Sunday 17 December 2017

छठे दिन के दोपहर तक का युद्ध

  संजय ने कहा___महाराज ! तब सब योद्धा अपने_अपने शिविरों में चले गये। रात्रि में सबने विश्राम किया और एक_दूसरे का यथायोग्य सत्कार किया तथा दूसरे दिन फिर युद्ध करने के लिये तैयार हो गये। इस समय आपके पुत्र दुर्योधननेे अत्यन्त चिन्ताग्रस्त होकर पितामह भीष्म से पूछा, ‘दादाजी ! आपकी सेना बड़ी भयानक है। इसकी व्यूहरचना भी बड़ी सावधानी से की जाती है फिर भी पाण्डवपक्ष के महारथी उसे तोड़कर हमारे वीरों को मार डालते हैं। वे हमारे वीरों को चक्कर में डालकर बड़ी कीर्ति पा रहे हैं। उन्होंने वज्र के समान सुदृढ़ मकरव्यूह को भी तोड़ डाला और उसके भीतर रुककर भीमसेन ने अपने मृत्युदंड के समान प्रचण्ड बाणों से मुझे घायल कर दिया। भीम की रोषपूर्ण मूर्ति को देखकर तो मेरे सारे होश_हवास उड़ गये थे। अभी तक मेरा चित्त शान्त नहीं हो पाया है। महात्मन् ! आपकी सहायता से तो मैं युद्ध में जय प्राप्त करके पाण्डवों का काम तमाम कर देना चाहता हूँ।‘ दुर्योधन की यह बात सुनकर महात्मा भीष्म मुसकराये और उससे इस प्रकार कहने लगे, ‘राजकुमार ! मैं तो अधिक_से_अधिक प्रयत्न करके  पाण्डवों की सेना में घुसता हूँ। आगे भी मैं अपने प्राणों की बाजी लगाकर सारी शक्ति से पाण्डवसेना के साथ संग्राम करूँगा।  तुम्हारे लिये मैं, यह शत्रुसेना तो क्या, सारे देवता और दैत्यों को मारने में भी नहीं चूकूँगा। मैं पूरी शक्ति से पाण्डवों के साथ युद्ध करूँगा और तुम्हारा सब प्रकार से प्रिय करूँगा। पितामह की यह बात सुनकर दुर्योधन बड़ा प्रसन्न हुआ। प्रातःकाल होते ही भीष्मजी ने स्वयं व्यूहरचना की। उन्होंने तरह_तरह से सुसज्जित कौरवसेना को मण्डलव्यूह की विधि से खड़ा किया। उसमें प्रधान_प्रधान वीर, गजारोही, पदाति और रथियों को यथास्थान नियुक्त किया। इस प्रकार भीष्मजी की अध्यक्षता में मौर्चेबन्दी से खड़ी होकर आपकी सेना युद्ध के लिये तैयार हो गयी। वे युद्धोत्सुक राजालोग ऐसे जान पड़ते थे, मानो सब_के_सब भीष्मजी की ही रक्षा कर रहे हैं और भीष्मजी उनकी रक्षा में तत्पर हैं। यह मण्डलव्यूह बड़ा ही दुर्भेद्य था और इसका मुख पश्चिम की ओर रखा गया था।   इस परम दुर्जय मण्डलव्यूह को देखकर राजा युधिष्ठिर ने अपनी सेना का वज्रव्यूह बनाया। इस प्रकार जब व्यूहबद्ध होकर दोनों सेनाएँ अपने_अपने स्थानों पर खड़ी हो गयीं तो समस्त रथी और अश्वारोही सिंहनाद करने लगे और युद्ध के लिये उतावले होकर व्यूह तोड़ने के लिये आगे बढ़े। द्रोणाचार्यजी विराट के सामने, अश्त्थामा शिखण्डी के आगे और स्वयं राजा दुर्योधन धृष्टधुम्न के सामने आये। नकुल और सहदेव ने मद्रराज शल्य पर और अवन्तिनरेश विन्द और अनुविन्द ने इरावान् पर धावा किया। और सब राजा अर्जुन से युद्ध करने लगे। भीमसेन ने युद्ध के लिये बढ़ते हुए कृतवर्मा को तथा चित्रसेन, विकर्ण और दुर्मर्षण को रोका। अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु आपके पुत्रों से भिड़ गया, प्राग्यज्योतिषनरेश भगदत्त ने घतोत्कच पर आक्रमण किया, राक्षस अलम्बुष  रणोन्मत्त सात्यकि और उसकी सेना पर टूट पड़ा तथा भूरिश्रवा धृष्टकेतू के साथ युद्ध करने लगा। धर्मपुत्र युधिष्ठिर