Thursday 26 September 2019

भीमसेन द्वारा दुर्योधन की, कर्ण के द्वारा सहदेव की, शल्य के द्वारा विराट की और शतानीक द्वारा चित्रसेन की पराजय

संजय कहते हैं___भीमसेन युद्ध करते हुए द्रोणाचार्य के रथ की ओर बढ़ रहे थे, तबतक दुर्योधन ने उन्हें बाणों से बींध डाला। यह देख भीम ने भी उसे दस बाणों से घायल किया। तब दुर्योधन ने पुनः बीस बाण मारकर उन्हें बींध डाला। भीमसेन ने दस बाणों से उसके धनुष और ध्वजा काट दिये, फिर नब्बे बाण मारकर उसे खूब घायल किया। चोट खाकर दुर्योधन क्रोध से जल उठा और दूसरा धनुष लेकर उसने तीखे बाणों से भीम को अच्छी तरह पीड़ित किया। फिर क्षुरप्र से उसका धनुष काटकर पुनः दस बाणों ले उन्हें घायल कर दिया।
भीम ने दूसरा धनुष लिया, किन्तु दुर्योधन ने उसे भी काट डाला। इसी प्रकार तीसरा, चौथा, पाँचवाँ धनुष भी कट गया। जो_जो धनुष भीम हाथ में लेते उस_उसको आपका पुत्र काट गिराता था। तब भीम ने दुर्योधन के ऊपर एक शक्ति फेंकी, किन्तु उसने उसके भी तीन टुकड़े कर दिये। इसके बाद भीम ने बहुत बड़ी गदा हाथ में ली और बड़े वेग से घुमाकर दुर्योधन के रथ पर फेंकी। उसने आपके पुत्र के रथ को भी चकनाचूर कर दिया। दुर्योधन भीम के डर से पहले ही भागकर नन्दक के रथ पर चढ़ गया था। उस समय भीमसेन कौरवों का तिरस्कार करते हुए बड़े जोर से सिंहनाद कर रहे थे और आपके सैनिकों में हाहाकार मचा हुआ था।दूसरी ओर द्रोण का सामना करने की इच्छा से सहदेव बढ़ा आ रहा था, उसे कर्ण ने रोका। सहदेव ने कर्ण को नौ बाणों से घायल करके फिर दस बाण और मारे। तब कर्ण ने भी सहदेव को सौ बाणों से बींधकर तुरंत बदला चुकाया और उसके चढ़े हुए धनुष को भी काट डाला। माद्रीनन्दन ने तुरंत दूसरा धनुष लेकर कर्ण को बीस बाण मारे। कर्ण ने उसके घोड़ों को मारकर सारथि को भी यमलोक भेज दिया। रथहीन हो जाने पर सहदेव ने ढाल तलवार हाथ में ली, किन्तु कर्ण ने तीखे बाण मारकर उसके भी टुकड़े_टुकड़े कर दिये। तब क्रोध में भरकर सहदेव ने एक बहुत भारी भयंकर गदा कर्ण के रथ पर फेंका, परन्तु कर्ण ने बाणों से मारकर उसे भी गिरा दिया। यह देख उसने शक्ति का प्रहार किया, किन्तु कर्ण ने उसे भी काट दिया। अब सहदेव रथ से नीचे कूद पड़ा और रथ का पहिया हाथ में लेकर उसे कर्ण पर दे मारा। उस चक्र को सहसा अपने ऊपर आते देख सूतपुत्र ने हजारों बाण मारकर उसके भी टुकड़े_ टुकड़े कर डाले। तब माद्रीकुमार ईषादण्ड, धुरा, मरे हुए हाथियों के अंग तथा मरे हुए घोड़ों और मनुष्यों की लाशों उठा_उठाकर कर्ण को मारने लगा, पर उसने सबको अपने बाणों से काट गिराया। फिर तो सहदेव अपने को शास्त्रहीन समझकर युद्ध त्यागकर चल दिया, कर्ण ने उसके पीछे भागकर हँसते हुए कहा___’ओ चंचल ! आज से तू अपने से बड़े रथियों के साथ युद्ध न करना।