Friday 26 April 2019

भीमसेन और कर्ण का भीषण संग्राम, चौदह धृतराष्ट्रपुत्रों का संहार तथा कर्ण के द्वारा भीम का पराभव

संजय ने कहा___राजन् ! प्रतापी कर्ण आपके पुत्रों को मरते देख बड़ा ही कुपित हुआ; उसे अपना जीवन भी भारी_सा मालूम होने लगा। उसके देखते_देखते भीमसेन ने आपके पुत्रों को मार डाला, इससे वह अपने को अपराधी_ सा समझने लगा। इतने में ही भीमसेन कुपित होकर कर्ण पर तीखे बाणों की वर्षा करने लगे। तब कर्ण ने मुस्कराकर भीमसेन को पहले पाँच और फिर सत्तर बाणों से घायल कर दिया। इसके जवाब में भीमसेन ने अत्यंत तीक्ष्ण पाँच बाणों से कर्ण के मर्मस्थानों को बींधकर एक भल्ल से उसका धनुष काट डाला। इससे कर्ण अत्यंत खिन्नचित्त हो दूसरा धनुष लेकर भीमसेन पर बाणों की वर्षा करने लगा। इतने में ही भीम ने उसके सारथि और घोड़ों का भी काम तमाम कर दिया तथा धनुष के दो टुकड़े कर डाले। अब महारथी कर्ण उस रथ से कूद पड़ा और एक गदा उठाकर उसे बड़े क्रोध से भरकर भीमसेन के ऊपर फेंका। किन्तु भीमसेन ने सारी सेना के सामने उसे बीच ही में बाणों से रोक दिया। अब कर्ण ने भीमसेन पर पच्चीस बाण छोड़े और भीम ने नौ बाणों से उसका जवाब दिया। वे बाण कर्ण के कवच को फोड़कर उसकी दायीं भुजा में लगे और फिर पृथ्वी पर जा पड़े। इस प्रकार भीमसेन के बाणों से निरंतर आच्छादित होकर कर्ण फिर युद्ध से पीछे हटने लगा। यह देखकर राजा दुर्योधन ने अपने भाइयों से कहा, ‘अरे ! सब ओर ये सावधान रहकर तुरंत ही कर्ण की ओर बढ़ो।‘ भाई की यह बात सुनकर आपके पुत्र चित्र, उपचित्र, चित्राक्ष, चारुचित्र, शरासन, चित्रायुध और चित्रवर्मा बाणों की वर्षा करते भीमसेन पर टूट पड़े। किन्तु भीमसेन ने उन्हें आते देख एक_एक बाण में ही धराशायी कर दिया। आपके महारथी पुत्रों को इस प्रकार मारे जाते देखकर कर्ण के नेत्रों में जल भर आया और उसे विदुरजी के वचन याद आने लगे। परन्तु थोड़ी ही देर में वह दूसरे रथ पर चढ़कर फिर भीमसेन के सामने आ गया और उन पर बाणों की वर्षा करने लगा। कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों से वे एकदम ढक गये और उनसे उनका शरीर घायल हो गया। इस समय कर्ण इतने वेग से बाण छोड़ रहा था कि उसके धनुष, ध्वजा, छत्र, ईषादण्ड और जुए से भी बाणों की वर्षा_सी होती जान पड़ती थी। उसके इस प्रबल वेग से सारा आकाश बाणों से छा गया। किन्तु जिस प्रकार कर्ण ने भीमसेन को बाणों से आच्छादित किया, उसी प्रकार भीम ने भी उसपर बाणों की झड़ी लगा दी। इस समय संग्राम में भीमसेन का अद्भुत पराक्रम देखकर आपके योद्धा भी उनकी प्रशंसा करने लगे। भूरिश्रवा, कृपाचार्य, अश्त्थामा, शल्य, जयद्रथ, उत्तमौजा, युधामन्यु, सात्यकि, श्रीकृष्ण और अर्जुन___ ये कौरव और पाण्डवपक्ष के दस महारथी साधु_साधु कहकर बड़े जोर से सिंहनाद करने लगे।
तब आपके पुत्र राजा दुर्योधन ने अपने पक्ष के राजा, राजकुमार और विशेषतः अपने भाइयों से कहा, ‘धनुर्धरों ! देखो, भीमसेन के धनुष से छूटते हुए बाण कर्ण को नष्ट करे, उसके पहले ही तुम उसे बचाने का प्रयत्न करो।