राजा श्रुतायु से, चेकितान कृपाचार्य से तथा अन्य सब वीर भीष्मजी से ही लड़ने लगे। आपके पक्ष के कई राजाओं ने तरह_तरह के शस्त्र लेकर चारों ओर से अर्जुन को घेर लिया। तब अर्जुन ने उन पर बाण बरसाना आरम्भ किया। दूसरी ओर से राजालोग भी अर्जुन पर बाणों की वर्षा करने लगे। इस समय श्रीकृष्ण और अर्जुन की ऐसी स्थिति देखकर देवता, देवर्षि, गन्धर्व और नागों को बड़ा विस्मय हुआ। तब अर्जुन ने क्रोध में भरकर  ऐन्द्रास्त्र छोड़ा और अपने बाणों से शत्रुओं की सारी बाणवर्षा को रोक दिया। अर्जुन के इस पराक्रम ने सभी को चकित कर दिया। उनके सामने जितने राजा, घुड़सवार और गजारोही आये उनमें से कोई भी घायल हुए बिना न रहा। तब उन सबने भीष्मजी की शरण ली। उस समय अर्जुन के बलरूपी अगाध जल में डूबते हुए उन वीरों के  भीष्मजी ही जहाज हुए। उनके इस प्रकार भाग आने से आपकी सेना छिन्न_भिन्न हो गयी और आँधी चलने से जैसे समुद्र में क्षोभ होने लगता है, उसी प्रकार उसमें खलबली पड़ गयी। अब भीष्मजी बड़ी फुर्ती से अर्जुन के सामने आये और उनसे युद्ध करने लगे। इधर द्रोणाचार्य ने बाण मारकर मत्स्यराज विराट को घायल कर दिया तथा एक बाण से उनकी ध्वजा को और दूसरे से धनुष को काट डाला। सेनानायक विराट ने तुरंत ही दूसरा धनुष ले लिया और कई चमचमाते हुए बाण लिये। फिर उन्होंने तीन बाणों से आचार्य को बींध दिया, चार से उनके घोड़ों को मार डाला, एक से ध्वजा काट डाली, पाँच से सारथि को मार गिराया और एक से धनुष काट डाला। इससे द्रोणाचार्यजी बड़े कुपित हुए। उन्होंने आठ बाणों से विराट के घोड़ों को नष्ट कर दिया और एक से उनके सारथि को मार डाला। विराट रथ से कूद पड़े और अपने पुत्र के रथ पर चढ़ गये। तब वे पिता_पुत्र दोनों ही भीषण बाणवर्षा करके बलात् आचार्य को रोकने का प्रयत्न करने लगे। इससे चिढ़कर  आचार्य ने राजकुमार शंख पर एक सर्प के समान विषैला बाण छोड़ा। वह बाण शंख के हृदय को बेधकर उसके खून में लथपथ होकर पृथ्वी पर जा पड़ा। शंख के हाथ का धनुष उसके पिता के ही पास गिर गया और वह स्वयं रणभूमि में सो गया। पुत्र को मरा हुआ देखकर विराट डर गये और द्रोणाचार्य को छोड़कर युद्धक्षेत्र से चले गये। तब द्रोणाचार्यजी ने पाण्डवों की विशाल वाहिनी को सैकड़ों_हजारों भागों में विभक्त कर दिया। शिखण्डी ने अश्त्थामा के सामने आकर तीन बाणों से उसकी भृकुटि के बीच में चोट की। इससे क्रोध में भरकर अश्त्थामा ने बहुत से बाण बरसाकर आधे निमेष में ही शिखण्डी की ध्वजा, सारथि, घोड़ों और हथियारों को काटकर गिरा दिया। घोड़ों के मारे जाने पर वह रथ से कूद पड़ा और हाथ में ढ़ाल_तलवार लेकर बाज के समान बड़े क्रोध से झपटा। रणांगण में तलवार लेकर घूमते हुए शिखण्डी पर वार करने का अश्त्थामा को अवसर तक नहीं मिला। फिर उन्होंने उस पर सहस्त्रों बाण छोड़े। शिखण्डी ने उन सारे बाणों को अपने तलवार से ही काट दिया। तब तो अश्त्थामा ने उसकी ढ़ाल और तलवार को ही टुकड़े_टुकड़े कर दिया और अपने फौलादी बाणों से शिखण्डी को भी बींध दिया। अब शिखण्डी जल्दी से सात्यकि के रथ पर चढ़ गया। इधर सात्यकि ने अपने पैने बाणों से राक्षस अलम्बुष को घायल कर दिया। इस पर अलम्बुष ने भी अर्धचन्द्राकार बाण