Sunday 27 January 2019

शकटव्यूह के मुहाने पर कौरव और पाण्डवपक्ष के वीरों का संग्राम तथा कौरवपक्ष के कई वीरों का वध

राजा धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! जब अर्जुन जयद्रथ की ओर चला गया, तो आचार्य द्रोण द्वारा रोके हुए पांचालवीरों ने कौरवों के साथ किस प्रकार युद्ध किया ?
संजय ने कहा___राजन् ! उस दिन दोपहर के बाद कौरव और पांचालों में जो रोमांचकारी युद्ध हुआ, उसके प्रधान लक्ष्य आचार्य द्रोण ही थे। सभी पांचाल और पाण्डववीर द्रोण के रथ के पास पहुँचकर उनकी सेना को छिन्न_भिन्न करने के लिये बड़े_बड़े शस्त्र चलाने लगे। सबसे पहले केकय महारथी बृहच्क्षत्र पैने_पैने बाण बरसाता हुआ आचार्य के सामने आया। उसका मुकाबला सैकड़ों बाण बरसाते हुए क्षेमधूर्ति ने किया। फिर चेदिराज धृष्टकेतु आचार्य पर टूट पड़ा। उसका सामना वीरधन्वा ने किया। इसी प्रकार सहदेव को दुर्मुख ने, सात्यकि को व्याघ्रदत्त ने, द्रौपदी के पुत्रों को सोमदत्त के पुत्र ने और भीमसेन को राक्षस अलम्बुष ने रोका।
इसी समय राजा युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य पर नब्बे बाण छोड़े। तब आचार्य ने सारथि और घोड़ों के सहित उन पर पच्चीस बाणों से वार किया। परंतु धर्मराज ने अपने हाथ की फुर्ती दिखाते हुए उन सब बाणों को अपनी बाणवर्षा से रोक दिया। इससे द्रोण का क्रोध बहुत बढ़ गया। उन्होंने महात्मा  युधिष्ठिर की धनुष काट डाला और बड़ी फुर्ती से हजारों बाण बरसाकर उन्हें सब ओर से ढक दिया। इससे अत्यन्त खिन्न होकर धर्मराज ने वह टूटा हुआ धनुष फेंक दिया तथा एक दूसरा प्रचण्ड धनुष लेकर आचार्य को छोड़े हुए सहस्त्रों बाणों को काट डाला। फिर उन्होंने द्रोण के ऊपर एक अत्यन्त भयानक गदा छोड़ी और उल्लास में भरकर गर्जना करने लगे। गदा को अपनी ओर आते देख आचार्य ने ब्रह्मास्त्र प्रकट किया। वह गदा को भष्म करके राजा युधिष्ठिर के रथ की ओर चला। तब धर्मराज ने ब्रह्मास्त्र से ही उसे शान्त कर दिया तथा पाँच बाणों से आचार्य को बींधकर उनका धनुष काट डाला।तब द्रोण ने वह टूटा हुआ धनुष फेंककर धर्मपुत्र युधिष्ठिर पर गदा फेंकी। उसे अपनी ओर आते देख धर्मराज ने भी एक गदा उठाकर चलायी। वे गदाएँ आपस में टकरा उठीं, उनसे चिनगारियाँ निकलने लगीं और  फिर वे पृथ्वी पर जा पड़ीं। अब द्रोणाचार्य का क्रोध बहुत ही बढ़ गया। उन्होंने चार पैने बाणों से युधिष्ठिर के घोड़े मार डाले। एक भल्ल से उनका धनुष काट दिया, एक से ध्वजा काट डाली और तीन बाणों से स्वयं उन्हें भी बहुत पीड़ित कर दिया। घोड़ों के मारे जाने ये महाराज युधिष्ठिर बड़ी फुर्तीसेे रथ से कूद पड़े और सहदेव के रथ पर चढ़कर घोड़ों को तेजी से बढ़ाकर युद्ध के मैदान से चले गये।
