Monday 7 December 2020

उलूक, युयुत्सु, श्रुतकर्मा_शतानीक, शकुनि_सतसोम और शिखण्डी_कृतवर्मा में द्वन्दयुद्ध; अर्जुन के द्वारा अनेकों वीरों का संहार तथा दोनों ओर की सेनाओं में घमासान युद्ध


संजय ने कहा_राजन् ! एक ओर आपका पुत्र युयुत्सु कौरवों की भारी सेना को खदेड़ रहा था। यह देखकर उलूक बड़ी फुर्ती से उसके सामने आया। उसने क्रोध में भरकर एक क्षुरप्र से  युयुत्सु का धनुष काट डाला और उसे भी घायल कर दिया। युयुत्सु ने तुरंत ही दूसरा धनुष उठाया और साठ बाणों से उलूक और तीन से उसके सारथि पर वार करके फिर उसे अनेकों बाणों से बींध डाला। इसपर उलूक ने युयुत्सु को बीस बाणो से घायल करके उसकी ध्वजा को काट डाला, एक भल्ल से उसके सारथि का सिर उड़ा दिया, चारों घोड़ों को धराशायी कर दिया और फिर पाँच बाणों से उसे भी बींध डाला। महाबली उलूक के प्रहार से युयुत्सु बहुत ही घायल हो गया और एक दूसरे रथ पर चढ़कर तुरंत ही वहाँ से भाग गया। इस प्रकार युयुत्सु को परास्त करके उलूक झटपट पांचाल और सृंजय वीरों की ओर चला गया।
दूसरी ओर आपके पुत्र श्रुतकर्मा ने शतानीक के रथ, सारथि और घोड़ों को नष्ट कर दिया। तब महारथी शतानीक ने क्रोध में भरकर उस अश्वहीन रथमें से ही आपके पुत्र पर एक गदा फेंकी। वह उसके रथ, सारथि और घोड़ों को भष्म करके पृथ्वी पर जा पड़ी। इस प्रकार ये दोनों ही वीर रथहीन होकर एक_दूसरे की ओर देखते हुए रणांगण से खिसक गये। इसी समय शकुनि ने अत्यन्त पैने बाणों से सुतसोम को घायल किया। किन्तु इससे वह तनिक भी विचलित नहीं हुआ। उसने अपने पिता के परम शत्रु को सामने देखकर उसे हजारों बाणों से आच्छादित कर दिया। किन्तु शकुनि ने दूसरे बाण छोड़कर उसके सभी तीरों को काट डाला। इसके बाद उसने सुतसोम के सारथि, ध्वजा और घोड़ों को भी तिल_ तिल करके काट डाला। तब सुतसोम अपना श्रेष्ठ धनुष लेकर रथ से कूदकर पृथ्वी पर कूद गया और बाणों की वर्षा करके अपने साले के रथ को आच्छादित करने लगा। किन्तु शकुनि ने अपने बाणों की बौछार से उन सब बाणों को नष्ट कर दिषा। फिर अनेकों तीखे तीरों से उसने सुतसोम के धनुष और तरकसों को भी काट डाला।
अब सुतसोम एक तलवार लेकर भ्रान्त, ं, आविद्ध, आपुल्त, पुल्त, सृत, सम्पात और समुदीर्ण आदि चौदह गतियों से उसे सब ओर घुमाने लगा। इस समय उसपर जो बाण छोड़ा जाता था, उसे ही वह तलवार से काट डालता था। इसपर शकुनि ने अत्यन्त कुपित होकर उसपर सर्पों के समान विषैले बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। परन्तु सुतसोम ने अपने शस्त्रकौशल और पराक्रम से उन सबको काट डाला। इसी समय शकुनि ने एक पैने बाण से उसकी तलवार के दो टुकड़े कर दिये। सुतसोम ने अपने हाथ में रहे हुए तलवार के आधे भाग को ही शकुनि पर खींचकर मारा। वह उसके धनुष और धनुष की डोरी को काटकर पृथ्वी पर जा पड़ा। इसके बाद वह फुर्ती से श्रुतकीर्ति के रथ पर चढ़ गया तथा शकुनि भी एक दूसरा भयानक धनुष