Thursday 25 July 2019

आचार्य द्रोण का आक्रमण, घतोत्कच और अश्त्थामा का घोर युद्ध

संजय कहते हैं____ सात्यकि के प्रति राजा सोमदत्त का क्रोध बहुत बढ़ा हुआ था; इसका कारण यह था कि उसने उनके पुत्र भूरिश्रवा को, जबकि वह अनशन व्रत धारण करके बैठा हुआ था, मार डाला था। सोमदत्त ने नौ बाण मारकर सात्यकि को बींध डाला। फिर सात्यकि ने भी उन्हें नौ बाणों से घायल किया। सात्यकि बलवान् था और उसका धनुष भी खूब मजबूत था; अत: उसकी मार से सोमदत्त बेतरह घायल हो गये और रथ की बैठक में मूर्छित होकर गिर पड़े। यह देख उनका सारथि उन्हें रणभूमि से दूर हटा ले गया। तब सात्यकि का वध करने की इच्छा से आचार्य द्रोण उसकी ओर झपटे। उन्हें आते देख युधिष्ठिर आदि वीर सात्यकि की रक्षा के लिये उसे घेरकर खड़े हो गये। तदनन्तर द्रोण का पाण्डवों के साथ युद्ध आरम्भ हुआ। द्रोण ने पाण्डवसेना को बाणों से आच्छादित कर दिया। फिर सात्यकि को दस, धृष्टधुम्न को बीस, भीमसेन को नौ, नकुल को पाँच, सहदेव को आठ, द्रुपद को दस, युधामन्यु को नौ और उत्तमौजा को छ: बाण मारकर बींध दिया। इसके बाद अन्य योद्धाओं को भी घायल करके वे युधिष्ठिर की ओर बढ़े। उनके बाणों की चोट से आर्तनाद करते हुए पाण्डव_सैनिक सब दिशाओं में भागने लगे। जो_जो वीर आचार्य के सामने आ जाता, उसका मस्तक काटकर उनके बाण पृथ्वी में समा जाते थे। इस प्रकार द्रोण के बाणों से आहत हुई पाण्डवसेना अर्जुन के देखते_ देखते भयभीत होकर भाग चली। यह देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा___’ गोविन्द ! अब आप आचार्य के रथ की ओर चलिये।‘ तब भगवान् ने घोड़ों को द्रोण के रथ की ओर हाँका। भीमसेन ने भी अपने सारथि विशोक को आज्ञा दी कि 'मुझे द्रोण के रथ के पास ले चलो।‘ उनकी आज्ञा पाकर सारथि ने भी अर्जुन के पीछे अपना रथ बढ़ाया। उन दोनों भाइयों को तैयार होकर द्रोणकुमार की ओर आते देखकर पांचाल, सृंजय, मत्स्य, चेदि, कारूप, और केकय महारथियों ने उनका साथ दिया। महाराज ! तदनन्तर वहाँ रोंगटे खड़े कर देनेवाला घोर संग्राम छिड़ गया। अर्जुन और भीम ने अपने साथ रथियों के भारी समूह को लेकर आपकी सेना के दक्षिण और उत्तर भाग में डेरा डाल दिया। उन दोनों वीरों को वहाँ उपस्थित देख सात्यकि और धृष्टधुम्न भी आ गये। भूरिश्रवा के वध से अश्त्थामा बहुत चिढ़ा हुआ था, उसने सात्यकि को आते देख उसे मार डालने का निश्चय करके उसपर धावा किया। यह देख भीमसेन के पुत्र घतोत्कच ने क्रोध में भरकर अपने शत्रु को रोका। घतोत्कच का रथ लोहे का बना हुआ था, उसमें आठ पहिये थे; वह बहुत बड़ा और भयंकर था, उसी में बैठकर वह अश्त्थामा की ओर चला। एक अक्षौहिणी सेना उसे चारों ओर से