‘ दुर्योधन की आज्ञा पाकर उसके सात भाई क्रोध में भरकर भीमसेन पर टूट पड़े और उन्हें चारों ओर से घेर लिया। वे भीमसेन पर बाणों की वर्षा करके उन्हें बहुत पीड़ित करने लगे। तब महाबली भीमसेन ने उनपर सूर्य की किरणों के समान चमचमाते हुए सात बाण छोड़े। वे उनके हृदय को चीरकर उनका रक्त पीकर पार निकल गये। इस प्रकार उनसे मर्मस्थल बिंध जाने के कारण वे सातों भाई अपने रथों से पृथ्वी पर गिर गये। राजन् ! इस तरह भीमसेन के हाथ से आपके सात पुत्र शत्रुंजय, शत्रुसह, चित्र, चित्रायुध, दृढ़, चित्रसेन और विकर्ण मारे गये। आपके इन मरे हुए पुत्रों में से पाण्डुनन्दन भीम अपने प्यारे भाई विकर्ण के लिये तो बहुत ही शोक करने लगे। वे बोले, ‘भैया विकर्ण ! मैंने यह प्रतिज्ञा की थी कि मैं धृतराष्ट्र के सारे पुत्रों को मारूँगा, इसी से तुम भी मारे गये। ऐसा करके मैंने अपनी प्रतिज्ञा की ही रक्षा की है। भैया ! तुम तो विशेषतः राजा युधिष्ठिर और हमारे ही हित में तत्पर रहते थे। हाय ! युद्ध बड़ा ही कठोर धर्म है।‘
इसके बाद वे बड़े जोर से सिंहनाद करने लगे। भीमसेन का वह भीषण शब्द सुनकर धर्मराज को बड़ी प्रसन्नता हुई। इधर आपके इक्कीस पुत्रोंको देखकर दुर्योधन को विदुरजी के वचन याद आने लगे। वह मन_ही_मन रहने लगा, ‘विदुरजी ने तो हमारे हित के लिये ही कहा था, वह सब सामने आ गया।‘ बहुत विचार करने पर भी उसे इस समस्या का कोई समाधान न मिला। राजन् ! द्युतक्रीड़ा के समय द्रौपदी को सभा में बुलाकर आपके दुर्बुद्धि पुत्र और कर्ण ने जो कहा था कि ‘ कृष्णे ! पाण्डवलोग तो अब नष्ट होकर सदा के लिये दुर्गति में पड़ गये हैं, तू कोई दूसरा पति चुन ले’, यह उसी का फल सामने आ रहा है। विदुरजी ने बहुत गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की, परंतु फिर भी उन्हें आपसे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। अब आप और दुर्योधन उस कुबुद्धि का फल भोगिये। वस्तुतः यह भारी अपराध आपका ही है। धृतराष्ट्र ने कहा___संजय ! इसमें विशेषतः मेरा ही अपराध अधिक है, सो आज उसका फल मेरे सामने आ रहा है___यह बात मुझे शोक के साथ स्वीकार करनी पड़ती है। किन्तु जो होना था, सो हो गया; अब इस विषय में क्या किया जाय ? अच्छा, मेरे अन्याय से इसके आगे वीरों का संहार किस प्रकार हुआ, सो मुझे सुनाओ। संजय ने कहा___महाराज ! महाबली कर्ण और भीम, मेघ जैसे जल बरसाते हैं उसी प्रकार बाणों की वर्षा कर रहे थे। भीम के नाम से अंकित अनेकों बाण कर्ण का प्राणांत_सा करते उसके शरीर में घुस जाते थे। इसी प्रकार कर्ण के छोड़े हुए सैकड़ों_ हजारों बाण भी वीरवर भीमसेन को आच्छादित कर रहे थे। भीम के धनुष से छूटे हुए बाणों से आपकी सेना का संहार हो रहा था। युद्ध में मरे हुए हाथी, घोड़े और मनुष्यों के कारण सारी रणभूमि आँधी से उखड़े हुए वृक्षों से पटी हुई जान पड़ती थी। आपके योद्धा भीमसेन के बाणों की मार से व्याकुल होकर मैदान छोड़कर भागने लगे। तब कर्ण और भीमसेन के बाणों से व्यथित होकर सिंधु_सौवीर और कौरवों की सेना युद्धस्थल से दूर जा खड़ी हुई। इस समय रण में मरे हुए हाथी, घोड़े और मनुष्यों के रुधिर से उत्पन्न हुईं भयंकर नदी बह निकली; उसमें मरे हुए हाथी, घोड़े और मनुष्य तैरने लगे। अब कर्ण ने,अपने अस्त्रकौशल से अनेकों बाण छोड़कर भीमसेन के तरकस, धनुष, प्रत्यंचा एवं घोड़ों की रास और जोतों को काट डाला तथा उनके घोड़ों को मारकर पाँच बाणों से सारथि को भी घायल कर दिया। वह सारथि तुरंत ही कूदकर युधामन्यु के रथ पर जा बैठा। कर्ण ने हँसते_हँसते भीमसेन के रथ की ध्वजा और पताकाएँ भी उड़ा दीं। इस प्रकार धनुष न रहने पर महाबाहु भीम ने एक शक्ति उठायी और उसे क्रोध में भरकर कर्ण के रथ पर छोड़ा। कर्ण ने दस बाण छोड़कर उसे बीच ही,में काट डाला। अब भीमसेन ने हाथ में ढाल_तलवार ले ली और तलवार को घुमाकर कर्ण के रथ पर फेंका। वह प्रत्यंचासहित कर्ण के धनुष को काटकर