दूसरी ओर महापराक्रमी केकयराज बृहच्क्षत्र को आते देख क्षेमधूर्ति ने बाणों द्वारा उसकी छाती पर चोट की। तब बृहच्क्षत्र ने बड़ी फुर्ती से क्षेमधूर्ति को नब्बे बाण मारे। इस पर क्षेमधूर्ति ने एक पैने भल्ल से केकयराज का धनुष काट डाला और स्वयं उसे भी एक बाण से घायल कर दिया। केकयराज ने एक दूसरा धनुष लेकर हँसते_हँसते महारथी क्षेमधूर्ति के घोड़े, सारथि और रथ को नष्ट कर डाला तथा एक पैने भल्ल से उसके कुण्डलमण्डित मस्तक को धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद वह पाण्डवों के हित के लिये अकस्मात् आपकी सेना पर टूट पड़ा। चेदिराज धृष्टकेतू को वीरधन्वा ने रोका था। वे दोनों वीर आपस में भिड़ सहस्त्रों बाणों से एक_दूसरे को घायल कर रहे थे। तब वीरधन्वा ने कुपित होकर एक भल्ल से धृष्टकेतू के धनुष के दो टुकड़े कर दिये। चेदिराज ने उसे फेंककर एक लोहे की शक्ति उठायी और उसे दोनों हाथों से वीरधन्वा पर फेंका। उसकी भयंकर चोट से वीरधन्वा की छाती फट गयी और वह रथ से पृथ्वी पर गिर गया।
दूसरी ओर दुर्मुख ने सहदेव पर साठ बाण छोड़े और बड़ी भारी गर्जना की। इस पर सहदेव ने हँसते_हँसते उसको अनेकों तीखे बाणों से बींध डाला। दुर्मुख ने उसके नौ बाण मारे। तब सहदेव ने एक भल्ल से दुर्मुख की ध्वजा काट डाली, चार पैने बाणों से चारों घोड़े मार दिये और एक अत्यन्त तीखे बाण से उसका धनुष काट डाला। इसके बाद उसने उसके सारथि का सिर भी उड़ा दिया तथा पाँच बाणों से स्वयं उसको घायल कर दिया। तब दुर्मुख अपने अश्वहीन रथ को छोड़कर निरमित्र के रथ पर चढ़ गया। इस पर सहदेव ने कुपित होकर एक भल्ल से निरमित्र पर प्रहार किया। इस पर त्रिगर्तराज का पुत्र निरमित्र को मरा देखकर त्रिगर्तदेश की सेना में बड़ा हाहाकार होने लगा। इसी समय दूसरी आश्चर्य की बात यह हुई कि नकुल ने एक क्षण में ही आपके पुत्र विकर्ण को परास्त कर दिया। सेना के दूसरे भाग में व्याघ्रदत्त अपने तीखे बाणों से सात्यकि को आच्छादित कर रहा था। सात्यकि ने अपने हाथ की सफाई से उन सबको रोक दिया तथा अपने बाणों द्वारा ध्वजा, सारथि और घोड़ों सहित व्याघ्रदत्त को भी धराशायी कर दिया। उस मगधराजकुमार का वध होने पर मगध देश के अनेकों वीर सहस्त्रों बाण, तोमर भिन्दीपाल, प्रास, मुद्गर और मूसर आदि शस्त्रों का वार करते हुए सात्यकि के साथ युद्ध करने लगे। किन्तु सात्यकि ने हँसते_ हँसते अनायास ही उन सबको परास्त कर दिया। महाबाहु सात्यकि की मार से भयभीत होकर भागी हुई भयभीत  आपकी सेना में से किसी का भी साहस उसके पास ठहरने का नहीं हुआ। यह देखकर द्रोणाचार्यजी को बड़ा क्रोध हुआ और वे स्वयं ही उस पर टूट पड़े।
इधर शल ने द्रौपदी के पुत्रों में से पहले पाँच_पाँच और फिर सात_सात बाणों से बींध दिया। इससे उन्हें बड़ी ही पीड़ा हुई, वे चक्कर में पड़ गये और अपने कर्तव्य के विषय में कुछ निश्चय नहीं कर सके। इतने में ही नकुल के पुत्र शतानीक ने दो बाणों से शल को बींधकर बड़ी भारी गर्जना की। इसी प्रकार अन्य द्रौपदीकुमारों ने भी तीन_तीन बाणों से उसे घायल किया। तब शल ने उनमें से प्रत्येक पर पाँच_पाँच बाण छोड़े और एक_एक बाण से प्रत्येक की छाती पर चोट की। इसपर अर्जुन के पुत्र ने चार बाणों से उसके घोड़े मार डाले, भीमसेन के पुत्र ने उसका धनुष काटकर बड़े जोर से गर्जना की। युधिष्ठिरकुमार ने उनकी ध्वजा काटकर गिरा दी, नकुल के पुत्र ने सारथि को रथ से नीचे गिरा दिया तथा सहदेवकुमार ने एक पैने बाण से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया। उसका सिर कटते देखकर आपके सैनिक भयभीत होकर इधर_उधर भागने लगे।
