Friday 22 October 2021

कर्ण और युधिष्ठिर का संग्राम, कर्ण की मूर्छा, कर्ण द्वारा युधिष्ठिर का पराभव तथा भीम के द्वारा कर्ण का परास्त होना

संजय कहते हैं_महाराज ! कर्ण ने उस सेना को चीरकर धर्मराज पर धावा किया। उस समय शत्रुओं ने उसपर नाना प्रकार के हजारों अस्त्र-शस्त्र चलाते, किन्तु उसने उन सबके टुकड़े_टुकड़े कर डाले। इतना  ही नहीं अपने भयंकर बाणों से उसने शत्रुओं को घायल भी कर डाला। उनके मस्तकों, भुजाओं तथा जंघाओं को काट गिराया।
कर्ण के बाणों से मारे जाकर बहुत_से शत्रु धराशायी हो गये। बहुतों के अंग भंग हो गये, अतः वे युद्ध छोड़कर भाग चले। रणभूमि में शत्रुपक्ष के लाखों योद्धाओं की लाशें बिछ गयीं।
उस समय कर्ण प्राणियों का अन्त करने वाले यमराज के समान क्रोध में भरा हुआ था। पांडव और पांचाल सैनिकों ने उसे रोका अवश्य, किन्तु उन सबको रौंदकर वह युधिष्ठिर के पास आ धमका। तदनन्तर कर्ण को अपने पास ही  देख युधिष्ठिर की आंखें क्रोध से लाल हो गयीं, उन्होंने उससे कहा_’सूतपुत्र ! तू युद्ध में सदा अर्जुन से लाग_डांट रखता है और दुर्योधन  की हां_में_हां मिलाकर हमलोगों को कष्ट पहुंचाया करता है।
आज तुझमें जो बल और पराक्रम हो वह सब दिखा, अपना महान् पुरुषार्थ प्रकट कर।‘ यह कहकर युधिष्ठिर ने कर्ण को दस बाणों से बींध डाला। सूतपुत्र कर्ण ने भी हंसते हंसते उन्हें दस बाणों से घायल करके तुरंत बदला चुकाया। 
तब युधिष्ठिर ने पर्वतों को भी विदीर्ण करने वाला यमदण्ड के समान भयंकर बाण धनुष पर चढ़ाया और सूतपुत्र का वध करने की इच्छा से उसे छोड़ दिया। वह वेगपूर्वक छोड़ा हुआ बाण बिजली के समान कड़ककर महारथी कर्ण की बायीं कोख में धंस  उसकी चोट से कर्ण को मूर्छा आ गयी।
उसका सारा शरीर शिथिल हो गया, धनुष हाथ से छूटकर रथ पर जा गिरा। मानो प्राण निकल गये हों, ऐसा निश्चेष्ट और अचेत होकर कर्ण शल्य के सामने ही गिर पड़ा। राजा युधिष्ठिर ने अर्जुन का हित करने की इच्छा से कर्ण पर तुरंत प्रहार नहीं किया। कर्ण को इस अवस्था में देखकर कौरव सेना में हाहाकार मच गया। थोड़ी ही देर में जब कर्ण की मूर्छा दूर हुई तो उसने विजय नामक अपना महान् धनुष तानकर तेज किये हुए बाणों से युधिष्ठिर की प्रगति रोक दी।  उस समय दो पांचाल राजकुमार युधिष्ठिर के पहियों की रक्षा कर रहे थे, उनके नाम थे चन्द्रदेव तथा दण्डाधार।