घेरे हुए थीं। किसी के हाथ में त्रिशूल था तो किसी के हाथ में मुद्गर; कोई पत्थर की चट्टान हाथ में लिये था और कोई वृक्ष। घतोत्कच प्रलयकाल के दण्डधारी यमराज की भाँति जान पड़ता था। उसके हाथ में उठाये हुए महान् धनुष को देखकर राजालोग भय से व्याकुल हो उठे थे। वह भीमकाय राक्षस पर्वत के समान ऊँचा था, बड़ी_ बड़ी दाढों के कारण उसका मुख विकराल तथा भयंकर दिखायी पड़ता था। कान खूँटे के समान, ठोढ़ी बहुत बड़ी, बाल ऊपर की ओर उठे हुए, आँखें भयावनी, मुँह पर चमक, पेट धँसा हुआ___ यही उसकी हुलिया थी। गले का छेद ऐसा था, मानो कोई बहुत बड़ा गड्ढा हो। सिर के बाल मुकुट से ढके हुए थे। वह मुँह बाकर खड़े हुए यमराज के समान संपूर्ण प्राणियों को त्रास पहुँचा रहा था, शत्रु उसे देखते ही व्याकुल हो जाते थे। मनुष्यों को व्यथा राक्षसराज घतोत्कच को हाथ में धनुष लिये आते देख दुर्योधन की सेना में हलचल मच गयी, सब_के_सब भय से व्याकुल हो उठे। उस राक्षस के सिंहनाद से अत्यंत भयभीत हो हाथी मूत्रत्याग करने लगे। मनुष्यों को व्यथा होने लगी। फिर तो वहाँ चारों ओर से पत्थरों की वर्षा आरम्भ हो गयी। रात्रि होने से उस समय राक्षसों का बल बहुत बढ़ा हुआ था। उनके चलाये हुए लोहे के चक्र, भुसुण्डि, प्रास, तोमर, शूल, शतध्नी और पट्टिश आदि अस्त्र_ शस्त्र वहाँ बरस रहे थे; बड़ा ही भयंकर संग्राम छिड़ा था। उसे देखकर कौरवपक्ष के राजाओ, आपके पुत्रों तथा कर्ण को भी बहुत कष्ट हुआ और वे सब दिशाओं की ओर भागने लगे। इस समय एकमात्र अभिमानी वीर अश्त्थामा ही विचलित न होकर अपनी जगह पर डटा रहा। उसने घतोत्कच की रची हुई माया अपने बाणों से नष्ट कर दी। माया का नाश होने पर घतोत्कच के क्रोध की सीमा न रही।, उसने भयंकर बाणों का प्रहार किया। वे सभी बाण अश्त्थामा के शरीर में घुस गये। तब अश्त्थामा ने भी क्रोध में भरकर घतोत्कच को दस बाणों से बींध डाला। इससे उसके मर्मस्थानों में बड़ी चोट पहुँची। अत्यन्त पीड़ित होकर उसने लाख अरोंवाला एक चक्र हाथ में लिया, जिसके किनारे की ओर छूरे लगे हुए थे; वह चक्र अश्त्थामा को लक्ष्य करके उसने चलाया, परन्तु अश्त्थामा ने बाण मारकर चक्र के टुकड़े_ टुकड़े कर दिये। वह व्यर्थ होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। यह देख घतोत्कच ने अपने बाणों की वर्षा से अश्त्थामा को आच्छादित कर दिया। इतने में ही घतोत्कच का पुत्र अंजनपर्वा वहाँ आ पहुँचा। उसने अश्त्थामा को ऐसे रोक लिया जैसे आँधी के वेग को पर्वत रोक देता है। तब अश्त्थामा ने एक बाण से अंजनपर्वा की ध्वजा, दो से रथ के दोनों सारथि, तीन से त्रिवेणुक, एक से,धनुष और चार से चारों घोड़े मार गिराये। रथहीन हो