पृथ्वी पर जा पड़ी। तब कर्ण दूसरा धनुष लेकर भीम को मार डालने के विचार से उनपर बाणों की वर्षा करने लगा। कर्ण के बाणों से व्यथित होकर भीमसेन आकाश में उछले। उनका यह अद्भुत कर्म देखकर कर्ण बहुत घबराया और उसने रथ में छिपकर अपने को भीमसेन के वार से बचा लिया। भीम ने जब देखा कि कर्ण घबराकर रथ के पिछले भाग में छिपा हुआ है, तो वे उसकी ध्वजा पकड़कर खड़े हो गये और गरुड़ जैसे सर्प को खींचे, उसी प्रकार कर्ण को रथ से खींचने का प्रयत्न करने लगे। तब कर्ण ने उनपर बड़े वेग से धावा किया। भीमसेन के शस्त्र समाप्त जो चुके थे; इसलिये वे कर्ण के रथ के रास्ते से बचने के लिये अर्जुन के मारे हुए हाथियों की लोथों में छिप गये। फिर उसपर प्रहार करने के लिये उन्होंने एक हाथी की लोथ उठा ली। किन्तु कर्ण ने अपने बाणों से उसके टुकड़े_टुकड़े कर दिये। तब भीमसेन ने उन टुकड़ों को ही फेंकना शुरु कर दिया तथा और भी रथ के पहिये या घोड़े___ जो चीज दिखायी दी, उसी को उठाकर कर्ण पर फेंकने लगे। परंतु वे जो चीज फेंकते थे, कर्ण उसी को काट डालता था। अब भीमसेन ने घूँसा मारकर उसी से कर्ण का काम तमाम करना चाहा। परंतु फिर अर्जुन की प्रतिज्ञा याद आ जाने से उन्होंने, समर्थ होने पर भी, उसे मार डालने का विचार छोड़ दिया। इस समय कर्ण ने बार_बार अपने पैने बाणों की मार से भीमसेन को मूर्छित_सा कर दिया। किन्तु कुन्ती की बात याद करके इस शस्त्रहीन अवस्था में उसने भी उनका वध नहीं किया। फिर उसने पास जाकर उनके शरीर में अपने धनुष की नोक लगायी। उसका स्पर्श होते ही भीमसेन का क्रोध भड़क उठा और उन्होंने वह धनुष छीनकर कर्ण के मस्तक पर दे मारा। भीमसेन की चोट खाकर कर्ण की आँखें क्रोध ये लाल हो गयीं और वह उनसे कहने लगा, ‘ अरे निमूछिये ! अरे मूर्ख ! अरे पेटू !  तुझे अस्त्र_ शस्त्र संभालने का शउर तो है नहीं, परन्तु युद्ध करने की उत्सुकता इतनी है कि मेरे साथ भिड़ने का चंचलता कर बैठता है। अरे दुर्बुद्धि ! जहाँ तरह_तरह की बहुत_ सी खाने_ पीने की चीजें हों, तुझे तो वहीं रहना चाहिये। तू फल, फूल और मूल आदि खाने तथा व्रत_ नियम आदि पालन करने में अवश्य कुशल है, किन्तु युद्ध करना तू नहीं जानता। भला कहाँ मुनिवृत्ति और कहाँ युद्ध ! भैया ! तुझे युद्ध करने की शऊर नहीं है, तू तो वन में रहकर ही प्रसन्न रह सकता है। इसलिये तू वन में ही चला जा और तुझे लड़ना ही हो तो दूसरे लोगों से भिड़ना चाहिये, मेरे जैसे वीरों के सामने आना तुझे शोभा नहीं देता। मेरे जैसों से भिड़ने पर तो ऐसी या इससे भी बढ़कर दुर्गति होती है। अब तू या तो कृष्ण और अर्जुन के पास चला जा, वे तेरी रक्षा कर लेंगे, या अपने घर चला जा। बच्चा ! युद्ध करके क्या लेगा ?’ कर्ण के ऐसे कठोर वचन सुनकर भीमसेन ने सब योद्धाओं के सामने हँसकर कहा, ‘ रे दुष्ट ! मैंने तुझे कई बार परास्त किया है, तू अपने मुँह से क्यों इतनी शेखी बघार रहा है ? हमारे प्राचीन पुरुष भी जय_पराजय तो इन्द्र की भी देखते आये हैं। रे अकुलीन ! अब भी तू मेरे साथ मल्लयुद्ध करके देख ले। जैसे मैंने महाबली और महाभोगी कीचक को पछाड़ा था, उसी प्रकार इन सब राजाओं के सामने तुझे भी काल के हवाले कर दूँगा?’ बुद्धिमान कर्ण भीमसेन के इन शब्दों से उनका अभिप्राय ताड़ गया और यह धनुर्धरों के सामने ही युद्ध से हट गया। भीमसेन को रथहीन करके जब कर्ण ने श्रीकृष्ण और अर्जुन के सामने ही ऐसी न कहने योग्य बातें कहीं तो, श्रीकृष्ण की प्रेरणा से अर्जुन ने उसपर कई बाण छोड़े। वे गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाण कर्ण के शरीर में घुस गये। उनसे पीड़ित होकर वह तुरंत ही बड़ी तेजी से भीमसेन के सामने से भाग गया। तब भीमसेन सात्यकि के रथ पर सवार होकर अपने भाई अर्जुन के पास आये। इसी समय अर्जुन ने बड़ी फुर्ती से कर्ण को लक्ष्य करके एक काल के समान कपाल बाण छोड़ा। किन्तु उसे अश्त्थामा ने बीच से ही काट डाला। इस पर अर्जुन ने कुपित होकर अश्त्थामा को चौंसठ बाणों से घायल कर दिया और चिल्लाकर कहा, ‘जरा खड़े रहो, भागो मत।‘ किन्तु अर्जुन के बाणों से व्यथित होकर अश्त्थामा रथों से भरी हुई मतवाले हाथियों की सेना में घुस गया। अर्जुन ने अपने बाणों से उस सेना को व्यथित करते हुए कुछ दूर उसका पीछा भी किया। इसके बाद वे अनेकों हाथी, घोड़ों और मनुष्यों को विदीर्ण करते हुए सेना का संहार करने लगे।

Sunday 14 April 2019

भीमसेन के हाथ से कर्ण की पराजय तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध

धृतराष्ट्र ने कहा___संजय ! कर्ण को तो साक्षात् महादेवजी के शिष्य के सभी गुण विद्यमान थे। फिर उसे भीमसेन ने इस प्रकार खेल ही में कैसे जीत लिया ? मेरे पुत्र तो सबसे अधिक कर्ण का ही भरोसा रखते थे। इस समय उसे भीम के सामने से भागता देखकर दुर्योधन ने क्या कहा ? और महाबली भीम ने इसके बाद किस प्रकार युद्ध किया तथा कर्ण ने उसे संग्रामभूमि में अग्नि के समान प्रज्वलित होते देखकर क्या किया ?
संजय ने कहा___राजन् ! अब दूसरे रथ पर चढ़कर कर्ण भीमसेन की ओर चला। उस समय कर्ण को कुपित देखकर आपके पुत्र तो यही समझने लगे कि अब भीमसेन आग की लपटों में गिरने ही वाला है। कर्ण ने धनुष की भयंकर टंकार और तालियों का शब्द करते हुए भीमसेन पर धावा किया। बस, दोनों वीर दो कुपित सिंहों के समान झपटते हुए दो बाजों के समान तथा क्रोध में भरे हुए दो शरभों के समान परस्पर युद्ध करने लगे। राजन् ! जूआ खेलने,  वन में रहने और विराटनगर मे अज्ञातवास करते समय पाण्डवों को अनेकों क्लेश उठाने पड़े हैं; आपके पुत्रों ने उनका विस्तृत राज्य तथा रत्नादि हर लिये हैं; अपने पुत्रों की सलाह से आप भी उन्हें निरंतर तरह_तरह के क्लेश देते रहे हैं; आपने पुत्रों के सहित निरपराधिनी कुन्ती को लाक्षाभवन में भस्म करने का विचार किया था; आपके दुष्ट पुत्रों ने सभा के बीच में द्रौपदी को तरह_तरह से तंग किया था; दुःशासन ने उसके केश पकड़कर खींचने और कर्ण ने उससे यह कठोर बात कही कि ‘अब ये लोग तेरे पति नहीं हैं, तू कोई दूसरा पति चुन ले।‘ इन सभी बातों का इस समय भीमसेन को स्मरण हो आया। इसलिये वे अपने प्राणों का मोह छोड़कर धनुष की टंकार करते कर्ण पर टूट पड़े। उन्होंने अपने बाणों के जाल से कर्ण के रथ पर सूर्य की किरणों का पड़ना बन्द कर दिया। तब कर्ण ने अपने तीखे बाणों से उस जाल को काटा और नौ बाणों से भीमसेन पर भी चोट की। इसके जवाब में भीमसेन ने कर्ण को बाणों से आच्छादित कर दिया। उन दोनों का रणक्षेत्र उस समय यमलोक के समान भयंकर और दुर्दर्श हो रहा था। दूसरे महारथी तो उस संग्राम को बड़े विस्मय के साथ देख रहे थे। दोनों ही वीरों ने एक_दूसरे पर बाणों की वर्षा करते_करते सारे आकाश को बाणमय कर दिया था। उन बाणों की चमक से उसमें चमचमाहट_सी होने लगी थी। दोनों ही वीरों की भारी मार से घोड़े_हाथी और मनुष्य मर_मरकर धरती पर लोट_पोट हो रहे थे। राजन् ! उस समय आपके पुत्रों के अनेकों योद्धा मारे गये; उनमें से कोई तो प्राणहीन होकर गिर रहे थे और कोई गिर चुके थे। इस प्रकार बात_की_बात में वह सारी रणभूमि हाथी, घोड़े और मनुष्यों की लोथों से पट गयीं।