Wednesday 31 January 2018

दुर्योधन की प्रार्थना से भीष्मजी का पाण्डवों की सेना के संहार के लिये प्रतिज्ञा करना

संजय ने कहा___महाराज ! शिविर में पहुँचकर राजा दुर्योधन, शकुनि, दुःशासन और कर्ण आपस में मिलकर विचार करने लगे कि पाण्डवों को उनके साथियों के सहित किस प्रकार जीता जाय। राजा दुर्योधन ने कहा, द्रोणाचार्य, भीष्म, कृपाचार्य, शल्य और भूरिश्रवा पाण्डवों की प्रगति को रोक नहीं रहे हैं। इसका क्या कारण है, कुछ समझ में नहीं आता। इस प्रकार पाण्डवों का तो वध हो नहीं पाता, किन्तु वे मेरी सेना को तहस_नहस किये देते हैं। ‘कर्ण ! इसी से मेरी सेना और शस्त्रों में बहुत कमी हो गयी है। इस समय पाण्डववीर तो देवताओं के लिये भी अवध्य हो गये हैं। इनसे तंग आकर मुझे तो बड़ा संदेह होने लगा है कि मैं किस प्रकार इनसे युद्ध करूँ ?’ कर्ण ने कहा___भरतश्रेष्ठ ! चिन्ता न कीजिये, मैं आपका काम करूँगा; अब भीष्मजी को जल्दी ही इस संग्राम से हट जाना चाहिये। यदि वे युद्ध से हट जायँ और और शस्त्र रख दें तो मैं भीष्मजी के सामने ही पाण्डवों को समस्त सोमक वीरों के सहित नष्ट कर दूँगा___यह सत्य की शपथ करके कहता हूँ। भीष्मजी तो पाण्डवों पर सदा से ही दया करते हैं और उनमें इन महारथियों को संग्राम में जीतने की शक्ति भी नहीं है। अतः अब आप शीघ्र ही भीष्मजी के डेरे पर जाइये और उनसे अस्त्र_शस्त्र रखवा दीजिये। दुर्योधन बोला___ शत्रुदमन् ! मैं अभी भीष्मजी से प्रार्थना करके तुम्हारे पास आता हूँ। भीष्मजी के हट जाने पर फिर तुम ही युद्ध करना। इसके बाद दुर्योधन अपने भाइयों के सहित भीष्मजीकेे पास चला। दुःशासन ने,उसे एक घोड़े पर चढ़ाया। भीष्मजी के डेरे पर पहुँचकर वह घोड़े से उतर पड़ा और उनके चरणों में प्रणाम कर सब प्रकार से सुन्दर एक सोने के सिंहासन पर बैठ गया। फिर उसने नेत्रों में आँसू भर हाथ जोड़कर गद्गद कण्ठ से कहा, ‘दादाजी ! आपका आश्रय पाकर तो हम इन्द्र के सहित  समस्त देवताओं को जीतने का भी साहस रखते हैं, फिर अपने मित्र और बन्धु_बान्धवों के सहित इन पाण्डवों की तो बात ही क्या है ? इसलिये अब आपको मेरे ऊपर कृपा करनी चाहिये। आप पाण्डवों और सोमक वीरों को मारकर अपने वचनों को सत्य कीजिये और यदि पाण्डवों पर दया और मेरे प्रति द्वेष होने से अथवा मेरे मन्दभाग्य सेे आप पाण्डवों की रक्षा कर रहे हों तो अपने स्थान पर कर्ण को युद्ध करने का आज्ञा दीजिये। वह अवश्य ही पाण्डवों को उनके सुहृद् एवं बन्धु_बान्धवों के सहित परास्त कर देगा।‘ भीष्मजी से इतना कहकर दुर्योधन मौन हो गया।‘
