Saturday 23 March 2019

महाराज युधिष्ठिर का घबराकर भीमसेन को अर्जुन के पास भेजना तथा भीम का अनेकों धृतराष्ट्रपुत्रों को मारकर अर्जुन के पास पहुँचना

संजय ने कहा___राजन् ! जब आचार्य पाण्डवों के व्यूह को इस प्रकार जहाँ_तहाँ से रौंदने लगे तो पांचाल, सोमक और पाण्डववीर वहाँ से दूर भाग गये। अब धर्मराज युधिष्ठिर को अपना कोई सहायक दिखायी नहीं देता था। उन्होंने अर्जुन को देखने के लिये सब ओर निगाह दौड़ायी, किन्तु उन्हें न तो अर्जुन दिखायी दिये और न सात्यकि ही। इस प्रकार बहुत देखने पर भी जब उन्हें नरश्रेष्ठ अर्जुन दिखायी न दिये और न उनके गाण्डीव धनुष की टंकार ही सुनायी पड़ी तो उनकी इन्द्रियाँ एकदम व्याकुल हो उठीं। वे एकदम शोक में डूब गये और भीमसेन को बुलाकर उनसे कहने लगे, ‘भैया भीम ! जिसने रथ पर चढ़कर अकेले ही देवता, गन्धर्व और असुरों को परास्त कर दिया था, आज तुम्हारे उस छोटे भाई अर्जुन का मुझे कोई चिह्न दिखायी नहीं दे रहा है।‘ धर्मराज को इस प्रकार घबराते देखकर भीमसेन ने कहा___’राजन् ! आपकी ऐसी घबराहट तो मैंने पहले कभी न देखी है और न सुनी ही है। पहले जब कभी हमलोग दुःख से अधीर हो उठते थे, तो आप ही हमें दिलासा दिया करते थे। महाराज ! इस संसार में ऐसा कोई काम नहीं है, जिसे मैं न कर सकूँ अथवा असाध्य मानकर छोड़ दूँ। आप मुझे आज्ञा दीजिये और मन में किसी प्रकार की चिंता न कीजिये।‘ तब युधिष्ठिर ने नेत्रों में जल भरकर दीर्घ निःश्वास लेकर कहा, ‘भैया ! देखो, श्रीकृष्ण द्वारा रोषपूर्ण बजाये जाते हुए पांचजन्य शंख का शब्द सुनायी दे रहा है। इससे मुझे निश्चय होता है कि तुम्हारा भाई अर्जुन आज मृत्युशय्या पर पड़ा हुआ है और उसके मारे जाने पर श्रीकृष्ण संग्राम कर रहे हैं। यही मेरे शोक का कारण है। अर्जुन और सात्यकि की चिन्ता मेरी शोकाग्नि को बार_बार भड़का देती है। देखो, उसका मुझे कोई भी चिह्न नहीं दीख रहा है। इससे यही अनुमान होता है कि उन दोनों के मारे जाने पर ही श्रीकृष्ण युद्ध कर रहे हैं। भैया, मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ। यदि तुम मेरा कहा मानो तो जिधर अर्जुन और सात्यकि गये हैं, उधर ही तुम भी जाओ। तुम सात्यकि का ध्यान अर्जुन से भी बढ़कर रखना। वह मेरा प्रिय करने के लिये दुर्गम और भयंकर सेना को लाँघकर अर्जुन की ओर गया है। कच्चे_पक्के योद्धा तो इस विशाल वाहिनी के पास भी नहीं फटक सकते। यदि तुम्हें श्रीकृष्ण, अर्जुन और सात्यकि सकुशल मिल जायँ तो सिंहनाद करके मुझे सूचित कर देना।‘ भीमसेन ने कहा, ‘महाराज ! जिस रथ पर पहले ब्रह्मा, महादेव, इन्द्र और वरुण सवारी कर चुके हैं, उसी पर बैठकर श्रीकृष्ण और अर्जुन गये हैं। इसलिये यद्यपि उनके विषय में कोई खटके की बात नहीं है तो भी मैं आपकी आज्ञा शिरोधार्य करके जा रहा हूँ। आप किसी प्रकार की चिंता न करें। मैं उन पुरुषसिंह से मिलकर आपको सूचना दूँगा।