा में कुछ सूझ नहीं पड़ता था और भीष्मजी बड़े वेग से बढ़ रहे थे___यह देखकर पाण्डवों ने अपनी सेना को पीछे हटा दिया। प्रथम दिन के युद्ध में जब पाण्डवसेना पीछे हटा ली गयी, और कुपित हुए भीष्म का पराक्रम देखकर दु र्योधन खुशी मनाने लगा, उस समय धर्मराज युधिष्ठिर अपने सभी भाइयों और संपूर्ण राजाओं को लेकर तुरंत भगवान् श्रीकृष्ण के पास गये और अपनी पराजय की चिन्ता से बहुत दुःखी होकर कहने लगे___‘श्रीकृष्ण ! देखते हो न ? गर्मी की मौसम में सूखे हुए तिनके की ढेरी को जैसे आग क्षणभर में जला डालती है, उसी प्रकार भयानक पराक्रम दिखानेवाले भीष्मजी अपने बाणों से मेरी सेना को भस्मसात् कर रहे हैं। क्रोध में भरे हुए यमराज, वज्रधर इन्द्र, पाशधारी वरुण एवं जानकारी कुबेर को तो कदाचित् युद्ध में जीता जा सकता है; किन्तु इन महान् तेजस्वी भीष्म को जीतना  सम्भव है। ऐसी दशा में मैं तो अपनी बुद्धि की दुर्बलता के कारण भीष्म रूपी अगाध जल मोहनलाल के बिना डूब रहा हूँ। अब इन राजाओं को मैं भीष्म रूपी काल के मुख में नहीं डालना चाहता। भीष्मजी बड़े भारी अस्त्रवेत्ता हैं; उनके पास जाकर मेरे सैनिक उसी प्रकार नष्ट हो जायँगे, जैसे प्रज्जवलित अग्नि मंत्री गिरकर पतंगे। केशव ! अब मेरे जीवन के जितने दिन शेष हैं, उनमें वन में रहकर कठोर तपस्या करूँगा; किन्तु इन मित्रों को युद्ध में मरने न दूँगा। भीष्मजी प्रतिद्वंद्वी हजारों महारथियों और श्रेष्ठ योद्धाओं का संहार कर रहे हैं। माधव ! तुम्ही बताओ, अब क्या करने से हमारा हित होगा ?’ यह कहकर युधिष्ठिर शोक से बारिश हो बहुत देर तक आँखें बन्द किये मन_ही_मन कुछ सोचते रहे। तब भगवान् श्रीकृष्ण उन्हें शोक से पीड़ित जान समस्त पाण्डवों को आनन्दित करते हुए बोले___’भारत ! तुम्हें इस प्रकार शोक नहीं करना चाहिये। देखो तो, तुम्हारे भाई कैसे शूरवीर और विश्वविख्यात धनुर्धर हैं। मैं और महान् यशस्वी सात्यकि तुम्हारा प्रिय कार्य करने में लगे हैं। ये विराट, द्रुपद, धृष्टधुम्न और अन्यान्य महाबली राजालोग तुम्हारे कृपाकांक्षी और भक्त हैं। महाबली धृष्टधुम्न तो सदा ही तुम्हारा हितचिन्तक और प्रिय कार्य करनेवाला है, इसने सेनापतित्व का भार लिया है और यह शिखण्डी तो निश्चय ही भीष्म का काल है।‘ श्रीकृष्ण की से बातें सुनकर युधिष्ठिर ने महारथी धृष्टधुम्न से कहा, ‘धृष्टधुम्न ! मैं जो कुछ कहता हूँ, ध्यान देकर सुनो। आशा है, तुम मेरी बात काटोगे नहीं। तुम हमारे सेनापति हो। भगवान् वासुदेव ने तुम्हें यह सम्मान दिया है। पूर्वकाल में जैसे कार्तिकेयजी देवताओं के सेनापति हुए थे, उसी प्रकार तुम भी पाण्डवों के सेनानायक हो। पुरुषसिंह ! अब अपना पराक्रम दिखाओ और कौरवों का संहार करो। मैं, भीमसेन, अर्जुन, नकुल_सहदेव और द्रौपदी के सभी पुत्र तथा और भी जो प्रधान_प्रधान राजा हैं, सब तुम्हारे पीछे चलेंगे।‘ यह सुनकर धृष्टधुम्न ने वहाँ उपस्थित सभी लोगों को प्रसन्न करते हुए कहा, ‘कुन्तीनन्दन ! भगवान् शंकर ने मुझे पहले से ही द्रोणाचार्य का काल बनाया है। आज मैं भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, शल्य और जयद्रथ___इन सभी अभिमानी वीरों का मुकाबला करूँगा।