जाने पर उसने तलवार उठायी, किन्तु द्रोणकुमार ने तीखे तीर से उसके भी दो टुकड़े कर दिये। तब अंजनपर्वा ने गदा घुमाकर चलायी, किन्तु द्रोणकुमार ने उसे भी बाणों से मारकर गिरा दिया। फिर तो वह प्रलयकालीन मेघ के समान गर्जना करता हुआ कूदकर आकाश में चला गया और वहाँ से वृक्षों की वर्षा करने लगा। यह देख अश्त्थामा उस मायावी को बाणों से बींधने लगा। तब वह नीचे उतरकर पुनः दूसरे रथ पर जा बैठा। इसी समय अश्त्थामा ने अंजनपर्वा को मार डाला। अपने महाबली पुत्र को अश्त्थामा के हाथ से मारा गया देख घतोत्कच क्रोध से जल उठा और अश्त्थामा के पास जाकर बोला___’द्रोणकुमार ! मैं उन पाण्डवों का पुत्र हूँ, जो युद्ध में कभी पीछे पैर नहीं हटाते। राक्षसों का राजा हूँ और रावण के समान मेरा बल है। तू इस रणांगण में खड़ा तो रह, जीतेजी नहीं जाने पायेगा। आज मैं तेरा युद्ध करने का हौसला मिटा दूँगा।‘ ऐसा कहकर क्रोध से लाल_ लाल आँखें किये वह महाबली राक्षस अश्त्थामा की ओर झपटा और उसपर रथ के धुरे के सदृश बाणों की वर्षा करने लगा। किन्तु घतोत्कच के बाण अभी निकट आने भी न पाते थे कि अश्त्थामा उन्हें काट गिराता था। इस प्रकार अंतरिक्ष में मानो बाणों का एक दूसरा ही संग्राम चल रहा था। जब दोनों ओर के बाण टकराते तो उनसे चिनगारियाँ टूटने लगतीं, जो उस प्रदोषकाल में आकाश के बीच जुगुनुओं की भाँति जान पड़ती थी। स्वाभिमानी अश्त्थामा के द्वारा अपनी माया नष्ट हुई देख घतोत्कच पुनः आकाश में छिप गया और दूसरी माया रचने लगा। वह एक ऊँचा पर्वत बन गया; उसके अनेकों शिखर थे जो वृक्षों से भरे हुए थे। जैसे पर्वतों से झरने गिरते हैं, उसी प्रकार उस पर्वत से भी शूल, प्रास, तलवार आदि के स्रोत बहने लगे। यह सब देखकर भी अश्त्थामा विचलित नहीं हुआ। उसने हँसते हँसते उस पर्वत पर वज्रास्त्र का प्रहार किया। उसका स्पर्श होते ही गिरिराज सहसा विलीन हो गया। उसके बाद उसने इन्द्रधनुष सहित काला मेघ बनकर पत्थरों की वर्षा से द्रोणपुत्र को ढक दिया।
अश्त्थामा अस्त्रवेत्ताओं में श्रेष्ठ था, उसने अपने धनुष पर वायव्यास्त्र का संधान किया  और उससे उस काली घटा को छिन्न_भिन्न कर दिया। फिर उसने बाणों की वर्षा से संपूर्ण दिशाओं को आच्छादित करके पाण्डवों के एक लाख रथियों का सफाया कर डाला। तदनन्तर क्रोध में,भरे हुए घतोत्कच ने अश्त्थामा की छाती में दस बाण मारे। उनसे आहत होकर अश्त्थामा काँप उठा। इतने में ही घतोत्कच ने आंजलिक नामक बाण मारकर उसके धनुष को भी काट डाला। तब अश्त्थामा ने दूसरा मजबूत धनुष हाथ में लिया और घतोत्कच पर तीखे बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। तब तो घतोत्कच के क्रोध की सीमा नहीं रही, उसने भयंकर कर्म करनेवालों राक्षसों की सेना को आज्ञा दी कि ‘ वीरों ! इस द्रोण के बेटे को मार डालो।