लेकर अनेकों शत्रुओं का संहार करता हुआ दूसरे स्थान पर पाण्डवों की सेना के साथ संग्राम करने लगा। दूसरी ओर शिखण्डी कृतवर्मा से भिड़ा हुआ था। उसने उसकी हँसली में पाँच तीक्ष्ण बाण मारे। इसपर महारथी कृतवर्मा ने क्रोध में भरकर उसपर साठ बाण छोड़े और फिर हँसते_हँसते एक बाण से उसका धनुष काट डाला। महाबली शिखण्डी ने तुरत ही दूसरा धनुष ले लिया और उससे कृतवर्मा पर अत्यन्त तीक्ष्ण नब्बे बाण छोड़े। वे उसके कवच से टकराकर नीचे गिर गये। तब उसने एक पैने बाण से कृतवर्मा का  धनुष काट डाला तथा उसकी छाती और भुजाओं पर अस्सी बाण छोड़े। इससे उसके सब अंगों से रुधिर बहने लगा। अब कृतवर्मा ने दूसरा धनुष उठाया और अनेकों तीखे बाणों से शिखण्डी के कंधों पर प्रहार किया। इस प्रकार वे दोनों वीर एक_दूसरे घायल करके लहूलुहान हो रहे थे तथा दोनो ही एक_दूसरे के प्राण लेने पर तुले हुए थे। इसी समय कृतवर्मा ने शिखण्डी का प्राणान्त करने के लिये एक भयंकर बाण छोड़ा। उसकी चोट से वह तत्काल मूर्छित हो गया और बिह्वल होकर अपनी ध्वजा के डंडे के सहारे बैठ गया। यह देखकर उसका सारथि तुरंत ही रणभूमि से हटा ले गया। इससे पाण्डवों की सेना ते पैर उखड़ गये और वह इधर_उधर भागने लगी। महाराज ! इसी समय अर्जुन आपकी सेना का संहार कर रहे थे। आपकी ओर से त्रृगर्त, शिबि, कौरव, शाल्व, संशप्तक और नारायणी सेना के वीर उससे टक्कर ले रहे थे। सत्यसेन, चन्द्रदेव, मित्रदेव, सतंजय, सौश्रुति, चित्रसेन, मित्रवर्मा और भाइयों से घिरा हुआ त्रिगर्तराज_ये सभी वीर संग्रामभूमि में अर्जुन पर तरह_ तरह के बाणसमूहों की वर्षा कर रहे थे।
योद्धालोग अर्जुन से सैकड़ों और हजारों की संख्या में टक्कर लेकर लुप्त हो जाते थे। इसी समय उनपर सत्यसेन ने तीन, मित्रदेव ने तिरसठ, चन्द्रदेव ने सात, शत्रुंजय ने बीस और सुशर्मा ने नौ बाण छोड़े। इस प्रकार संग्रामभूमि में अनेकों योद्धाओं के बाणों से से बिंधकर अर्जुन के बदले में उन सभी राजाओं को घायल कर दिया।
उन्होंने सात बाणों से सौश्रुति को, तीन से सत्यसेन को, बीस से शत्रुंजय को, आठ से चन्द्रदेव को, सौ से मित्रदेव को, तीन से श्रुतसेन को, नौ से मित्रवर्मा को और आठ से सुशर्मा को बींधकर अनेकों तीखे बाणों से शत्रुंजय को मार डाला, सौश्रुति का सिर धड़ से अलग कर दिया, इसके बाद फौरन ही चन्द्रदेव को अपने बाणों से यमराज के घर भेज दिया और फिर पाँच_पाँच बाणों से दूसरे महारथियों को आगे बढ़ने से रोक दिया। इसी समय सत्यसेन ने क्रोध में भरकर श्रीकृष्ण पर एक विशाल तोमर फेंका और बड़ी भीषण गर्जना की। वह तोमर उनकी दायीं भुजा को घायल करके पृथ्वी पर जा पड़ा। इस प्रकार श्रीकृष्ण को घायल हुआ देख महारथी अर्जुन ने अपने तीखे बाणों से सत्यसेन की गति रोककर फिर उसका कुण्डलमण्डित मस्तक धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद उन्होंने अपने पैने बाणों से मित्रवर्मा पर आक्रमण किया तथा एक तीखे