Tuesday 19 September 2017

सांयमनिपुत्र और कुछ धृतराष्ट्रपुत्रों का वध तथा घतोत्कच और भगदत्त का युद्ध

संजय ने कहा___राजन् ! रात बीतने पर चौथे दिन प्रातःकाल ही भीष्मजी बड़े क्रोध में भरकर सारी सेना के सहित शत्रुओं के सामने आये। उस समय द्रोणाचार्य, दुर्योधन, बाह्लीक, दुर्मर्षण, चित्रसेन, जयद्रथ और अनेकों दूसरे राजालोग उनके साथ_साथ चल रहे थे। भीष्मजी ने  सीधे अर्जुन पर ही निशाना किया तथा उनके साथ द्रोणाचार्यादि सभी वीर एवं कृपाचार्य, शल्य, विविंशति, दुर्योधन और भूरिश्रवा भी उन्हीं पर टूट पड़े। यह देखते ही सर्वशस्त्रज्ञ अभिमन्यु उनके सामने आया। उसने सब महारथियों के सब अस्त्र_शस्त्र काट डाले और रणांगण में शत्रुओं के खून की नदी बहा दी। भीष्मजी ने अभिमन्यु को छोड़कर अर्जुन पर आक्रमण किया। किन्तु किरीटी ने मुसकराकर अपने गाण्डीव धनुष द्वारा छोड़े हुए बाणों से उनके शस्त्रसमूह को  नष्ट कर दिया और उन पर बड़ी फुर्ती से बाण बरसाना आरम्भ किया। तब भीष्मजी ने अपने बाणों से अर्जुन के शस्त्रों को नष्ट कर दिया। इस प्रकार कुरु और संजयवीरों ने भीष्म और अर्जुन का वह अद्भुत द्वन्दयुद्ध देखा। इधर अभिमन्यु को द्रोणपुत्र अश्त्थामा,भूरिश्रवा , शल्य  चित्रसेन और सांयमनि के पुत्र ने घेर लिया। उन पाँच पुरुषसिंहों के साथ अकेला युद्ध करता हुआ अभिमन्यु ऐसा जान पड़ता था मानो कोई शेर का बच्चा पाँच हाथियों से लड़ रहा हो। निशाना लगाने की सफाई, शूरवीरता, पराक्रम और फुर्ती  में  कोई भी वीर अभिमन्यु की बराबरी नहीं कर सकता था। राजन् ! जब आपके पुत्रों ने देखा कि सेना बड़ी तंग आ गयी है तो उन्होंने अभिमन्यु को चारों ओर से घेर लिया। परंतु अपने तेज और बल के कारण अभिमन्यु ने तनिक भी हिम्मत नहीं हारी। वह निर्भय होकर कौरवों की सेना के सामने आकर डट गया। उसने एक बाण से अश्त्थामा को और पाँच से शल्य को घायल कर आठ बाणों द्वारा सांयमनि के पुत्र की ध्वजा काट दी। फिर भूरिश्रवा की छोड़ी हुई एक सर्प के समान प्रचण्ड शक्ति को अपनी ओर आती देख उसे भी एक पैने बाण से काट डाला। इस समय शल्य बड़े वेग से बाण_बर्षा कर रहे थे। अभिमन्यु ने उसे रोककर उनके चारों घोड़े मार डाले। इस प्रकार भूरिश्रवा, शल्य, अश्त्थामा, सांयमनि और शल___इनमें से कोई भी अभिमन्यु के आगे नहीं टिक सका। अब दुर्योधन की आज्ञा से त्रिगर्त, मद्र और केकय देश के पचास हजार वीरों ने अर्जुन और अभिमन्यु को घेर लिया। यह देखकर पांचालराजकुमार धृष्टधुम्न अपनी सेना लेकर बड़े क्रोध से मद्र और केकय देश के वीरों पर टूट पड़ा। उसने दस बाणों से दस मद्रदेशीय वीरों को, एक से कृतवर्मा के पृष्ठरक्षक को और एक से कौरव के पुत्र दमन को मार डाला। इतने में ही सांयमनि के पुत्र ने दस बाणों से धृष्टधुम्न को और दस से उसके सारथि को बींध दिया। तब धृष्टधुम्न ने अत्यन्त पीड़ित होकर एक पैने बाण से सांयमनि पुत्र की धनुष काट डाला और पच्चीस बाण छोड़कर उसके घोड़ों को और रथ के इधर_उधर रहनेवाले सारथियों को मार गिराया। सांयमनिपुत्र तलवार लेकर रथ से कूद पड़ा और बड़ी तेजी से पैदल ही रथ में बैठे हुए अपने शत्रु के पास पहुँचा। यह देखकर धृष्टधुम्न ने क्रोध में भरकर गदा के प्रहार से उसका सिर फोड़ दिया। गदा की चोट से ज्योंही वह पृथ्वी में गिरा कि उसके हाथ से वह तलवार और ढ़ाल भी छूटकर दूर जा पड़ी।  