कर्ण ने उन दोनों को छुरे के समान आकारवाले दो बाणों से मार डाला। यह देख युधिष्ठिर ने कर्ण को पुनः तीस बाणों से घायल कर दिया। साथ ही सुषेण और सत्यसेन को भी तीन_तीन बाण मारे। फिर नब्बे बाणों से शल्य को और तिहत्तर से सूतपुत्र को बींध डाला तथा उसकी रक्षा करने वाले योद्धाओं को भी तीन_तीन बाणों से घायल किया। तब कर्ण ने हंसकर अपना धनुष टंकारा और एक भल्ल तथा साठ बाणों से युधिष्ठिर को आहत करके जोर से गर्जना की। फिर तो पाण्डव_पक्ष के योद्धा बड़े अमर्ष में भरकर दौड़े और युधिष्ठिर की रक्षा के लिये कर्ण को बाणों से पीड़ित करने लगे। सात्यकि, चेकितान, युयुत्सु, पाण्ड्य, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, द्रौपदी के पुत्र, प्रभद्रक, नकुल_सहदेव, भीमसेन, धृष्टकेतू तथा करूष, मत्स्य, केकय, काशी और कोसल देश के योद्धा_ये सब_के_सब बाणों का प्रहार करने लगे।
पांचालदेशीय जन्मेजय भी उसी साधकों से बींधने लगा। पाण्डववीर सब ओर से कर्ण पर बाराहकर्ण, नारायण, नालीक, बाण, वत्सदन्त, विपाट तथा क्षुरप्र आदि नाना प्रकार के अस्त्र_शस्त्रों की वर्षा करने लगे। यह देखकर कर्ण ने ब्रह्मास्त्र प्रकट किया, उसके बाणों से संपूर्ण दिशाएं आच्छादित हो गयीं। शराग्नि की लपट में झुलसकर पाण्डववीर भस्म होने लगे। 
तदनन्तर कर्ण ने हंसकर युधिष्ठिर का धनुष काट दिया, फिर पलक मारते ही उसने तेज किये हुए नब्बे बाणों से उनका कवच छिन्न_भिन्न कर दिया। कवच कट जाने पर बाणों की मार से वे लोहूलुहान हो गये और क्रोध में भरकर उन्होंने कर्ण के रथ पर फौलाद की बनी हुई शक्ति छोड़ी किन्तु कर्ण ने सात बाण मारकर उसके टुकड़े_टुकड़े कर दिये। इसके बाद युधिष्ठिर ने कर्ण की भुजा, ललाट और मस्तक में चार तोमरों का प्रहार करके हर्षनाद किया। कर्ण के शरीर से खून की धारा बहने लगी। उसने एक भल्ल से युधिष्ठिर की ध्वजा काट डाली और तीन से उन्हें भी आहत किया। फिर तरकस काटकर रथ के भी टुकड़े_टुकड़े कर डाले। इस प्रकार पराजित होकर राजा युधिष्ठिर एक दूसरे रथ पर बैठे और रणभूमि से भाग चले। कर्ण ने पीछा करके युधिष्ठिर के कंधे पर हाथ रखा और उन्हें बलपूर्वक पकड़ लेना चाहा; इतने में ही कुन्ती के दिये हुए वचन का स्मरण हो  इधर शल्य भी बोल उठे_’कर्ण ! महाराज युधिष्ठिर को हाथ न लगाओ, मुझे भय है कि कहीं पकड़ते ही ये तुम्हें मारकर भस्म न कर डाले।‘ यह सुनकर कर्ण हंस पड़ा और पाण्डु नन्दन युधिष्ठिर का उपहास करते हुए कहने लगा_’युधिष्ठिर ! जिसका उच्चकुल में जन्म हुआ़ है, जो क्षत्रिय धर्म में स्थित है, वह भयभीत होकर प्राण बचाने के लिये युद्ध छोड़कर कैसे भाग सकता है ? मेरा तो ऐसा विश्वास है, तुम क्षत्रिय धर्म के पालन में निपुण नहीं हो सकते; क्योंकि सदा ब्राह्मणोचित स्वाध्याय और यज्ञों में ही लगे रहते हो। कुन्तीनन्दन ! आज से लड़ाई में न आना, शूरवीरों का सामना न करना तथा उनके लिये मुंह से अप्रिय बातें भी न निकालना। इतने बड़े समर में तो कभी जाने का नाम न लेना। यदि युद्ध में हम जैसे लोगों से कुछ कड़वी बात कहोगे तो  उसका यही अथवा उससे भी कठोर फल मिलेगा ! राजन् ! अपनी छावनी में जाओ अथवा श्रीकृष्ण और अर्जुन जहां हैं, वहां ही चले जाओ।‘ ऐसा कहकर कर्ण ने युधिष्ठिर को छोड़ दिया और पांडवसेना का संहार करने लगा। राजा युधिष्ठिर बहुत लज्जित होकर तुरंत वहां से हट गये और श्रुतकीर्ति के रथ पर बैठकर कर्ण का पराक्रम देखने लगे। अपनी सेना को खदेड़ी जाती हुई देख धर्मराज ने योद्धाओं से कुपित होकर कहा_’अरे ! क्यों चुप बैठे हो, मारो इन कोरवों को।‘