वत्सदन्त से उसके सारथि पर चोट की। फिर महाबली अर्जुन ने सैकड़ों बाणों से संशप्तकों पर वार किया और उनमें से सैकड़ों हजारों वीरों को धराशायी कर दिया। उन्होंने एक क्षुरप्र से मित्रसेन का मस्तक उड़ा दिया और सुशर्मा की हँसली पर चोट की। इसपर सारे संशप्तक वीर उन्हें चारों ओर से घेरकर तरह_तरह के शस्त्रों से पीड़ित करने लगे। अब महारथी अर्जुन ने ऐन्द्रास्त्र प्रकट किया। उसमें से हजारों बाण निकलने लगे, जिनकी चोट से अनेकों राजकुमार, क्षत्रिय वीर और हाथी_घोड़े पृथ्वी पर लोट_पोट हो गये। इस प्रकार जब धनुर्धर धनंजय संशप्तकों का संहार करने लगे तो उनके पैर उखड़ गये। उनमें से अधिकांश वीर पीठ दिखाकर भाग गये। इस प्रकार वीरवर अर्जुन ने उन्हें रणांगण में परास्त कर दिया। राजन् ! दूसरी ओर महाराज युधिष्ठिर बाणों की वर्षा कर रहे थे। उनका सामना स्वयं राजा दुर्योधन ने किया। धर्मराज ने उसे देखते ही बाणों से बींध डाला। इसपर दुर्योधन ने नौ बाणों से युधिष्ठिर पर और एक भल्ल से उसके सारथि पर चोट की। तब तो धर्मराज ने दुर्योधन पर तेरह बाण छोड़े। उनमें से चार से उसके चारों घोड़ों को मारकर पाँचवें से सारथि का सिर उड़ा दिया, छठे से उसकी ध्वजा काट डाली, सातवें से उसके धनुष के टुकड़े टुकड़े कर दिये, आठवें से तलवार काटकर पृथ्वी पर गिरा दी और शेष पाँच बाणों से स्वयं दुर्योधन को पीड़ित कर डाला। अब आपका पुत्र उस अश्वहीन रथ से कूद पड़ा। दुर्योधन को इस प्रकार विपत्ति में पड़ा देखकर कर्ण, अश्त्थामा और कृपाचार्य आदि योद्धा उसकी रक्षा के लिये आ गये। इसी प्रकार सब पाण्डवलोग भी महाराज युधिष्ठिर को देखकर संग्राम_भूमि में बढ़ने लगे। बस, अब दोनों ओर से खूब संग्राम होने लगा। दोनों ही पक्ष के वीर वीरधर्म के अनुसार एक_दूसरे पर प्रहार करते थे; जो कोई पीठ दिखाता था, उसपर कोई चोट नहीं करता था। राजन् ! इस समय योद्धाओं में बड़ी मुक्का_मुक्की और हाथा_पाई हुई। वे एक_दूसरे के केश पकड़कर खींचने लगे। युद्ध का जोर यहाँ तक बढ़ा कि अपने_पराये का ज्ञान भी लुप्त हो गया। इस प्रकार जब घमासान युद्ध होने लगा तो योद्धालोग तरह_तरह के शस्त्रों से अनेक प्रकार के एक_दूसरे के प्राण लेने लगे। रणभूमि में सैकड़ों_हजारों कबन्ध खड़े हो गये। उनके शस्त्र और कवच खून में लथपथ हो रहे थे। इस समय योद्धाओं को यद्यपि अपने_पराये का ज्ञान नहीं रहा था, तो भी वे युद्ध को अपना कर्तव्य समझकर विजय की लालसा से बराबर जूझ रहे थे। उनके सामने अपना_पराया_ जो भी आता, उसी का वे सफाया कर डालते थे। संग्रामभूमि में दोनों ओर के वीरों से खलबला_सी रही थी तथा टूटे हुए रथ और मारे हुए हाथी, घोड़े एवं योद्धाओं के कारण अगम्य_सी हो रही थी। वहाँ क्षण में खून की नदी बहने लगती थी। कर्ण पांचालों का, अर्जुन त्रिगर्तों का और भीमसेन कौरव तथा गजारोही सेना का संहार कर रहे थे। इस प्रकार तीसरे पहर तक यह कौरव और पाण्डव सेनाओं का भीषण संहार चलता रहा।