महामना भीष्मजी आपके पुत्र के वाग्बाणों से विद्ध होकर बहुत ही व्यथित हुए, किन्तु उन्होंने उससे कोई कड़वी बात नहीं कही। वे बड़ी देर तक लम्बे_लम्बे श्वास लेते रहे। उसके बाद उन्होंने क्रोध से त्योरी बदलकर दुर्योधन को समझाते हुए कहा, ‘बेटा दुर्योधन ! ऐसे वाग्बाणों से तुम मेरे हृदय को क्यों छेदते हो ? मैं तो सारी शक्ति लगाकर युद्ध कर रहा हूँ और तुम्हारा हित करना चाहता हूँ। तुम्हारा प्रिय करने के लिये मैं अपने प्राण तक होमने को तैयार हूँ। देखो, इस वीर अर्जुन ने इन्द्र को भी परास्त करके खाण्डववन में अग्नि को तृप्त किया था___यही इसकी अजेयता का पूरा प्रमाण है। जिस समय गन्धर्वलोग तुम्हें बलात् पकड़कर ले गये थे, उस समय भी तो इसी ने तुम्हें छुड़ाया था। तब तुम्हारे शूरवीर भाई और कर्ण तो मैदान छोड़कर भाग गये थे। यह क्या उसकी अद्भुत शक्ति का परिचायक नहीं है। विराटनगर में इस अकेले ने ही हम सबके छक्के छुड़ा दिये थे तथा मुझे और द्रोणाचार्य को भी परास्त करके योद्धाओं के वस्त्र छीन लिये थे। इसी प्रकार अश्त्थामा, कृपाचार्य और अपने पुरुषार्थ की डींग हाँकनेवाले कर्ण को भी नीचा दिखाकर उत्तरा को उनके वस्त्र दिये थे। यह भी उसकी वीरता का पूरा प्रमाण है। भला जिसके रक्षक जगत् की रक्षा करनेवाले शंख_चक्र_गदाधारी श्रीकृष्णचन्द्र हैं उस अर्जुन को संग्राम में कौन जीत सकता है। ये श्रीवसुदेवनन्दन अनन्तशक्ति हैं; संसार की उत्पत्ति, स्थिति और अन्त करनेवाले हैं; सबके ईश्वर हैं, देवताओं के,भी पूज्य हैं और स्वयं सनातन परमात्मा हैं। यह बात नारदादि महर्षि कई बार तुमसे कह चुके हैं। किन्तु मोहवश तुम कुछ समझते ही नहीं हो। देखो, एक शिखण्डी को छोड़कर मैं और सब सोमक तथा पांचालवीरों को मारूँगा। अब या तो मैं ही उनके हाथ मारा जाऊँगा या उन्हें ही संग्राम में मारकर तुम्हें प्रसन्न करूँगा। यह शिखण्डी राजा द्रुपद के घर में पहले स्त्री_रूप से ही उत्पन्न हुआ था, पीछे वर के प्रभाव से यह पुरुष हो गया है। इसलिये मेरी दृष्टि में तो वह शिखण्डिनी स्त्री ही है। अतः इसपर तो मेरे प्राणों पर आ बनेगी तो भी मैं हाथ नहीं उठाऊँगा। अब तुम आनन्द से जाकर शयन करो। कल मेरा बड़ा भीषण संग्राम होगा। उस युद्ध की लोग तबतक चर्चा करेंगे, जबतक कि यह पृथ्वी रहेगी। राजन् ! भीष्मजी के इस प्रकार कहने पर दुर्योधन ने उन्हें सिर झुकाकर प्रणाम किया। फिर वह अपने डेरे पर चला आया और सो गया। दूसरे दिन उसने सवेरे उठते ही सब राजाओं को आज्ञा दी कि  ‘आपलोग अपनी_अपनी सेना तैयार करें, आप भीष्मजी कुपित होकर सोमक वीरों का संहार करेंगे।‘ फिर दुःशासन ने कहा, ‘तुम शीघ्र ही भीष्मजी का रक्षा के लिये कई रथ तैयार करो। आज अपनी बाइसों सेनाओं को इनकी रक्षा के लिये आदेश दे दो। जिस प्रकार आरक्षित सिंह को कोई भेड़िया मार जाय, उस तरह भेड़िये के समान इस शिखण्डी के हाथ से हम भीष्मजी का वध नहीं होने देंगे। आज शकुनि, शल्य, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य और विविंशति खूब सावधानी से भीष्म की रक्षा करें; क्योंकि उनके सुरक्षित रहने पर हमारी अवश्य जय होगी।‘ दुर्योधन की यह बात सुनकर सब योद्धाओं ने अनेकों रथों से भीष्मजी को सब ओर से घेर लिया। भीष्मजी को अनेकों रथों से घिरा देखकर अर्जुन ने धृष्टधुम्न से कहा, ‘ आज तुम भीष्मजी के सामने पुरुषसिंह शिखण्डी को रखो। उसकी रक्षा मैं करूँगा।‘