राजन् ! अब क्रोध में भरे हुए कर्ण ने भीम पर तीस बाणों से चोट की। भीम ने तीन बाणों से उनका धनुष काट डाला और एक भल्ल से उसके सारथि को रथ से नीचे गिरा दिया। तब इन्द्र जैसे वज्र का प्रहार करते हैं, उसी प्रकार कर्ण ने एक महाशक्ति घुमाकर भीमसेन पर छोड़ी। किन्तु भीम ने सात बाणों से उसे बीच में ही काट डाला तथा कर्ण पर यमदण्ड के समान तीखे बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। कर्ण ने अपना विशाल धनुष खींचकर नौ बाण छोड़े। उन्हें भीमसेन ने नौ बाणों से काट डाला। फिर उन्होंने कर्ण के धनुष को भी काट दिया तथा अपने बाणों की बौछार से उसके घोड़ों मारकर सारथि को रथ से नीचे गिरा दिया।कर्ण को इस प्रकार आपत्ति में पड़ा देखकर राजा दुर्योधन ने अपने भाई दुर्जय से कहा, ‘अरे ! तुम शीघ्र ही इस निमूछिया भीम को मारकर कर्ण की सहायता कर।‘ तब दुर्जय ‘जो आज्ञा’ ऐसा कहकर बाणों की वर्षा करता हुआ भीमसेन की ओर चला। उसने नौ बाण भीमसेन पर और आठ उनके घोड़ों पर छोड़े तथा छः से उनके सारथि को, तीन से ध्वजा को और सात से स्वयं को बींध दिया। इससे भीमसेन का क्रोध बहुत भड़क उठा और उन्होंने अपने तेज बाणों से उसके मर्मस्थानों को बेधकर उसे सारथि और घोड़ों के सहित यमराज के हवाले कर दिया। दुर्जय की ऐसी दुर्दशा देखकर कर्ण की हृदय भर आया। उसने रोते_रोते उसकी प्रदक्षिणा की। इस बीच में भीमसेन ने कर्ण को रथ को तोड़_फोड़ डाला।इस प्रकार रथहीन और पुनः पराजित होने पर भी कर्ण एक दूसरे रथ पर चढ़कर फिर भीमसेन के सामने आ गया और उन्हें बाणों से बींधने लगा। भीमसेन ने उस पर दस बाण छोड़कर फिर सत्तर बाणों से चोट की। तब कर्ण ने नौ बाणों से भीमसेन की छाती छेदकर एक से उसकी ध्वजा काट डाली। फिर उसने सारे शरीर को फोड़कर निकल जानेवाला अत्यंत तीक्ष्ण बाण छोड़ा। वह भीमसेन को घायल करके पृथ्वी को चीरता हुआ भीतर घुस गया। तब भीमसेन ने एक वज्र के समान कठोर, चार हाथ लम्बी भारी गदा उठायी और उसे फेंककर कर्ण के घोड़ों को मार डाला। अब कर्ण अश्वहीन रथ को छोड़कर अपना धनुष तानकर खड़ा हो गया। इस समय हमने कर्ण का बड़ा ही अद्भुत पराक्रम देखा। वह रथहीन होने पर भी भीमसेन को रोके ही रहा। तब दुर्योधन ने दुर्मुख से कहा, ‘भैया दुर्मुख ! देखो, भीमसेन ने कर्ण को रथहीन कर दिया है, इसलिये तुम उसके पास रथ पहुँचा दो।‘ यह सुनकर दुर्मुख भीमसेन पर बाणों की वर्षा करता बड़ी तेजी से कर्ण की ओर चला। दुर्मुख को संग्रामभूमि में कर्ण की सहायता करते देख भीम बड़े प्रसन्न हुए और कर्ण को अपने बाणों से रोककर उसी की ओर अपना रथ ले गये। वहाँ पहुँचकर उन्होंने उसी क्षण नौ बाणों से उसे यमराज के घर भेज दिया।
अब कर्ण ने कुछ भी आगा_पीछा न करके चौदह बाणों से भीमसेन पर वार किया। वे बाण उनकी दायीं भुजा को घायल करके पृथ्वी में घुस गये। तब भीमसेन ने तीन बाणों से कर्ण को और सात से उसके सारथि को बींध डाला। उन बाणों की चोट से कर्ण बहुत व्याकुल हो गया और अपने घोड़ों को तेजी से हाँककर युद्धक्षेत्र से चला गया। किन्तु अतिरथी भीमसेन अब भी अपना धनुष ताने वहीं खड़े रहे।