‘ धर्मराज से ऐसा कहकर वहाँ से चलते समय महाबली भीमसेन ने धृष्टधुम्न से कहा, ‘महाबाहो ! महारथी द्रोण जिस प्रकार सारी युक्तियाँ लगाकर महाराज को पकड़ने पर तुले हुए हैं, वह तुम्हें मालूम ही है। इसलिये मेरे लिये जितना आवश्यक यहाँ रहकर महाराज की रक्षा करना है, उतना अर्जुन के पास जाना नहीं है। यही बात अर्जुन ने भी मुझसे कही थी। किन्तु अब मैं महाराज की आज्ञा के सामने कुछ नहीं कह सकता। जहाँ मरणासन्न जयद्रथ है, वहीं मुझे जाना होगा। धर्मराज की आज्ञा मुझे बिना किसी प्रकार की आपत्ति किये माननी होगी। मैं भी अर्जुन और सात्यकि जिस रास्ते से गये हैं; उसी से जाऊँगा। सो अब तुम खूब सावधान रहकर धर्मराज की रक्षा करना।‘ तब धृष्टधुम्न ने भीमसेन से कहा, ‘पार्थ ! आप निश्चिन्त होकर जाइये। मैं आपके इच्छानुसार ही सब काम करूँगा। द्रोणाचार्य संग्राम में धृष्टधुम्न का वध किये बिना किसी प्रकार धर्मराज को कैद नहीं कर सकेंगे।‘ यह सुनकर महाबली भीमसेन अपने बड़े भाई को प्रणाम कर और उन्हें धृष्टधुम्न की देखरेख में छोड़कर अर्जुन की ओर चल दिये। चलती बार राजा युधिष्ठिर ने उन्हें हृदय से लगाया और उनका सिर सूँघा। भीमसेन के चलते समय फिर पांचजन्य की घोर ध्वनि हुई। त्रिलोकी को भयभीत करनेवाले उस भयंकर शब्द को सुनकर धर्मराज ने फिर कहा, ‘देखो ! श्रीकृष्ण का बजाया हुआ यह शंख पृथ्वी और आकाश को गुँजा रहा है। निश्चय ही अर्जुन पर भारी संकट पड़ने पर श्रीकृष्णचन्द्र कौरवों के साथ युद्ध कर रहे हैं। इसलिये भैया भीम ! तुम जल्दी ही अर्जुन के पास जाओ।‘ अब भीमसेन शत्रुओं पर अपनी भयंकरता प्रकट करते हुए चल दिये। वे अपने धनुष की डोरी खींचकर बाणों की वर्षा करते हुए कौरवसेना के अग्रभाग को कुचलने लगे। उनके पीछे_पीछे दूसरे पांचाल और सोमकवीर भी बढ़ने लगे। तब उनके सामने दुःशल, चित्रसेन, कुण्डभेदी, विविंशति, दुर्मुख, दुःसह, विकर्ण, शल, विन्द, अनुविन्द, सुमुख, दीर्घबाहु, सुदर्शन, वृन्दारक, सुहस्त, सुषेण, दीर्घलोचन, अभय, रौद्रकर्मा, सुवर्मा और दुर्विमोचन आदि आपके पुत्र अनेकों सैनिक और पदातियों को लेकर आये और उन्हें चारों ओर से घेरने लगे। किन्तु भीमसेन उन्हें बड़ी तेजी से पीछे छोड़कर द्रोण की सेना पर टूट पड़े तथा उसके आगे जो गजसेना थी, उस पर बाणों की झड़ी लगा दी। पवनकुमार भीम ने बात_की_बात  में उस सारी सेना को नष्ट कर डाला। जिस प्रकार वन में शरभ के गरजने पर मृग घबराकर भागने लगते हैं, उसी प्रकार वे सब हाथी भयंकर चिग्घार करते हुए इधर_उधर भागने लगे।
इसके बाद उन्होंने फिर बड़े जोर से द्रोणाचार्य की सेना पर धावा किया। आचार्य ने उन्हें आगे बढ़ने से रोका तथा मुस्कराते हुए एक बाण द्वारा उनके ललाट पर चोट की। फिर वे बोले, ‘भीमसेन ! मुझे जीते बिना अपनी शक्ति द्वारा तुम शत्रु की सेना में प्रवेश नहीं कर सकोगे।‘ गुरु की यह बात सुनकर भीमसेन की आँखें क्रोध से लाल हो गयीं और उन्होंने निर्भय होकर कहा, ‘ब्रह्मबन्धो ! अर्जुन ने आपकी अनुमति से रणांगण में प्रवेश किया हो___ ऐसी बात नहीं है; वह तो ऐसा दुर्धर्ष है कि इन्द्र की सेना में भी घुस सकता है। वह आपका बड़ा आदर करता है, ऐसा करके उसने आपका मान बढ़ाया है। मैं दयालु अर्जुन नहीं हूँ, मैं तो आपका शत्रु भीम हूँ।‘ ऐसा कहकर भीमसेन ने अपनी कालदण्ड के समान भयंकर गदा उठायी और उसे घुमाकर द्रोणाचार्य पर फेंका। द्रोण तुरंत ही अपने रथ से कूद पड़े और उस गदा ने घोड़े, सारथि और ध्वजा के सहित उस रथ को चूर_चूर कर डाला तथा और भी कई वीरों का काम तमाम कर दिया। अब आचार्य दूसरे रथ पर चढ़कर व्यूह के द्वार पर आ गये और युद्ध के लिये तैयार होकर खड़े हो गये। महापराक्रमी भीमसेन क्रोध में भरकर अपने सामने खड़ी हुई रथसेना पर बाणों की वर्षा करने लगे। इस सेना में जो आपके महारथी पुत्र थे, वे भीमसेन के बाणों से नष्ट होते हुए भी उनपर विजय प्राप्त करने की लालसा से बराबर युद्ध करते रहे। अब दुःशासन ने क्रोध में भरकर भीमसेन का काम तमाम कर देने के विचार से उनपर एक अत्यन्त तीक्ष्ण लोहमयी रथशक्ति फेंकी। किन्तु भीमसेन ने बीच में ही उस महाशक्ति के दो टुकड़े कर दिये। फिर उन्होंने तीन तीखे बाणों से कुण्डभेदी, सुषेण और दीर्घलोचन___ इन तीनों भाइयों को मार डाला। आपके वीर पुत्र इसपर भी लड़ते ही रहे। इतने में ही उन्होंने महाबली वृन्दारक तथा अभय, क्रूरकर्मा और दुर्विमोचन का भी काम तमाम कर दिया। तब आपके पुत्रों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया और उन पर बाणों की झड़ी लगा दी। भीमसेन ने हँसते_हँसते आपके पुत्र विन्द, अनुविन्द और सुवर्मा को यमराज के घर भेज दिया। फिर उन्होंने आपके शूरवीर पुत्र सुदर्शन को घायल किया। वह पृथ्वी पर गिर पड़ा और मर गया। इस प्रकार भीमसेन ने सब ओर ताक_ताककर थोड़ी ही देर में अपने तेज बाणों से उस रथसेना को नष्ट कर डाला। फिर तो सिंह की दहाड़ सुनकर जैसे मृग भागने लगते हैं, उसी प्रकार उनके रथ की घरघराहट सुनकर आपके पुत्र सब ओर भागने लगे। भीमसेन ने आपके पुत्रों की भागती हुई सेना का भी पीछा किया और वे सब ओर कौरवों का संहार करने लगे। इस प्रकार बहुत मार पड़ने पर वे भीमसेन को छोड़कर अपने घोड़ों को दौड़ाते हुए रणभूमि से भाग गये महाबली भीम संग्राम में उन सबको परास्त करके बड़े जोर से गरजने लगे। अब वे रथसेना को लाँघकर आगे बढ़े। यह देखकर द्रोणाचार्य ने उन्हें रोकने के लिये बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी तथा आपके पुत्रों की प्रेरणा से कई धनुर्धर राजाओं ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। तब भीमसेन ने सिंह के समान गर्जना करते हुए एक भयंकर गदा उठाकर बड़े वेग से उनपर फेंकी। उसने आपके कई सैनिकों का काम तमाम कर दिया। भीमसेन ने गदा से ही आपके अन्य सैनिकों पर भी प्रहार किया। इससे वे भयभीत होकर इस प्रकार भागने लगे, जैसे सिंह की गंध पाकर मृग भाग जाते हैं। जब महारथी भीमसेन इस प्रकार कौरवों का संहार करने लगे तो द्रोणाचार्य सबके सामने आये। उन्होंने अपने बाणों की बौछारों से भीमसेन को आगे बढ़ने