इरावान् की मृत्यु पर अर्जुन का शोक तथा भीमसेन द्वारा कुछ धृतराष्ट्रपुत्रों की वध

संजय ने कहा___राजन् ! अपने पुत्र इरावान् के मारे जाने का समाचार पाकर अर्जुन को बड़ा खेद हुआ और वे ठंडी_ठंडी साँसें भरने लगे। तब उन्होंने  श्रीकृष्ण से कहा, ‘महामति विदुरजी को तो यह कौरव और पाण्डवों के भीषण संहार की बात पहले ही मालूम हो गयी थी। इसीसे उन्होंने राजा धृतराष्ट्र को रोका भी था। मधुसूदन ! इस युद्ध में कौरवों के हाथ से हमारे और भी बहुत से वीर मारे जा चुके हैं तथा हमने भी कौरवों के कई वीरों को नष्ट कर दिया है। यह सब कुकर्म हम  धन के लिये ही तो कर रहे हैं। धिक्कार है ऐसे धन को, जिसके लिये इस प्रकार बन्धु_बान्धवों का विनाश किया जा रहा है ! भला, यहाँ एकत्रित हुए अपने भाइयों को मारकर हमें मिलेगा भी क्या ? हाय ! आज दुर्योधन के अपराध तथा शकुनि और कर्ण के कुमन्त्र  ले ही यह क्षत्रियों का विध्वंस हो रहा है। मधुसूदन ! मुझे तो अपने संबंधियों के साथ युद्ध करना अच्छा नहीं लगता, परंतु ये क्षत्रियलोग मुझे युद्ध में असमर्थ समझेंगे। इसलिये शीघ्र ही अपने घोड़े कौरवों की सेना की ओर बढ़ाइये, अब विलम्ब करने का अवसर नहीं है।‘ अर्जुन के ऐसा कहते ही श्रीकृष्ण ने वे हवा से बात करनेवाले घोड़े आगे बढाये। यह देखकर आपकी सेना में बड़ा कोलाहल होने लगा। तुरंत ही भीष्म, कृप, भगदत्त और सुशर्मा अर्जुन के सामने आ गये। कृतवर्मा और बाह्लीक ने सात्यकि का सामना किया तथा अम्बष्ठ अभिमन्यु के आकर डट गया। इनके सिवा अन्य महारथी दूसरे योद्धाओं से भिड़ गये। बस, अब अत्यन्त भीषण युद्ध छिड़ गया। भीमसेन ने युद्धक्षेत्र में आपके पुत्रों को देखा तो क्रोध से उनका अंग,_प्रत्यंग जलने लगा। इधर आपके पुत्रों ने भी बाणों की वर्षा करके उन्हें बिलकुल ढक दिया। इससे उनका रोष और  भड़क उठा और वे सिंह के समान ओठ चबाने लगे। तुरंत ही एक तीखे बाण से उन्होंने व्यूढोरस्क पर वार किया और वह तत्काल ही निष्प्राण होकर गिर गया। एक दूसरे तीर से उन्होंने कुण्डली को धराशायी कर दिया। फिर उन्होंने अनेकों पैने बाण लिये और उन्हें बड़ी तेजी से आपके पुत्रों पर छोड़ने लगे। भीमसेन के दुर्दण्ड धनुष से छूटे हुए वे बाण आपके महारथी पुत्रों को रथ से नीचे गिराने लगे। अनाधृष्टि, कुण्डभेदी, दीर्घलोचन, दीर्घकालीन, सुबाहु और कनकध्वज___ये आपके वीर पुत्र पृथ्वी पर गिरकर ऐसे जान पड़ते थे मानो वसंत ऋृतु में अनेकों पुष्पित आम्रवृक्ष टकर गिर गये हों। आपके शेष पुत्र भीमसेन को काल के समान समझकर रणक्षेत्र से भाग गये।