इस प्रकार उस महारथी राजकुमार के मारे जाने से आपकी सेना में बड़ा हाहाकार होने लगा। तब सांयमनि ने अपने पुत्र को मरा हुआ देखा तो वह अत्यन्त क्रोध में भरकर धृष्टधुम्न की ओर चला। वे दोनों वीर आमने_सामने आकर रणांगण में भिड़ गये तथा कौरव पाण्डव तथा समस्त राजालोग उनका युद्ध देखने लगे। सांयमनि ने क्रोध में भरकर धृष्टधुम्न को तीन बाण मारे तथा दूसरी ओर से शल्य ने भी उस पर प्रहार किया। शल्य के नौ बाण लगने से धृष्टधुम्न को बड़ी व्यथा हुई, तब उसने क्रोध में भरकर फौलाद के बाणों से मद्रराज की नाक में दम कर दिया। कुछ देर तक उन दोनों महारथियों का युद्ध समानरूप से चलता रहा; उनमें किसी की भी न्यूनाधिकता मालूम नहीं हुई। इतने में ही महाराज शल्य ने एक पैने बाण से धृष्टधुम्न का धनुष काट डाला तथा उसे बाणों से आच्छादित कर दिया यह देखकर अभिमन्यु बड़े क्रोध में भरकर मद्रराज के रथ की ओर दौड़ा तथा बड़े तीखे बाणों से उन्हें बींधने लगा। तब दुर्योधन, विकर्ण, दुःशासन, विविंशति, दुर्घर्ष, दुःसह, चित्रसेन, दुर्मुख, सत्यव्रत और पुरुमित्र___ये सब योद्धा मद्रराज की रक्षा करने लगे। किन्तु भीमसेन, धृष्टधुम्न, द्रौपदी के पाँच पुत्र, अभिमन्यु और नकुल_सहदेव ने इन्हें रोक लिया। ये सब वीर बड़े उत्साह से आपस में युद्ध करने लगे। इन दोनों पक्षों के दस_दस रथियों का भयंकर युद्ध आरम्भ होने पर उसे आपके और पाण्डवों के पक्ष के दूसरे रथी दर्शकों की तरह देखने लगे। दुर्योधन ने अत्यन्त क्रोध में भरकर चार तीखे बाणों से धृष्टधुम्न को बींध दिया तथा दुर्मर्षण ने बीस, चित्रसेन ने पाँच, दुर्मुख ने नौ, दुःसह ने सात, विविंशति ने पाँच और दुःशासन ने तीन बाण छोड़कर उसे घायल किया। तब धृष्टधुम्न ने भी अपने हाथ की सफाई दिखाते हुए उन में से प्रत्येक को पचीस_पचीस बाण मारे तथा अभिमन्यु ने दस_दस बाणों से सत्यव्रत और पुरुमित्र को बींध दिया। नकुल और सहदेव ने अचरज सा दिखाते हुए अपने मामा शल्य पर तीखे_तीखे बाण चलाये। तब शल्य मे भी अपने भानजों पर अनेकों बाण छोड़े, किन्तु माद्रीकुमार नकुल और सहदेव बाणों से बिलकुल ढक जाने पर भी अपने स्थान से नहीं डिगे। भीमसेन ने जब दुर्योधन को अपने सामने देखा तो सारे झगड़े का अंत कर देने के लिये एक गदा उठायी। भीमसेन को गदा धारण किये देख आपके सब पुत्र डरकर भाग गये। तब दुर्योधन ने क्रोध में भरकर मगधराज को उसकी दस हजार गजारोही सेना के सहित आगे करके भीमसेन पर धावा किया। बस, भीमसेन रथ से खरीदकर अपनी गदा से हाथियों को कुचलते हुए रणक्षेत्र में विचरने लगे। उस समय भीमसेन की दिल