‘  आज्ञा पाते ही वे भयंकर राक्षस आँखें लाल_लाल किये, मुँह बायें अनेकों अस्त्र लेकर अश्त्थामा को मारने के लिये दौड़े। वे अश्त्थामा के मस्तक पर शक्ति, शतध्नी, परिघ, वज्र, शूल, पट्टिश, तलवार, गदा, भिन्दीपाल, मूसल, फरसा, प्रास, तोमर, कणप, कम्पन और मुद्गर आदि घोर शत्रुनाशक अस्त्र_ शस्त्रों की वर्षा करने लगे। द्रोणपुत्र के मस्तक पर शस्त्रों की बौछार होती देख आपके योद्धा बहुत दुःखी हुए, परन्तु वह स्वयं तनिक भी विचलित नहीं हुआ। वज्र के समान तीखे सायकों से उस घोर शस्त्र_ वर्षा का विध्वंस करता रहा। फिर उसने अपने तीक्ष्ण बाणों को दिव्य मंत्रों से अभिमन्त्रित करके  राक्षसों की सेना का संहार आरम्भ किया। उसके बाणों से,घायल होकर राक्षसों का समुदाय व्याकुल हो उठा। अश्त्थामा की मार पड़ने से वे  सब_के_सब क्रोध में भरकर उसके ऊपर टूट पड़े।
उस समय अश्त्थामा ने ऐसा अद्भुत पराक्रम दिखाया, जो दूसरों के लिये नहीं हो सकता था। उसने राक्षसराज घतोत्कच के देखते_ देखते प्रज्वलित बाणों से उसकी सेना को भस्मसात् कर दिया। तब क्रोध में भरे हुए घतोत्कच ने दाँतों से अपना ओंठ बचाकर ताली बजायी और सिंहनाद करके आठ घंटियोंवाली एक भयानक अशनि अश्त्थामा के ऊपर छोड़ी। किन्तु उसने कूदकर वह अशनि हाथ में पकड़ ली और पुनः उसे घतोत्कच पर चला दी। घतोत्कच कूदकर रथ से अलग हो गया और वह भयंकर अशनि उसके घोड़े, सारथि, ध्वजा तथा रथ को भष्म करके पृथ्वी में समा गयी।
अश्त्थामा का वह पराक्रम देख सब योद्धा उसकी प्रशंसा करने लगे। अपना रथ नष्ट जो जाने से घतोत्कच धृष्टधुम्न के रथ पर जा बैठा और एक भयानक धनुष हाथ में ले अश्त्थामा की छाती पर तीखे बाणों से प्रहार करने लगा। इसी प्रकार धृष्टधुम्न भी निर्भीक होकर द्रोणपुत्र के हृदय में तीखे बाणों से चोट पहुँचाने लगा। इधर से अश्त्थामा भी उनपर हजारों बाणों की वर्षा करने लगा और वे दोनों अपने अस्त्रों से उसके बाणों को काटने लगे। इस प्रकार उनमें बड़ी तेजी के साथ अत्यन्त भयानक युद्ध छिड़ा हुआ था। उस समय अश्त्थामा ने वहाँ अत्यन्त अद्भुत पराक्रम प्रकट किया, जो दूसरों के लिये सर्वथा असंभव था। उसने पलक मारते ही घोड़े, सारथि, रथ, और हाथियों सहित राक्षसों की एक अक्षौहिणी सेना का सफाया कर डाला। भीमसेन, घतोत्कच,  धृष्टधुम्न, नकुल, सहदेव, युधिष्ठिर, अर्जुन और श्रीकृष्ण देख ही रह गये। उसके बाणों की चोट खाकर हाथी श्रृंगहीन पर्वत के समान पृथ्वी पर भहरा पड़ते थे। उसने अपने नाराचों से पाण्डवों को बींधकर द्रुपदकुमार सुरथ को मार डाला। फिर द्रुपद के