जिस समय भीमसेन आपके पुत्रों का नाश करने में लगे हुए थे, उसी समय द्रोणाचार्य उन पर सब ओर से बाण बरसा रहे थे। इस अवसर पर भीमसेन ने यह बड़ा ही अद्भुत कार्य किया कि एक ओर द्रोणाचार्यजी के बाणों को रोकते हुए भी उन्होंने आपके उक्त पुत्रों को को मार डाला। इसी समय भीष्म, भगदत्त और कृपाचार्य ने अर्जुन को रोका। किन्तु अतिरथी अर्जुन ने अपने अस्त्रों से उन सबको व्यर्थ करके आपके सेना के कई प्रधान वीरों को मृत्यु के हवाले कर दिया। अर्जुन ने राजा अम्बष्ठ को रथहीन कर दिया। तब उसने रथ से कूदकर अभिमन्यु पर तलवार का वार किया और फुर्ती से कृतवर्मा के रथ पर चढ़ गया। युद्धकुशल अभिमन्यु  ने तलवार को आती देख बड़ी फुर्ती से उसका वार बचा दिया। यह देखकर सारी लेना में ‘वाह ! वाह !’ का शब्द होने लगा। इसी प्रकार धृष्टधुम्नादि दूसरे महारथी भी आपकी सेना से संग्राम कर रहे थे तथा आपके सेनानी पाण्डवों की सेना से भिड़े हुए थे।
उस समय आपस में मार_काट करते हुए दोनों ही पक्षों के वीरों का बड़ा कोलाहल हो रहा था। दोनों ओर से गर्वीले वीर आपस में केश पकड़कर, नख और दाँतों से काटकर और लात और घूँसों से प्रहार करके युद्ध कर रहे थे। अवसर मिलने पर वे थप्पड़ , तलवार और कोहनियों की चोट से अपने प्रतिपक्षियों को यमराज के,घर भेज दहेज देते थे। पिता पुत्र पर और पुत्र पिता पर वार कर रहा था, वीरों के अंग_अंग में उत्तेजना भरी हुई थी। इस प्रकार बड़ा ही घमासान युद्ध हो रहा था। आपस के घोर संघर्ष के कारण दोनों ओर के वीर थक गये। उनमें से अनेकों भाग गये और अनेकों धराशायी हो गये। इतने में ही रात्रि होने लगी। तब कौरव_पाण्डव दोनों ही अपनी_अपनी सेनाओं को लौटाया और यथासमय अपने_अपने डेरों में जाकर विश्राम किया।

दुर्योधन और भीष्म की बातचीत तथा भगदत्त का पाण्डवों से युद्ध

संजय ने कहा___उस महासंग्राम में राजा दुर्योधन भीष्मजी के पास गया और बड़ी विनय के साथ उन्हें प्रणाम करके उसने घतोत्कच की विजय और अपनी पराजय का समाचार सुनाया। फिर कहा ‘पितामह ! पाण्डवों ने जैसे श्रीकृष्ण का सहारा लिया है, उसी प्रकार हमलोगों ने आपका आश्रय लेकर शत्रुओं के साथ घोर युद्ध ठाना है। मेरे साथ ग्यारह अक्षौहिणी सेनाएँ सदा आपकी आज्ञा का पालन करने के लिये तैयार रहती हैं। तो भी आज घतोत्कच की सहायता पाकर पाण्डवों ने मुझे युद्ध में हरा दिया। इस अपमान की आग में मैं जल रहा हूँ और चाहता हूँ आपकी सहायता लेकर उस अधम राक्षस का स्वयं वध करूँ। अतः आप कृपा करके मेरे इस मनोरथ को पूर्ण कीजिये। तब भीष्मजी ने कहा___’राजन् ! तुम्हें राजधर्म का खयाल करके सदा युधिष्ठिर के अथवा भीम, अर्जुन या नकुल_सहदेव के साथ ही युद्ध करना चाहिये; क्योंकि राजा को राजा के साथ जी युद्ध करना उचित है। और लोग से लड़ने के लिये तो हमलोग हैं ही। मैं द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, शल्य, भूरिश्रवा तथा विकर्ण, दुःशासन आदि तुम्हारे भाई___ये सब तुम्हारे लिये उस महाबली राक्षस से युद्ध करेंगे। अथवा उस दुष्ट के साथ लड़ने के लिये ये इन्द्र के समान पराक्रमी राजा भगदत्त चले जायँ।‘ यह कहकर भीष्मजी राजा भगदत्त से बोले___’महाराज ! आप ही जाकर घतोत्कच का मुकाबला कीजिये।