को दहला देनेवाली दहाड़  सुनकर सब हाथी सुन्न_से हो गये। तब द्रौपदी के पुत्र, अभिमन्यु, नकुल, सहदेव और धृष्टधुम्न___ये पाण्डवपक्ष के वीर भीमसेन की पीछे से रक्षा करते हुए अपने पैने बाणों से मागधी सेना के गजारोही वीरों को सिर काटने लगे। यह देखकर मगधराज ने अपने ऐरावत के समान विशालकाय हाथी को अभिमन्यु के रथ की तरफ किया। किन्तु वीर अभिमन्यु  ने एक ही बाण में उस हाथी का काम तमाम कर दिया और एक ही बाण से वाहनहीन मगधराज का सिर उड़ा दिया। भीमसेन भी उस गजारोही सेना में घूम_घूमकर हाथियों को मारने लगे। उस समय हमने भीमसेन के एक_एक प्रहार से ही हाथियों को लोटपोट होते देखा था। क्रोधातुर भीमसेन की चोट खाकर वे हाथी भय से इधर_उधर भागकर आपकी ही सेना को रौंदे डालते थे। उस समय अपनी गदा को सब ओर घुमाते हुए भीमसेन ऐसे जान पड़ते थे, मानो साक्षात् शंकर ही रणांगण में नृत्य कर रहे हों। इसी समय हजारों रथियों सहित आपके पुत्र नन्दक ने अत्यन्त कुपित होकर भीमसेन पर आक्रमण किया।
उसने भीमसेन पर छः बाण छोड़े तथा दूसरी ओर दुर्योधन ने नौ बाणों से उसके वक्ष_स्थल पर वार किया। तब महाबाहु भीम अपने रथ पर  चढ़ गये और अपने सारथि विशोक से बोले, ‘देखो, ये महारथी धृतराष्ट्रपुत्र मेरे प्राणों के ग्राहक होकर आये हैं, सो मैं तुम्हारे सामने ही इनका सफाया कर दूँगा। इसलिये तुम सावधानी से मेरे घोड़ों को इनके सामने ले चलो।‘ सारथि से ऐसा कहकर उन्होंने तीन बाण नन्दक की छाती में मारे। इधर दुर्योधन ने भी साठ बाणों से भीमसेन को और तीन से उनके सारथि को घायल कर दिया। फिर तीन पैने बाण छोड़कर उसने हँसते_हँसते उनका धनुष भी काट डाला। तब भीमसेन ने एक दूसरा दिव्य धनुष लिया और उस पर एक तीखा बाण चढ़ाया और उससे दुर्योधन का धनुष काट डाला। दुर्योधन ने भी तुरंत ही एक दूसरा धनुष लिया और उससे एक भयंकर बाण छोड़कर भी भीमसेन की छाती पर चोट की। उस बाण से व्यथित होकर भीमसेन रथ के पिछले भाग में बैठ गये और उन्हें मूर्छा हो गयी। भीमसेन को मूर्छित देखकर अभिमन्यु आदि पाण्डवपक्ष के महारथी असहिष्णु हो उठे और दुर्योधन केे सिर पर पैने_पैने शस्त्रों की भीषण वर्षा करने लगे। इतने में ही भीमसेन को चेत हो गया। उन्होंने दुर्योधन पर पहले तीन और फिर पाँच बाण छोड़े। इसके बाद पच्चीस बाण राजा शल्य को मारे। उनसे घायल होकर मद्रराज मैदान छोड़कर चले गये। तब आपके चौदह पुत्र सेनापति, सुषेण, जलसन्ध, उग्र, भीमरथ, भीम, बीरबाहु, अलोलुप, दुर्मुख, दुष्प्रधर्ष, विवित्सु, विकट और सम भीमसेन के ऊपर चढ़ आये। उनके नेत्र क्रोध से लाल हो रहे थे। उन्होंने एक साथ ही बहुत से बाण छोड़कर भीमसेन को घायल कर दिया। आपके पुत्रों को अपने सामने देखकर महाबली भीमसेन उन पर इस प्रकार टूट पड़े, जैसे भेड़िया. पशुओं पर टूटता है, फिर उन्होंने गरुड़ के समान लपककर एक पैने बाण से सेनापति का सिर काट डाला, तीन बाणों से जलसंध को घायल करके यमपुर भेज दिया, सुषेण को मारकर मृत्यु