छोटे भाई शत्रुंजय का काम तमाम किया। इसके बाद बलानीक, जयानीक और जयाश्र्व के प्राण लिये; फिर श्रुताह्वय को यमलोक भेज दिया। तदनन्तर तीन बाणों ये हेममाली, पुषध्र और चन्द्रसेन का वध किया। तत्पश्चात् कुन्तीभोज के दस पुत्रों को भी दस बाणों से यमलोक का अतिथि बनाया। इसके बाद उसने यमदण्ड के समान घोर बाण धनुष पर चढ़ाया और घतोत्कच की छाती में प्रहार किया। वह महान् बाण उसकी छाती छेदकर पृथ्वी में समा गया, घतोत्कच मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ा। उसे,मरकर गिरा हुआ समझकर धृष्टधुम्न अश्त्थामा के पास से अपना रथ दूर हटा ले गया। युधिष्ठिर की सेना के राजालोग भाग चले। वीरवर अश्त्थामा पाण्डवसेना को परास्त कर सिंह के समान गर्जना करने लगा। उस समय अन्य सब लोगों ने तथा आपके पुत्रों ने,भी द्रोणकुमार का विशेष सम्मान किया। सिद्ध, गन्धर्व, पिशाच, नाग, सुपर्ण, पितर, पक्षी, राक्षस, भूत, अप्सरा तथा देवतालोग भी अश्त्थामा की प्रशंसा करने लगे।

Tuesday 9 July 2019

युधिष्ठिर के द्वारा दुर्योधन की पराजय, द्रोण के हाथ से शिबि का वध तथा भीम के द्वारा कलिंग, ध्रुव, जयरात, दुर्गम और दुष्कर्ण का वध

संजय कहते हैं___महाराज ! पांचाल और कौरव वीरों में परस्पर युद्ध होने लगा। सभी योद्धा एक_दूसरे को बाण, तोमर और शक्तियों से बींधकर यमलोक भेजने लगे। थोड़ी ही देर में युद्ध का रूप बड़ा भयंकर हो गया, रक्त की नदी बह चली। उस समय आपके धनुर्धर पुत्र दुर्योधन के तीखे बाणों की मार खाकर पांचाल_वीर इधर_उधर भागने लगे। उसके सायकों से पीड़ित हो पाण्डव सैनिक धराशायी होने लगे। उस समय आपके पुत्र ने जैसा पराक्रम किया, वैसा कौरव_पक्ष के किसी दूसरे वीर ने नहीं किया। दुर्योधन के द्वारा पाण्डवसेना को नष्ट होते देख पांचालवीर भीमसेन को आगे करके उसपर टूट पड़े। उसने भीमसेन को दस, नकुल_सहदेव को तीन_तीन, विराट और द्रुपद को छः_छः, शिखण्डी को सौ, धृष्टधुम्न को सत्तर, युधिष्ठिर को सात और केकय तथा चेदि देश के योद्धाओं को अनेकों तीखे बाणों से बींध डाला। फिर सात्यकि को पाँच, द्रौपदी के पुत्रों को तीन_तीन और घतोत्कच को बहुत से बाणों द्वारा बींधकर सिंहनाद किया। इसके अलावा भी सैकड़ों योद्धाओं और उनके हाथियों तो काट गिराया।
तब पाण्डवों की सेना रणभूमि से भागने लगी। यह देख राजा युधिष्ठिर क्रोध में भरकर आपके पुत्र को मार डालने की इच्छा से उसकी ओर बढ़े। दुर्योधन ने तीन बाणों से धर्मराज के सारथि को घायल करके एक बाण से उसके धनुष को काट दिया। तब युधिष्ठिर ने शीघ्र ही दूसरा धनुष लेकर  दो भल्लों से दुर्योधन के भी धनुष के तीन टुकड़े कर दिये। फिर जल तीखे सायकों से उसे बींध