‘ सेनापति की आज्ञा पाकर राजा भगदत्त सिंहनाद करते हुए बड़े वेग से शत्रुओं की ओर चले। उन्हें आते देख पाण्डवों के महारथी भीमसेन, अभिमन्यु, घतोत्कच, द्रौपदी के पुत्र, सत्यधृति, सहदेव, चेदिराज, वसुदान और दशार्णराज क्रोध में भरकर उनके सामने आ गये भगदत्त ने भी सुप्रतीक हाथी पर आरूढ़ हो उन सब महारथियों पर धावा किया। तदनन्तर, पाण्डवों का भगदत्त के साथ भयंकर युद्ध छिड़ गया। महान् धनुर्धर भगदत्त ने भीमसेन पर धावा किया और उनके ऊपर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। भीमसेन ने भी क्रोध में भरकर भगदत्त के हाथी के पैरों की रक्षा करनेवाले सौ से भी अधिक वीरों को मार डाला। तब भगदत्त ने अपने उस गजराज को भीमसेन के रथ की ओर बढ़ाया। यह देख पाण्डवों के कई महारथियों ने बाणों की वर्षा करते हुए उस हाथी को चारों ओर से घेर लिया। उसने अमर्षपूर्वक  अपने हाथी को पुनः आगे की ओर चलाया। अंकुश और अँगूठे का इशारा पाकर वह मत्त गजराज उस समय प्रलयकालीन अग्नि के समान भयानक हो उठा। उसने क्रोध में भरकर अनेकों रथों, हाथियों और घोड़ों को उनके सवारोंसहित रौंद डाला। हजारों_सैकड़ों पैदलों को कुचल दिया। यह देखकर राक्षस घतोत्कच ने कुपित होकर उस हाथी को मार डालने के लिये एक चमचमाता हुआ त्रिशूल चलाया; किन्तु भगदत्त ने अपने अर्धचन्द्राकार बाण से उसे काट दिया और अग्निशिखा के समान प्रज्वलित एक महाशक्ति घतोत्कच के ऊपर फेंकी। अभी वह शक्ति आकाश में ही थी कि घतोत्कच ने उछलकर उसे हाथ में पकड़ लिया और दोनों घुटनों के बीच में दबाकर तोड़ डाला। यह एक अद्भुत बात हुई। आकाश में खड़े हुए देवता, गन्धर्व और मुनियों को भी यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। पाण्डव लोग उसे शाबाशी देते हुए रणभूमि में बड़ी हर्षध्वनि फैलाने लगे। भगदत्त से यह नहीं सहा गया। उसने अपना धनुष खींचकर पाण्डव महारथियों पर बाण बरसाना आरम्भ किया तथा भीमसेन को एक, घतोत्कच को नौ, अभिमन्यु को तीन और केकयराजकुमारों को पाँच बाणों से बींध डाला। फिर दूसरे बाण से क्षत्रदेव की दाहिनी बाँह काट डाली, पाँच बाणों ले द्रौपदी के पाँच पुत्रों को घायल किया तथा भीमसेन के घोड़ों को मार गिराया, ध्वजा काट दी और सारथि को भी यमलोक भेज दिया। इसके बाद भीमसेन को बींध डाला। इससे पीड़ित होकर वे कुछ देर तक रथ के पिछले भाग में बैठे रह गये। फिर हाथ में गदा लेकर वेगपूर्वक रथ से कूद पड़े। उन्हें गदा लिये आते देख कौरव सैनिकों को बड़ा भय हुआ। इतने में अर्जुन भी शत्रुओं राजा संहार करते हुए वहाँ आ पहुँचे और कौरवों पर बाणों की वर्षा करने लगे। इस समय भीमसेन ने भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन को इरावान् के वध का समाचार सुनाया।

Wednesday 17 January 2018

घतोत्कच का युद्ध


धृतराष्ट्र ने कहा___संजय ! इरावान् को मरा हुआ देखकर महारथी पाण्डवों ने उस युद्ध में क्या किया ?