के हवाले कर दिया, उसका मुकुट और कुण्डलों से विभूषित सिर काटकर पृथ्वी पर गिरा दिया तथा सत्तर बाणों से वीरबाहु को उसके घोड़े, ध्वजा और सारथि के सहित धराशायी कर दिया। इसी तरह उन्होंने भीम, भीमरथ और सुलोचन को भी सेनानियों के देखते_देखते यमराज के घर भेज दिया। भीमसेन का ऐसा प्रबल पराक्रम देखकर आपके शेष पुत्र डर के मारे इधर_उधर भाग गये। तब भीष्मजी ने सब सैनिकों से कहा, ‘देखो, यह भीमसेन धृतराष्ट्र के महारथी पुत्रों को मारे डालता है। अरे ! इसे फौरन पकड़ लो, देरी मत करो।‘ भीष्मजी का ऐसा आदेश पाकर कौरवपक्ष के सभी सैनिक क्रोध में भरकर महाबली भीमसेन के ऊपर टूट पड़े। उनमें से भगदत्त अपने मदोन्मत्त हाथी पर चढ़े हुए सहसा भीमसेन के पास पहुँचे। वहाँ पहुँचते ही उन्होंने बाणों की वर्षा करके भीमसेन को बिलकुल ढक दिया। अभिमन्यु आदि वीर यह सब नहीं देख सके। उन्होंने भी बाण बरसाकर भगदत्त को चारों ओर से आच्छादित कर दिया और उनके हाथी को घायल कर डाला।
किन्तु भगदत्त के हाँकने पर भी वह हाथी उन महारथियों के ऊपर ऐसे वेग से दौड़ा, मानो काल से प्रेरित यमराज ही हो। उसके उस भीषण रूप को देखकर सब महारथियों का साहस ठण्डा पड़ गया और उन्हें वह असह्य सा जान पड़ा। इसी समय भगदत्त ने क्रोध में भरकर एक बाण भीमसेन की छाती में मारा। उससे घायल होकर भीमसेन की छाती में मारा। उससे घायल होकर भीमसेन अचेत_से हो गये और अपने रथ के ध्वजा के झंडे का सहारा लेकर बैठ गये। यह देखकर महाप्रतापी भगदत्त बड़े जोर से सिंहनाद करने लगे। भीमसेन को ऐसी स्थिति में देखकर घतोत्कच को बड़ा क्रोध हुआ और वह वहीं अन्तर्धान हो गया। फिर उसने ऐसी भीषण माया फैलायी, जिसे देखकर कच्चे_पक्के लोगों का तो हृदय बैठ गया। आधे ही क्षण में वह बड़ा भयंकर रूप धारण किये अपनी ही माया से रचे हुए एरावत हाथी पर चढ़कर प्रकट हुआ।  उसने भगदत्त को उसके हाथी सहित मार डालने के विचार से उनपर अपना हाथी छोड़ दिया। वह चतुर्दन्त गजराज भगदत्त के हाथी को बहुत पीड़ित करने लगा, जिससे कि वह अत्यन्त आतुर होकर वज्रपात के समान बड़े जोर से चिघ्घाड़ने लगा। उसका यह भीषण नाद सुनकर भीष्मजी ने आचार्य द्रोण और राजा दुर्योधन से कहा, ‘ इस समय महान् धनुर्धर राजा भगदत्त हिडिम्बा के पुत्र घतोत्कच से युद्ध करते_करते बड़ी आपत्ति में फँस गये हैं। इसी से पाण्डवों की हर्षध्वनि और अत्यन्त डरते हुए हाथी का रोदन शब्द सुनाई दे रहा है। इसलिए चलो, हम सब राजा भगदत्त की रक्षा करने के लिये चलें। यदि उनकी रक्षा न की गयी तो वे बहुत जल्दी प्राण त्याग देंगे। देखो, वहाँ बड़ा ही भीषण और रोमांचकारी संग्राम हो रहा है। अतः वीरों ! शीघ्रता करो। आओ, देरी मत करो।