अंगराज का वध, सहदेव के द्वारा दुःशासन की तथा कर्ण के द्वारा नकुल की पराजय और कर्ण द्वारा पांचालों का संहार

संजय कहते हैं_महाराज ! आपके पुत्र की आज्ञा से बड़े_बड़े हाथीसवार हाथियों के साथ ही क्रोध में भरकर धृष्टधुम्न को मार डालने की इच्छा से उसकी ओर बढ़े। पूर्व और दक्षिण देश के रहनेवाले गजयुद्ध में कुशल जो प्रधान_ प्रधान वीर थे, वे सभी उपस्थित थे। इसके सिवा अंग, बंग, पुण्ड्र, मगध, मेकल, कोसल, मद्र, दशार्ण, निषध और कलिंगदेशीय योद्धा भी, जो हस्तियुद्ध में निपुण थे, वहाँ आए। वे सब लोग पांचालों की सेना पर बाण, तोमर और नाराचों की वर्षा करते हुए आगे बढ़े। उन्हें आते देख धृष्टधुम्न उनके हाथियों पर नाराचों की वर्षा करने लगा। प्रत्येक हाथी को उसने दस_दस, छः_छः और आठ_आठ  बाणों से मारकर घायल कर दिया।उस समय धृष्टधुम्न को हाथियों की सेना से घिर गया देख पाण्डव और पांचाल योद्धा तेज किये हुए अस्त्र_शस्त्र लेकर गर्जना करते हुए वहाँ आ पहुँचे और उन हाथियों पर बाणों की बौछार करने लगे। नकुल, सहदेव, द्रौपदी के पुत्र, प्रभद्रक, सात्यकि, शिखण्डी तथा चेकितान_ ये सभी वीर चारों ओर से बाणों की झड़ी लगाने लगे। 
तब म्लेच्छों ने अपने हाथियों को शत्रुओं की ओर प्रेरित किया। वे हाथी अत्यन्त क्रोध में भरे हुए थे; इसलिये रथों, घोड़ों और मनुष्यों को सूड़ों से खींचकर पटक देते और पैरों से दबाकर कुचल डालते थे। कितने ही योद्धाओं को उन्होंने दाँतों की नोक से चीर डाला और कितनों को सूँड़ में लपेटकर ऊपर फेंक दिया।
दाँतों से कुचले हुए जो लोग जमीन पर गिरते थे, उनकी सूरत बड़ी भयानक  हो जाती थी। 
इसी समय अंगराज के हाथी का सात्यकि से सामना हुआ। सात्यकि ने भयंकर वेगवाले नाराच से हाथी के मर्मस्थानों को बींध डाला। हाथी वेदना से मूर्छित होकर गिर पड़ा। अंगराज  उसकी ओट में अपने शरीर को छिपाये बैठा थ, अब वह हाथी से कूदना ही चाहता था कि सात्यकि ने उसकी छाती पर नाराच से प्रहार किया। चोट को न सँभाल सकने के कारण वह पृथ्वी पर गिर पड़ा।
इसके बाद नकुल ने यमदण्ड के समान तीन नाराच हाथ में लिये और उनके प्रहार से अंगराज से पीड़ित करके फिर सौ बाणों से उसके हाथी को भी घायल किया। तब अंगराज ने नकुल पर एक सौ आठ तोमरों का प्रहार किया, किन्तु उसने प्रत्येक तोमर के तीन_तीन टुकड़े कर डाले और एक अर्धचन्द्राकार बाण मारकर उसके मस्तक को भी काट लिया। फिर तो वह म्लेच्छराज हाथी के साथ ही भूमि पर गिर पड़ा। इस प्रकार अंगदेशीय राजकुमार के मारे जाने पर वहाँ के महावत क्रोध में भर गये और हाथियोंसहित नकुल पर चढ़ गये। उनके साथ ही मेकल, उत्कल, कलिंग, निषध और ताम्रलिप्त आदि देशों के योद्धा भी नकुल को मार डालने की इच्छा से उसपर बाणों और तोमरों की वर्षा करने लगे।