एक ओर महाबली भीमसेन के साथ अलम्बुष का युद्ध हो रहा था। भीमसेन ने नौ बाणों से उस राक्षस को घायल कर डाला। तब वह भयानक राक्षस भीषण गर्जना करता हुआ भीमसेन की ओर दौड़ा। उसने उन्हें पाँच बाणों से बींधकर उनकी सेना के तीन सौ रथियों का संहार कर दिया। फिर चार सौ वीरों को और भी मारकर एक बाण से भीमसेन को घायल कर दिया। उस बाण से महाबली भीम के गहरी चोट लगी और वह अचेत होकर रथ के भीतर ही गिर गये। कुछ देर बाद उन्हें चेत हुआ तो वे अपना भयंकर धनुष चढ़ाकर चारों ओर से अलम्बुष को बाणों ये बींधने लगे। इस समय उसे याद आया कि भीमसेन ने ही उसके भाई बक को मारा था। अतः उसने भयानक रूप धारण करके उनसे कहा, ‘दुष्ट भीम ! तूने जिस समय मेरे महाबली भाई बक को मारा था समय मैं वहाँ उपस्थित नहीं था; आज तू उसका फल चख ले।‘ ऐसा कहकर वह अन्तर्धान हो गया तथा भीमसेन के ऊपर भारी बाणवर्षा करने लगा। भीमसेन ने भी सारे आकाश को बाणों से व्याप्त कर दिया। उनसे पीड़ित होकर वह राक्षस अपने रथ पर आ बैठा, फिर पृथ्वी पर उतरा और छोटा सा रूप धारण करके आकाश में उड़ गया। भिन्दीपाल, परशु, शिला, खड्ग, गुड, ऋष्टि और वज्र आदि अनेकों अस्त्र_शस्त्र की वर्षा की। उससे भीमसेन ने कुपित होकर विश्वकर्मास्त्र छोड़ा। उससे सब ओर अनेकों बाण प्रकट हो गये। उससे पीड़ित होकर आपके सैनिकों में बड़ी भगदड़ पड़ गयी। उस शस्त्र ने राक्षस की सारी माया को नष्ट करके उसे भी बड़ी पीड़ा पहुँचायी। इस प्रकार भीमसेन द्वारा बहुत पीड़ित होने पर वह उन्हें छोड़कर द्रोणाचार्यजी की सेना में चला गया। उस महाबली राक्षस को जीतकर पाण्डवलोग सिंहनाद करके सब दिशाओं को हुए जाने लगे।अब हिडिम्बा के पुत्र घतोत्कच ने अलम्बुष के आगे आकर उसे तीखे बाणों से बींधना आरम्भ किया। इससे अलम्बुष का क्रोध बहुत बढ़ गया और उसने घतोत्कच पर भारी चोट की। इस प्रकार उन दोनों राक्षसों का बड़ा भीषण संग्राम छिड़ गया। घतोत्कच ने अलम्बुष की छाती में बीस बाण मारकर बार_बार सिंह के समान गर्जना की तथा अलम्बुष ने रणकर्कश घतोत्कच को घायल करके अपने भारी सिंहनाद से आकाश को गुँजा दिया। दोनों ही सैकड़ों प्रकार की मायाएँ रचकर एक_दूसरे को मोह में डाल रहे थे। मायायुद्ध में कुशल होने के कारण अब उन्होंने उसी का आश्रय लिया। उस युद्ध में घतोत्कच ने जो_जो माया दिखायी, उसी को अलम्बुष ने नष्ट कर दिया। इससे भीमसेन आदि कई महारथियों का क्रोध बहुत बढ़ गया और वे भी अलम्बुष पर टूट पड़े।
अलम्बुष ने अपना वज्र के समान धनुष चढ़ाकर भीमसेन पर पच्चीस, घतोत्कच पर पाँच, युधिष्ठिर पर तीन, सहदेव पर सात, नकुल पर तिहत्तर और द्रौपदीपुत्रों पर पाँच_पाँच बाण छोड़े तथा बड़ा भीषण सिंहनाद किया। इस पर उसे भीमसेन ने नौ, सहदेव ने पाँच, युधिष्ठिर ने सौ, नकुल ने चौंसठ और द्रौपदी के पुत्रों ने पाँच_पाँच बाणों से बींध दिया तथा घतोत्कच ने उस पर पचास बाण छोड़कर फिर सत्तर बाणों का वार करते हुए बड़ी गर्जना की। उस भीषण सिंहनाद से पर्वत, वन, वृक्ष और जलाशयों के सहित सारी पृथ्वी डगमगाने लगी। तब अलम्बुष ने उनमें से प्रत्येक वीर पर पाँच_पाँच बाणों की चोट की। इस पर घतोत्कच और पाण्डवों ने अत्यन्त उत्तेजित होकर उस पर चारों ओर से तीखे_तीखे तीरों की वर्षा की । विजयी पाण्डवों की