‘ भीष्मजी की बात सुनकर सभी वीर भगदत्त की रक्षा के लिये भीष्म और द्रोण के नेतृत्व में चले। उस सेना को देखकर प्रतापी घतोत्कच बिजली की कड़क के समान बड़े जोर से गरजा। उसकी यह गर्जना सुनकर भीष्मजी ने द्रोणाचार्य से कहा, ‘तुझे इस समय दुरात्मा घतोत्कच के साथ संग्राम करना अच्छा नहीं जान पड़ता; क्योंकि वह बड़ा बल_वीर्य सम्पन्न है और इसे अन्य वीरों से सहायता भी मिल रही है। इस समय तो वज्रधर इन्द्र भी इसे नहीं जीत सकेगा। अतः अब पाण्डवों के साथ युद्ध करना ठीक नहीं होगा; बस आज यहीं युद्ध बंद करने का घोषणा कर दी जाय। अब शत्रुओं को साथ हमारा कल संग्राम होगा।‘ कौरवों घतोत्कच को आतंक से घबराये हुए थे ही। इसलिये भीष्मजी का बात सुनकर उन्होंने युक्तिपूर्वक युद्ध बंद करने की घोषणा कर दी। सायंकाल हो रहा था। आज कौरवलोग पाण्डवों से पराजित होने के कारण लज्जित होकर अपने डेरे पर लौटे। पाण्डवलोग तो भीमसेन और घतोत्कच को आगे करके प्रसन्नता से शंखध्वनि के साथ सिंहनाद करते हुए अपने शिविर पर आये; किन्तु भाइयों का वध होने के कारण राजा दुर्योधन बहुत ही चिन्तित और शोकाकुल हो रहा था।

Tuesday 5 September 2017

भीष्म का पराक्रम, श्रीकृष्ण का भीष्म को मारने के लिये उद्यत होना और अर्जुन का पुरुषार्थ

धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! जब मेरे दुःखी पुत्र ने भीष्म को क्रोध दिलाया और उन्होंने भयंकर युद्ध की प्रतिज्ञा कर ली, तब भीष्मजी ने पाण्डवों के साथ और पांचालवीरों ने भीष्मजी के साथ किस प्रकार युद्ध किया ? संजय कहने लगे___उस दिन जब दिन का प्रथम भाग बीत गया और सूर्यनारायण पश्चिम दिशा की ओर जाने लगे तथा विजयी पाण्डव अपनी विजय की खुशी मना रहे थे, उसी समय पितामह भीष्मजी तेज चलनेवाले घोड़ों से जुते हुए रथ में बैठकर पाण्डवसेना की ओर बढ़े। उनके साथ में बहुत बड़ी सेना थी और आपके पुत्र सब ओर से घेरकर उनकी रक्षा कर रहे थे। उस समय हमलोगों में और पाण्डवों में रोमांचकारी संग्राम छिड़ गया। थोड़ी ही देर में योद्धाओं के हजारों मस्तक और हाथ कट_कटकर जमीन पर गिरने लगे और तड़पने लगे। कितनों ही के सिर तो कटकर गिर गये, मगर धड़ धनुष_बाण लिये खड़े ही रह गये। खून की नदी बह चली। उस समय कौरव और पाण्डवों में जैसा भयानक युद्ध हुआ, वैसा न कभी देखा गया और न सुना ही गया है। उस समय भीष्मजी अपने धनुष को मण्डलाकार करके विषधर साँपों के समान बाण बरसा रहे थे। रणभूमि में वे इतनी शीघ्रता से सब ओर  विचार रहे थे कि पाण्डव उन्हें हजारों रूपों में देखने लगे। मानो भीष्म ने माया से अपने अनेकों रूप बना लिये हों। जिन लोगों ने उन्हें पूर्व में देखा, उन्होंने ही उसी समय आँख फेरते ही पश्चिम में भी देखा। एक ही क्षण में वे उत्तर और दक्षिण में भी दिखायी पड़े। इस प्रकार इस युद्ध में सर्वत्र वे_ही_वे दिखायी देने लगे। पाण्डवों में कोई भीष्मजी को नहीं देख पाता था, उनके धनुष से छूटे हुए असंख्य बाण ही दिखायी पड़ते थे। लोगों में हाहाकार मच गया। भीष्मजी वहाँ अमानवरूप से विचरण रहे थे; उनके पास हजारों राजा अपने विनाश के लिये उसी प्रकार आते थे जैसे आग के पास पतिंगे। उनका एक भी वार खाली नहीं जाता था। इस प्रकार अतुल पराक्रमी भीष्मजी की मार खाकर