 उन सबके अस्त्रों की बौछार से नकुल को ढ़क गया देख पाण्डव, पांचाल और सोमक क्षत्रिय बड़े क्रोध में भरकर वहाँ आ पहुँचे। फिर तो पाण्डवपक्ष के रथी वीरों का उन हाथियों के साथ घोर युद्ध होने लगा। उन्होंने बाणों की झड़ी लगा दी और हजारों तोमरों का वार किया। 
उनकी मार से हाथियों के कुम्भस्थल फूट गये, मर्मस्थानों में घाव हो गया, दाँत टूट गये और उनकी सारी सजावट बिगड़ गयी। उनमें से आठ बड़े_बड़े गजराजों का सहदेव ने चौंसठ बाण मारे, जिनकी चोट से पीड़ित हो वे हाथी अपने सवारोंसहित गिरकर मर गये। महाराज ! सहदेव जब क्रोध में भरकर आपकी सेना को भष्मसात् कर रहा था, उसी समय दुःशासन उसके मुकाबले में आ गया। आते ही उसने सहदेव की छाती में तीन बाण मारे। तब सहदेव ने सत्तर नाराचों से दुःशासन को तथा तीन से उसके सारथि को बींध डाला। यह देख दुःशासन ने सहदेव का धनुष काटकर उसकी छाती और भुजाओं में तिहत्तर बाण मारे। अब तो सहदेव के क्रोध की सीमा न रही, उसने बड़ी फुर्ती से दुःशासनके रथ पर तलवार का वार किया। वह तलवार प्रत्यंचासहित उसके धनुष को काटकर जमीन पर गिर पड़ी। फिर सहदेव ने दूसरा धनुष लेकर दुःशासन पर प्राणान्तकारी बाण छोड़ा, किन्तु उसने तीखी धारवाली तलवार से उसके दो टुकड़े कर डाले और सहदेव को घायल करके उसके सारथि को भी नौ बाण मारे। इससे सहदेव का क्रोध बहुत बढ़ गया और और उसने काल के समान विकराल बाण हाथ में लेकर उसे आपके पुत्र पर चला दिया। वह बाण दुःशासन का कवच छेदकर शरीर को विदीर्ण करता हुआ जमीन में घुस गया। इससे आपका पुत्र बेहोश हो गया। यह देख सारथि तीखे बाणों की मार सहता हुआ रथ को रणभूमि से दूर हटा ले गया। इस प्रकार दुःशासन को परास्त करके सहदेव ने दुर्योधन की सेना पर दृष्टि डाली और उसका सब ओर से संहार आरंभ कर दिया। दूसरी ओर नकुल भी कौरव_सेना को पीछे भगा रहा था। यह देख कर्ण क्रोध में भरा हुआ वहाँ आया और नकुल को रोककर सामना करने लगा। उसने नकुल का धनुष काटकर उसे तीस बाणों से घायल किया। तब नकुल ने दूसरा धनुष लेकर कर्ण को सत्तर और उसके सारथि को तीन बाण मारे। फिर एक क्षुरप्र से कर्ण के धनुष को काटकर उसपर तीन सौ बाणों का प्रहार किया।
नकुल के द्वारा कर्ण को इस तरह पीड़ित होते देख सभी रथियों को बड़ा आश्चर्य हुआ; देवता भी अत्यन्त विस्मित हो गये। तदनन्तर कर्ण ने दूसरा धनुष उठाया और नकुल के भी सात बाणों से कर्ण को बींधकर उसके धनुष का एक किनारा काट दिया। कर्ण ने पुनः दूसरा धनुष लिया और नकुल के चारों ओर की दिशाएँ बाणों से आच्छादित कर दीं। किन्तु महारथी नकुल ने कर्ण के छोड़े हुए उन सभी बाणों को काट डाला।
उस समय सायकसमूहों से भरा हुआ आकाश ऐसा जान पड़ता था मानो उसमें टिड्डियाँ छा रही हो। उन दोनों के बाणों से आकाश का मार्ग रुक गया था, अन्तरिक्ष की कोई भी वस्तु उस समय जमीन पर नहीं पड़ती थी। उन दोनों महारथियों के दिव्य बाणों से जब दोनों ओर की सेनाएँ नष्ट होने लगीं तो सभी योद्धा उनके बाणों के गिरने के स्थान से दूर हट गये और दर्शकों की भाँति तमाशा देखने लगे। जब सब लोग वहाँ से दूर हो गये तो दोनों महारथी परस्पर बाणों की बौछार से एक_दूसरे को चोट पहुँचाने लगे। कर्ण ने हँसते_हँसते उस युद्ध में बाणों का जाल_सा फैला दिया, उसने सैकड़ों और हजारों बाणों का प्रहार किया। जैसे बादलों की घटा घिर आने पर उसकी छाया से अन्धकार_सा हो जाता है, वैसे ही कर्ण के बाणों से अंधेरा_सा छा गया। इसके बाद कर्ण ने नकुल का धनुष काट दिया और मुस्कराते हुए उसके सारथि को भी रथ से मार गिराया। फिर तेज किये हुए चार बाणों ले उसके चारों घोड़ों को तुरत यमलोक भेज दिया। तत्पश्चात् अपने बाणों की मार से उसने नकुल के दिव्य रथ के तिल के समान टुकड़े करके उसकी धज्जियाँ उड़ा दीं। पहियों के रक्षकों को मारकर ध्वजा, पताका, गदा, तलवार, ढ़ाल तथा अन्य सामग्रियों को भी नष्ट कर दिया। रथ घोड़े और कवच से रहित हो जाने पर नकुल ने एक भयानक परिघ उठाया, किंतु कर्ण ने तीखे बाणों से उनके भी टुकड़े_टुकड़े कर डाले। उस समय उसकी इन्द्रियाँ व्याकुल हो गयीं और वह सहसा रणभूमि छोड़कर भाग खड़ा हुआ। कर्ण ने हँसते हँसते उसका पीछा किया और उसके गले में अपना धनुष डाल दिया। फिर वह कहने लगा, ‘पाण्डुनन्दन ! अब बलवानों के साथ युद्ध करने का साहस न करना। जो तुम्हारे समान हों, उन्हीं से भिड़ने का हौसला करना चाहिए। माद्रीकुमार ! हार गये तो क्या हुआ? लजाओ मत । जाओ घर में जाकर छिप रहो अथवा जहाँ श्रीकृष्ण तथा अर्जुन हों वहीं चले जाओ। यह कहकर कर्ण ने नकुल को छोड़ दिया। यद्यपि उस समय कर्ण के लिये नकुल का मारना सहज था, तो भी कुन्ती को दिये हुए वचन याद करके उसने उसे जीवित ही छोड़ दिया; क्योंकि कर्ण धर्म का ज्ञाता था। नकुल को इस पराजय से बड़ा दुःख हुआ। वह उचछ्वास लेता हुआ अत्यन्त संकोच के साथ जाकर युधिष्ठिर के रथ में बैठ गया। इतने में सूर्यदेव आकाश मे मध्यभाग में आ गये। उस दुपहरी में सूतपुत्र कर्ण चारों ओर चक्र के समान घूमता हुआ पांचालों का संहार करने लगा। शत्रुओं के रथ टूट गये, ध्वजा पताकाएँ कट गयीं, घोड़े और सारथि मारे गये तथा बहुतों के रथ के धुरे खण्डित हो गये।
कुछ ही देर में पांचालसेना के रथी भागते देखे गये। हाथियों के शरीर खून से लथपथ हो गये। वे उन्मत्त की भाँति इधर_उधर भागने लगे।
ऐसा जान पड़ता था, मानो वे किसी बड़े भारी जंगल में जाकर दावानल से दग्ध हो गये हैं। उस समय हमें सब ओर कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों से कटे अनेकों सिर, भुजा और जंघाएँ दिखायी देती थीं। संग्रामभूमि में सृंजयवीरों पर कर्ण की बड़ी भीषण मार पड़ रही थी, तो भी पतंग जैसे अग्नि पर टूट पड़ते हैं, उसी प्रकार कर्ण की ओर ही बढ़ते जा रहे थे। महारथी कर्ण जहाँ_तहाँ पाण्डव_सेनाओं को भष्म कर रहा था; अतः क्षत्रियलोग उसे प्रलयकालीन अग्नि के समान समझकर उसके आने से भागने लगे। पांचालवीरों में से भी जो योद्धा मरने से बचे थे, वे सब मैदान छोड़कर भाग गये। 