‘ शत्रुहन्ता धृष्टधुम्न जब इस प्रकार युद्ध के लिये तैयार हुआ तो रणोन्मत्त पाण्डववीर जय_जयकार करने लगे। तत्पश्चात् युधिष्ठिर ने सेनापति धृष्टधुम्न से कहा, ‘देवासुर_ संग्राम में बृहस्पतिवार ने इन्द्र के लिये जिस क्रौन्चारुण नामक व्यूह का,उपदेश दिया था, उसी की रचना हमलोग करें। दूसरे दिन युधिष्ठिर के आज्ञा के अनुसार धृष्टधुम्न ने अर्जुन को संपूर्ण सेना के आगे रखा। रथ पर बैठे हुए अर्जुन अपनी रत्नजटित ध्वजा और गाण्डीव धनुष से ऐसी शोभा पा रहे थे, जैसे सूर्य की किरणों से सुमेरुपर्वत। राजा द्रुपद बहुत बड़ी सेना को साथ लिये उस क्रौन्चव्यूह के शिरोभाग में स्थित हुए। कुन्तिभोज और चेदिराज___ये दोनों नेत्रों के स्थान पर रखे गये। दशार्णक, प्रभद्रक, अनूपक और किरातों का समूह ग्रीवा के स्थान पर था। पटच्चर, पौण्ड्र, पौरवक और निषादों के साथ राजा युधिष्ठिर उसके पृष्ठभाग में खड़े हुए। उसके दोनों पंखों के स्थान में भीमसेन और धृष्टधुम्न थे। द्रौपदी के पुत्र, अभिमन्यु, महारथी सात्यकि तथा, पिशाच, दरद, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारुत, धेनुक, तंगण, परतंगण, बालिक, तित्तिर, चोल और पाण्ड्य देशों के वीर दक्षिण पक्ष में स्थित हुए और अग्निवेश्य, पौण्ड्र, मालव, दानभारि, शबर, उभ्दस, वत्स तथा नाकुलदेशीय वीरों के साथ नकुल और सहदेव वाम पक्ष में स्थित हुए। इस व्यूह के दोनों पक्षों में दस हजार, पृष्ठभाग में एक अरब बीस हजार और ग्रीवा में एक लाख सत्तर हजार रथ खड़े किये गये थे। दोनों पक्षों के आगे, पीछे और सब किनारों पर पर्वत के समान ऊँचे गजराजों की कतारें थीं। विराट, केकय, काशीराज और शैब्य___ये उसकी रक्षा करके थे। इस प्रकार उस महाव्यूह की रचना करके पाण्डव अस्त्र_शस्त्र और कवच आदि से सुसज्जित हो युद्ध के लिये सूर्योदय की प्रतीक्षा करने लगे।

अभिमन्यु, उत्तर और श्वेत का संग्राम तथा उत्तर और श्वेत का,वध

संजय ने कहा___राजन् ! इस दारुण दिवस का पहला भाग बीतते_बीतते जब अनेक रणबाँकुरे वीरों का भीषण संहार हो गया, तब आपके पुत्र दुर्योधन की प्रेरणा से प्रमुख, कृतवर्मा, कृप, शल्य और विविंशति पितामह भीष्म के पास चले आये। इन पाँच अतिरथियों से सुरक्षित होकर वे पाण्डवों की सेना में घुसने लगे। यह देखकर क्रोधातुर अभिमन्यु ने अपने रथ पर चढ़ा हुआ  भीष्मजी और उन पाँचों महारथियों के सामने आ कर डटे गया। उसने एक पैने बाण से भीष्मजी की ताड़ के चिह्नवाली ध्वजा काट दी और फिर उनके साथ संग्राम छेड़ दिया। उसने कृतवर्मा को एक, शल्य को पाँच और पितामह को नौ बाणों से बींध दिया। फिर एक झुकी हुई नोकवाले बाण से  दुर्मुख के सारथि का सिर धर से अलग कर दिया और एक बाण से कृपाचार्य का धनुष काट डाला। इस प्रकार रणभूमि में नृत्य सा करते हुए उसने बड़े तीखे बाणों से सभी वीरों पर वार किया। उसका ऐसा हस्तलाघव देखकर देवतालोग भी प्रसन्न हो गये तथा भीष्मादि महारथियों ने भी उसे साक्षात् अर्जुन के समान ही