संजय ने कहा___राजन् ! इरावान् मारा गया, यह देख भीमसेन के पुत्र घतोत्कच ने बड़ी विकट गर्जना की। उसकी आवाज से समुद्र, पर्वत और वनों के साथ सारी पृथ्वी डगमगाने लगी। आकाश और दिशाएँ गूँज उठीं। उस भयंकर नाद को सुनकर आपके सैनिकों के पैरों में काठ मार गया, वे थर_थर काँपने लगे और उनके अंगों से पसीना छूटने लगा। सभी की दशा अत्यन्त दयनीय हो गयी थी। घतोत्कच क्रोध के मारे प्रलयकालीन यमराज के समान हो उठा। उसकी आकृति बड़ी भयंकर हो गयी। उसके हाथ में जलता हुआ त्रिशूल था तथा साथ में तरह_तरह के हथियारों से लैस राक्षसों की सेना चल रही थी। दुर्योधन ने देखा भयंकर राक्षस आ रहा है और मेरी सेना उसके डर से पीठ दिखाकर भाग रही है तो उसे बड़ा क्रोध हुआ। बस, हाथ में एक विशाल धनुष ले  बारम्बार सिंहनाद करते हुए उसने घतोत्कच पर धावा किया। उसके पीछे दस हजार हाथियों की सेना लेकर बंगाल का राजा सहायता के लिये चला। आपके पुत्र रो हाथियों की सेना के साथ आते देख घतोत्कच भी बहुत कुपित हुआ। फिर तो राक्षसों की और दुर्योधन की सेनाओं में रोमांचकारी युद्ध होने लगा। राक्षस बाण, शक्ति और ऋष्टि आदि से योद्धाओं का संहार करने लगे। तब दुर्योधन ने अपने प्राणों का भय छोड़कर राक्षसों पर टूट पड़ा और उनके ऊपर तीक्ष्ण बाणों की वर्षा करने लगा। उसके हाथ से प्रधान_प्रधान राक्षस मारे जाने लगे। उसने चार बाणों से महावेग, महारौद्र, विद्युजिह्न और प्रमाथी___इन चार राक्षसों को मार डाला। तत्पश्चात् वह पुनः राक्षससेना पर बाण बरसाने लगा। आपके पुत्र का यह पराक्रम देखकर घतोत्कच क्रोध से जल उठा और बड़े वेग से दुर्योधन के पास पहुँचकर क्रोध से लाल_लाल आँखें किये कहने लगा___’ अरे नृशंस ! जिन्हें तुमने दीर्घकाल तक वनों में भटकाया है, उन माता_पिता के ऋण से आज तुझे मारकर उऋण होऊँगा।‘ ऐसा कहकर घतोत्कच ने दाँतों से ओठ दबाकर अपने विशाल धनुष से बाणों की वर्षा करके दुर्योधन को ढक दिया। तब दुर्योधन ने भी पच्चीस बाण मारकर उस राक्षस को घायल किया। राक्षस ने पर्वतों को भी विदीर्ण करनेवाली एक महाशक्ति लेकर आपके पुत्र को मार डालने का विचार किया। यह देख बंगाल के राजा ने बड़ी उतावली के साथ अपना हाथी उसके आगे बढ़ा दिया। दुर्योधन का रथ हाथी के ओट में हो गया और प्रहार का मार्ग रुक गया।इससे अत्यन्त कुपित होकर घतोत्कच ने हाथी पर ही शक्ति का प्रहार किया। उसके लगते ही हाथी भूमि पर गिरा और मर गया तथा बंगाल का राजा उस पर से कूदकर पृथ्वी पर आ गया। हाथी मरा और सेना भाग चली____यह देख दुर्योधन को बड़ा कष्ट हुआ; किन्तु क्षत्रिय धर्म का खयाल करके वह पीछे नहीं हटा, अपनी जगह पर पर्वत के समान स्थिरभाव से खड़ा रहा। फिर उसने राक्षस पर कालाग्नि के समान तीक्ष्ण बाण का प्रहार किया। किन्तु वह उसे बच गया और पुनः बड़ी भयंकर गर्जना करके संपूर्ण सेना