धृतराष्ट्र कहने लगे___संजय ! पुरुषार्थ को धिक्कार है, यह तो व्यर्थ ही है; मैं तो दैव को ही मुख्य समझता हूँ। देखो, कर्ण ऐसी सावधानी से युद्ध कर रहा था, फिर भी भीम को काबू में नहीं कर सका। दुर्योधन के मुँह से मैंने कई बार सुना था कि कर्ण बलवान् है, शूरवीर है, बड़ा धनुर्धर है और परिश्रम को कुछ भी नहीं समझता है। इसकी सहायता रहने पर तो देवता भी मुझे संग्राम में नहीं जीत सकेंगे, फिर पाण्डवों की तो बात ही क्या है ? जब उसी को दुर्योधन ने भीम के हाथ से परास्त होकर युद्ध से भागते देखा तो क्या कहा ? संजय ! भला भीम के सामने टिकने का साहस कौन कर सकता है ? यह तो संभव है कि कोई पुरुष यमराज के घर से लौट आवे, किन्तु भीमसेन के सामने जाकर कोई पीछे नहीं फिर सकता। जो मूर्ख मोह के वशीभूत होकर क्रोध में भरे हुए भीम के सामने गये, वे तो,मानो पतिंगों के समान आग में ही जा पड़े। भीमसेन ने हमारी सभा में सारे कौरवों के सामने मेरे पुत्रों के वध की प्रतिज्ञा की थी। उसे याद करके कर्ण को पराजित देखने पर दुर्योधन और दुःशासन तो डर के मारे उसके आगे से भाग गये होंगे। कर्ण को रथहीन और भीम के हाथ से पराजित देखकर अवश्य ही दुर्योधन को श्रीकृष्ण का अपमान करने के लिये पश्चाताप हुआ होगा। युद्ध में भीमसेन के हाथ से अपने भाइयों का वध होता देख उसे अपने अपराध के लिये अवश्य ही बड़ा संताप हुआ होगा। भला, अपने जीवन की रक्षा चाहनेवाला ऐसा कौन प्राणी होगा जो साक्षात् काल के समान खड़े हुए भीमसेन के पास जायगा। मेरा तो यह निश्चय है कि बड़नावल की ज्वालाओं में पड़कर भले ही कोई बच जाय, किन्तु भीमसेन के सामने जाने पर कोई जीवित नहीं बच सकता। इसलिये भैया ! अब तो मेरे पुत्रों का जीवन संकट में ही है। संजय ने कहा___कुरुराज ! इस महाभयंकर संकट के उपस्थित होने पर आप चिंता करने चले हैं। किन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि संसार के इस भीषण संहार के जड़ आप ही हैं। अपने पुत्रों के बातों में आकर आपही ने यह महान् वैर बाँधा है। आपसे बहुत कुछ कहा भी गया; किन्तु मरणासन्न पुरुष जैसे हितकारक औषध ग्रहण नहीं करता, उसी प्रकार आपने भी किसी की एक न सुनी। राजन् ! आपने स्वयं ही यह दुर्जर कालकूट विष पिया है, इसलिये अब आप ही इसका फल भोगिये।
अस्तु, अब आगे जैसे_जैसे युद्ध हुआ वह मैं सुनाता हूँ। कर्ण को भीमसेन के हाथ से परास्त हुआ देखकर आपके पाँच पुत्र दुर्मर्षण, दुःसह, दुर्मद, दुर्धर और जय सहन न कर सके और वे एक साथ भीमसेन पर टूट पड़े। वे उन्हें चारों ओर से घेरकर अपने बाणों से टिड्डीदल के समान सारी दिशाओं को व्याप्त करने लगे। भीमसेन वे उन्हें अकस्मात् आते देख हँसते_हँसते अगवानी की। जब कर्ण ने आपके पुत्रों को भीमसेन के सामने जाते देखा तो कर्ण भी वहीं लौट आया। अब कौरवलोग उन्हें चारों ओर से घेरकर बाणों की वर्षा करने लगे। किन्तु भीमसेन ने पच्चीस ही बाणों में सारथि और घोड़ों के सहित उन पाँचों भाइयों को यमराज के हवाले कर दिया। उस समय हमने भीमसेन का बड़ा ही अद्भुत पराक्रम देखा। वे एक ओर तो अपने बाणों से कर्ण को रोक रहे थे और दूसरी ओर आपके पुत्रों का संहार कर रहे थे।

Sunday 7 April 2019

भीमसेन के हाथ से कर्ण की पराजय, द्रोण के साथ दुर्योधन की सलाह तथा युधामन्यु और उत्तमौजा के साथ उसका युद्ध