डाला। युधिष्ठिर के छोड़े हुए बाण दुर्योधन के मर्मस्थानों रो छेदकर पृथ्वी में समा गये। तदनन्तर धर्मराज ने दुर्योधन पर एक और भयंकर बाण चलाया; उसकी चोट से दुर्योधन को मूर्छा आ गयी और वह रथ की बैठक पर लुढ़क गया। थोड़ी देर में जब होश हुआ तो उसने तुरत सुदृढ़ धनुष हाथ में ले लिया। इतने में विजयाभिलाषी पांचालवीर तुरंत दुर्योधन के पास आ पहुँचे। उन्हें आते देख आचार्य द्रोण ने दुर्योधन की रक्षा के लिये बीच में ही रोक लिया। फिर तो आपकी और शत्रुओं की सेनाओं में महान् संग्राम होने लगा।
उस समय अर्जुन, सात्यकि, युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव, सेनासहित धृष्टधुम्न, राजा विराट, केकय, मत्स्य, शाल्व तथा राजा द्रुपद ने भी द्रोणाचार्य पर धावा किया। द्रौपदी के पाँचों पुत्र और राक्षस घतोत्कच भी अपनी सेना साथ ले उन्हीं की ओर बढ़े। प्रहार करने में कुशल छः हजार पांचालों तथा प्रभद्रकों ने भी शिखण्डी को आगे रखकर. द्रोण पर ही आक्रमण किया। इस प्रकार पाण्डव_पक्ष के दूसरे_दूसरे महारथी भी एक ही साथ आचार्य द्रोण की ओर लौट पड़े। जिस समय वे शूरवीर युद्ध के लिये पहुँचे, भयंकर रात आरम्भ हो गयी थी। उस समय द्रोणाचार्य और सृंजयों में अत्यन्त भयानक युद्ध होने लगा। सारे संसार में अन्धकार छा जाने के कारण कुछ दिखाई नहीं देता था। अपने_पराये की पहचान नहीं हो पाती थी। उस प्रदोषकाल में सब लोग उन्मत्त_ से हो रहे थे। रणभूमि की धूल रक्त की धारा में सनकर बैठ गयी थी। रात्रिकाल के उस घोर युद्ध में पाण्डव और सृंजय क्रोध में भरकर एक साथ ही आचार्य द्रोण पर टूट पड़े; किन्तु आचार्य के सामने जो_जो प्रधान महारथी आये, उनमें से कुछ को तो उन्होंने यमलोक भेज दिया और बाकी सब को मार भगाया। द्रोण ने अकेले ही हजारों हाथी, दस हजार रथ, लाखों पैदल और अरबों घुड़सवार काट डाले। धृष्टधुम्न के पुत्रों तथा केकयों को भी शीघ्रगामी सायकों से घायल कर प्रेतलोक पहुँचा दिया।
इस प्रकार द्रोणाचार्य को शत्रुसेना का संहार करते देख प्रतापी राजा शिबि अत्यन्त क्रोध में भरे हुए उनके मुकाबले में आ डटे। पाण्डवसेना के महारथी को आते देख द्रोण ने जल बाण मारकर उन्हें घायल किया; राजा शिबि ने भी तुरंत बदला लिया, उन्होंने तीस बाणों ले द्रोण को घायल करके एक भल्ल से उनके सारथि को भी मार गिराया। तब द्रोण ने उनके घोड़ों और सारथि को मार डाला तथा शिबि के मुकुटमण्डित सिर को भी धर से अलग कर दिया। इतने में दुर्योधन ने द्रोण के लिये तुरंत दूसरा सारथि भेजा। उसने आकर यह घोड़ों की बागडोर हाथ में ले ली और शत्रुओं पर धावा किया।