राजा की आज्ञा पाते ही । आदि पाण्डव_महारथी आपके पुत्रों पर टूट पड़े। उस समय रथ, हाथी और घोड़ों पर सवार हुए योद्धाओं तथा शस्त्रों का भयंकर शब्द होने लगा और उठो, मारो, आगे बढ़ो, दबोच लो_इस प्रकार कहते हुए वे आपस में मारकाट करने लगे। उन आक्रमणकारियों के प्रचण्ड वेग को सहन करने की अपने में शक्ति न देखकर आपके पुत्रों की विशाल सेना भागने लगी। यह देख दुर्योधन ने अपने योद्धाओं को सब ओर से रोकने का प्रयास किया, परन्तु वह पुकारता ही रह गया, सेना पीछे न लौटी। कर्ण की भी दृष्टि उधर पड़ी, उसने कौरव सैनिकों को मालिकों के साथ भागते हुए देख महाराज शल्य से कहा_’अब तुम भीम के रथ के पास चलो।‘ शल्य ने अपने घोड़ों को भीम की ओर बढ़ाया।
कर्ण को आते देख भीमसेन क्रोध में भर गये। उन्होंने सूतपुत्र को मार डालने का विचार करके वीरवर सात्यकि तथा धृष्टद्युम्न से कहा_’अब तुमलोग महाराज युधिष्ठिर की रक्षा करो। अभी मेरे देखते_देखते उन्हें बहुत बड़े संकट से किसी तरह छुटकारा मिला है। दुरात्मा कर्ण ने दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिये मेरे सामने ही उनकी समस्त युद्ध_सामग्री को तहस_नहस कर डाला है। इससे मुझे बड़ा दु:ख हुआ है; अब मैं उसका बदला चुकाऊंगा। आज घोर संग्राम करके या तो मैं ही कर्ण को मार डालूंगा या वहीं मेरा वध करेगा_यह मैं सच्ची बात बता रहा हूं। राजा को मैं तुम्हें धरोहर के रूप में देता हूं; उनकी रक्षा के लिय ये सब प्रकार से यत्न करना।
यों कहकर महाबाहु भीमसेन अपने महान् सिंहनाद से संपूर्ण दिशाएओं को प्रतिध्वनित करते हुए कर्ण की ओर बढ़े। उन्हें चढ़कर आते देख कर्ण ने क्रोध में भरकर उनकी छाती में नाराच का प्रहार किया। इस प्रकार सूतपुत्र के हाथों घायल होकर भीम ने उसे बाणों से ढक दिया और तेज किये हुए नौ बाण मारकर उसको घायल कर तब कर्ण ने भीम के धनुष के दो टुकड़े कर दिये। भीम ने दूसरा धनुष उठाया और कर्ण के मर्मस्थानों को बींधकर बड़ी जोर से गर्जना की। फिर सूतपुत्र का वध करने के लिये उन्होंने पर्वतों को भी विदीर्ण करनेवाला एक बाण चढ़ाया और उसे उसकी ओर छोड़ दिया। उस वज्र के समान वेगशाली बाण ने सूतपुत्र के शरीर को छेद डाला। सेनापति कर्ण रथ की बैठक में गिर पड़ा। उसे मूर्छित देखकर मद्रराज शल्य कर्ण को रणभूमि से दूर हटा लें गये। इस प्रकार कर्ण को परास्त करके भीमसेन ने कौरव सेना को मार भगाया।