‘इस प्रकार ताना देकर कर्ण पाण्डवों और पांचालों की सेना की ओर चला गया। उस समय सहदेव मृत्यु के निकट पहुँच चुका था, कर्ण चाहता तो उसे मार डालता। किन्तु कुन्ती को दिये हुए वरदान को याद कर उसने सहदेव का वध नहीं किया। सहदेव का मन बहुत उदास हो गया था; वह कर्ण के बाणों से तो पीड़ित था ही, उसके वाग्बाणों से भी उसके दिल को काफी चोट पहुँची थी। इसलिये उसे जीवन से वैराग्य_ सा हो गया। वह बड़ी तेजी के साथ जाकर पांचालकुमार जनमेजय के रथ पर बैठ गया। इसी प्रकार द्रोण का मुकाबला करने के लिये राजा विराट भी अपनी सेना के साथ आ रहे थे, उन्हें बीच में ही रोककर मद्रराज शल्य ने बाणवर्षा से ढक दिया। उन्होंने बड़ी फुर्ती के साथ राजा विराट को सौ बाण मारे। यह देख विराट ने भी तुरंत बदला लिया; उन्होंने पहले नौ, फिर तिहत्तर, इसके बाद सौ बाण मारकर शल्य को घायल किया। फिर मद्रराज ने उनके रथ के चारों घोड़ों को मारकर दो बाणों से सारथि और ध्वजा को भी काट गिराया। तब राजा विराट रथ से कूद पड़े और धनुष चढ़ाकर तीखे बाणों की वर्षा करने लगे। अपने भाई को रथहीन देख शतानीक रथ लेकर उनकी सहायता में आ पहुँचा। उसे आते देख मद्रराज ने बहुत_से बाण मारकर यमलोक में पहुँचा दिया।
अपने वीर बन्धु के मारे जाने पर महारथी विराट तुरंत ही अपने रथ में बैठ गये और क्रोध से आँखें फेरकर ऐसी बाणवर्षा करने लगे, जिससे शल्य का रथ आच्छादित जो गया। तब मद्रराज ने सेनापति विराट की छाती में बड़े जोर से बाण मारा। वे उसकी चोट नहीं संभाल सके, मूर्छित होकर रथ की बैठक में गिर पड़े। यह देख उनका सारथि उन्हें रणभूमि से दूर हटा ले गया।‘ इधर शल्य सैकड़ों बाण बरसाकर विराट की सेना का संहार करने लगे, इससे वह वाहिनी उस रात्रिकाल में भागने लगी। उसे भागते देख भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन, जहाँ राजा शल्य थे, उधर ही चल पड़े; किन्तु राक्षस अलम्बुष ने वहाँ पहुँचकर उन्हें बीच में ही रोक लिया। यह देख अर्जुन ने चार तीखे बाण मारकर उसे बींध डाला। तब अलम्बुष भयभीत होकर भाग गया। उसे परास्त कर अर्जुन तुरंत द्रोण के निकट पहुँचे और पैदल, हाथीसवार तथा घुड़सवारों पर बाणसमूहों की वृष्टि करने लगे। उनकी मार से कौरवसैनिक आँधी में उखाड़े हुए वृक्ष की भाँति धराशायी होने लगे। महाराज ! अर्जुन ने जब इस प्रकार संहार आरंभ किया तो आपके पुत्र की संपूर्ण सेना में भगदड़ मच गयी। एक ओर नकुलपुत्र शतानीक अपने शराग्नि से कौरवसेना को भष्म करता हुआ आ रहा था, उसे आपके पुत्र चित्रसेन ने रोका। शतानीक ने चित्रसेन को पाँच बाण मारे। चित्रसेन ने भी शतानीक को दस बाण मारकर बदला चुकाया। तब नकुलपुत्र ने चित्रसेन की छाती में अत्यन्त तीखे नौ बाण मारकर उसके शरीर का कवच काट गिराया। फिर अनेकों तीक्ष्ण सायकों से उसकी रथ की ध्वजा और धनुष को भी काट डाला। चित्रसेन ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर शतानीक को नौ बाण मारे। महाबली शतानीक ने भी उसके चारों घोड़ों और सारथि को मार डाला। फिर एक अर्धचन्द्राकार बाण मारकर उसके रत्मण्डित धनुष को भी काट दिया। धनुष कट गया, घोड़े और सारथि मारे गये___ इससे रथहीन हुआ चित्रसेन तुरंत भागकर कृतवर्मा के रथ पर जा चढ़ा।