इधर कलिंगराज का पुत्र अपनी सेना के साथ भीमसेन पर टूट पड़ा। भीमसेन ने पहले उसके पिता कलिंगराज को  मार डाला था, इससे उनके ऊपर  उस राजकुमार का क्रोध बहुत बढ़ा हुआ था। उसने भीम को पहले पाँच बाणों से घायल करके फिर सात बाणों से बींध डाला। इसके बाद उसके सारथि विशोक को भी तीन बाण मारकर एक बाण से उनके रथ की ध्वजा काट डाली। तब तो भीमसेन के क्रोध की सीमा न रही, वे अपने रथ से कूदकर उसी के रथ पर चढ़ गये और उस क्रोध में भरे हुए कलिंगवीरों को बड़े जोर से मुक्का मारा। पाण्डुनन्दन भीम अत्यन्त बली थे, उनके मुक्के की चोट से उसकी हड्डी_हड्डी छितरा गयी। उसकी यह दुर्गति कर्ण तथा उसके भाईयों से नहीं सही गयी, उन्होंने जहरीले साँप की तरह तीखे बाणों से भीमसेन को बींधना आरम्भ किया। तब भीमसेन उसके रथ को छोड़कर ध्रुव के रथ पर चढ़ गये।
ध्रुव भी निरन्तर उनकी ओर बाण चला रहा था; महाबली भीम ने उसको भी मुक्के से मार डाला। फिर वे उसके रथ पर चढ़े और सिंहनाद करके उसे बायें हाथ से एक चाँटा लगाया। इस प्रकार कर्ण के सामने ही उन्होंने उसे भी मार डाला। तब कर्ण ने भीमसेन के ऊपर एक सुवर्णमयी शक्ति का प्रहार किया।, किन्तु भीम ने हँसते_हँसते उसे हाथ में पकड़ लिया और फिर उसी को कर्ण पर दे मारा। कर्ण की ओर आती हुई उस शक्ति को शकुनि ने बाण से काट गिराया। इस प्रकार अद्भुत पराक्रमी भीम ने यह महान् पुरुषार्थ करके पुनः अपने रथ पर आरूढ़ होकर आपकी सेना पर धावा किया। क्रोध में भरे हुए यमराज की भाँति भीम को आते देख आपके पुत्रों ने बाण मारकर आगे बढ़ने से रोक दिया और बाणवर्षा से उन्हें आच्छादित कर दिया। यह देख भीम ने अपने बाणों से दुर्मद के सारथि और घोड़ों को यमलोक पहुँचा दिया। दुर्मद दुष्कर्ण के रथ पर जा चढ़ा।
अब एक ही रथ पर बैठे हुए दोनों भाइयों ने भीम पर धावा किया और उन्हें तीखे बाणों से बींधने लगे। तब भीमसेन ने कर्ण, अश्त्थामा, दुर्योधन,कृपाचार्य, सोमदत्त और बाह्लीक के देखते_देखते दुर्मद और दुष्कर्ण के रथ को सात से मारकर पृथ्वी में धँसा दिया। फिर आपके उन दोनों पुत्रों को मुक्के से मार_मारकर कचूमर निकाल डाला और बड़े जोर से गर्जना की। उस समय कौरव_सेना में हाहाकार मच गया। भीम की ओर देखकर राजालोग कहते थे___’ये भीम नहीं, भीम के रूप में साक्षात् भगवान् रुद्र हैं, जो कौरवों से युद्ध कर रहे हैं।‘ महाराज ! यों कहकर सब राजा भागने लगे। सबके होश उड़ गये थे, वे सभी सवारियों को तेजी से भगाये लिये जाते थे। उस समय दो आदमी एक साथ नहीं दौड़ते थे, सब अकेले ही भाग रहे थे।
इस तरह उस प्रदोषकाल में भीम ने कौरवसेना का भलीभाँति संहार किया। इससे नकुल, सहदेव, द्रुपद, विराट, केकय और राजा युधिष्ठिर को बजा प्रसन्नता हुई वे भीमसेन की प्रशंसा करने लगे।