छोड़कर सात्यकि का धनुष काट दिया और उसे भी अनेकों बाणों से घायल कर दिया। फिर अपनी राक्षसी माया करके उस पर बाणों की झड़ी लगा दी। इस समय सात्यकि का बड़ा ही अद्भुत पराक्रम देखने में आया। क्योंकि ऐसे तीखे_तीखे बाणों की चोट खाने पर भी उसे रणभूमि में तनिक भी घबराहट नहीं हुई। उसने अर्जुन से मिला हुआ ऐन्द्रास्त्र चढ़ाया, उससे वह राक्षसी माया तत्काल भष्म हो गयी। फिर उसने अनेकों बाण बरसाकर अलम्बुष को ढ़क दिया। इस प्रकार सात्यकि के द्वारा पीड़ित होने पर वह राक्षस उसका सामना छोड़कर रणभूमि से भाग गया। सत्यपराक्रम सात्यकि ने अपने तीखे बाणों से आपके पुत्रों पर भी प्रहार किया और वे भी भयभीत होकर भाग गये। इसी समय द्रुपद के पुत्र महाबली धृष्टधुम्न ने अपने तीखे तीरों से आपके पुत्र राजा दुर्योधन को ढक दिया। किन्तु इससे दुर्योधन को कोई घबराहट नहीं हुई और बड़ी फुर्ती से उसने नब्बे बाण छोड़कर धृष्टधुम्न को बींध दिया। तब धृष्टधुम्न कुपित होकर उसका धनुष काट डाला, चारों घोड़ों को मार गिराया और सात तीखे बाणों से स्वयं भी उसे घायल कर दिया। घोड़ों के मारे जाने पर दुर्योधन रथ से कूद पड़ा और तलवार लेकर पैदल ही धृष्टधुम्न की ओर दौड़ा। इतने में शकुनि ने आकर उसे अपने रथ में बैठा लिया। इस प्रकार दुर्योधन को परास्त कर धृष्टधुम्न ने आपकी सेना का संहार करना आरम्भ किया। इसी समय महारथी कृतवर्मा ने भीमसेन को बाणों से आच्छादित कर दिया। तब भीमसेन ने भी हँसकर कृतवर्मा पर बाणों की झड़ी लगा दी। उन्होंने उसके चारों घोड़ों को मारकर ध्वजा और सारथि को भी गिरा दिया तथा कृतवर्मा को भी बहुत से बाणों से घायल कर दिया। घोड़ों के मारे जाने पर कृतवर्मा बड़ी फुर्ती से आपके साले वृषक के रथ पर चढ़ गया। फिर भीमसेन अत्यन्त क्रोध में भरकर दण्डपाणि यमराज के समान आपकी सेना का संहार करने लगे। महाराज ! अभी दोपहर नहीं हुआ था कि अवन्तिनरेश विन्द और अनुविन्द इरावान् को आते देखकर उसके सामने आ गये। बस, उनका बड़ा रोमांचकारी युद्ध छिड़ गया। इरावान् ने क्रोध में भरकर उन दोनों भाइयों को अपने तीखे बाणों से बींध दिया। बदले में उन्होंने भी इरावान् को अपने बाणों से घायल कर दिया। फिर इरावान् ने चार बाणों से अनुविन्द के चारों घोड़ों को धराशायी कर दिया तथा दो तीक्ष्ण बाणों से उसके धनुष और ध्वजा को काट गिराया। तब अनुविन्द अपने रथ से उतरकर विन्द के रथ पर चढ़ गया। फिर उन दोनों वीरों ने एक ही रथ पर बैठकर इरावान् पर बड़ी फुर्ती से बाण बरसाना आरम्भ किया। इसी प्रकार इरावान् ने भी क्रोध में भरकर उन दोनों भाइयों पर बाणों की झड़ी लगा दी तथा उनके सारथि को मारकर गिरा दिया। तब उनके घोड़े भय से चौंककर उनके रथ को लेकर इधर_उधर भागने लगे। इस प्रकार उन दोनों वीरों को जीतकर इरावान् अपना पुरुषार्थ दिखाते हुए बड़ी तेजी से आपकी सेना को ध्वंस करने लगा। इस समय राक्षसराज घतोत्कच रथ पर चढ़कर भगदत्त के साथ युद्ध कर रहा था। उसने बाणों की झड़ी लगाकर भगदत्त को बिलकुल ढ़क दिया। तब उन्होंने उन सब बाणों को काटकर बड़ी फुर्ती से घतोत्कच के मर्मस्थानों पर वार किया। किन्तु अनेकों बाणों से घायल होने पर भी वह घबराया नहीं। इससे कुपित होकर प्राग्यज्योतिषनरेश