से रोक दिया। अब इन दोनों वीरों का बड़ा घोर युद्ध होने लगा। भीमसेन अपने रथ से कूदकर द्रोण के बाणों की मार सहते हुए उनके रथ के पास पहुँच गये और उसका जुआ पकड़कर उसे दूर फेंक दिया। द्रोण एक दूसरे रथ पर चढ़कर फिर व्यूह के द्वार पर आ गये। अपने निरुत्साहित गुरु को इस प्रकार फिर अपने सामने आया देख भीमसेन फिर बड़े वेग से उनके पास गये और धुरे को पकड़कर उस रथ को भी दूर पटक दिया। इसी तरह भीमसेन ने अनायास ही द्रोणाचार्य के आठ रथ फेंक_फेंककर नष्ट कर दिये। आपके योद्धा यह सब कौतुक बड़े विस्मयभरे नेत्रों से देखते रहे। अब, आँधी जैसे वृक्षों को नष्ट कर देती है, उसी प्रकार संग्राम में क्षत्रियों का नाश करते हुए भीमसेन आगे बढ़े। कुछ दूर जाने पर उन्हें कृतवर्मा से सुरक्षित भोजसेना मिली, किन्तु वे उसे भी तरह_तरह से नष्ट_भ्रष्ट करके आगे बढ़ गये। फिर कम्बोजसेना तथा अनेकों और युद्धकुशल म्लेच्छों को पार करने पर उन्हें युद्ध करता हुआ सात्यकि दिखायी दिया। तब तो वे अर्जुन को देखने की इच्छा से अपने रथ द्वारा बड़ी सावधानी से तेजी के साथ आगे बढ़ने लगे। आपके अनेकों योद्धाओं को लाँघकर वे ज्योंही कुछ आगे गये कि उन्होंने जयद्रथ का वध करने के लिये अर्जुन को युद्ध करते देखा। यह देखकर वे वर्षाकालीन मेघ के समान बड़े जोर से दहाड़ने लगे। भीमसेन का यह सिंहनाद श्रीकृष्ण और अर्जुन के कानों में भी पड़ा। तब वे दोनों उन्हें देखने के लिये गर्जना करते हुए उनसे आ मिले। महाराज ! इधर भीमसेन और अर्जुन का सिंहनाद सुनकर धर्मपुत्र युधिष्ठिर को बड़ी प्रसन्नता हुई। उनका सारा शोक दूर हो गया और उन्हें अर्जुन की विजय की भी पूरी आशा हो गयी। भीमसेन के सिंहनाद करने पर वे मुस्कराकर मन_ही_मन कहने लगे, ‘भीम ! तुमने खूब सूचना दी, तुमने अपने बड़े भाई का कहना करके दिखा दिया। भैया ! जिनसे तुम द्वेष करते हो, संग्राम में उनकी विजय कभी नहीं हो सकती। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे श्रीकृष्ण और अर्जुन के सिंहनाद का शब्द भी सुनायी दे रहा है। अहो ! जिसने इन्द्र को जीतकर खाण्डव में  अग्नि को तृप्त किया, एक ही धनुष से निवातकवचों को जीत लिया, विराटनगर में गोहरण के लिये मिलकर आये हुए सब कौरवों को परास्त किया और दुर्योधन को छुड़ाने के लिये गन्धर्वराज चित्ररथ को नीचा दिखाया तथा श्रीकृष्ण जिसके सारथि हैं और जो मुझे सदा ही परम प्रिय है, वह अर्जुन अभी जीवित है___यह कैसे आनन्द की बात है ! क्या श्रीकृष्ण की रक्षा में सूर्यास्त से पहले ही अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करके लौटे हुए अर्जुन से मेरी भेंट हो सकेगी ? अर्जुन के हाथ से जयद्रथ को और भीम के हाथ से अपने भाइयों को मरा हुआ देखकर क्या मन्दबुद्धि दुर्योधन बचे_खुचे वीरों की रक्षा के लिये हमसे वैर छोड़कर संधि करना चाहेगा ?’ इस प्रकार एक ओर तो महाराज युधिष्ठिर करुणार्द्र होकर तरह_तरह की उधेरबुन में लगे हुए थे और दूसरी ओर तुमुल संग्राम हो रहा था।