अर्जुन के द्वारा संशप्तकों तथा अश्त्थामा के हाथ से राजा पाण्ड्य का वध

संजय कहते हैं_महाराज ! अर्जुन ने मंगल ग्रह की भाँति वक्र और अतिवक्र  गति से चलकर बहुसंख्यक संशप्तकों का नाश कर डाला।
अनेकों पैदल, घुड़सवार, रथी और हाथी अर्जुन के बाणों की मार से अपना धैर्य खो बैठे, कितने ही चक्कर काटने लगे। कुछ भाग गये और बहुत_से गिरकर मर गये। उन्होंने भल्ल, क्षुर, अर्धचन्द्र तथा वत्सदन्त आदि अस्त्रों से अपने शत्रुओं के घोड़े, सारथी, ध्वजा, धनुष, बाण, हाथ, हाथ के हथियार, भुजाएँ और मस्तक काट गिराये।
इसी बीच में उपायुध के पुत्र ने तीन बाणों से अर्जुन को बींध दिया। यह देख अर्जुन ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। उस समय उपायुध के समस्त सैनिक क्रोध में भरकर अर्जुन पर नाना प्रकार के अस्त्र_शस्त्रों की वर्षा करने लगे। परन्तु अर्जुन ने अपने अस्त्रों से शत्रुओं की अस्त्रवर्षा रोक दी और सायकों की झड़ी लगाकर बहुतों_से शत्रुओं का वध कर डाला। उसी समय भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा_’अर्जुन ! तुम खिलवाड़ क्यों कर रहे हो ? इन संसप्तकों का अंत करके अब कर्ण का वध करने के लिये शीघ्र तैयार हो जाओ।‘ ‘अच्छा ! ऐसा ही करता हूँ’_यह कहकर अर्जुन ने शेष संशप्तकों का संहार आरंभ किया। अर्जुन इतनी शीघ्रता से बाण हाथ में लेते, संधान करते और छोड़ते थे कि बहुत सावधानी से देखनेवाले भी उनकी इन सब बातों को देख नहीं पाते थे। अर्जुन का हस्तलाघव देखकर स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण भी आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने अर्जुन से कहा_’पार्थ ! इस पृथ्वी पर दुर्योधन के कारण राजाओं का यह महासंहार हो रहा है। आज तुमने जो पराक्रम किया है वैसा स्वर्ग में केवल इन्द्र ने ही किया था।‘ इस प्रकार बातें करते हुए श्रीकृष्ण तथा अर्जुन चले जा रहे थे, इतने में ही उन्हें दुर्योधन की सेना के पास शंख, दुंदुभी और भेरी आदि पणव आदि बाजों की आवाज सुनाई दी।
तब श्रीकृष्ण ने घोड़ों को बढ़ाया और वहाँ पहुँचकर देखा कि राजा पाण्ड्य के द्वारा दुर्योधन की सेना का विकट विध्धवंस हुआ है। यह देख उन्हें बड़ा विस्मय हुआ। राजा पाण्ड्य अस्त्रविद्या तथा धनुर्विद्या में प्रवीण थे। उन्होंने अनेकों प्रकार के बाण मारकर शत्रु समुदाय का नाश कर डाला था। शत्रुओं के प्रधान_प्रधान वीरों ने उनपर जो_जो अस्त्र छोड़े थे, उन सबको अपने सायकों से काटकर वे उन वीरों को यमलोक भेज चुके थे।
धृतराष्ट्र ने कहा_संजय ! अब तुम मुझसे राजा पाण्ड्य के पराक्रम, अस्त्रशिक्षा, प्रभाव और बल का वर्णन करो। संजय ने कहा, महाराज ! आप जिन्हें श्रेष्ठ महारथी मानते हैं, उन सबको राजा पाण्ड्य अपने पराक्रम के सामने तुच्छ गिनते थे। अपने समान भीष्म और द्रोण की समानता बतलाना भी उन्हें बर्दाश्त नहीं होता था। श्रीकृष्ण और अर्जुन से किसी भी बात में अपने को कम नहीं समझते थे। इस प्रकार पाण्ड्य समस्त राजाओं तथा संपूर्ण अस्त्रधारियों में श्रेष्ठ थे।