ने चौदह तोमर छोड़े, किन्तु घतोत्कच ने उन्हें तत्काल काट डाला  और सत्तर बाणों से भगदत्त पर वार किया। तब भगदत्त ने उसके चारों घोडों को मार डाला। घतोत्कच ने अश्वहीन रथ में से ही उन पर बड़े वेग से शक्ति छोड़ी। किन्तु भगदत्त ने उसके तीन टुकड़े कर दिये और वह बीच में ही पृथ्वी पर गिर गयी। शक्ति को व्यर्थ हुई देखकर घतोत्कच भयभीत होकर रणांगण से भाग गया। घतोत्कच का बल_पराक्रम सर्वत्र विख्यात था, उसे संग्रामभूमि में सहसा यमराज और वरुण भी नहीं जीत सकते थे। उसी को इस प्रकार परास्त करके राजा भगदत्त अपने हाथी पर चढ़े पाण्डवों की सेना का संहार करने लगे। इधर मद्रराज शल्य अपनी बहिन के युगलपुत्र नकुल और सहदेव से युद्ध कर रहे थे। उन्होंने उन दोनों को अपने बाणों से एकदम ढ़क दिया। तब सहदेव ने भी बाण बरसाकर उनकी प्रगति को रोक दिया। सहदेव के बाणों से आच्छादित होने पर शल्य उसके पराक्रम से बड़े प्रसन्न हुए तथा अपनी माता के सम्बन्ध से उन दोनों भाइयों को भी अपने मामा का जौहर देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। इतने में ही महारथी शल्य ने चार बाण छोड़कर नकुल के चारों घोड़ों को यमराज के घर भेज दिया। नकुल तुरंत ही रथ से कूदकर अपने भाई के रथ पर चढ़ गया। इस प्रकार उन दोनों भाइयों ने एक ही रथ में बैठकर बड़ी फुर्ती से बाण बरसाकर मद्रराज को ढक दिया। इसी समय सहदेव ने कुपित होकर मद्रराज पर एक बाण छोड़ा। वह उनके शरीर को छोड़कर पृथ्वी पर जा पड़ा। उसकी चोट से मद्रराज व्याकुल होकर रथ के पिछले भाग में बैठ गये और उसकी वेदना से अचेत हो गये। उन्हें संज्ञाशून्य देखकर सारथि रथ को रणक्षेत्र से बाहर ले गया। यह देखकर आपकी सेना के सब वीर उदास हो गये कथा महारथी नकुल  और सहदेव अपने,मामा को परास्त करके हर्षध्वनि और शंखनाद करने लगे।

Monday 11 December 2017

भीम और दुर्योधन का युद्ध, अभिमन्यु तथा द्रौपदी के पुत्रों का पराक्रम

संजय ने कहा___तदनन्तर जब सूर्यदेव पर संध्या की लाली छाने लगी तो दुर्योधन ने भीमसेन का वध करने की इच्छा से उन पर धावा किया। अपने पक्के वैरी को आते देख भीमसेन के क्रोध की सीमा न रही। वे दुर्योधन से कहने लगे, ‘आज मुझे वह अवसर मिला है, जिसकी बहुत वर्षों से प्रतीक्षा कर रहा था। यदि तू युद्ध छोड़कर भाग नहीं गया, तो अवश्य ही इस समय तेरा वध कर डालूँगा। माता कुन्ती को जो कष्ट उठाने पड़े हैं, हमलोगों ने जो वनवास भोगा है तथा द्रौपदी को जो अपमान का दुःख सहना पड़ा है, उन सबका बदला आज तुझे मारकर चुका लूँगा।‘ यह कहकर भीमसेन ने धनुष चढ़ाया और दुर्योधन पर जलती हुई अग्नि की शिखा के समान छब्बीस बाण छोड़े। फिर दो बाणों से उसका धनुष काट दिया, दो से उसके सारथि को मार डाला, चार बाणों से चारों घोड़ों को यमलोक भेज दिया और दो बाणों से छत्र तथा छः से ध्वजा को काट डाला। इसके बाद उसके सामने ही उच्च स्वर से सिंहनाद करने लगे। इतने में कृपाचार्य ने आकर दुर्योधन को अपने रथ में चढ़ा लिया। भीमसेन ने उसे बहुत ही घायल और व्यथित कर दिया था, इसलिये वह रथ के पिछले भाग में बैठकर विश्राम करने लगा। तत्पश्चात् भीम को जीतने के लिये कई हजार रथों के साथ जयद्रथ ने आ घेरा। धृष्टकेतू, अभिमन्यु, द्रौपदी के पुत्र और केकयदेशीय राजकुमार आपके पुत्रों से युद्ध करने लगे। इसी समय चित्रसेन, सुचित्र, चित्रांगद, चित्रदर्शन, चारुमित्र, नन्दक और उपनन्दक___इन आठ यशस्वी वीरों ने अभिमन्यु के रथ तो चारों ओर से घेर लिया। यह देख अभिमन्यु ने प्रत्येक को पाँच_पाँच बाण मारे। अभिमन्यु के इस पराक्रम को वे नहीं सह सके, अतः उस पर तीक्ष्ण बाणों की वर्षा करने लगे। फिर तो अभिमन्यु ने वह पराक्रम दिखाया, जिससे आपके सैनिक काँप उठे। मानो संग्राम में वज्रपाणि इन्द्र असुरों को भयभीत कर रहे हों। इसके बाद उसने विकर्ण पर चौदह बाणों का प्रहार करके उनके रथ से ध्वजा काट गिरायी और सारथि तथा घोड़ों को मार डाला। फिर सा न पर कई तीखे बाण विकर्ण को लक्ष्य करके छोड़े और वे उसके शरीर को छोड़कर पृथ्वी पर जा गिरे। विकर्ण तो घायल देखकर उसके दूसरे_दूसरे भाई अभिमन्यु आदि महारथियों पर टूट पड़े। दुर्मुख ने सात बाण मारकर श्रुतकर्मा को बींध डाला, एक बाण से उसकी ध्वजा काट दी, फिर सात से सारथि और छः से घोड़ों को मार गिराया। इससे श्रुतकर्मा को बड़ा क्रोध हुआ और बिना घोड़े के रथ पर ही खड़े होकर उसने दुर्मुख के ऊपर प्रज्जवलित उल्का के समान शक्ति छोड़ी। वह दुर्मुख का कवच भेदकर  शरीर को छेदती हुई पृथ्वी में समा गयी। इधर श्रुतकर्मा को रथहीन देखकर महारथी सुतसोम ने उसे अपने रथ पर बिठा लिया। राजन् ! इसके बाद आपके यशस्वी पुत्र जयत्सेन को मार डालने की इच्छा से श्रुतकीर्ति उसके सामने आया। जयत्सेन ने तनिक मुस्कराकर श्रुतकीर्ति के धनुष को काट दिया। अपने भाई का धनुष कटा देखकर वह बारम्बार सिंहनाद करता हुआ वहाँ पहुँचा। उसने अपने सुदृढ़ धनुष को तानकर दस बाणों से जयत्सेन को घायल किया। जयत्सेन के पास उसका भाई दुष्कर्ण भी मौजूद था, उसने नकुलपुत्र शतानीक के धनुष को काट दिया। शतानीक ने दूसरा धनुष लेकर उस पर बाणों की वर्षा की और उन्हें दुष्कर्ण को लक्ष्य करके छोड़ दिया। इसके बाद एक बाण से उसके धनुष को काटकर, दो से सारथि और बारह से घोड़ों को मार डाला। साथ ही उसे भी सात बाणों से घायल किया। इसके पश्चात् एक भल्ल नामक बाण से दुष्कर्ण की छाती में प्रहार किया, उसकी चोट खाकर वह बिजली के आघात से टूटे हुए वृक्ष की भाँति पृथ्वी पर गिर पड़ा। दुष्कर्ण को व्यथित देखकर पाँच महारथियों ने शतानीक को चारों ओर से घेर लिया और उसे बाणों के समूह से आच्छादित करने लगे। यह देख पाँचों केकयकुमार क्रोध में भरे हुए शतानीक की सहायता के लिये दौड़े। उन्हें आक्रमण करते देख दुर्मुख, दुर्जय, दुर्मर्षण शत्रुंजय और शत्रुओं आदि आपके महारथी पुत्र उनके मुकाबले में आ डटे। एक_दूसरे को अपना दुश्मन माननेवाले इन राजाओंं ने सूर्यास्त के बाद दो घड़ी तक अपना भयंकर संग्राम जारी रखा हजारों रथियों और घुड़सवारों की लाशें बिछ गयीं। तब शान्तनुनन्दन भीष्मजी ने भी महात्मा पाण्डवों और पांचालों की सेना को यमलोक पठाने लगे। इस प्रकार पाण्डवसेना का संहार करके भीष्मजी ने अपने योद्धाओं को पीछे सजाया और स्वयं अपने शिविर में चले गये। इधर धर्मराज युधिष्ठिर भी भीमसेन और धृष्टधुम्न को देखकर बड़े प्रसन्न हुए और उन दोनों का मस्तक सूँघने लगे।