Thursday 14 March 2019

द्रोणाचार्य द्वारा बृहच्क्षत्र, धृष्टकेतू और क्षेत्रधर्मा का वध तथा चेकितान आदि अनेकों वीरों की पराजय

संजय ने कहा___राजन् ! इधर दोपहर के बाद आचार्य द्रोण का सोमकों के साथ फिर घोर संग्राम होने लगा। उस समय जो योद्धा गरज रहे थे, उनका मेघ के समान गंभीर शब्द हो रहा था। पुरुषसिंह द्रोण ने अपने लाल रंग के घोड़ेवाले रथ पर चढ़कर मध्यम गति से पाण्डवों पर धावा किया और अपने तीखे बाणों से मानो चुने चुने वीरों पर बाण बरसा रहे हों, इस प्रकार युद्ध में खेल_सा करने लगे। इतने ही में पाँच कैकेय राजकुमारों में से रण दुर्मद महारथी बृहच्क्षत्र उनके सामने आया और पैने_पैने बाणों की वर्षा करके उन्हें पीड़ित करने लगा। द्रोण ने कुपित होकर उस पर पंद्रह बाण छोड़े; किन्तु उसने उन्हें अपने पाँच बाणों से ही काट डाला। उसकी ऐसी फुर्ती देखकर आचार्य हँसे और फिर उस पर आठ बाणों से वार किया। यह देखकर बृहच्क्षत्र ने उन्हें उतने ही पैने बाण छोड़कर नष्ट कर दिया। बृहच्क्षत्र का ऐसा दुष्कर कर्म देखकर आपकी सेना को बड़ा आश्चर्य हुआ
अब द्रोण ने अत्यन्त दुर्जय ब्रह्मास्त्र प्रकट किया। उसे केकयराजकुमार ने ब्रह्मास्त्र से ही नष्ट कर दिया तथा आचार्य पर साठ बाणों से चोट की। इसपर विप्रवर द्रोण ने उस पर एक नाराच छोड़ा। वह उसके कवच को फोड़कर पृथ्वी में घुस गया। इससे बृहच्क्षत्र का क्रोध बहुत बढ़ गया तथा उसने सत्तर बाणों से द्रोण को और एक से उनके सारथि को घायल कर डाला। तब आचार्य ने अपनी बाणवर्षा से महारथी बृहच्क्षत्र का नाक में दम कर दिया और उसके चारों घोड़ों का भी काम तमाम कर डाला। फिर एक बाण से सूत को और दो से ध्वजा एवं छत्र को काटकर रथ से नीचे गिरा दिया। इसके बाद एक बाण बृहच्क्षत्र की छाती में मारा। इससे उसकी छाती फट गयी और वह पृथ्वी पर जा गिरा। इस प्रकार केकयमहारथी बृहच्क्षत्र के मारे जाने पर शिशुपाल का पुत्र महाबली धृष्टकेतु द्रोणाचार्य के ऊपर टूट पड़ा। उसने आचार्य तथा उनके रथ, ध्वजा और घोड़ों पर साठ बाणों से वार किया। तब द्रोणनेे एक क्षुरप्र बाण से उसका धनुष काट डाला। वह महारथी दूसरा धनुष लेकर उन्हें बाणों से बींधने लगा। द्रोणनेे चार बाणों से उसके चारों घोड़ों को मार डाला और फिर हँसते_हँसते उसके सारथि का सिर धर से अलग कर दिया। इसके बाद पच्चीस बाण धृष्टकेतू पर छोड़े। तब उसने रथ से कूदकर आचार्य पर एक गदा छोड़ी। उसे आते देख उन्होंने हजारों बाणों से उसके टुकड़े_टुकड़े कर डाले। इससे खीझकर धृष्टकेतु ने द्रोण पर एक तोमर और शक्ति से वार किया। आचार्य ने पाँच_पाँच बाणों से उन दोनों को नष्ट कर दिया। फिर उन्होंने उसका वध करने के लिये एक तेज बाण छोड़ा। वह उसके कवच और हृदय को फाड़कर पृथ्वी में घुस गया। इस प्रकार चेदिराज के मारे जाने पर उसके अस्त्रविद्याविशारद पुत्र को बड़ा रोष हुआ और वह उसके स्थान पर आकर डट गया। किन्तु द्रोण ने हँसते_हँसते उसे भी यमराज के हवाले कर