को डराने लगा। उसका भैरवनाद सुनकर भीष्मपितामह ने अन्य महारथियों को दुर्योधन की सहायता के लिये भेजा। द्रोण, सोमदत्त, बाह्लीक, जयद्रथ, कृपाचार्य, भूरिश्रवा, शल्य, उज्जैन के राजकुमार, बृहद्वल, अश्त्थामा, विकर्ण, चित्रसेन, विविंशति और इनके पीछे चलनेवाले कई हजार रथी___ये सब दुर्योधन की रक्षा के लिये आ पहुँचे। घतोत्कच भी मैनाक पर्वत की भाँति निर्भीक खड़ा रहा, उसके भाई_बन्धु उसकी रक्षा कर रहे थे। फिर दोनों दलों में रोमांचकारी संग्राम शुरु हुआ।घतोत्कच ने अर्धचन्द्राकार बाण छोड़कर द्रोणाचार्य का धनुष काट दिया, एक बाण से सोमदत्त की ध्वजा खण्डित कर दी और तीन बाणों से बाह्लीक की छाती छेद डाली। फिर कृपाचार्य को एक और चित्रसेन को तीन बाणों से घायल किया। एक बाण से विकर्ण के कंधे की हँसली पर मारा, विकर्ण खून से लथपथ होकर रथ के पिछले भाग में जा बैठा। फिर भूरिश्रवा को पंद्रह बाण मारे;  वे बाण उसका कवच भेदन कर जमीन में घुस गये। इसके बाद उसने अश्त्थामा और विविंशति के सारथियों पर प्रहार किया। वे दोनों अपने_अपने घोड़ों की बागडोर छोड़कर रथ की बैठक में जा गिरे। फिर जयद्रथ की ध्वजा और धनुष काट डाले। अवन्तिराज के चारों घोड़े मार दिये। एक तीखे बाणसे राजकुमार बृहद्वल को घायल किया और कई बाण मारकर राजा शल्य को भी बींध डाला।
इस प्रकार कौरवपक्ष के सभी वीरों को विमुख करके वह दुर्योधन की ओर बढ़ा। यह देख कौरववीर भी उसको मारने की इच्छा से आगे बढ़े। घतोत्कच पर चारों ओर से बाणों की वर्षा होने लगी। जब वह बहुत ही घायल और पीड़ित हो गया तो गरुड़ की भाँति आकाश में उड़ गया तथा अपनी भैरवगर्जना से अंतरिक्ष और दिशाओं को गुँजाने लगा। उसकी आवाज सुनकर युधिष्ठिर ने भीमसेन से कहा, ‘घतोत्कच के प्राण संकट में है, जाकर उसकी रक्षा करो।‘ भाई की आज्ञा सुनकर भीमसेन अपने सिंहनाद से राजाओं को भयभीत करते हुए बड़े वेग से चले। उनके पीछे सत्यधृति, श्रेणिमान्, वसुधान, काशीराज का पुत्र अभिभू, अभिमन्यु, द्रौपदी के पाँच पुत्र, क्षत्रदेव, क्षत्रधर्मा तथा अपनी सेनाओं सहित अनूपदेश का राजा नील आदि महारथी भी चल दिये। वे सभी वीर वहाँ पहुँचकर घतोत्कच की रक्षा करने लगे। इनके आने का कोलाहल सुनकर भीमसेन के भय से कौरव सैनिकों का मुख उदास हो गया। वे घतोत्कच को छोड़कर पीछे लौट पड़े। फिर दोनों ओर की सेनाओं में घोर युद्ध होने लगा और कुछ ही देर में कौरवों की बहुत बड़ी सेना प्रायः भाग खड़ी हुई। यह देख दुर्योधन बहुत कुपित हुआ और भीमसेन के सम्मुख जाकर एक अर्धचन्द्राकार बाण से उनका धनुष काट दिया। फिर बड़ी फुर्ती के साथ उनकी छाती में बाण मारा। उससे भीमसेन को बड़ी पीड़ा हुई और अचेत होने के कारण उन्हें अपनी ध्वजा का सहारा लेना पड़ा। उनकी यह दशा देख घतोत्कच क्रोध से जल उठा और अभिमन्यु आदि महारथियों के साथ वह दुर्योधन पर टूट पड़ा। तब द्रोणाचार्य ने कौरव_पक्ष के महारथियों से कहा___’वीरों ! ‘राजा दुर्योधन संकट  के समुद्र में डूब रहा है, शीघ्र जाकर उसकी रक्षा करो।