मकर और क्रौंच_व्यूह का निर्माण, भीम और धृष्टधुम्न का पराक्रम


संजय ने कहा___राजन् ! जब कौरव-पाण्डव विश्राम कर चुके और रात्रि व्यतीत हो गयी तो पुनः सब_के_सब युद्ध के लिये निकले। तब राजा युधिष्ठिर ने धृष्टधुम्न से कहा___’महाबाहो ! आज तुम शत्रुओं का नाश करने के लिये महाव्यूह की रचना करो।‘ उनकी आज्ञा पाकर महारथी धृष्टधुम्न ने समस्त रथियों को व्यूहाकार खड़े होने की आज्ञा दी राजा द्रुपद और अर्जुन व्यूह के शिरोभाग में स्थित हुए। नकुल और सहदेव दोनों नेत्रों के स्थान पर खड़े हुए। महाबली भीमसेन मुखस्थान में थे। अभिमन्यु, द्रौपदी के पुत्र, घतोत्कच, सात्यकि और महाराज युधिष्ठिर___ये व्यूह के कण्ठभाग में स्थित हुए। बहुत बड़ी सेना के साथ सेनापति विराट और धृष्टधुम्न उसके पृष्ठभाग में खड़े हुए। केकयदेशीय पाँच राजकुमार व्यूह के वामभाग में तथा धृष्टकेतू और चेकितान दक्षिणभाग में स्थित होकर व्यूह की रक्षा कर रहे थे। कुन्तीभोज और शतानीक पैरों के स्थान में थे। सोमकों के साथ शिखण्डी और इरावान्  उस मकर के पुच्छभाग में खड़े हुए। इस तरह व्यूह_रचना करके पाण्डवलोग सूर्योदय के समय कवच आदि से सुसज्जित हो युद्ध के लिये तैयार हो गये और हाथी, घोड़े, रथ तथा पैदल योद्धाओं के साथ कौरवों के सामने आ डटे। राजन् ! पाण्डव_सेना की व्यूह_रचना देखकर भीष्म ने उसके मुकाबले में बहुत बड़े क्रौंच_व्यूह का निर्माण किया। उसकी चोंच के स्थान पर महान् धनुर्धर द्रोणाचार्य सुशोभित  हुए। अश्त्थामा और कृपाचार्य उसके नेत्रस्थान  में थे। कम्बोज और बाह्लीकों के साथ कृतवर्मा व्यूह के शिरोभाग में स्थित हुआ। शूरसेन और अनेकों राजाओं के साथ दुर्योधन कण्ठस्थान में थे। मद्र, सौवीर तथा केकयों के साथ प्राग्यज्योतिषपुर का राजा छाती के स्थान पर खड़ा हुआ। अपनी सेना सहित सुशर्मा व्यूह के वामभाग में और तुषार, यवन तथा शकदेशीय योद्धा चूचुपों को साथ लेकर दक्षिणभाग में खड़े हुए। श्रुतायु, शतायु और भूरिश्रवा___ ये उस व्यूहकी जंघाओं के स्थान में थे। इस प्रकार व्यूह_निर्माण हो जाने पर सूर्योदय के पश्चात् दोनों सेनाओं में युद्ध आरम्भ हो गया। कुन्तीनन्दन भीमसेन ने द्रोणाचार्य की सेना पर धावा किया। द्रोणाचार्य उन्हें देखते ही क्रोध में भर गये और लोहे के बने हुए नौ बाणों से उन्होंने भीमसेन के मर्मस्थल में आघात किया। उनकी करारी चोट खाकर भीमसेन ने आचार्य के सारथि को यमलोक भेज दिया। सारथि को यमलोक भेज दिया। सारथि के मरने पर द्रोणाचार्य ने स्वयं ही घोडों की बागडोर सँभाली और जैसे आग रुई को जलाती है, उसी प्रकार वे पाण्डवसेना का विध्वंस करने लगे। एक ओर से भीष्म ने भी मारना शुरू कर दिया। उन दोनों की मार पड़ने से संजय और केकयवीर भाग चले। इसी प्रकार भीमसेन तथा अर्जुन ने भी आपकी सेना का संहार आरम्भ किया, उसके प्रहार से क्षत_विक्षत हो कौरवपक्षिय योद्धा मूर्छित होने लगे। दोनों दलों के व्यूह टूट गये और उभय_पक्ष के योद्धाओं का परस्पर घोल_मेल_सा हो हो गया। धृतराष्ट्र ने कहा___संजय ! हमारी सेना में अनेकों गुण हैं, अनेकों प्रकार के योद्धा हैं और शास्त्रीय रीति से उसके व्यूह का निर्माण भी हुआ है। हमारे सैनिक अत्यन्त प्रसन्न और हमारे इच्छानुसार