समझा। फिर कृतवर्मा, कृप और शल्य ने भी अभिमन्यु को बाणों से बींध दिया। परन्तु वह मैनाक पर्वत के समान रणभूमि से तनिक भी विचलित नहीं हुआ तथा कौरव वीरों के घिरे होने पर भी उस वीर महारथी ने उन पाँचों अतिरथियों पर बाणों की झड़ी लगा दी और उनके हजारों बाणों को रोककर भीष्मजी पर बाण छोड़ते हुए वह भीषण सिंहनाद करने लगा। राजन् ! महाबली भीष्म ने बड़े ही अद्भुत और भयानक दिव्यास्त्र प्रकट किये और अभिमन्यु पर हजारों बाण छोड़कर उसे बिलकुल ढक दिया। तब विराट, धृष्टधुम्न, द्रुपद, भीम, सात्यकि और पाँच केकयदेशीय राजकुमार___ये पाण्डवपक्ष के दस महारथी बड़ी तेजी से अभिमन्यु की रक्षा के लिये दौड़े। उन्होंने जैसे ही धावा किया कि शान्तनुनन्दन भीष्म ने पांचालराज द्रुपद के तीन और सात्यकि के नौ बाण मारे तथा एक बाण से भीमसेन की ध्वजा काट डाली। तब भीमसेन ने तान बाणों से भीष्म को, एक से कृपाचार्य को और आठ बाणों से कृतवर्मा को बींध दिया। जब विराटपुत्र श्वेत ने अपने भाई उत्तर को मरा हुआ और शल्य को कृतवर्मा के पास बैठा देखा तो वह क्रोध से जल उठा और अपना विशाल धनुष उठाकर शल्य को मारने के लिये दौड़ा। वह बाणों की वर्षा करता हुआ शल्य के रथ की ओर चला। इस समय मद्रराज को मृत्यु के मुँह में पड़ा देखकर आपके पक्ष के सात महारथियों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। कोसलराज बृहद्वल, मगधराज जयत्सेन, शल्यपुत्र रुक्मरथ, कम्बोजनरेश सुदक्षिण, विन्द, अनुविन्द और जयद्रथ___ये सातवें वीर श्वेत के सिर पर  बाणों की वर्षा करने लगे। सेनापति श्वेत ने सात बाणों से उन सातवें के धनुष काट डाले। उन्होंने आधे निमिष में ही दूसरे धनुष लेकर श्वेत पर सात बाण छोड़े। किन्तु महामना श्वेत ने  सात बाण छोड़कर फिर उनके धनुष काट दिये। तब उन महारथियों ने शक्तियाँ लेकर भीषण गर्जना करते हुए  उन्हें श्वेत पर छोड़ा।
परंतु अस्त्रविद्या के पारगामी श्वेत ने सात ही बाणों से उन्हें भी काट दिया। फिर उसने एक भीषण बाण लेकर उसे रुक्मरथ पर छोड़ा। उसकी गहरी चोट लगने से रुक्मरथ अचेत होकर रथ के पिछले भाग में बैठ गया। उसे अचेत देखकर उसका सारथि तुरंत ही सब लोगों के देखते_देखते रणभूमि से अलग ले गया। फिर श्वेतकुमार ने छः बाण चढ़ाकर उन छहों महारथियों की ध्वजाओं के अग्रभाग काट दिये और उनके घोड़े तथा सारथियों को भी बींध डाला। इसके पश्चात् उन्हें बाणों से आच्छादित कर स्वयं शल्य के रथ की ओर चला। इससे आपकी सेना में बड़ा कोलाहल होने लगा। तब सेनापति श्वेत को शल्य की ओर जाते देख आपका पुत्र दुर्योधन भीष्म को आगे कर सारा सेना के सहित श्वेत के रथ के सामने आया और मृत्यु के मुख में पड़े हुए राजा शल्य को उससे मुक्त क्या। बस, बड़ा ही घोर और रोमांचकारी युद्ध होने लगा तथा पितामह भीष्म, अभिमन्यु, भीमसेन, सात्यकि, केकयराजकुमार, धृष्टधुम्न, द्रुपद और चेदि तथा मत्स्य देश के राजाओं पर बाणों की वर्षा करने लगे। तब धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! जब राजकुमार श्वेत शल्य के रथ के सामने पहुँचा तो कौरव, पाण्डव