दिया। अब जरासन्ध का महाबली पुत्र उसके सामने आया। उसने अपने बाणों की बौछार से रणांगण में द्रोण को अदृश्य कर दिया। उसकी ऐसी फुर्ती देखकर आचार्य ने भी सैकड़ों-हजारों बाण बरसाने आरम्भ किये। इस प्रकार उस महारथी को रथ में ही बाणों से आच्छादित कर उन्होंने समस्त धनुर्धरों के सामने मार डाला। अब पांचाल, चेदि, सृंजय, काशी और कोसल___इन सभी देशों के महारथी बड़े उत्साह से युद्ध करने के लिये द्रोण के ऊपर टूट पड़े। उन्होंने आचार्य को यमराज के पास भेजने के लिये अपनी सारी शक्ति लगा दी। परंतु आचार्य ने अपने तीखे बाणों से उन्हीं को यमराज के हवाले कर दिया। द्रोण के ऐसे कर्म देखकर महाबली क्षेत्रधर्मा उनके सामने आया और एक अर्धचन्द्र बाण से उनका धनुष काट डाला। तब आचार्य ने एक दूसरा धनुष लेकर उस पर एक तीखा बाण चढ़ा उसे कान तक खींचकर छोड़ा। उससे क्षेत्रधर्मा का हृदय फट गया और वह अपने रथ से पृथ्वी पर जा पड़ा। इस प्रकार उस धृष्टधुम्नकुमार के मारे जाने पर सब सेनाएँ काँप उठीं। अब आचार्य पर महाबली चेकितान ने आक्रमण किया। उसने द्रोण को दस बाणों से घायल करके उनकी छाती पर चोट की तथा चार बाणों से उनके सारथि को और चार से चारों घोड़ों को बींध डाला। तब आचार्य ने तीन बाणों से उसकी छाती और भुजाओं पर वार किया। फिर सात बाणों से ध्वजा काटकर तीन से सारथि को मार डाला। सारथि के मारे जाने से घोड़े रथ को लेकर भाग गये। इस प्रकार चेकितान के रथ को सारथिहीन देखकर द्रोण वहाँ एकत्रित हुए चेदि, पांचाल और सृंजयवीरों को तितर_बितर करने लगे। इस समय वे बड़े ही शोभायमान जान पड़ते थे। उनके केश कानों तक पक चुके थे और आयु पचासी वर्ष के लगभग हो चुकी थी। इतने वयोवृद्ध होने पर भी ये संग्रामभूमि में सोलह वर्ष के बालक के समान विचर रहे थे।

Wednesday 6 March 2019

आचार्य के द्वारा दुःशासन का तिरस्कार, वीरकेतु आदि पांचालकुमारों का वध तथा उनका धृष्टधुम्न आदि पांचालों के एवं सात्यकि का दुःशासन और त्रिगर्तों के साथ घोर संग्राम

संजय ने कहा___राजन् ! जब आचार्य ने दुःशासन के रथ को अपने पास खड़ा देखा तो वे उससे कहने लगे, ‘दुःशासन ! ये सब रथी क्यों भाग रहे हैं ? राजा दुर्योधन तो कुशल से हैं ? तथा जयद्रथ अभी जीवित है न ? तुम तो राजकुमार हो, स्वयं राजा के भाई हो और तुम्हीं को युवराज पद प्राप्त हुआ है। फिर तुम युद्ध से कैसे भाग रहे हो ? तुमने तो पहले द्रौपदी से कहा था कि ‘तू हमारी जूए में जीती हुई दासी है। अब तू स्वेच्छाचारिणी होकर हमारे ज्येष्ठ भ्राता महाराज दुर्योधन के वस्त्र लाकर दिया कर। अब तेरा कोई पति नहीं है, ये सब तो तैलहीन तिल के समान सारहीन हो गये हैं।‘ ऐसी_ऐसी बातें बनाकर अब तुम युद्ध में पीठ क्यों दिखा रहे हो ? तुमने पांचाल और पाण्डवों के साथ स्वयं ही वैर बाँधा, फिर आज एक सात्यकि के सामने आकर ही तुम कैसे डर गये ? पहले कपटद्यूत में पासे पकड़ते समय तुमने यह नहीं समझा था कि एक दिन ये पासे ही कराल बाण हो जायँगे ?