धृतराष्ट्र ने कहा___मुझे तीनों लोकों में ऐसा तो कोई भी वीर दिखायी नहीं देता, जो रणांगण में क्रोध से भरे हुए भीम के सामने टिक सके। भला, जो रथ पर रथ उठाकर पटक देता है और हाथी पर हाथी को उठाकर दे मारता है उसके सामने और तो कौन, साक्षात् इन्द्र भी कैसे खड़ा रह सकता है ? मुझे भीम से जैसा भय है वैसा न अर्जुन से है, न श्रीकृष्ण से, न सात्यकि से और न धृष्टधुम्न से ही है। संजय ! यह तो बताओ, जब भीमरूप प्रचंड पावक मेरे पुत्रों को भस्म करने लगा तो किन_किन वीरों ने उसे रोका ? संजय कहने लगे___ राजन् ! जिस समय भीमसेन इस प्रकार गरज रहे थे, उस समय महाबली कर्ण भी बड़ा भीषण सिंहनाद करता हुआ युद्ध करने के लिये उनके सामने आया। जब भीमसेन ने उसे अपने सामने खड़ा देखा, तो वे एकदम क्रोध से तमतमा उठे और उस पर पैने बाणों की वर्षा करने लगे। कर्ण ने भी बदले में बाण बरसाते हुए उन्हें दृढ़ता से सहन कर लिया। उस समय भीमसेन की भीषण सिंहनाद सुनकर अनेकों योद्धाओं के धनुष पृथ्वी पर गिर गये, बहुतों के हाथों से हथियार छूट गये, किन्हीं_कीन्हीं के प्राण भी निकल गये तथा अनेक जो हाथी_घोड़े आदि वाहन थे, वे भयभीत और निरुत्साह होकर मल_मूत्र त्यागने लगे। यह देखकर कर्ण ने भीमसेन पर बीस बाण छोड़े तथा पाँच बाणों से उनके सारथि को बींध दिया। इस पर भीमसेन ने उसका धनुष काट डाला और दस बाणों से उसे भी घायल कर दिया फिर उन्होंने बड़े वेग से तीन बाण उसकी छाती में मारे। इस भारी चोट ने कर्ण को कुछ विचलित कर दिया। किन्तु फिर वह धनुष को कान तक खींचकर भीमसेन पर बाण बरसाने लगा। तब भीमसेन ने एक क्षुरप्र बाण से उसके धनुष की डोरी काट दी तथा एक भल्ल से सारथि को रथ से नीचे गिराकर उसके चारों घोड़ों को धराशायी कर दिया। इससे भयभीत होकर कर्ण तुरंत ही अपने रथ से कूदकर वृषसेन के रथ पर चढ़ गया।
इस प्रकार संग्राम में कर्ण को परास्त करके भीमसेन मेघ के समान बड़े जोर से गरजने लगे। उस सिंहनाद को सुनकर धर्मराज समझ गये कि भीमसेन ने कर्ण को परास्त कर दिया है। इससे वे बड़े प्रसन्न हुए। इधर जब आपके पुत्र दुर्योधन ने देखा कि हमारी सेना तितर_बितर हो रही है तथा अर्जुन, सात्यकि और भीमसेन जयद्रथ के पास पहुँच चुके हैं तो वह बड़ी तेजी से द्रोणाचार्य के पास आया और उनसे कहने लगा, ‘आचार्यचरण ! अर्जुन, भीमसेन और सात्यकि___ये तीन महारथी हमारी इस विशाल वाहिनी को परास्त करके बेरोक_टोक सिंधुराज के समीप पहुँच गये हैं। ये तीनों ही किसी के काबू में नहीं आये हैं और वहाँ भी हमारी सेना का संहार कर रहे हैं। गुरुजी ! सात्यकि और भीम किस प्रकार आपको परास्त करके निकल गये ? यह बात तो समुद्र को सूखा डालने के समान संसार को आश्चर्य में डालनेवाली है। जब ये तीनों महारथी आपको लाँघकर निकल गये, तो मुझे निश्चय होता है कि इस संग्राम में दुर्योधन का नाश अवश्यम्भावी है। खैर, जो होना था सो तो हो गया; अब आगे के लिये विचारिये और सिंधुराज की रक्षा के लिये हमें जो कुछ करना चाहिये, उसका निश्चय करके वैसा ही प्रबंध कीजिये।‘
द्रोण ने कहा___तात ! इस समय हमारा जो कर्तव्य है, वह सुनो। देखो, पाण्डवों के तीन महारथी हमारी सेना को लाँघकर भीतर घुस गये हैं। इस समय जयद्रथ क्रोध में भरे हुए अर्जुन से बहुत डरा हुआ है। उसकी रक्षा करना हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है। इसलिये हमें प्राणों की भी परवा न करके उसकी रक्षा करनी चाहिये। इस युद्धद्यूत में हमारी जीत_हार उसी के ऊपर अवलम्बित है। अतः जहाँ बड़े_बड़े धनुर्धर जयद्रथ की रक्षा करने में तत्पर हैं, वहाँ तुम शीघ्र ही जाओ और उन रक्षकों की रक्षा करो। मैं यहीं रहकर तुम्हारे पास दूसरे योद्धाओं को भी भेजूँगा और स्वयं पांचाल, पाण्डव तथा सृंजयवीरों को आगे बढ़ने से रोकूँगा। आचार्य की आज्ञा सुनकर दुर्योधन अपने ऊपर यह भारी भार लेकर अपने अनुयायियों के सहित तुरंत ही वहाँ से चल दिया। जिस समय अर्जुन ने