‘आचार्य की बात सुनकर कृपाचार्य, भूरिश्रवा, शल्य, अश्त्थामा, विविंशति, चित्रसेन, विकर्ण, जयद्रथ, बृहद्वल तथा अवन्ति के राजकुमार____ये सभी दुर्योधन को घेरकर खड़े हो गये। द्रोणाचार्य ने अपना महान् धनुष चढ़ाकर भीमसेन को छब्बीस बाण मारे, फिर बाणों की झड़ी लगाकर उन्हें आच्छादित कर दिया। तब भीमसेन ने भी आचार्य की बायीं पसली पर दस बाण मारे। इनकी करारी चोट पड़ने से वयोवृद्ध आचार्य सहसा बेहोश होकर रथ के पिछले भाग में लुढ़क गये। यह देख दुर्योधन और अश्त्थामा दोनों क्रोध में भरकर भीम की ओर दौड़े। उन्हें आते देख भीमसेन भी हाथ में कालदण्ड के समान गदा लेकर रथ से कूद पड़े और उन दोनों का सामना करने को खड़े हो गये।तदनन्तर, कौरव महारथी भीम को मार डालने की इच्छा से उनकी छाती पर नाना प्रकार के अस्त्र_ शस्त्रों की वर्षा करने लगे। तब अभिमन्यु आदि पाण्डव महारथी भी भीम की रक्षा के लिये जीवन का मोह छोड़कर दौड़े। अनूपदेश का राजा नील भीमसेन का प्रिय मित्र था, उसने अश्त्थामा पर एक बाण छोड़ा। वह बाण उसके शरीर में धँस गया, उससे खून बहने लगा और उसे बड़ी पीड़ा हुई। तब अश्त्थामा क्रुद्ध होकर नील के चारों घोड़ों को मार डाला, ध्वजा काटकर गिरा दी और एक भल्ल नामक बाण से उसकी छाती छेद डाली। उसकी वेदना से मूर्छित होकर नील अपने रथ को पिछले भाग में जा बैठा। उसकी यह दशा देखकर घतोत्कच ने अपने भाई_बन्धुओं के साथ अश्त्थामा पर धावा किया। उसे आते देख अश्त्थामा भी शीघ्रता से आगे बढ़ा। बहुत से राक्षस घतोत्कच के आगे_आगे आ रहे थे, अश्त्थामा ने उन सबको मार डाला। द्रोणकुमार के बाणों से राक्षसों को मरते देख घतोत्कच ने भयंकर माया प्रकट की। उससे अश्त्थामा भी मोहित हो गया। कौरवपक्ष के सभी योद्धा माया के प्रभाव से युद्ध छोड़कर भागने लगे। उन्हें ऐसा दीखता था कि ‘मेरे सिवा सभी सैनिक शस्त्रों से छिन्न_भिन्न हो खून में डूबे हुए पृथ्वी पर छटपटा रहे हैं। द्रोणाचार्य, दुर्योधन, शल्य, अश्त्थामा आदि महान् धनुर्धर, प्रधान_प्रधान कौरव तथा अन्य राजालोग भी मारे जा चुके हैं तथा हजारों घोड़े और घुड़सवार धराशायी हो रहे हैं।‘ यह सब देखकर आपकी सेना छावनी की ओर भागने लगी। यद्यपि उस समय हम और भीष्मजी भी पुकार_पुकारकर कह रहे थे, ‘वीरों ! युद्ध करो, भागो मत; यह तो राक्षसी माया है, इस पर विश्वास न करो’ तो भी वे हमलोगों की बात पर विश्वास न कर सके। शत्रु की सेना को भागती देख विजयी पाण्डव घतोत्कच के साथ सिंहनाद करने लगे चारों ओर शंखध्वनि होने लगी। दुन्दुभी बजा। इन सबकी कप मिल ध्वनि से रणभूमि गूँज उठी। इस प्रकार सूर्यास्त होते_होते घतोत्कच ने आपकी सेना को चारों ओर भगा दिया।