मार से अधमरा हो जानेसेे वह एकदम किंकर्तव्यविमूढ हो गया। उसकी ऐसी स्थिति देखकर युद्धदुर्मुद घतोत्कच ने उसका वध करने का विचार किया। वह अपने रथ से अलम्बुष के रथ पर कूद गया और उसे दबोच लिया। फिर उसे हाथों से ऊपर उठाकर बार_बार घुमाया और पृथ्वी पर पटक दिया। यह देखकर उसकी सारी सेना भयभीत हो गयी। वीर घतोत्कच के प्रहार से अलम्बुष के सब अंग फट गये और उसका हड्डियाँ चूर_चूर हो गयीं। इस प्रकार महाबली अलम्बुष को मरा देखकर पाण्डवलोग हर्ष से सिंहनाद करने लगे तथा आपकी सेना में हाहाकार होने लगा।

Friday 11 January 2019

अर्जुन का दुर्योधन तथा अश्त्थामा आदि आठ महारथियों से संग्राम

संजय ने कहा___राजन् ! अब श्रीकृष्ण और अर्जुन निर्भय होकर आपस में जयद्रथ का वध करने की बात करने लगे। उन्हें सुनकर शत्रु बहुत भयभीत हो गये। वे दोनों आपस में कह रहे थे, ‘जयद्रथ को छः महारथी कौरवों ने अपने बीच में कर लिया है; किन्तु एक बार उस पर दृष्टि पड़ गयी, तो वह हमारे हाथ से छूटकर नहीं जा सकेगा। यदि देवताओं के सहित स्वयं इन्द्र भी उसकी रक्षा करेंगे, तो भी हम उसे मारकर ही छोड़ेंगे।‘ उस समय उन दोनों के मुख की कान्ति देखकर आपके पक्ष के वीर यही समझने लगे कि ये अवश्य जयद्रथ का वध कर देंगे। इसी समय श्रीकृष्ण और अर्जुन ने सिंधुराज को देखकर हर्ष से बड़ी गर्जना की। उन्हें बढ़ते देखकर आपका पुत्र दुर्योधन जयद्रथ की रक्षा के लिये उनके आगे होकर निकल गया। आचार्य द्रोण उसके कवच बाँध चुके थे। अतः वह अकेला ही रथ पर चढ़कर संग्रामभूमि में आ कूदा। जिस समय आपका पुत्र अर्जुन को लाँघकर आगे बढ़ा, आपकी सारी सेना में खुशी के बाजे बजने लगे। तब श्रीकृष्ण ने कहा, ‘अर्जुन ! देखो, आज दुर्योधन हमसे भी आगे बढ़ गया है। मुझे यह बड़ी अद्भुत बात जान पड़ती है। मालूम होता है इसके समान कोई दूसरा रथी नहीं है। अब समयानुसार उसके साथ युद्ध करना मैं उचित ही समझता हूँ। आज यह तुम्हारा लक्ष्य बना है__ इसे तुम अपनी सफलता ही समझो; नहीं तो यह राज्य का लोभी तुम्हारे साथ संग्राम करने के लिये क्यों आता ? आज सौभाग्य से ही यह तुम्हारे बाणों का विषय बना है; इसलिये तुम ऐसा करो, जिससे यह शीघ्र ही अपने प्राण त्याग दे। पार्थ ! तुम्हारा सामना तो देवता, असुर, और मनुष्यों सहित तीन लोक भी नहीं कर सकते; फिर इस अकेले दुर्योधन की बात ही क्या है?’ यह सुनकर अर्जुन ने कहा, ‘ ठीक है; यदि इस समय मुझे यह काम करना ही चाहिये, तो आप और सब काम छोड़कर दुर्योधन की ओर ही चलिये।‘
इस प्रकार आपस में बातें करते हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन ने प्रसन्न होकर राजा दुर्योधन के पास पहुँचने के लिये अपने सफेद घोड़े बढ़ाये। इस महासंकट के समय भी दुर्योधन डरा नहीं, उसने उन्हें अपने सामने आने पर रोक दिया। यह देखकर उसके पक्ष के सभी क्षत्रिय उसकी बड़ाई करने लगे। राजा को संग्रामभूमि में लड़ते देखकर आपकी सारी सेना में बड़ा कोलाहल होने लगा। इससे अर्जुन का क्रोध बहुत बढ़ गया। तब दुर्योधन ने हँसते हुए उन्हें युद्ध के लिये ललकारा। श्रीकृष्ण और अर्जुन भी उल्लास में भरकर गरजने और अपने शंख बजाने लगे। उन्हें प्रसन्न देखकर सभी कौरव दुर्योधन के जीवन के विषय में निराश हो गये और अत्यन्त भयभीत होकर कहने लगे, ‘हाय ! महाराज मौत के पंजे में जा पड़े, हाय ! महाराज मौत के पंजे में जा पड़े।‘ उनका कोलाहल सुनकर दुर्योधन ने कहा___ ‘डरो मत, मैं अभी कृष्ण और अर्जुन को मृत्यु के पास भेजे देता हूँ।‘
