Tuesday 18 October 2022

अर्जुन और भीमसेन के द्वारा कौरव वीरों का संहार तथा कर्ण का पराक्रम

संजय कहते हैं_महाराज ! दूसरी ओर कौरवों के प्रधान_प्रधान वीरों ने भीमसेन पर धावा किया था। कुन्तीनन्दन भीम कौरव_समुद्र में डूबना ही चाहते थे कि अर्जुन उन्हें उबारने की इच्छा से वहां आ पहुंचे। उन्होंने सूतपुत्र की सेना को छोड़कर कौरवों पर चढ़ाई की और शत्रु वीरों को यमलोक भेजना आरंभ कर दिया। अर्जुन के छोड़े हुए बाण आकाश में पहुंचकर फैले हुए जाल के समान दिखाती देते थे। जहां पक्षियों के झुंड उड़ा करते थे, उस आकाश को बाणों से व्याप्त कर कौरवों  के काल बन गये। वे बल्लों क्षुरप्रों तथा उज्जवल नाराचों से शत्रुओं का अंग_अंग छेद डालते और मस्तक काट लेते थे। रणभूमि गिरे हुए और गिरते हुए योद्धाओं की लाशों से ढक गयी थी। अर्जुन के बाणों से छिन्न_भिन्न हुए रथ, हाथी और घोड़ों के  वहां की जमीन बैतरणी नदी के समान अगम्य हो गयी थी, उसे देखकर बड़ा भय मालूम होता था, उधर देखना कठिन हो रहा था। उस समय क्रूर महावतों की प्रेरणा से चार सौ हाथी चढ़ आते, जिन्हें अर्जुन ने बाणों से मार गिराया। जैसे समुद्र में तूफान के आघात से जहाज टूट_फूट जाता है, उसी प्रकार उनके सायकों की मार से कौरव_सेना छिन्न_भिन्न हो गयी। गाण्डीव धनुष से छूटे नाना प्रकार के बाण बिजली की भांति आपकी सेना को दग्ध करने लगे। जिस प्रकार बहुत बड़े जंगल में दावाग्नि से डरे हुए मृग इधर_उधर भागते हैं वैसे ही रणभूमि में अर्जुन के बाणों से आहत हुई कौरव_सेना चारों ओर भाग चली। जब समस्त कौरव युद्ध से विमुख हो गये तब विजयी अर्जुन ने भीमसेन के पास पहुंचकर थोड़ी देर विश्राम किया। फिर भीम से  उन्होंने कुछ सलाह की और बताया कि राजा युधिष्ठिर के शरीर से बाण निकाल दिये गये हैं; तथा इस समय वे अच्छी तरह से हैं।‘इस प्रकार कुशल_मंगल कहकर भीमसेन की आज्ञा ले अर्जुन कर्ण के सेना की ओर चल दिये। इसी समय आपके दस वीरों ने अर्जुन को घेर लिया और उन्हें बाणों से पीड़ित करना आरम्भ किया। परन्तु भगवान् श्रीकृष्ण ने रथ बढ़ाकर उन्हें अपने दाहिने भाग में कर दिया। अर्जुन के रथ को दूसरी ओर जाते देख वे पुनः उनपर टूट पड़े। तब उन्होंने उनके रथ की ध्वजा, धनुष और सायकों को नाराचों तथा अर्धचन्द्रों से तुरंत काट गिराया, फिर दूसरे दस भल्लों से उनके मस्तक उड़ा दिये। इस प्रकार उन दस कौरवों को मौत के घाट उतारकर अर्जुन आगे बढ़े।
उन्हें जाते देख कौरव_पक्ष के संशप्तक योद्धा, जिनकी संख्या नब्बे थी, युद्ध के लिये अग्रसर हुए। उन्होंने यह शपथ लेकर कि ‘यदि पीछे हटें  तो हमें परलोक में उत्तम गति न मिले' अर्जुन को सब ओर से घेर लिया। भगवान् श्रीकृष्ण ने उनकी परवाह न करके अपने तेज चलनेवाले घोड़ों को कर्ण के रथ के ओर हांक दिया। यह देख संशप्तकों ने उनपर बाणों की वृष्टि करते हुए पीछा किया। तब अर्जुन ने अपने पैने बाणों से उनके सारथि, धनुष और ध्वजा को नष्ट करके उन्हें भी यमलोक पहुंचा दिया। उनके मारे जाने पर कौरव महारथियों ने रथ, हाथी तथा घोड़ों की सेना लेकर अर्जुन पर धावा किया, उस समय उनके मन में तनिक भी भय नहीं था। उन्होंने पास आते ही शक्ति, श्रष्टि, तोमर, प्रास, गदा, तलवार तथा बाणों से अर्जुन को ढक दिया। उनकी शस्त्रवर्षा आकाश में चारों ओर गई, किन्तु अर्जुन ने बाण मारकर