Thursday 12 September 2019

• दुर्योधन का सैनिकों को प्रोत्साहन, कृतवर्मा का पराक्रम, सात्यकि द्वारा भूरिका वध और घतोत्कच के साथ अश्त्थामा का युद्ध

संजय कहते हैं___महाराज ! जो स्थान पहले धूल और अन्धकार से,आच्छन्न हो रहा था, वह दीपों के प्रकाश से आलोकित हो उठा। रत्नजटित सोने की दीवटों पर सुगन्धित तेल से भरे हुए हजारों दीपक जगमगा रहे थे। जैसे असंख्य नक्षत्रों से आकाश सुशोभित होता है, उसी प्रकार उन दीपमालाओं से उस रणभूमि की शोभा हो रही थी। उस समय हाथी पर सवार हाथीसवारों से और घुड़सवार घुड़सवारों से भिड़ गये। रथियों का रथियों के साथ मुकाबला होने लगा। सेना का भयंकर संहार आरम्भ हो गया। अर्जुन बड़ी फुर्ती के साथ राजाओं का वध करते हुए कौरवसेना का विनाश करने लगे। धृतराष्ट्र ने पूछा___ संजय ! जब अर्जुन क्रोध में भरकर दुर्योधन की सेना में घुसे, उस समय उसने क्या करने का विचार किया ? कौन_कौन वीर अर्जुन का सामना करने के लिये आगे बढ़े ? आचार्य द्रोण जब युद्ध कर रहे थे, उस समय कौन_कौन उनके पृष्ठभाग की रक्षा करते थे ? कौन उनके आगे थे ? और कौन दायें_बायें पहियों की रक्षा में नियुक्त थे ? ये सब बातें मुझे बताओ ?
संजय ने कहा___ महाराज ! उस रात दुर्योधन ने आचार्य द्रोण की सलाह लेकर अपने भाइयों तथा कर्ण, वृषसेन, मद्रराज शल्य, दुर्धर्ष, दीर्घबाहु तथा उन सबके अनुचरों से कहा___'तुम सबलोग पूर्ण सावधान रहकर पराक्रम करते हुए पीछे रहकर आचार्य द्रोण की रक्षा करो। कृतवर्मा दक्षिण पहिये की और कर्ण उत्तरवाले पहिये की रक्षा करें। इसके बाद त्रिगर्तदेश के महारथी वीरों में से जो मरने से बचे हुए थे, उन सबको आपके पुत्र ने आचार्य के आगे रहने की आज्ञा दी और कहा___’वीरों ! आचार्य द्रोण बड़ी सावधानी के साथ युद्ध कर रहे हैं; पाण्डव भी बड़ी तत्परता के साथ उनका सामना करते हैं। अतः तुमलोग सावधान रहकर आचार्य की महारथी धृष्टधुम्न से रक्षा करो। पाण्डवों की सेना में धृष्टधुम्न के सिवा और कोई योद्धा मुझे ऐसा नहीं दिखायी देता, जो द्रोण ले लोहा ले सके। अतः इस समय आचार्य की रक्षा ही हमारे लिये सबसे बढ़कर काम है। सुरक्षित रहने पर आचार्य अवश्य ही पाण्डवों, सृंजयों और सोमकों का नाश कर डालेंगे; फिर अश्त्थामा धृष्टधुम्न को नष्ट कर देगा, कर्ण अर्जुन को परास्त करेगा और युद्ध की दीक्षा लेकर मैं भीमसेन पर विजय पाऊँगा। इनके मरने पर बाकी पाण्डव बलहीन हो जायेंगे, फिर तो उन्हें मेरे सभी योद्धा नष्ट कर सकते हैं। इस प्रकार सुदीर्घ क्लर्क के लिये मेरी विजय की संभावना स्पष्ट ही दिखायी दे रही है। यह कहकर दुर्योधन ने सेना को युद्ध करने की आज्ञा दी। फिर तो परस्पर विजय पाने की इच्छा से दोनों सेनाओं में घोर संग्राम होने लगा। उस समय अर्जुन कौरव_सेना को और कौरव अर्जुन को भाँति_भाँति के अस्त्र_ शस्त्रों से पीड़ा देने लगे। रात्रि का वह युद्ध इतना भयानक था कि वैसा उसके पहले न कभी देखा गया और न सुना ही गया था। उधर राजा युधिष्ठिर ने पाण्डवों, पांचालों और सोमकों को आज्ञा दी कि ‘तुम सब लोग द्रोण का वध करने के लिये उनपर एकबारगी टूट पड़ो।