ऐसा कहकर उसने तीन तीखे तीरों से अर्जुन पर वार किया और चार बाणों से उनके चारों घोड़ों को बींध दिया। फिर दस बाण श्रीकृष्ण की छाती में मारे और एक भल्ल से उसके कोड़े को काटकर पृथ्वी पर गिरा दिया। इस पर अर्जुन ने बड़ी सावधानी से उस पर चौदह बाण छोड़े; किन्तु वे उसके कवच से टकराकर पृथ्वी पर गिर गये। उन्हें निष्फल हुआ देखकर उन्होंने चौदह बाण फिर छोड़े, किन्तु वे भी दुर्योधन के कवच से लगकर जमीन पर जा गिरे। यह देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, ‘आज तो मैं यह अनोखी बात देख रहा हूँ। देखो, तुम्हारे बाण शिला पर छोड़े हुए तीरों के समान कुछ भी काम नहीं कर रहे हैं। पार्थ ! तुम्हारे बाण तो वज्रपात के समान भयंकर और शत्रु के शरीर में घुस जानेवाले होते हैं; परन्तु यह कैसी विडम्बना है, आज इनसे कुछ भी काम नहीं हो रहा है।‘ अर्जुन ने कहा, ‘श्रीकृष्ण ! मालूम होता है दुर्योधन को ऐसी शक्ति आचार्य द्रोण ने दी है। इसके कवच धारण करने की जो शैली है, वह मेरे अस्त्रों के लिये अभेद्य है। इसके कवच में तीनों लोकों की शक्ति समायी हुई है। इसे एकमात्र आचार्य ही जानते हैं या उनकी कृपा से मुझे इसका ज्ञान है। इस कवच को बाणों द्वारा किसी प्रकार भेदा नहीं जा सकता। यही नहीं, अपने वज्र द्वारद्वारा स्वयं इन्द्र भी इसे नहीं काट सकते।
कृष्ण ! यह सब रहस्य जानते तो आप भी हैं, फिर इस प्रकार प्रश्न करके मुझे मोह में क्यों डालते हैं ? तीनों लोकों में जो कुछ हो चुका है, जो होता है और जो होगा___यह सभी आपको विदित है। आपके समान इन सब बातों को जाननेवाला कोई नहीं है। यह ठीक है, दुर्योधन आचार्य के पहनाये हुए कवच को धारण करके इस समय निर्भय हुआ खड़ा है; किन्तु अब आप मेरे धनुष और भुजाओं के पराक्रम को भी देखें। मैं कवच से सुरक्षित होने पर भी आज इसे परास्त कर दूँगा।‘
ऐसा कहकर अर्जुन ने कवच को तोड़ने वाले मानवास्त्र से अभिमन्त्रित करके अनेकों बाण चढ़ाये। किन्तु अश्त्थामा ने सब प्रकार के अस्त्रों को काट देनेवाले बाणों से उन्हें धनुष के ऊपर ही काट दिया। यह देख अर्जुन को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा, जनार्दन ! इस अस्त्र का मैं दुबारा प्रयोग नहीं कर सकता; क्योंकि ऐसा करने पर यह अस्त्र मेरा और मेरी सेना की संहार ही कर डालेगा।‘ इतने में ही दुर्योधन ने नौ_नौ बाणों से अर्जुन और श्रीकृष्ण को घायल कर दिया तथा उन पर और भी अनेकों बाणों की वर्षा करने लगा। उसकी भीषण बाणवर्षा देखकर आपके पक्ष के वीर बड़े प्रसन्न हुए और बाणों की ध्वनि करते हुए सिंहनाद करने लगे। तब अर्जुन ने अपने काल के समान कराल और तीखे बाणों से दुर्योधन के घोड़े और  दोनों पार्श्वरक्षकों को मार डाला। फिर उसके धनुष और दास्तानों को भी काट दिया। इस प्रकार उसे रथहीन करके दो बाणों से उसकी हथेलियों को बींधा तथा उसके नखों के भीतरी माँस को छेदकर ऐसा व्याकुल