चलनेवाले हैं; वे नम्र, उनमें किसी भी प्रकार का दुर्व्यसन नहीं है। साथ ही हमारी सेना में न अत्यन्त बूढ़े लोग हैं और न बालक ही। बहुत मोटे और बहुत दुर्बल लोग भी नहीं हैं। सभी काम करने में फुर्तीले और निरोग हैं। वे कवच और अस्त्र_शस्त्रों से सुसज्जित हैं, शस्त्रों का संग्रह भी उनके पास पर्याप्त है। प्रायः सभी तलवार चलाने, कुश्ती लड़ने और गदायुद्ध करने में प्रवीण हैं। इनकी रक्षा की भार उन क्षत्रियों के हाथ में है, जो संसार में सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। वे स्वेच्छा से ही अपने सेवकों सहित हमारी सहायता करने आये है। द्रोणाचार्य, भीष्म,, कृतवर्मा, कृपाचार्य, दुःशासन, जयद्रथ, भगदत्त, विकर्ण, अश्त्थामा, शकुनि और बाह्लीक आदि महान् वीरों से हमारी सेना सुरक्षित है; तो भी यदि वह मारी जा रही है, तो इसमें हमलोगों का पुरातन प्रारंभिक ही कारण है। पहले के मनुष्यों और प्राचीन ऋषियों ने भी युद्ध का इतना बड़ा उद्योग कभी नहीं देखा होगा। विदुरजी मुझसे नित्य ही हित की और लाभ की बातें कहा करते थे, किन्तु मूर्ख दुर्योधन ने उन्हें नहीं माना। वे सर्वज्ञ हैं, उनकी बुद्धि में आज का यह परिणाम अवश्य आया होगा; तभी तो उन्होंने मना किया था। अथवा किसी का दोष नहीं, ऐसी ही होनहार थी। विधाता ने पहले से जैसा लिख दिया है, वैसा ही होगा; उसे कोई टाल नहीं सकता। संजय बोले__राजन् ! अपने ही अपराध से आपको यह संकट का सामना करना पड़ता है। पहले तो जूए का खेल हुआ था और आज जो पाण्डवों के साथ युद्ध छेड़ा गया है___इन दोनों में आपका ही दोष है। इस लोक सा परलोक में मनुष्य को अपना किया हुआ कर्म स्वयं ही भोगना पड़ता है। आपको भी यह कर्नानुसार उचित ही फल मिला है। इस महान् संकट को धैर्यपूर्वक सहन कीजिये और युद्ध का शेष वृतांत सावधान होकर सुनिये। भीमसेन तीखे बाणों से आपकी महासेना का व्यूह तोड़कर दुर्योधन के भाइयों को पास जा पहुँचे। यद्यपि भीष्मजी उस सेना की सब ओर से रक्षा कर रहे थे, तो भी दुःशासन, दुविर्षह, दुःसह, दुर्गम, जय, जयत्सेन, विकर्ण, चित्रसेन, सुदर्शन, चारुमित्र, सुवर्मा, दुष्कर्ण और कर्ण आदि आपके महारथी पुत्रों को वहाँ पास ही देखकर वे उस महासेना के भीतर घुस गये तथा हाथी, घोड़े और रथों पर चढ़े हुए कौरव_सेना के प्रधान_प्रधान वीरों को मार डाला। कौरव उन्हें पकड़ना चाहते थे। उनका यह निश्चय भीमसेन को मालूम हो गया। तब उन्होंने वहाँ उपस्थित हुए आपके पुत्रों को मार डालने का विचार किया। बस, उन्होंने गदा उठाया और अपना रथ छोड़ उस महासागर के समान सेना में कूदकर उसका संहार करने लगे। उसी समय धृष्टधुम्न भीमसेन के रथ के पास आ पहुँचा। उसने देखा रथ खाली है और केवल भीम का  सारथि  विशोक वहाँ मौजूद है। धृष्टधुम्न मन_ही_मन बहुत दुःखी हुआ, उसकी चेतना लुप्त होने लगी, आँखों से आँसू छलक पड़े और उसने गद्गद् कण्ठ से पूछा___’विशोक ! मेरे प्राणों से भी बढ़कर भीमसेन कहाँ हैं ? विशोक ने हाथ जोड़कर कहा___’मुझे यहाँ ही खड़ा करके वे इस सैन्य सागर में घुसे हैं। जाते समय इतना ही कहा था, ‘सूत ! तुम थोड़ी देर तक घोड़ों को रोककर यहाँ ही मेरी प्रतीक्षा करो। ये लोग जो  मेरा वध करने को तैयार हैं, इन्हें मैं अभी मारे डालता हूँ।