कौरवसेना में प्रवेश किया था, उस समय कृतवर्मा ने उनके चक्ररक्षक उत्तमौजा और युधामन्यु को भीतर नहीं जाने दिया था। अब वे बाहर_ही_बाहर जाकर बीच में सेना में घुसकर अर्जुन के पास पहुँच गये। यह देखकर कुरुराज दुर्योधन बड़ी तेजी से उनके पास गया और दोनों भाइयों के साथ डटकर युद्ध करने लगा। तब युधामन्यु ने तीस बाणों से दुर्योधन पर, बीस से उसके सारथि पर और चार से चारों घोड़ों पर चोट की। दुर्योधन ने एक बाण से युधामन्यु की ध्वजा ओर एक से उसका धनुष काट डाला। फिर एक बाण से उसके सारथि को रथ के नीचे गिरा दिया और चार से चारों घोड़ों को बींध डाला। इस पर युधामन्यु ने क्रोध में भरकर तीस बाणों से दुर्योधन के वक्षःस्थल पर वार किया तथा उत्तमौजा ने उसके सारथि को बाणों से बींधकर यमराज के घर भेज दिया। अब दुर्योधन ने पांचालराजकुमार उत्तमौजा के चारों घोड़ों को और दोनों अगल_बगल के सारथियों को मार डाला। घोड़े और सारथियों के मारे जाने पर उत्तमौजा बड़ी फुर्ती से अपने भाई युधामन्यु के रथ पर चढ़ गया। वहाँ से उसने दुर्योधन के घोड़ों पर बहुत से बाण बरसाये। उनसे वे मरकर पृथ्वी पर गिर गये। अब दुर्योधन रथ ले कूद पड़ा और हाथ में गदा लेकर दोनों भाइयों की ओर दौड़ा। उसे आते देखकर युधामन्यु और उत्तमौजा भी रथ से कूद पड़े। दुर्योधन ने क्रोध में भरकर अपनी गदा ले सारथि, ध्वजा और घोड़ों के सहित उनके रथ को चूर_चूर कर दिया। इसके बाद वह तुरंत ही राजा शल्य के रथ पर चढ़ गया। इधर दोनों पांचालराजकुमार भी दूसरे रथों पर चढ़कर अर्जुन के पास पहुँच गये। राजन् ! इस समय भीमसेन भी कर्ण से अपना पिण्ड छुड़ाकर श्रीकृष्ण और अर्जुन के पास जाने के लिये ही उत्सुक थे। किन्तु जब वे उस ओर चलने लगे तो कर्ण ने पीछे से जाकर उन पर बाण बरसाने आरम्भ कर दिये और उन्हें  ललकारकर कहा, ‘भीम ! आज अर्जुन को देखने के लिये उतावले होकर तुम मुझे पीठ दिखाकर कैसे जाते हो ? तुम्हारा यह काम कुन्ती के पुत्रों के योग्य तो नहीं है। जरा मेरे सामने डटकर मुझपर बाणवर्षा करो।‘ भीमसेन कर्ण की इस चुनौती को संग्रामभूमि में सह न सके और अपना रथ लौटाकर उसके साथ युद्ध करने लगे। उन्होंने बाणों की वर्षा करके पहले तो कर्ण के अनुयायियों को समाप्त किया और फिर स्वयं उसका भी अन्त करने के लिये क्रोध में भरकर तरह_तरह के बाण बरसाने लगे। उन्होंने इक्कीस बाण छोड़कर कर्ण के शरीर को बींध दिया। कर्ण ने भी पाँच_पाँच बाण मारकर उनके घोड़ों को घायल कर दिया। फिर थोड़ी ही देर में कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों से भीमसेन तथा उनके रथ, ध्वजा और सारथि___सभी आच्छादित हो गये। उसने चौंसठ बाणों से भीमसेन का सुदृढ़ कवच काट डाला तथा उन पर अनेकों मर्मभेदी नाराचों से चोट की। उस समय कर्ण ने बाणों की ऐसी झड़ी लगायी कि उसके बाणों से बिंधा हुआ भीमसेन का शरीर सेहकी कण्टकाकीर्ण देह के समान प्रतीत होने लगा।
भीमसेन कर्ण के इस बर्ताव को सह न सके। उनकी आँखें क्रोध से लाल हो गयीं और उन्होंने कर्ण पर पच्चीस नाराच छोड़े। इसके बाद उन्होंने उसपर चौदह बाणों से चोट की। फिर एक बाण से उसका धनुष काट डाला और बड़ी फुर्ती से सारथि एवं चारों घोड़ों का सफाया कर अनेकों चमचमाते हुए बाण उसकी छाती में मारे। वे उसे घायल करके पृथ्वी पर जा पड़े। कर्ण को अपने पुरुषार्थ का बड़ा अभिमान था। किन्तु इस समय उसका धनुष कट चुका था, इसलिये वह बड़े असमंजस में पड़ गया। अन्त में वह एक दूसरे रथ पर चढ़ने के लिये दौड़ गया।