कर दिया कि वह भागने की चेष्टा करने लगा। दुर्योधन को इस प्रकार आपत्ति में पड़ा देखकर अनेकों धनुर्धर वीर उसकी रक्षा के लिये दौड़ पड़े। उन्होंने अर्जुन को चारों ओर से घेर लिया। जनसमूह से घिर जाने और भीषण बाणवर्षा के कारण उस समय न तो अर्जुन ही दिखायी देते थे और न श्रीकृष्ण ही। यहाँ तक कि उनका रथ भी आँखों से ओझल हो गया था। तब अर्जुन ने गाण्डीव धनुष खींचकर भीषण टंकार की और भारी बाणवर्षा करके शत्रुओं का संहार करना आरम्भ कर दिया। श्रीकृष्ण उच्च स्वर से पांचजन्य शंख बजाने लगे। उस शंख के नाद और गाण्डीव की टंकार से भयभीत होकर बलवान् और दुर्बल सभी पृथ्वी पर लोटने लगे तथा पर्वत, समुद्र द्वीप और पाताल के सहित सारी पृथ्वी गूँज उठी। आपकी ओर के अनेकों वीर श्रीकृष्ण और अर्जुन को मारने के लिये बड़ी फुर्ती से दौड़ आये। भूरिश्रवा, शल, कर्ण, वृषसेन, जयद्रथ, कृपाचार्य, शल्य और अश्त्थामा___इन आठ वीरों ने एक साथ ही उनपर आक्रमण किया। उन सबके साथ राजा दुर्योधन ने जयद्रथ की रक्षा के उद्देश्य से उन्हें चारों ओर से घेर लिया। अश्त्थामा ने तिहत्तर बाणों से श्रीकृष्ण पर और तीन से अर्जुन पर वार किया तथा पाँच बाणों से उसकी ध्वजा और घोड़ों पर भी चोट की। इस पर अर्जुन ने अत्यन्त कुपित होकर अश्त्थामा पर सौ बाण छोड़े तथा दस बाणों से कर्ण और तीन से वृषसेन को बींधकर राजा शल्य के बाणसहित धनुष को काट डाला। शल्य ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर अर्जुन को घायल कर दिया। फिर उन्हें भूरिश्रवा ने तीन, कर्ण ने पच्चीस, वृषसेन ने सात, जयद्रथ ने तिहत्तर, कृपाचार्य ने दस और मद्रराज ने दस बाणों से बींध डाला। इस पर अर्जुन हँसे और अपने हाथ की सफाई दिखाते हुए उन्होंने कर्ण पर बारह और वृषसेन पर तीन बाण छोड़कर शल्य के बाणसहित धनुष को काट डाला। फिर आठ बाणों से अश्त्थामा को, पच्चीस से कृपाचार्य को और सौ से जयद्रथ को घायल कर दिया। इसके बाद उन्होंने अश्त्थामा पर सत्तर बाण और भी छोड़े। तब भूरिश्रवा ने कुपित होकर श्रीकृष्ण का कोड़ा काट डाला और अर्जुन पर तिहत्तर बाणों से वार किया। इस पर अर्जुन ने सौ बाणों से उन सब शत्रुओं को आगे बढ़ने से रोक दिया।

विन्द, अनुविन्द का वध तथा कौरवसेना के बीच में श्रीकृष्ण की अश्वचर्या

संजय ने कहा___राजन् ! अब सूर्यनारायण ढल चुके थे। कौरवपक्ष के योद्धाओं में से कोई तो युद्ध के मैदान में डटे हुए थे, कोई लौट आये थे और कोई पीठ दिखाकर भाग रहे थे। इस प्रकार धीरे_धीरे वह दिन बीत रहा था। किन्तु अर्जुन और श्रीकृष्ण बराबर जयद्रथ की ओर बढ़ रहे थे। अर्जुन अपने बाणों से रथ के जानेयोग्य रास्ता बना लेते थे और श्रीकृष्ण उसी से बढ़ते जा रहे थे। राजन् ! अर्जुन का रथ जिस_जिस ओर जाता था, उसी_उसी ओर आपकी सेना में दरार पड़ जाती थी। उनके लोहे के बाण अनेकों शत्रुओं का संहार करते हुए उनका रक्तपान कर रहे थे। वे रथ से एक कोस तक के शत्रुओं का सफाया कर देते थे। अर्जुन का रथ बड़ी तेजी से चल रहा था। उस समय उसने सूर्य, इन्द्र, रुद्र और कुबेर के रथों को,भी मात दे दिया था। जिस समय वह रथ रथियों की सेना के बीच में पहुँचा, उसके घोड़े भूख_प्यास से व्याकुल हो उठे और बड़ी