युधिष्ठिर का सेना हजारों टुकड़ों में बँट गयी। उनकी बाण_वर्षा से पीड़ित होकर वह काँप उठी और इस तरह उसमें भगदड़ मची कि दो आदमी भी एक साथ नहीं भाग सके। इस युद्ध में पिता ने पुत्र को और पुत्र ने पिताको मार डाला तथा मित्र मित्र के हाथ मारा गया। पाण्डवों के सैनिक अपने कवच उतारकर बाल खोले हुए रणभूमि से भागते दिखायी देने लगे। पाण्डव सेना को इस प्रकार बिखरी देख भगवान् श्रीकृष्ण ने रथ को रोककर अर्जुन से कहा, ‘पार्थ ! जिसके लिये तुम्हारी बहुत दिनों से अभिलाषा थी, वह समय अब आ गया है। अब जोरदार प्रहार करो, नहीं तो मोहवश प्राणों से हाथ को बैठोगे। पहले जो तुमने राजाओं के समाज में कहा था कि ‘दुर्योधन की सेना के भीष्म द्रोण आदि जो कोई भी वीर मुझसे युद्ध करने आयेंगे, उन सबको मार डालूँगा’, अब उस प्रतिज्ञा को सच्ची करके दिखाओ। अर्जुन ! देखो तो अपनी सेना किस तरह तितर_बितर हो गयी है और ये राजालोग काल के समान भीष्मजी को देखकर ऐसे भाग रहे हैं, जैसे सिंह के डर से छोटे_छोटे जंगली जीव भागते हों।“ श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर अर्जुन बोले, ‘ अच्छा, अब आप घोड़ों को हाँकिये और इस सैन्यसागर के बीच से होकर भीष्मजी के पास रथ ले चलिये, मैं अभी उन्हें युद्ध में मार गिराता हूँ।‘ तब माधव ने घोड़ों को हाँक दिया और जहाँ भीष्मजी का रथ खड़ा था, उधर ही बढ़ने लगे। अर्जुन को भीष्मजी के साथ युद्ध करने को तैयार देख युधिष्ठिर की भागी हुई सेना लौट आयी। अर्जुन को आते देख भीष्मजी ने सिंहनाद किया और उनके रथ पर बाणों की झड़ी लगा दी। एक ही क्षण में अर्जुन का रथ घोडों और सारथि के साथ बाणों से छिप गया, दिखायी नहीं देता था। परन्तु भगवान् श्रीकृष्ण तो बड़े धैर्यवान् थे; वे जरा भी विचलित नहीं हुए, घोडों को बराबर आगे बढ़ाये ही चले गये। इसी समय अर्जुन ने अपना दिव्य धनुष उठाया और तीन बाणों से भीष्मजी का धनुष काटकर गिरा दिया। भीष्मजी ने पलक मारते ही दूसरा महान् धनुष लेकर उसकी प्रत्यन्चा चढ़ा ली। किन्तु उसे भी उन्होंने ज्योंही खींचा अर्जुन ने काट दिया।अर्जुन की यह फुर्ती देखकर भीष्म ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा, ‘महाबाहो ! तुमने खूब किया, यह महान् पराक्रम तुम्हारे ही योग्य है। बेटा ! मैं तुमपर बहुत प्रसन्न हूँ; करो मेरे साथ युद्ध।‘ इस प्रकार पार्थ की बड़ाई करके दूसरा महान् धनुष हाथ में ले वे उनके रथ पर बाणों की वर्षा करने लगे। भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने अश्व_संचालन की पूरी प्रवीणता दिखायी। वे रथ को शीघ्रतापूर्वक मण्डलाकार चलाते हुए भीष्म के बाणों को प्रायः विफल कर देते थे। यह देख भीष्म ने तीखे बाणों से श्रीकृष्ण और अर्जुन को खूब घायल किया। फिर उनकी आज्ञा से द्रोण, विकर्ण, भूरिश्रवा, कृतवर्मा, कृपाचार्य, श्रुतायु, अम्बष्ठपति, विन्द, अनुविन्द और सुदक्षिण आदि वीर तथा प्रांतीय, सौवीर, वसाति, क्षुद्रक और मालवदेशीय योद्धा तुरंत ही अर्जुन पर चढ़ आये। वे हजारों घोड़े, पैदल, रथ और हाथियों के झुण्ड से घिर गये। उन्हें उस अवस्था में देख वार सात्यकि सहसा उस स्थान पर आ पहुँचा और अर्जुन की सहायता में जुट गया। उसने युधिष्ठिर की सेना को पुनः भागती देखकर कहा, ‘ क्षत्रियों ! तुम कहाँ चले ? यह सत्पुरुषों का धर्म नहीं है। वीरों ! अपनी प्रतिज्ञा न छोड़ो, वीरधर्म का पालन करो।