‘ राजा की आज्ञा पाकर वे पांचाल और सृंजय आदि क्षत्रिय भैरव_नाद करते हुए द्रोण पर चढ़ आये। उस समय कृतवर्मा ने युधिष्ठिर को और भूरि ने सात्यकि को रोका। सहदेव का कर्ण ने और भीमसेन का दुर्योधन ने सामना किया। शकुनि ने नकुल को आगे बढ़ने से रोका। शिखण्डी का कृपाचार्य ने और प्रतिविन्ध्य का दुःशासन ने मुकाबला किया। सैकड़ों प्रकार की माया जाननेवाले राक्षस घतोत्कच को अश्त्थामा ने रोका। इसी प्रकार द्रोण को पकड़ने के लिये आते हुए महारथी  वृषसेन ने सामना किया। मद्रराज शल्य ने विराट का वारण किया। नकुलनन्दन शतानीक भी द्रोण की ओर बढ़ा आ रहा था, उसे चित्रसेन ने बाण मारकर रोक दिया। महारथी अर्जुन का राक्षसराज अलम्बुष ने मुकाबला किया। तदनन्तर आचार्य द्रोण ने शत्रुसेना का संहार आरम्भ किया, किन्तु पांचालराजकुमार धृष्टधुम्न ने वहाँ पहुँचकर बाधा उपस्थित की तथा पाण्डवों का ओर से जो दूसरे_दूसरे महारथी लड़ने को आये, उन्हें आपके महारथियों ने अपने पराक्रम से रोक दिया। कृतवर्मा ने जब युधिष्ठिर को रोका तो उन्होंने उसे पहले पाँच, फिर बीस बाणों से मारकर बींध दिया। इससे कृतवर्मा क्रोध में भर गया और एक भल्ल मारकर उसने धर्मराज का धनुष काट दिया, फिर सात बाणों से मारकर बींध दिया। युधिष्ठिर ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर कृतवर्मा की भुजाओं तथा छाती में दस बाण मारे। उनकी चोट से वह काँप उठा और रोष में भरकर उसने सात बाणों से उन्हें खूब घायल किया। तब युधिष्ठिर ने,उसके धनुष और दास्ताने काट गिराये, फिर उसके ऊपर पाँच तीखे भल्लों से प्रहार किया। वे भल्ल उसका बहुमूल्य कवच छेदकर पृथ्वी में समा गये।
कृतवर्मा ने पलक मारते ही दूसरा धनुष हाथ में ले लिया और पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर को सात तथा उनके सारथि को नौ बाणों से बींध डाला। यह देख युधिष्ठिर ने उसके ऊपर शक्ति छोड़ी। वह शक्ति कृतवर्मा की दाहिनी बाँह छेदकर धरती में समा गयी। तब कृतवर्मा ने आधे ही निमेष में युधिष्ठिर के घोड़ों और सारथि को मारकर उन्हें रथहीन कर दिया। अब उन्होंने ढाल और तलवार हाथ में ली, किन्तु कृतवर्मा ने उन्हें भी काट गिराया। फिर उसने सौ बाण मारकर उसके कवच को छिन्न_भिन्न कर डाला। इस प्रकार जब धनुष कटा, कवच भी छिन्न_भिन्न हुआ तो उसके बाणों के प्रहार से पीड़ित होकर युधिष्ठिर वहाँ से भाग गये। तब कृतवर्मा द्रोणाचार्य के रथ के पहिया की रक्षा करने लगा। महाराज ! भूरि ने महारथी सात्यकि का सामना किया। इससे सात्यकि ने क्रोध में भरकर पाँच तीक्ष्ण बाणों से उसकी छाती में घाव कर दिया, उससे रक्त की धारा बहने लगी। तब भूरि ने भी सात्यकि की दोनों भुजाओं के बीच दस बाण मारे। यह देख सात्यकि ने हँसते_ हँसते ही भूरि के धनुष को काट दिया, फिर उसकी छाती में नौ बाण मारकर उसे घायल करके एक भल्ल मारकर उसका धनुष भी काट दिया। अब तो सात्यकि