शत्रुदमन ! तुम सेना के नायक और अवलम्ब हो; यदि तुम ही डरकर भागने लगोगे तो संग्रामभूमि में और कौन ठहरेगा।  आज यदि अकेले ही जूझते हुए सात्यकि के सामने से तुम भागना चाहते हो तो बाद में अर्जुन, भीम या नकुल_सहदेव को देखने पर क्या करोगे ? हो तो तुम बड़े मर्द !  जाओ, झटपट गांधारी के पेट में घुस जाओ। पृथ्वी पर भागकर जाने से तो कहीं भी तुम्हारे जीवन की रक्षा नहीं हो सकेगी। यदि तुम्हें भागना ही सूझता है, तो शान्ति के साथ ही राजा युधिष्ठिर को पृथ्वी सौंप दो। भीष्मजी ने तो पहले ही तुम्हारे भाई दुर्योधन से कहा था कि ‘पाण्डवलोग संग्राम में अजेय हैं, तुम उनके साथ संधि कर लो।‘  मगर उस मंदमति ने उनकी बात नहीं मानी। मैंने तो सुना है, भीमसेन तुम्हारा भी खून पियेगा। यह विचार पक्का ही होगा और ऐसा ही होकर रहेगा। क्या तुम भीमसेन का पराक्रम नहीं जानते, जो तुमने पाण्डवों से वैर बाँध लिया और आज मैदान छोड़कर भागने लगे ? अब जहाँ सात्यकि है, वहाँ शीघ्र ही अपना रथ ले जाओ; नहीं तो तुम्हारे बिना यह सारी सेना भाग जायगा। जाओ, संग्राम में वीर सात्यकि से भिड़ जाओ।‘ आचार्य के इस प्रकार कहने पर दुःशासन ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। वह सब बातों को सुनी_अनसुनी_सी करके युद्ध से पीठ न फेरनेवाले यवनों की भारी सेना लेकर सात्यकि की ओर चला गया और बड़ी सावधानी से उसके साथ संग्राम करने लगा। रथियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य भी क्रोध में भरकर मध्यम गति से पांचाल और पाण्डवों की सेना पर टूट पड़े और सैकड़ों_हजारों योद्धाओं को समरभूमि से भगाने लगे। उस समय आचार्य अपना नाम सुना_सुनाकर पाण्डव, पांचाल और मत्स्यवीरों का घोर संहार कर रहे थे। जिस समय वे सेनाओं को इस प्रकार परास्त कर रहे थे, उनके सामने परम तेजस्वी पांचालराजकुमार वीरकेतु आया। उसने पाँच तीखे बाणों से द्रोण को, एक से ध्वजा को और सात से उनके सारथि को बींध दिया। इस तरह यह बड़े आश्चर्य की बात हुई कि आचार्य उस वेगवान् पांचालराजकुमार को काबू में नहीं कर सके। संग्राम में द्रोण की गति रुकी देखकर महाराज युधिष्ठिर को विजय चाहनेवाले पांचालवीरों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। सब_के_सब मिलकर उन पर बाण, तोमर तथा तरह_तरह के अस्त्र_शस्त्रों की वर्षा करने लगे। तब आचार्य ने वीरकेतु के रथ की ओर एक बड़ा ही भयंकर बाण छोड़ा। वह उसे घायल करके पृथ्वी पर जा पड़ा और उसकी चोट से प्राणहीन होकर वह पांचालराजकुलतिक रथ से नीचे गिर गया।
उस महान् धनुर्धर राजकुमार के मारे जाने पर पांचालवीरों ने बड़ी फुर्ती से आचार्य को सब ओर से घेर लिया। चित्रकेतु, सुधन्वा, चित्रवर्मा और चित्ररथ____ ये सभी राजकुमार अपने भाई की मृत्यु से व्यथित होकर द्रोण के साथ संग्राम करने के लिये उनके सामने आ गये और वर्षाकालीन मेघों के समान बाणों की वर्षा करने लगे। इससे विप्रवर द्रोण अत्यंत क्रोध में भर गये और उन्होंने उन पर बाणों का जाल_सा फैला दिया। इससे वे सब राजकुमार घबराकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये। तब आचार्य ने हँसते_हँसते उनके घोड़े, सारथि और रथों को नष्ट कर दिया तथा अत्यंत तीखे भल्लों से उनके मस्तकों को भी काटकर गिरा दिया। इस प्रकार उन राजपुत्रों का वध करके आचार्य अपने धनुष को मण्डलाकार घुमाने लगे। यह देखकर