उसे तुरंत ही नष्ट कर डाला। इसके बाद आपके पुत्र दुर्योधन की आज्ञा पाकर तेरह सौ मतवाले हाथियों पर बैठे हुए म्लेच्छ जाति के योद्धा अर्जुन की दोनों बगल में चोट करने लगे। वे कर्णि, नालीक, नारायण, तोमर, प्राश, शक्ति, मूसल और भिन्दीपालों की मार से पार्थ को पीड़ा देने लगे। तब अर्जुन ने तीखे भल्लों और अर्धचन्द्राकार बाणों से म्लेच्छों द्वारा की हुई शस्त्रवर्षा को शान्त कर दिया। फिर नाना प्रकार के बाणों से हाथियों को उनके सवारोंसहित मार डाला। जब अधिकांश सेना नष्ट हो गयी तो बचे_खुचे लोग व्याकुल होकर भाग चले। उस समय भीमसेन अर्जुन के पास आ पहुंचे और मरने से बचें हुए घुड़सवारों को अपनी गदा से नष्ट करने लगे। उन्होंने बहुत से हाथियों और पैदलों पर भी उस भयंकर गदा का प्रहार किया। उसके आघात से योद्धाओं के सिर फूटे, हड्डियां टूटी और पांव उखड़ गये तथा वे आर्तनाद करते हुए पृथ्वी पर गिर गए। इस प्रकार दस हजार पैदलो का सफाया करके क्रोध में भरे हुए भीम गदा हाथ में लिये इधर_उधर विचरने लगे। महाराज ! आपके सैनिकों ने गदाधारी भीम को देखकर यही समझा कि साक्षात् यमराज ही कालदण्ड लिये यहां आ पहुंचे हैं। अब भीम ने हाथियों की सेना में प्रवेश किया और अपनी बड़ी भारी गदा लेकर एक ही क्षण में सबको यमलोक पहुंचा दिया। गजसेना का संहार करके महाबली भीम पुनः अपने रथ पर आ बैठे और अर्जुन के पीछे_पीछे चलने लगे।
तदनन्तर, कौरवों में बड़े जोर से आर्तनाद होने लगा। हाथी, घोड़े तथा पैदलों  प्राण लेने वाले अर्जुन के बाणों की मार से सब लोग हाहाकार मचा रहे थे, सब पर अत्यन्त भय छा गया था, सभी एक_दूसरे की आड़ में छिपना चाहते थे। इस तरह आपकी संपूर्ण सेना उस समय अलातचक्र के समान घूम रही थी। उस युद्ध में कोई रथी, सवार, घोड़ा या हाथी ऐसा नहीं बचा था जो अर्जुन के बाणों से घायल नहीं हुआ हो। उनका यह पराक्रम देख सभी कौरव कर्ण के जीवन से निराश हो गये। सबने गाण्डीव धारी के प्रहार को अपने लिखे असभ्य समझा और उनसे परास्त होकर सब पीछे हट गये।  सहायकों से बिंध जाने पर वे भयभीत होकर रणभूमि में कर्ण को अकेला छोड़कर भाग चले। किन्तु सहायता के लिये सूतपुत्र कर्ण को ही पुकारते थे।
महाराज ! इसके बाद आपके पुत्र भागकर कर्ण के रथ के पास गये। वे संकट के अथाह समुद्र में डूब रहे थे, उस समय कर्ण ही द्वीप के समान उसका रक्षक हुआ। कर्म करनेवाले जीव मृत्यु से डरकर जैसे धर्म की शरण लेते हैं, उसी प्रकार आपके पुत्र भी अर्जुन से भयभीत हो कर्ण की शरण में पहुंचे थे। कर्ण ने देखा, ये खून से लथपथ हो रहे हैं, बड़े संकट में पड़े हैं और बाणों की चोट से व्याकुल हैं तो उसने उनसे कहा_’मेरे पास आ जाओ, डरो मत।‘ इसके बाद कर्ण ने खूब सोच विचारकर मन_ही_मन अर्जुन के वध का निश्चय किया। और उनके देखते_देखते उसने पांचालों पर आक्रमण किया। यह देख पांचाल राजाओं की आंखें क्रोध से लाल हो गयीं, वे कर्ण पर बाणों की वृष्टि करने लगे। तब कर्ण ने भी हजारों बाण मारकर पांचालों को मौत के मुख में भेज दिया। अब वह पांचाल देशीय राजकुमारों का नाश करने लगा। उसने ‘आंजलिक' नामक बाण मारकर जन्मेजय के सारथि को नीचे गिरा दिया और उसके घोड़ों को भी मार डाला। फिर शतानिक तथा सुतसोम पर भल्लों की वृष्टि करके उन दोनों के धनुष काट दिये। छः बाणों से धृष्टद्युम्न को सीधा और उसके