कठिनता से रथ खींचने लगे। उन्हें पर्वत के समान सहस्त्रों मरे हुए हाथी, घोड़े, मनुष्य और रथों के ऊपर होकर अपना मार्ग निकालना पड़ता था। इसी समय अवन्तिनरेश के दोनों राजकुमार अपनी सेना के सहित अर्जुन के सामने आ डटे। उन्होंने बड़े उल्लास में भरकर अर्जुन को चौंसठ, श्रीकृष्ण को सत्तर और घोड़ों को सौ बाणों से घायल कर दिया। तब अर्जुन ने कुपित होकर नौ बाणों से उसके मर्मस्थानों को बींध दिया तथा दो बाणों से उनके धनुष और ध्वजाओं तो भी काट डाला। वे दूसरे धनुष लेकर अत्यन्त क्रोधपूर्वक अर्जुन पर बाण बरसाने लगे। अर्जुन ने तुरंत ही फिर उनके धनुष काट डाले तथा और बाण छोड़कर उनके घोड़े, सारथि, पार्श्वरक्षक और कई सारथियों को मार डाला। फिर उन्होंने एक क्षुरप्र बाण से बड़े भाई विन्द का सिर काट डाला और वह मरकर पृथ्वी पर जा पड़ा। विन्द को मरा देखकर महाबली अनुविन्द हाथ में गदा लेकर रथ से कूद पड़ा और अपने भाई की मृत्यु का स्मरण करते हुए उसने श्रीकृष्ण के ललाट पर चोट की। किन्तु श्रीकृष्ण उससे तनिक भी विचलित न हुए। अर्जुन ने तुरंत ही छः बाणों से उसके हाथ, पैर, सिर और गर्दन काट डाले और वह पर्वतशिखर के समान पृथ्वी पर जा गिरा। विन्द और अनुविन्द को मरा देखकर उनके साथी अत्यन्त कुपित होकर सहस्त्रों बाण बरसाते,अर्जुन की ओर दौड़े। अर्जुन ने बड़ी फुर्ती से अपने बाणों द्वारा उनका सफाया कर दिया और वे आगे बढ़े। फिर उन्होंने धीरे_धीरे श्रीकृष्ण से कहा, ‘घोड़े बाणों से बहुत व्यथित हो रहे हैं और बहुत थक गये हैं। जयद्रथ भी अभी दूर है। ऐसी स्थिति में इस समय  आपको क्या करना उचित जान पड़ता है ? मेरे विचार से जो बात ठीक जान पड़ती है, वह मैं कहता हूँ; सुनिये। आप मजे से घोडों को छोड़ दीजिये और इनके बाण निकाल दीजिये।‘ अर्जुन के इस प्रकार कहने पर श्रीकृष्ण ने कहा, ‘पार्थ ! तुम जैसा कहते हो, मेरा भी यही विचार है।‘ अर्जुन ने कहा, ‘केशव ! मैं कौरवों की सारी सेना को रोके रहूँगा। इस बीच में आप यथावत् सब काम कर लें।‘ ऐसा कहकर अर्जुन रथ से उतर पड़े और बड़ी सावधानी से धनुष लेकर पर्वत के समान अविचल भाव से खड़े हो गये। इस समय विजयाभिलाषी क्षत्रिय उन्हें पृथ्वी पर खड़ा देखकर ‘ अब अच्छा मौका है’ इस प्रकार चिल्लाते हुए उनकी ओर दौड़े। उन्होंने बड़ी भारी रथसेना के द्वारा अकेले अर्जुन को घेर लिया और अपने धनुष चढ़ाकर तरह_तरह के शस्त्र और बाणों से उन्हें ढक दिया। किन्तु वीर अर्जुन ने अपने अस्त्रों से उनके अस्त्रों को सब ओर से रोककर उन सभी को अनेकों बाणों से आच्छादित कर दिया। कौरवों की असंख्य सेना अपार समुद्र के समान थी। उसमें बाणरूप तरंगें और ध्वजारूप भँवरें पड़ रही थीं, हाथीरूप नाव तैर रहे थे, पदातिरूप मछलियाँ कल्लोल कर रही थीं तथा शंख और दुंदुभियों की ध्वनि उसकी गर्जना थी। अगणित रथावलि उसकी अनंत तरंगमाला थी, पगड़ियाँ कछुए थे, छत्र और पताकाएँ फेन थे और हाथियों के शरीर मानो शिलाएँ थीं। अर्जुन ने तटरूप होकर उसे अपने बाणों से रोक रखा था। धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! जब अर्जुन और श्रीकृष्ण पृथ्वी पर खड़े हुए थे, तो ऐसा अवसर पाकर भी कौरवलोग अर्जुन को क्यों नहीं मार सके ?