धृष्टधुम्न को बड़ा उद्वेग हुआ। उसके नेत्रों से जल गिरने लगा और वह अत्यन्त कुपित होकर द्रोण के रथ पर टूट पड़ा। तब धृष्टधुम्न के बाणों से द्रोण की गति रुकी देखकर संग्रामभूमि में बड़ा हाहाकार होने लगा। उसने क्रोध से तिलमिलाकर आचार्य की छाती पर नब्बे बाणों की चोट की। इससे वे रथ की गद्दी पर बैठकर मूर्छित हो गये। धृष्टधुम्न ने धनुष रखकर एक तेज तलवार उठायी और अपने रथ से कूदकर फौरन ही आचार्य के रथ पर चढ़ गया। वह उनका सिर काटनेहीवाला था कि द्रोण की मूर्छा टूट गयी। जब उन्होंने देखा कि धृष्टधुम्न उनका काम तमाम करने के लिये निकट आ गया है, तो वे पास से ही चोट करनेवाले वितस्त नाम के बाण छोड़ने लगे। उन बाणों से धृष्टधुम्न का उत्साह भंग हो गया और वह तुरंत ही उनके रथ से कूदकर अपने रथ पर जा चढ़ा। अब वे दोनों ही एक_दूसरे को बाणों से बींधने लगे। दोनों ही ने संपूर्ण आकाश, दिशा और पृथ्वी को बाणों से छा दिया। उनके इस अद्भुत युद्ध की सभी प्राणी प्रशंसा करने लगे। अब द्रोण ने बड़ी फुर्ती से धृष्टधुम्न के सारथि के सिर को काटकर गिरा दिया। इससे उसके घोड़े रणभूमि से,भाग गये। तब आचार्य पांचाल और सृंजयवीरों के साथ युद्ध करने लगे तथा उन्हें परास्त करके फिर अपने व्यूह में आकर खड़े हो गये। इधर दुःशासन बरसते हुए बादल के समान बाणों की वर्षा करता सात्यकि के सामने आया। उसे आता देख सात्यकि उसकी ओर दौड़ा और उसे अपने बाणों से एकदम ढक दिया। जब दुःशासन और उसके साथी बाणों से बिलकुल ढक गये तो वे सब सैनिकों के सामने ही भयभीत होकर युद्धस्थल से भाग गये। दुःशासन को सैकड़ों बाणों से बिंधा देखकर राजा दुर्योधन ने त्रिगर्तवीरों को सात्यकि के रथ की ओर भेजा। उन तीन सहस्त्र रथी योद्धाओं ने युद्ध का पक्का निश्चय कर सात्यकि को चारों ओर से रथों की बाड़ से घेर दिया। किन्तु सात्यकि ने अपने बाणों की बौछार से उस सेना के पाँच सौ अग्रगामी योद्धाओं को बात_की_बात में धराशायी कर दिया। तब रहे_सहे वीर अपने प्राणों के भय से द्रोणाचार्यजी के रथ की ओर लौट गये। इस प्रकार त्रिगर्तवीरों का संहार करके वीर सात्यकि धीरे_धीरे अर्जुन के रथ की ओर बढ़ने लगा। इस समय आपके पुत्र दुःशासन ने इस पर फिर नौ बाणों से वार किया। तब सात्यकि ने उस पर पाँच बाण छोड़े और उसके धनुष को भी काट डाला। इस प्रकार सबको विस्मय में डालकर वह फिर अर्जुन के रथ की ओर बढ़ने लगा। इससे दुःशासन का क्रोध बहुत बढ़ गया और उसने सात्यकि का वध करने के विचार से उसपर एक लोहे की शक्ति छोड़ी। किन्तु सात्यकि ने अपने पैने बाणों से उसके सैकड़ों टुकड़े कर दिये। तब दुःशासन ने दूसरा धनुष लेकर उसे बाणों से बींध डाला और सिंह समान गर्जना की। इससे सात्यकि का क्रोध भड़क उठा और उसने दुःशासन की छाती को तीन बाणों से घायल कर एक भल्ल से उसके धनुष और दो से उसके रथ की ध्वजा तथा शक्ति को काट डाला। फिर कई तीखे बाण छोड़कर उसके दोनों पार्श्वरक्षकों को मार डाला। तब त्रिगर्त सेनापति उसे अपने रथ पर चढ़ाकर ले चला। सात्यकि ने कुछ देर तक उसका भी पीछा किया। किन्तु फिर उसे भीमसेन की प्रतिज्ञा याद आ गयी, इसलिये उसने दुःशासन की वध नहीं किया। राजन् ! भीमसेन ने आपकी सभा में ही आपके सब पुत्रों को मारने की प्रतिज्ञा की थी, इसलिये सात्यकि ने दुःशासन को मारा नहीं। वह उसे संग्रामभूमि में परास्त कर वेग से अर्जुन की ओर बढ़ने लगा।