के क्रोध की सीमा न रही, उसने एक प्रचण्ड वेगवाली शक्ति से पुनः भूरि की छाती पर प्रहार किया। उस शक्ति ने उसके अंगों को चीर डाला और वह प्राणहीन होकर रथ से नीचे गिर पड़ा। उसे मारा गया देख महारथी अश्त्थामा ने बड़े वेग से सात्यकि पर धावा किया और उसके ऊपर बाणों की झड़ी लगा दी। यह देख महारथी घतोत्कच घोर गर्जना करता हुआ अश्त्थामा के ऊपर टूट पड़ा और रथ के धुरे के समान स्थूल बाणों की वृष्टि करने लगा। उसने वज्र तथा अशनि के समान देदीप्यमान बाण, क्षुरप्र, अर्धचन्द्र, नाराच, शिलिमुख, बाराहकर्ण, मालती और विकर्ण आदि  अस्त्रों की झड़ी लगा दी। यह देख अश्त्थामा ने दिव्यास्त्रों से अभिमन्त्रित किये हुए बाणों की वर्षा आरम्भ की। फिर तो घतोत्कच और अश्त्थामा में घोर युद्ध होने लगा; उस समय रात्रि का अन्धकार खूब गाढ़ा हो चुका था। घतोत्कच ने अश्त्थामा की छाती में दस बाण मारे, उनकी चोट से उसका सारा शरीर काँप उठा और मूर्छित होकर रथ के ध्वजा के सहारे बैठ गया। थोड़ी देर में जब उसे जोश हुआ तो उसने यमदण्ड के समान एक भयंकर बाण घतोत्कच के ऊपर छोड़ा। वह बाण उसकी छाती छेदकर पृथ्वी में घुस गया और घतोत्कच मूर्छित होकर रथ की बैठक में गिर पड़ा। उसे बेहोश देखकर सारथि तुरंत रणभूमि से बाहर ले गया।

कौरव_सेना का संहार, सोमदत्त का वध, युधिष्ठिर का पराक्रम और दोनों सेनाओं में दीपक का प्रकाश


संजय कहते हैं___तदनन्तर पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर और भीमसेन ने अश्त्थामा को घेर लिया। इतने में राजा दुर्योधन द्रोणाचार्य के साथ पाण्डवों पर चढ़ आया, फिर उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। उस समय भीमसेन ने कुपित होकर अम्बष्ठ, मालवा, बंगाल, शिबि तथा त्रिगर्त देश के वीरों को यमलोक भेज दिया। फिर अभिषाह, शूरसेन तथा अन्यान्य रणोन्मत्त क्षत्रियों का वध करके उनके खून से पृथ्वी को भिगोकर कीचड़मयी कर दिया। दूसरी ओर अर्जुन ने भी मद्र, मालवा तथा पर्वतीय प्रदेश के योद्धाओं को अपने तीक्ष्ण बाणों से मौत के घाट उतारा; इधर द्रोणाचार्य भी क्रोध में भरकर वायव्यास्त्र से पाण्डव_योद्धाओं का संहार करने लगे। उनकी मार से पीड़ित होकर पांचालवीर अर्जुन और भीम के सामने ही भागने लगे। यह देख वे दोनों भाई सहसा द्रोण पर चढ़ आये। अर्जुन दक्षिण बगल में थे और भीमसेन उत्तर में। दोनों ही आचार्य द्रोण पर बड़ी भारी बाणवर्षा करने लगे। यह देखकर सृंजय, पांचाल, मत्स्य और सोमक क्षत्रिय उन दोनों की सहायता में आ पहुँचे।
इसी प्रकार आपके पुत्र के महारथी योद्धा भी बहुत बड़ी सेना के साथ द्रोणाचार्य के रथ के सामने आ गये। कौरवसेना पर पुनः अर्जुन की मार पड़ने लगी। एक तो अंधेरे के कारण कुछ सूझता नहीं था, दूसरे नींद से सब लोग व्याकुल थे; इस कारण आपकी सेना का भयंकर संहार हो रहा था। बहुतसे राजालोग अपने वाहनों को वहीं छोड़ चारों ओर भाग गये। दूसरी ओर जब सात्यकि ने देखा कि सोमदत्त अपना महान् धनुष टंकार रहे हैं तो उसने सारथि से कहा___’ सूत ! मुझे सोमदत्त के पास ले चल। अपने बलवान् शत्रु सोमदत्त को मारे बिना अब मैं युद्ध से नहीं लौटूँगा।