‘ भगवान् श्रीकृष्ण ने देखा कि पाण्डव सेना के प्रधान_प्रधान राजा भाग रहे हैं, अर्जुन युद्ध में ठण्डे पड़ रहे हैं और भीष्मजी प्रचण्ड होते जाते हैं। यह बात उनसे सही नहीं गयी। उन्होंने सात्यकि की प्रशंसा करते हुए कहा___'शिविवंश के वीर ! जो भाग रहे हैं , उनको भागने दो; जो खड़े हैं, वे भी चले जायँ। मैं इनलोगों का भरोसा नहीं करता। तुम देखो, मैं अभी भीष्म और द्रोणाचार्य को रथ से मार गिराता हूँ। कौरवसेना का एक भी रथी मेरे हाथ से बचने नहीं पायगा। अब मैं स्वयं अपना उग्र चक्र उठाकर महाबली भीष्म और द्रोण के प्राण लूँगा तथा धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मारकर पाण्डवों को प्रसन्न करूँगा। कौरवपक्ष के सभी राजाओं का वध करके आज मैं अजातशत्रु युधिष्ठिर को राजा बनाऊँगा। इतना कहकर श्रीकृष्ण ने घोड़ों की लगाम छोड़ दी और हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर रथ से कूद पड़े। उस चक्र का  प्रकाश सूर्य के समान और प्रभाव वज्र के सदृश अमोघ था। उसके किनारे का भाग छूरे के समान तीक्ष्ण था। भगवान् कृष्ण बड़े वेग से भीष्म की ओर झपटे, उनके पैरों की धमक से पृथ्वी काँपने लगी। जैसे सिंह मदान्ध गजराज की ओर दौड़े, उसी प्रकार वे भीष्म की ओर बढ़े। उनके श्याम विग्रह पर हवा के वेग से फहराता हुआ पीताम्बर का छोर ऐसा शोभित होता था, मानो मेघ की काली घटा में बिजली चमक रही हो। हाथ में चक्र उठाये वे बड़े जोर से गरज रहे थे। उन्हें क्रोध से भरा देख कौरवों के संहार का विचार कर सभी प्राणी हाहाकार करने लगे। चक्र के साथ उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था, मानो प्रलयकालीन संवर्तक नामक अग्नि सम्पूर्ण जगत् का संहार करने के लिये उद्यत हो। उन्हें चक्र लिये अपनी ओर आते देख भीष्मजी को तनिक भी भय नहीं हुआ। वे दोनों हाथों से अपने महान् धनुष का टंकार करते हुए भगवान् से बोले, ‘ आइये, आइये, देवेश्वर ! आइये जगदाधार ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। चक्रधारी माधव ! आज बलपूर्वक मुझे इस रथ से मार गिराइये। आप सम्पूर्ण जगत् के स्वामी हैं, सबको शरण देनेवाले हैं; आपके हाथ से आज यदि मैं मारा जाऊँगा तो इस लोक और परलोक में भी मेरा कल्याण होगा। भगवन् ! स्वयं मुझे मारने आकर आपने तीनों लोकों में मेरा गौरव बढ़ा दिया !’ भगवान् को आगे बढ़ते देखकर अर्जुन भी अपने रथ से उतरकर उनके पीछे दौड़े और पास जाकर उन्होंने उनकी दोनों बाहें पकड़ लीं। भगवान् रोष में भरे हुए थे, अर्जुन के पकड़ने पर भी वे रुक न सके। जैसे आँधी किसी वृक्ष को खींचे लिये चली जाय, उसी प्रकार वे अर्जुन को घसीटते हुए आगे बढ़ने लगे। तब अर्जुन उनकी बाँहें छोड़कर पैरों में पड़ गये। उन्होंने खूब बल लगाकर उनके चरण पकड़ लिये और दसवें कदम पर पहुँचते_पहुँचते किसी प्रकार उन्हें रोका। जब वे खड़े हो गये तो अर्जुन ने प्रसन्न होकर उन्हें प्रणाम किया और कहा, ‘केशव ! अपना क्रोध शान्त कीजिये, आप ही पाण्डवों के सहारे हैं। अब मैं भाइयों और पुत्रों की शपथ खाकर कहता हूँ, अपने काम में ढिठाई नहीं करूँगा, प्रतिज्ञा के अनुसार युद्ध करूँगा।‘ अर्जुन की यह प्रतिज्ञा सुनकर श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गये और उनका प्रिय करने के लिये पुनः चक्रसहित रथ पर जा बैठे। उन्होंने अपने पांचजन्य शंख की ध्वनि से दिशाओं को निनादित कर दिया और अर्जुन के गाण्डीव धनुष से सब दिशाओं में तीक्ष्ण बाणों की वर्षा होने लगी। तब भूरिश्रवा ने अर्जुन पर सात बाण, दुर्योधन ने तोमर शल्य ने गदा और भीष्म ने शक्ति का प्रहार किया। अर्जुन ने भी सात बाण मारकर भूरिश्रवा के बाणों को काट दिया, क्षुर से दुर्योधन का तोमर काट डाला तथा एक_एक बाण छोड़कर शल्य की गदा और भीष्म की शक्ति को भी टूक_टूक कर दिया। इसके बाद उन्होंने दोनों हाथों से गाण्डीव धनुष को खींचकर आकाश में माहेन्द्र नामक अस्त्र प्रकट किया, देखने में वह बड़ा ही अद्भुत और भयानक था। उस दिव्य अस्त्र के प्रभाव से अर्जुन ने संपूर्ण कौरव_सेना का गति रोक दी। उस अस्त्र से अग्नि के समान प्रज्वलित बाणों की वृष्टि हो रही थी और शत्रुओं के रथ, ध्वजा, धनुष और बाहुओं को काटकर वे बाण राजाओं, हाथियों और घोडों के सिंहों में घुस जाते थे। इस प्रकार तेज धारवाले बाणों का जाल बिछाकर अर्जुन ने संपूर्ण दिशाओं और उपदिशाओं को आच्छन्न कर दिया और गाण्डीव धनुष की टंकार से शत्रुओं के मन में अत्यन्त पीड़ा भर दी। रक्त की नदी बहने लगी। कौरव_सेना के प्रमुख वीरों का नाश हुआ देखकर चेदि, पांचाल और मत्स्यदेशीय योद्धा तथा समस्त पाण्डव हर्षनाद करने लगे। अर्जुन और श्रीकृष्ण ने भी हर्ष प्रकट किया। तदनन्तर, सूर्यदेव अपनी किरणों को समेटने लगे। इधर कौरव_वीरों के शरीर अस्त्र_शस्त्रों से क्षत_विक्षत हो रहे थे, युगान्तकाल के समान सब ओर फैला हुआ अर्जुन का ऐन्द्र अस्त्र भी अब सबके लिये असह्य हो चुका था___इन सब बातों का विचार करके संध्याकाल उपस्थित देख भीष्म, द्रोण, दुर्योधन और बाह्लीक आदि कौरववीर सेनापति सहित शिविर को लौट आये। अर्जुन भी शत्रुओं पर विजय और यश पाकर भाइयों और राजाओं के साथ छावनी में चले गये। कौरवों के  सौनिक शिविर में लौटते समय एक_दूसरे से कहने लगे___’अहो ! आज अर्जुन ने बहुत बड़ा पराक्रम दिखाया है, दूसरा कोई ऐसा नहीं कर सकता। अपने ही बाहुबल से उन्होंने अम्बष्ठपति, श्रुतायु, दुमर्षण, चित्रसेन, द्रोण, कृप, जयद्रथ, बाह्लीक, भूरिश्रवा, शल, शल्य और भीष्म सहित अनेक योद्धाओं पर विजय पायी है।‘