‘ तदनन्तर, भीमसेन को संपूर्ण सेना के भीतर गदा लिये दौड़ते देख धृष्टधुम्न को बड़ी  प्रसन्नता हुई।  उसने कहा___'महाबली भीमसेन मेरे सखा और सम्बन्धी हैं। मेरा उनपर प्रेम है और उनका मुझपर। इसलिये जहाँ वे गये हैं, वहाँ ही मैं भी जाता हूँ।‘ यह कहकर धृष्टधुम्न चल दिया और भीमसेन ने गदा से हाथियों को कुचलकर जो मार्ग बना दिया था, उसी से वह भी सेना के भीतर जा घुसा। धृष्टधुम्न ने देखा___जैसे आँधी वृक्ष को तोड़ डालती है, उसी प्रकार भीम भी शत्रु_सेना का संहार कर रहे हैं तथा उसकी गदा की चोट से आहत होकर रथी, घुड़सवार, पैदल और हाथीसवार कराह रहे हैं। तत्पश्चात उनके पास पहुँचकर धृष्टधुम्न उन्हें अपने रथ पर बिठा लिया और छाती से लगाकर आश्वासन दिया। तब आपके पुत्र धृष्टधुम्न पर बाणों की वर्षा करने लगे। धृष्टधुम्न अद्भुत प्रकार से युद्ध करनेवाला था, शत्रुओं की बाणवर्षा से उसे तनिक भी व्यथा नहीं हुई; उसने सब योद्धाओं को अपने बाणों से बींध डाला। इसके बाद भी आपको पुत्रों को बढते देख महारथी द्रुपदकुमार ने ‘प्रमोहनास्त्र’ का प्रयोग किया। उसके प्रभाव से सभी नरवीर मूर्छित हो गये। द्रोणाचार्य ने जब यह सुना तो शीघ्र ही उस स्थान पर आये। देखा तो भीमसेन और धृष्टधुम्न रण में विचर रहे हैं और आपके सभी पुत्र अचेत पड़े हुए हैं। तब आचार्य ने प्रज्ञास्त्र का  प्रयोग करके मोहनास्त्र का निवारण किया। इससे उनमें पुनः प्राणशक्ति आ गयी और वे महारथी उठकर भीम और धृष्टधुम्न के सामने पुनः युद्ध के लिये जा डटे। इधर राजा युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को बुलाकर कहा, ‘ अभिमन्यु आदि बारह महारथी वीर कवच आदि से सुसज्जित होकर अपनी शक्तिभर प्रयत्न करके भीम और धृष्टधुम्न के पास जायँ और उनका समाचार जानें, मेरा मन उनके लिये संदेह में पड़ा हुआ है।‘ युधिष्ठिर की आज्ञा सुनकर सभी पराक्रमी योद्धा ‘बहुत अच्छा’ कहकर चल दिये। उस समय दोपहर हो चुका था। धृष्टकेतू, द्रौपदी के पुत्र तथा केकयदेशीय वीर अभिमन्यु को आगे करके बड़ी भारी सेना के साथ चले। उन्होंने सूचीमुख नामक व्यूह बनाकर कौरव सेना का भेदन किया और भीतर चले गये। कौरव_योद्धाओं को तो भीमसेन और धृष्टधुम्न ने पहले से ही भयभीत तथा मूर्छित कर रखा था, इसीलिये वे इनलोगों को रोकने में समर्थ न हुए। भीमसेन और धृष्टधुम्न ने जब अभिमन्यु आदि वीरों को अपने पास आया देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए और बड़े उत्साह से आपकी सेना का संहार करने लगे। इतने में द्रुपदकुमार ने अपने गुरु द्रोणाचार्य को सहसा वहाँ आते देखा। तब उसने आपके पुत्रों को मारने का विचार त्याग दिया और भीमसेन को केकय के रथ में बिठाकर अस्त्रों के पारगामी द्रोणाचार्य पर धावा किया। उसे अपनी ओर आते देख आचार्य ने एक बाण मारकर उसका धनुष काट दिया और चार बाणों से उसके चारों घोड़ों को मारकर सारथि को भी यमराज के घर भेज दिया।  तब महाबाहु धृष्टधुम्न  उस रथ से कूदकर अभिमन्यु के रथ पर जा बैठा। उस समय पाण्डवसेना काँप उठी, आचार्य द्रोण ने अपने तीखे बाणों से मारकर उसे क्षुब्ध कर दिया। दूसरी ओर से महाबली भीष्मजी भी पाण्डवसेना का संहार करने लगे।