‘ यह सुनकर सारथि ने घोड़े बढ़ाये और सात्यकि को सोमदत्त के पास पहुँचा दिया। उसे आते देख सोमदत्त भी उसका सामना करने को आगे बढ़े। उन्होंने सात्यकि की छाती में साठ बाण मारकर उसे घायल कर दिया; फिर सात्यकि ने भी तीक्ष्ण सायकों से सोमदत्त को बींध डाला। दोनों ही दोनों के बाणों से क्षत_विक्षत  एवं लोहूलुहान हो खिले हुए टेसू के वृक्ष के समान शोभा पाने लगे। इतने में ही महारथी सोमदत्त ने अर्धचन्द्राकार बाण मारकर सात्यकि के महान् धनुष को काट दिया। फिर उसे पच्चीस बाणों से घायल करके शीघ्रतापूर्वक दस बाण और मारे। तबतक सात्यकि ने दूसरा धनुष लेकर तुरंत ही सोमदत्त को पाँच बाणों से बिंध डाला। फिर उसने मुस्कराते हुए एक भल्ल मारकर उसकी सोने की ध्वजा काट दी। तब सोमदत्त ने पुनः सात्यकि को पच्चीस बाण मारे। इससे सात्यकि कुपित हो उठा और उसने एक तीखे क्षुरप्र से सोमदत्त का धनुष काट डाला। महारथी सोमदत्त ने भी दूसरा धनुष लेकर सायकों की वर्षा से सात्यकि को आच्छादित कर दिया। तब सात्यकि की ओर से भीमसेन ने भी सोमदत्त पर दस बाणों का प्रहार किया और सोमदत्त ने भी भीम को तीखे बाणों से घायल किया। इसके बाद भीमसेन ने सोमदत्त की छाती में एक परिघ का वार किया, किन्तु सोमदत्त ने हँसते हुए उसके दो टुकड़े कर डाले। तदनन्तर सात्यकि ने चार बाण मारकर उनके चारों,घोड़ों को प्रेतराज के समीप भेज दिया। फिर एक भल्ल से सारथि का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके पश्चात् सात्यकि ने प्रज्वलित अग्नि के समान एक भयंकर बाण छोडा; वह सोमदत्त की छाती में धँस गया और वे रथ से गिरकर मर गये।
सोमदत्त को मारा गया देख कौरव महारथी बाणों की बौछार करते हुए सात्यकि पर टूट पड़े। यह देखकर राजा युधिष्ठिर अन्य पाण्डव वीरों के  साथ बहुत बड़ी सेना लिये द्रोणाचार्य के सैन्य की ओर बढ़ने आये। उन्होंने आचार्य के देखते_देखते सायकों की मार से आपकी सेना को भगा दिया। यह देख आचार्य क्रोध से लाल आँखें किये युधिष्ठिर पर टूट पड़े और उनकी छाती पर उन्होंने सात बाण मारे।  तब युधिष्ठिर ने भी पाँच बाणों से द्रोणाचार्य को बिंध डाला। उसके बाद आचार्य ने युधिष्ठिर की ध्वजा और धनुष को काट दिया।
युधिष्ठिर ने दूसरा धनुष हाथ में लिया और घोड़े, सारथि, ध्वजा एवं रथसहित आचार्य द्रोण पर लगातार एक हजार बाणों की वर्षा की। यह एक अद्भुत बात हुई। उनके बाणों के आघात से पीड़ित एवं व्यथित होकर आचार्य दो घड़ी तक रथ की बैठक में मूर्छित भाव से पड़े रहे; फिर जब होश हुआ तो बड़े क्रोध में आकर युधिष्ठिर पर वायव्यास्त्र का प्रयोग किया। किन्तु युधिष्ठिर इससे तनिक भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने अपने अस्त्र से आचार्य के अस्त्र को शान्त कर दिया और उनके धनुष को भी काट डाला। द्रोण ने दूसरा धनुष उठाया, किन्तु युधिष्ठिर ने एक तीक्ष्ण भल्ल मारकर