और शान्तनुनन्दन भीष्मजी ने क्या किया___यह मुझे बताओ। संजय ने कहा___ राजन् ! उस समय लाखों क्षत्रिय वीर राजकुमार श्वेत की रक्षा कर रहे थे। उन्होंने पितामह भीष्म के रथ को घेर लिया। बड़ा ही घनघोर युद्ध होने लगा। भीष्मजी ने मारकाट मचाकर अनेकों रथों को सूना कर दिया। उस समय उनका पराक्रम बड़ा ही अद्भुत था। इधर राजकुमार श्वेत ने भी हजारों रथियों का सफाया कर दिया और अपने पैने बाणों से उनके सिर उड़ा दिये। मैं भी श्वेत के भय से अपना रथ छोड़कर भाग आया, इसी से महाराज के दर्शन कर सका हूँ। इस भीषण कटा_कटी के समय एकमात्र भीष्मजी ही सुमेरु को समान अचल खड़े हुए थे। वे अपने दुस्त्यज प्राणों का मोह छोड़कर निर्भीकभाव से पाण्डवों की सेना का संहार कर रहे थे। जब उन्होंने देखा कि श्वेत बड़ी तेजी से कौरवसेना को नष्ट कर रहा है, तो वे झटपट उसके सामने आ गये। किन्तु श्वेत ने भीषण बाणवर्षा करके उन्हें बिलकुल ढक दिया। भीष्मजी ने भी श्वेत पर बड़ी भारी बाणवर्षा की। उस समय यदि श्वेत ने न रक्षा की होती तो भीष्मजी एक दिन में ही सारी पाण्डवसेना को नष्ट_भ्रष्ट कर देते।
जब पाण्डवों ने देखा कि श्वेत ने भीष्मजी का भी मुँह फेर दिया है तो वे बड़े प्रसन्न हुए। पर आपका पुत्र दुर्योधन उोंदास हो गया। वह अत्यन्त क्रोध में भरकर अनेकों अन्य राजाओं के सहित सारी सेना लेकर पाण्डवों पर टूट पड़ा। उसी की प्रेरणा से दुर्मुख, कृतवर्मा, कृपाचार्य और अन्य भीष्मजी की रक्षा कर रहे थे। श्वेत ने जब देखा कि दुर्योधन तथा कई अन्य राजा मिलकर पाण्डवों की सेना का संहार कर रहे हैं तो वह भीष्मजी को छोड़कर कौरवों की सेना का विध्वंस करने लगा। इस प्रकार आपकी सेना को तितर_बितर करके वह फिर भीष्मजी के सामने जाकर डट गया। फिर वे दोनों वीर इन्द्र और वृत्रासुर के समान एक_दूसरे के प्राणों के ग्राहक होकर लड़ने लगे। श्वेत ने खिलखिलाकर हँसते हुए नौ बाण छोड़कर भीष्मजी के धनुष के दस टुकड़े कर दिये और एक बाण से उनकी ध्वजा काट डाली। यह देखकर आपके पुत्रोंनेे समझा कि अब श्वेत के पंजे में पड़कर  भीष्मजी मारे जायँगे तथा पाण्डवलोग प्रसन्न होकर शंख बजाने लगे।
तब दुर्योधन ने क्रोधित होकर अपनी सेना को आदेश दिया, ‘अरे ! सब लोग सावधान होकर सब ओर से भीष्मजी का रक्षा करो। देखो, ऐसा न हो हमारे सामने ही वे श्वेत के हाथ से मारे जायँ। यह बात मैं तुमसे खोलकर कह रहा हूँ।‘ राजाका का आदेश सुनकर सब महारथी बड़ी फुर्ती से चतुरंगिणी सेना को लेकर भीष्मजी की रक्षा करने लगे। बाह्लीक, कृतवर्मा, शल्य,  विकर्ण, चित्रसेन और विविंशति___ये सब महारथी बड़ी शीघ्रता से भीष्मजी को चारों ओर से घेरकर श्वेत के ऊपर बड़ी भारी बाणवर्षा करने लगे। किन्तु महामना श्वेत ने अपने हाथ की सफाई दिखाते हुए उन सब बाणों को रोक दिया। फिर सिंह जैसे हाथियों तो पीछे हटा देता है, वैसे ही उन सब वीरों को रोककर उसने अपने बाणों से भीष्मजी का धनुष काट दिया। तब भीष्मजी मे दूसरा धनुष लेकर उसे बड़े तीखे बाणों से बींध डाला। इससे सेनापति श्वेत ने क्रोध में भरकर सबके देखते_देखते