वे कर्ण की सेना का संहार कर रहे थे। उन्होंने संपूर्ण योद्धाओं को छिन्न_भिन्न कर दिया, हाथियों और उनके सवारों को पताका, ध्वजा और अस्त्रों से हीन करके पादरक्षकों सहित मार डाला। पुलिंद, खस, बाह्लीक, निषाद, आन्ध्र, कुंतल, दक्षिणात्य और भोजदेशीय शूरवीरों को शस्त्रहीन तथा कवचशून्य करके उन्होंने मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार उन्हें कौरवों की चतुरंगिणी सेना का नाश करते देख अश्त्थामा उनका सामना करने के लिये आया। उसने राजा पाण्ड्य के ऊपर पहले प्रहार किया, तब उन्होंने एक कर्णी नामक बाण मारकर अश्त्थामा को बींध डाला। इसके बाद अश्त्थामा ने मर्मस्थान को विदीर्ण कर देनेवाले अत्यंत भयंकर बाण हाथ में लिये और राजा पाण्ड्य के ऊपर हँसते_हँसते उनका प्रहार किया। तत्पश्चात् उसने तेज की हुई धारवाले कई तीखे नाराच उठाये और पाण्ड्य पर उनका दशमी गति से ( दशमी गति से मारा हुआ बाण मस्तक को धड़ से अलग कर देता है।) प्रयोग किया। परन्तु पाण्ड्य ने नौ तीखे बाण मारकर उन नाराचों को काट डाला और उसके पहियों की रक्षा करनेवाले योद्धाओं को भी मार डाला।
अपने शत्रु की यह फुर्ती देखकर अश्त्थामा ने धनुष को मण्डलाकार बना लिया और बाणों की बौछार करने लगा। आठ_आठ बैलों से खींचे जानेवाले आठ गाड़ियों में जितने बाण लदे थे, उन सबको अश्त्थामा ने आधे पहर में ही समाप्त कर दिया। उस समय उसका स्वरूप क्रोध से भरे हुए यमराज के समान हो रहा था। जिन लोगों ने उसे देखा, वे प्रायः होश_हवास खो बैठे। अश्त्थामा के चलाये हुए उन सभी बाणों ने पाण्ड्य ने वयव्यास्त्र से उड़ा दिया और उच्चस्वर से गर्जना की।
तब द्रोणकुमार ने उनकी ध्वजा काटकर चारों घोड़ों और सारथि को यमलोक भेज दिया तथा अर्धचन्द्राकार बाण से धनुष काटकर रथ की भी धज्जियाँ उड़ा दीं। उस समय यद्यपि महारथी पाण्ड्य रथ से शून्य हो गये थे, तो भी अश्त्थामा ने उन्हें मारा नहीं। उनके साथ युद्ध करने की इच्छा अभी बनी ही हुई थी। इसी समय एक महाबली गजराज बड़े वेग से दौड़ता हुआ वहाँ आ पहुँचा, उसका सवार मारा जा चुका था। राजा पाण्ड्य हाथी के युद्ध में बड़े निपुण थे। उस पर्वत के समान ऊँचे गजराज को देखते ही वे उसकी पीठ पर जा बैठे। अब तो क्रोध के मारे द्रोणकुमार के बदन में आग लग गयी, उसने शत्रु  को पीड़ा देनेवाले यमदण्ड के समान भयंकर चौदह बाण हाथ में लिये। उनमें से पाँच बाणों से तो उसने हाथी को  पैरों से लेकर सूँड़ तक बींध डाला, तीन से राजा की दोनों भुजाओं और मस्तक को काट गिराया तथा शेष छः बाणों पाण्ड्य के अनुयायी छः महारथियों को यमलोक पठाया। इस प्रकार मबाबली पाण्ड्य को मारकर जब अश्त्थामा ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया तो आपका पुत्र दुर्योधन अपने मितेरों के साथ उसके पास आया और बड़ी प्रसन्नता के साथ उसने उसका स्वागत_सत्कार किया।