घोड़ों का भी काम तमाम किया। इसी तरह सात्यकि के घोड़ों को नष्ट करके सूतपुत्र ने केकयराजकुमार विशोक का भी वध कर डाला। राजकुमार के मारे जाने पर  सेनापति उग्रकर्मा ने कर्ण पर धावा किया। उसने अपने भयंकर वेग वाले बाणों से कर्ण के पुत्र प्रसेन को घायल कर दिया। तब कर्ण ने तीन अर्धचन्द्राकार बाणों से उग्रकर्मा की दोनों भुजाएं और मस्तक काट डाले। वह प्राणहीन होकर जमीन पर जा पड़ा। उधर जब कर्ण ने सात्यकि के घोड़े मार डाले तो उसके पुत्र प्रसेन ने तेज किते हुए सहायकों से सात्यकि को ढंक दिया। इसके बाद सात्यकि के बाणों का निशाना बनाकर वह स्वयं भी धराशाही हो गया।
पुत्र के मारे जाने पर  कर्ण के हृदय में क्रोध की आग जल उठी, उसने सात्यकि पर एक शत्रु संहारकारी बाण छोड़ा और कहा ‘शैनेय ! अब तू मारा गया।‘ किन्तु कर्ण के उस बाण को शिखण्डी ने काट दिया और उसे भी तीन बाणों से बींध दिया। तब कर्ण ने दो क्षुरप्रों से शिखण्डी की ध्वजा और धनुष काट दिये तथा छः बाणों से उसे भी बींध दिया। इसके बाद उसने धृष्टद्युम्न के पुत्र का सिर धड़ से अलग कर दिया और एक तीक्ष्ण बाण मारकर सुतसोम को भी घायल कर डाला। तत्पश्चात् सूतपुत्र ने सोमकों का संहार करते हुए बड़ा भारी संग्राम छेड़ा। उनके बहुत_से घोड़े, रथ और हाथियों का नाश करके उसने संपूर्ण दिशाओं को बाणों से आच्छादित कर दिया। तब उत्तमौजा, जन्मेजय, युधामन्यु, शिखण्डी तथा धृष्टद्युम्न_ये सभी गर्जना करते हुए क्रोध में भरकर कर्ण के सामने आते और उसपर बाणों की वर्षा करने लगे। इन पांचों ने कर्ण पर जोरदार हमला किया, किन्तु सब मिलकर भी उसे रथ से गिराने में सफल न हो सके कर्ण ने उनके धनुष, ध्वजा, घोड़े, सारथि और पताका आदि को काटकर पांच बाण से उन पांचों को बींध डाला।। जिस समय वह बाणों से पांचालों पर प्रहार कर रहा था, उस समय उसके धनुष की टंकार सुकर ऐसा जान पड़ता था कि अब पर्वत और वृक्षों सहित सारी पृथ्वी फट जायेगी। उसने शिखण्डी को बारह, उत्तमौजा को छ: और युधामन्यु, जन्मेजय तथा धृष्टद्युम्न को तीन_तीन बाण मारे। इस प्रकार सूतपुत्र कर्ण ने उन पांचों महारथियों को परास्त कर दिया। वे कर्णरूपी समुद्र में डूबना ही चाहते थे कि द्रौपदी के पुत्रों ने वहां पहुंचकर उन्हें रणसामग्री से सजे हुए रथों में बिठाया और इस प्रकार अपने मामाओं का संकट से उद्धार किया।
तत्पश्चात् सात्यकि ने कर्ण के छोड़े हुए बहुत से बाणों को अपने तीखे तीरों से काट डाला। फिर कर्ण को भी घायल कर आठ बाणों  आपके पुत्र दुर्योधन को बींध डाला। तब कृपाचार्य, कृतवर्मा, दुर्योधन तथा कर्ण_ये चारों मिलकर सात्यकि पर तीक्ष्ण सायकों की वर्षा करने लगे। जैसे चार दिक्पालों के साथ अकेले दैत्यराज हिरण्यकशिपु का युद्ध हुआ था, उसी प्रकार इन चारों वीरों के साथ यदुकुलभूषण सात्यकि ने अकेले ही लोहा लिया। इतने में ही उक्त पांचाल महारथी कवच पहनकर दूसरे रथ पर बैठकर वहां आ पहुंचे और सात्यकि की रक्षा करने लगे। उस समय शत्रुओं का आपके सैनिकों के साथ घोर युद्ध हुआ। कितने ही रथी, हाथीसवार, घुड़सवार और पैदल योद्धा नाना प्रकार के अस्त्र_शस्त्रों से आच्छादित हो इधर_उधर भटकने लगे।  वे परस्पर के ही धक्के से लड़खड़ाकर गिर जाते और आर्तस्वर से चित्कार मचाने लगते थे। बहुतेरे सैनिक प्राणों से हाथ धोकर रणभूमि में सो रहे थे।