उसे भी काट दिया। इस बीच में भगवान् श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर ये कहा___’महाबाहो ! मैं आपसे जो कुछ कहता हूँ, उसे सुनिये। द्रोणाचार्य से युद्ध न कीजिये। मैं आपसे जो कुछ कहता हूँ, उसे सुनिये। द्रोणाचार्य से युद्ध न कीजिये। वे युद्ध में सदा आपको पकड़ने का उद्योग करते हैं, अतः उनके साथ युद्ध होना मैं उचित नहीं समझता। जो इनका नाश करने के लिये ही उत्पन्न हुआ है, वह धृष्टधुम्न ही इनका वध करेगा। आप गुरु से युद्ध करना छोड़ जहाँ राजा दुर्योधन है, वहाँ जाइये। राजा को राजा के साथ ही लड़ाई करनी चाहिये। अतः आप हाथी, घोड़े और रथ की सेना लेकर वहाँ जाइये, जहाँ मेरी सहायता से भीमसेन और अर्जुन कौरवों से युद्ध कर रहे हैं।‘ भगवान् की बात सुनकर धर्मराज ने थोड़ी देर तक मन_ही_मन विचार किया; फिर तुरंत ही जहाँ भीमसेन थे, उधर को चल दिये। इधर द्रोण भी उस रात में पाण्डवों और पांचालों की सेना का संहार करने लगे।
धृतराष्ट्र ने पूछा___ संजय ! पाण्डवों ने जब हमारी सेना का मन्थन कर डाला, सभी सैनिकों के तेज क्षीण कर दिये और सब लोग उस घोर अन्धकार में डूब रहे थे, उस समय तुमलोगों ने क्या सोचा ? दोनों सेनाओं को प्रकाश कैसे मिला ? संजय ने कहा___ महाराज ! दुर्योधन ने सेनापति को आज्ञा देकर जो सेना मरने से बच गयी थी, उसे व्यूहाकार में खड़ी करवाया। उसमें सबसे आगे थे द्रोण और पीछे थे शल्य, अश्त्थामा, कृतवर्मा तथा शकुनि और स्वयं राजा दुर्योधन चारों ओर घूमकर उस रात्रि में सेना की रक्षा कर रहा था। उसने पैदल सैनिकों को आज्ञा दी कि ‘तुमलोग हथियार रख दो और अपने हाथों में जलती हुई मशालें उठा लो।‘  सैनिकों ने प्रसन्नतापूर्वक इस आज्ञा का पालन किया। कौरवों ने प्रत्येक रथ के पास पाँच, हर एक हाथी के पास तीन और एक_एक घोड़े के पास एक_एक प्रदीप रखा। पैदल सिपाही हाथ में तेल और मशाल लेकर दीपकों को जलाया करते थे। इस प्रकार क्षणभर में ही आपकी सेना में उजाला हो गया। हमारी सेना को इस प्रकार दीपकों के प्रकाश से जगमगाते देख पाण्डवों ने भी अपने पैदल सैनिकों को प्रकाश से जगमगाते देख पाण्डवों ने भी अपने पैदल सैनिकों को तुरंत ही दीप जलाने की आज्ञा दी। उन्होंने प्रत्येक रथ के आगे दस_दस और प्रत्येक हाथी के सामने सात_सात दीपकों का प्रबंध किया। दो दीपक घोड़ों की पीठ पर, दो बगल में, एक रथ की ध्वजा पर और दो रथ के पिछले भाग में जलाये गये थे। इसी प्रकार संपूर्ण सेना के आगे पीछे और अगल_बगल में तथा बीच_ बीच में पैदल सैनिक जलती हुई मशालें हाथ में लेकर घूमते रहते थे। यह प्रबंध दोनों ही सेनाओं में था। दोनों ओर के दीपकों का प्रकाश पृथ्वी, आकाश और संपूर्ण दिशाओं में फैल गया। स्वर्ग तक फैले हुए उस महान् आलोक से युद्ध की सूचना पाकर देवता, गन्धर्व, यक्ष, सिद्ध और अप्सराएँ भी वहाँ आ पहुँचीं। इधर युद्ध में मरे हुए वीर सीधे स्वर्ग की ओर चढ़ रहे थे। इस प्रकार स्वर्गवासियों के आने_जाने से वह रणभूमि देवलोक के समान जान पड़ती थी।