संजय ने कहा___राजन् ! जिस प्रकार लोभ अकेला ही सारे गुणों को रोक देता है, उसी प्रकार अर्जुन ने पृथ्वी पर खड़े होकर भी रथों पर खड़े हुए समस्त राजाओं को रोक रखा था। इसी समय श्रीकृष्ण ने घबराकर अपने प्रिय सखा अर्जुन से कहा, ‘अर्जुन ! यहाँ रणभूमि में कोई अच्छा जलाशय नहीं है। तुम्हारे घोड़े पानी पीना नहीं चाहते हैं।‘ इसपर अर्जुन ने तुरंत ही अस्त्र द्वारा पृथ्वी को फोड़कर घोड़ों के पानी पीने योग्य एक सुन्दर सरोवर बना दिया। यह सरोवर बहुत विस्तृत और स्वच्छ जल से भरा हुआ था। एक क्षण में ही तैयार किये हुए उस सरोवर को देखने के लिये वहाँ नारद मुनि भी पधारे। इसमें अद्भुत कर्म करनेवाले अर्जुन ने एक बाणों का घर बना दिया, जिसके खम्भे बाँस और छत बाणों के ही थे। उसे देख श्रीकृष्ण हँसे और बोले ‘खूब बनाया !’ इसके बाद वे तुरंत ही रथ से कूद पड़े और उन्होंने बाणों से बिंधे हुए घोड़े को खोल दिया। अर्जुन का यह अभूतपूर्व पराक्रम देखकर सिद्ध, चारण और सैनिकलोग ‘वाह ! वाह !’ की ध्वनि करने लगे। सबसे बढ़कर आश्चर्य की बात यह हुई कि बड़े_बड़े महारथी भी पैदल अर्जुन से युद्ध करने पर भी उन्हें पीछे न हटा सके। कमलनयन श्रीकृष्ण, मानो स्त्रियों के बीच में खड़े हों, इस प्रकार मुस्कराते हुए घोड़ों को अर्जुन के बनाये हुए बाणों के घर में ले गये और आपके सब सैनिकों के सामने ही निर्भय होकर उन्हें लिटाने लगे। वे अश्वचर्या में उस्ताद तो हैं ही। थोड़ी ही देर में उन्होंने घोड़ों के श्रम, ग्लानि, कंप और घावों को दूर कर दिया तथा अपने करकमलों से उनके बाण निकालकर, मालिश करके और पृथ्वी पर लिटाकर उन्हें जल पिलाया। इस प्रकार जब वे नहाकर, जल पीकर और घास खाकर ताजे हो गये तो उन्हें फिर रथ में जोर दिया। इसके बाद वे अर्जुन के साथ फिर उस रथ पर चढ़कर बड़ी तेजी से चले।
इस समय आपके पक्ष के योद्धा कहने लगे, ‘अहो ! श्रीकृष्ण और अर्जुन हमारे रहते निकल गये और हम उनका कुछ भी न बिगाड़ सके। हमें धिक्कार है ! धिक्कार है ! बालक जैसे खिलौने की परवा नहीं करता, उसी प्रकार वे एक ही रथ में बैठकर हमारी सेना को कुछ भी न समझकर आगे बढ़ गये।‘ ऐसा अद्भुत पराक्रम देखकर उनमें से कोई_कोई राजा कहने लगे, ‘अकेले दुर्योधन के अपराध से ही सारी सेना, राजा धृतराष्ट्र और सम्पूर्ण भूमण्डल नाश की ओर बढ़ रहे हैं। किन्तु राजा धृतराष्ट्र की समझ में यह बात अभी तक नहीं बैठती।‘