Saturday 26 March 2022

कर्ण से पराजित और घायल होकर युधिष्ठिर का अपनी छावनी में विश्राम के लिये जाना

संजय कहते हैं_राजन् ! दूसरी ओर युधिष्ठिर को आते देख आपका पुत्र दुर्योधन क्रोध में भर गया। उसने अपनी आधी सेना साथ ले सहसा निकट जाकर सब ओर से घेर लिया और छिहत्तर क्षुरप्र मारकर उनको बींध डाला। कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर ने भी क्रोध में भरकर आपके पुत्र को तुरंत ही तीस भल्ल मारे। यह देख उन्हें पकड़ने के लिये कौरव_पक्ष के योद्धा टूट पड़े। उस समय शत्रुओं के खोटे विचार जानकर महारथी नकुल, सहदेव तथा  एक अक्षौहिणी सेना के युधिष्ठिर के पास आ धमके। वहां पहुंचते ही सहदेव ने बड़ी फुर्ती के साथ दुर्योधन को बीस बाण मारे। इतने में कर्ण युधिष्ठिर की सेना का संहार करने लगा। उसके बाणों से पीड़ित होकर वह सेना सहसा भाग खड़ी हुई। तब राजा युधिष्ठिर को बड़ा क्रोध हुआ। उन्होंने तेज किये हुए पचास बाणों से कर्ण को बींध डाला। तदनन्तर, उन दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। धर्मराज शानपर चढ़ाकर तेज किये हुए भांति भांति के बाणों, भल्लों, शक्ति, ऋष्टि तथा मुहरों से आपकी सेना का संहार करने लगे। उस समय आपके योद्धाओं में हाहाकार मच गया। धर्मात्मा युधिष्ठिर जहां_जहां दृष्टि डालते थे, वहां के सैनिकों का सफाया हो जाता था।
यह देख कर्ण अत्यन्त कुपित होकर युधिष्ठिर पर नारायण, अर्धचंद्र तथा वत्सदंत आदि का प्रहार करने लगा। युधिष्ठिर ने भी तेज किते हुए बाणों से कर्ण को घायल कर डाला। फिर कर्ण ने हंसते_हंसते तेज किये हुए बाणों तथा तीन भल्लों से युधिष्ठिर की छाती छेद डाली। इससे धर्मराज को बड़ी पीड़ा हुई। वे रथ के पिछले भाग में बैठ गये और सारथि को वहां से चल देने की आज्ञा दी। उन्हें जाते देख दुर्योधनसहित सभी कौरव ‘इसे पकड़ो_पकड़ो’ कहकर चिल्लाते हुए उनके पीछे दौड़ पड़े। इतने ही में पांचाल योद्धाओं के साथ सत्रह सौ कैकयवीरों ने आकर कौरवों को आगे बढ़ने से रोक दिया। उस समय राजा युधिष्ठिर बाणों के प्रहार से बहुत घायल हो गये थे। वे नकुल तथा सहदेव के बीच में होकर धीरे_धीरे छावनी की ओर जा रहे थे, उनका होश ठिकाने नहीं था। ऐसी अवस्था में भी कर्ण ने दुर्योधन के हित की इच्छा से युधिष्ठिर का पीछा किया और उन्हें तीन तीखे बाणों से बींध डाला। युधिष्ठिर ने भी कर्ण की छाती में बाण मारकर बदला चुकाया। इसके बाद तीन बाणों से उसके सारथि को और चार से चारों घोड़ों को बींध डाला। फिर नकुल और सहदेव ने भी बड़े प्रयास के साथ कर्ण पर बाणों की वर्षा की। इसी प्रकार सूतपुत्र कर्ण ने भी तीखी धारवाले दो बल्लों से नकुल और सहदेव को घायल कर दिया।
फिर युधिष्ठिर के घोड़ों को मारकर एक भल्ल से उसके मस्तक के टोप को नीचे गिरा दिया। इसी तरह नकुल के भी घोड़ों को मौत के घाट उतारकर उसके रथ की ईषा और धनुष को भी काट डाला। रथ टूट जाने पर वे दोनों पाण्डुकुमार अत्यन्त घायल होकर सहदेव के रथ पर जा बैठे।
उन दोनों को रथहीन देख उनके मामा मद्रराज शल्य को बड़ी दया आयी। उन्होंने सूतपुत्र से कहा_’कर्ण ! तुम्हें तो आज अर्जुन से युद्ध करना है, फिर अत्यन्त क्रोध में भरकर धर्मराज से किसलिये लड़ रहे हो ? इन्हें मारने से तुम्हारा क्या फायदा होगा ? इधर देखो, अर्जुन रथियों की सेना का संहार कर रहे हैं। अपने बाणों की वर्षा से हमारी संपूर्ण सेना को काल का ग्रास बना रहे हैं। उधर, भीमसेन दुर्योधन को दबोचे हुए हैं।
हम लोगों के देखते_देखते वे उसे मार न डालें_इसके लिखते प्रयत्न करना चाहिए।
 इन माद्रीपुत्रों अथवा युधिष्ठिर को मारने से क्या लाभ ? दुर्योधन का प्राण संकट में पड़ा है उसे चलकर बचाओ। कर्ण ने शल्य की बात सुनी और देखा कि दुर्योधन भीमसेन के चंगुल में फंस चुका है, तो युधिष्ठिर और नकुल सहदेव को वहां ही छोड़कर आपके पुत्र को बचाने के सब दौड़ पड़ा।
उसके चले जाने के बाद युधिष्ठिर सहदेव के तेज चलने वाले घोड़ों द्वारा वहां से खिसक गये। राजा को अपनी पराजय के कारण बड़ी लज्जा हो रही थी। नकुल और सहदेव के साथ अपने घायल शरीर से छावनी पर पहुंच कर वे रथ से उतरे और एक सुन्दर पलंग पर लेट गये। उस समय उनके देह से बाण निकाल डाले गये फिर भी हृदय के घाव से उन्हें बड़ी पीड़ा होने लगी। उस समय उनके देह से बाण निकाल डाले गये तो भी हृदय के घाव से उन्हें बड़ी पीड़ा होने लगी। उन्होंने दोनों भाई माद्री के पुत्रों से कहा_’भीमसेन मेघ के समान गरज_गरजकर लड़ रहे हैं, तुम दोनों सहायता के लिये उनकी ही सेना में जाओ।‘ उनकी आज्ञा पाकर नकुल दूसरे रथ पर सवार हुआ। सहदेव के पास तो रथ था ही नहीं। दोनों भाई अपने शीघ्र गामी घोड़े हांककर भीमसेन की सेना में जा पहुंचे।