अनेकों लोहे के बाणों से बींधकर भीष्मजी को व्याकुल कर दिया। इससे राजा दुर्योधन को बड़ी व्यथा हुई और आपकी सेना में हाहाकार होने लगा। श्वेत के बाणों से घायल होकर भीष्मजी को पीछे बचे देखकर बहुत लोग तो यही समझने लगे कि अब श्वेत के हाथ में पड़कर भीष्मजी मारे ही जायँगे। भीष्मजी ने जब देखा कि मेरे रथ की ध्वजा काट दी गयी है और सेना के भी पैर उखड़ गये हैं तो उन्होंने क्रोध में भरकर चार बाणों से श्वेत के चारों घोड़ों को मार डाला, दो बाणों से उसकी ध्वजा काट डाली और एक से सारथि का सिर काट दिया। सूत और घोड़ों के मारे जाने पर श्वेत रथ से कूद पड़ा और वह क्रोध से तिलमिला उठा। श्वेत को रथहीन देखकर भीष्मजी ने उस पर सब ओर से पैने बाणों की बौछार की। तब उसने धनुष को अपने रथ में फेंककर एक कालदण्ड के समान प्रचण्ड शक्ति ली और ‘जरा पुरुषत्व कारण करके खड़े रहो; मेरा पराक्रम देखो' ऐसा कहकर उसे भीष्मजी पर छोड़ दिया। उस भीषण शक्ति को आती देख आपके पुत्र हाहाकार करने लगे। किन्तु भीष्मजी तनिक भी नहीं घबराये। उन्होंने आठ_नौ बाण मारकर उसे बीच में ही काट दिया। यह देखकर आपकी ओर के सब लोग जय_जयकार करने लगे। तब विराटपुत्र श्वेत ने क्रोध की हँसी हँसते हुए भीष्मजीका प्राणान्त करने के लिये गदा उठयी और बड़े वेग से उनकी ओर दौड़ा। भीष्मजी ने देखा कि उसके वेग को रोका नहीं जा सकता, अत: वे उसका वार बचाने के लिये पृथ्वी पर कूद पड़े। श्वेत ने उसे घुमाकर भीष्मजी के रथ पर छोड़ा और उसके लगते ही उनका रथ, सारथि, ध्वजा और घोड़ों के सहित चूर_चूर हो गया।
भीष्मजी को रथहीन देखकर शल्य आदि दूसरे रथी अपने_अपने पथ लेकर चौड़े। तब वे दूसरे रथ पर चढ़कर हँसते हुए श्वेत की ओर बढ़े। उसी समय भीष्म को आकाशवाणी हुई___'महाबाहु भीष्म ! शीघ्र ही इसे मारने का उपाय करो। विश्वकर्ता विधाता ने यही इसके वध का समय निश्चित किया है।‘ यह आकाशवाणी सुनकर भीष्म बड़े प्रसन्न हुए और उसे मार डालने का निश्चय क्या। उस समय श्वेत को रथहीन देखकर सात्यकि, भीमसेन, धृष्टधुम्न, द्रुपद, केकयराजकुमार, धृष्टकेतू और अभिमन्यु एक साथ ही अपने रथ लेकर चले। किन्तु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और शल्य के सहित भीष्मजी ने उन्हें रोक दिया। उसी समय श्वेत ने तलवार खींचकर भीष्मजीका धनुष काट डाला। भीष्मजी ने तुरंत ही दूसरा धनुष उठा लिया और बड़ी तेजी से श्वेत की ओर चले। बीच में सामने आने पर उन्होंने भीमसेन को साठ, सात्यकि को सौ, धृष्टधुम्न को बीस और केकयराज को पाँच बाण मारकर रोक दिया। फिर वे सीधे श्वेत के सामने पहुँचे और अपने धनुष पर एक मृत्यु के समान बाण उसे ब्रह्मास्त्र से अभिमन्त्रित करके छोड़ा। वह बाण श्वेत के कवच को फाड़कर उसकी छाती में घुस गया और फिर बिजली के समान चमककर पृथ्वी में प्रवेश कर गया। इस प्रकार उसने श्वेत का प्राणान्त कर दिया। उसे पृथ्वी पर गिरते देख पाण्डव और उनके पक्ष के क्षत्रियलोग बड़ा शोक करने लगे तथा आपके पुत्र और अन्य कौरवलोग बड़े प्रसन्न हुए। दुःशासन तो बाजा बजाता हुुआ इधर_उधर नाचने लगा।