Monday 7 December 2020

अर्जुन के द्वारा संशप्तकों तथा अश्त्थामा के हाथ से राजा पाण्ड्य का वध

संजय कहते हैं_महाराज ! अर्जुन ने मंगल ग्रह की भाँति वक्र और अतिवक्र  गति से चलकर बहुसंख्यक संशप्तकों का नाश कर डाला।
अनेकों पैदल, घुड़सवार, रथी और हाथी अर्जुन के बाणों की मार से अपना धैर्य खो बैठे, कितने ही चक्कर काटने लगे। कुछ भाग गये और बहुत_से गिरकर मर गये। उन्होंने भल्ल, क्षुर, अर्धचन्द्र तथा वत्सदन्त आदि अस्त्रों से अपने शत्रुओं के घोड़े, सारथी, ध्वजा, धनुष, बाण, हाथ, हाथ के हथियार, भुजाएँ और मस्तक काट गिराये।
इसी बीच में उपायुध के पुत्र ने तीन बाणों से अर्जुन को बींध दिया। यह देख अर्जुन ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। उस समय उपायुध के समस्त सैनिक क्रोध में भरकर अर्जुन पर नाना प्रकार के अस्त्र_शस्त्रों की वर्षा करने लगे। परन्तु अर्जुन ने अपने अस्त्रों से शत्रुओं की अस्त्रवर्षा रोक दी और सायकों की झड़ी लगाकर बहुतों_से शत्रुओं का वध कर डाला। उसी समय भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा_’अर्जुन ! तुम खिलवाड़ क्यों कर रहे हो ? इन संसप्तकों का अंत करके अब कर्ण का वध करने के लिये शीघ्र तैयार हो जाओ।‘ ‘अच्छा ! ऐसा ही करता हूँ’_यह कहकर अर्जुन ने शेष संशप्तकों का संहार आरंभ किया। अर्जुन इतनी शीघ्रता से बाण हाथ में लेते, संधान करते और छोड़ते थे कि बहुत सावधानी से देखनेवाले भी उनकी इन सब बातों को देख नहीं पाते थे। अर्जुन का हस्तलाघव देखकर स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण भी आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने अर्जुन से कहा_’पार्थ ! इस पृथ्वी पर दुर्योधन के कारण राजाओं का यह महासंहार हो रहा है। आज तुमने जो पराक्रम किया है वैसा स्वर्ग में केवल इन्द्र ने ही किया था।‘ इस प्रकार बातें करते हुए श्रीकृष्ण तथा अर्जुन चले जा रहे थे, इतने में ही उन्हें दुर्योधन की सेना के पास शंख, दुंदुभी और भेरी आदि पणव आदि बाजों की आवाज सुनाई दी।
तब श्रीकृष्ण ने घोड़ों को बढ़ाया और वहाँ पहुँचकर देखा कि राजा पाण्ड्य के द्वारा दुर्योधन की सेना का विकट विध्धवंस हुआ है। यह देख उन्हें बड़ा विस्मय हुआ। राजा पाण्ड्य अस्त्रविद्या तथा धनुर्विद्या में प्रवीण थे। उन्होंने अनेकों प्रकार के बाण मारकर शत्रु समुदाय का नाश कर डाला था। शत्रुओं के प्रधान_प्रधान वीरों ने उनपर जो_जो अस्त्र छोड़े थे, उन सबको अपने सायकों से काटकर वे उन वीरों को यमलोक भेज चुके थे।
धृतराष्ट्र ने कहा_संजय ! अब तुम मुझसे राजा पाण्ड्य के पराक्रम, अस्त्रशिक्षा, प्रभाव और बल का वर्णन करो। संजय ने कहा, महाराज ! आप जिन्हें श्रेष्ठ महारथी मानते हैं, उन सबको राजा पाण्ड्य अपने पराक्रम के सामने तुच्छ गिनते थे। अपने समान भीष्म और द्रोण की समानता बतलाना भी उन्हें बर्दाश्त नहीं होता था। श्रीकृष्ण और अर्जुन से किसी भी बात में अपने को कम नहीं समझते थे। इस प्रकार पाण्ड्य समस्त राजाओं तथा संपूर्ण अस्त्रधारियों में श्रेष्ठ थे।
वे कर्ण की सेना का संहार कर रहे थे। उन्होंने संपूर्ण योद्धाओं को छिन्न_भिन्न कर दिया, हाथियों और उनके सवारों को पताका, ध्वजा और अस्त्रों से हीन करके पादरक्षकों सहित मार डाला। पुलिंद, खस, बाह्लीक, निषाद, आन्ध्र, कुंतल, दक्षिणात्य और भोजदेशीय शूरवीरों को शस्त्रहीन तथा कवचशून्य करके उन्होंने मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार उन्हें कौरवों की चतुरंगिणी सेना का नाश करते देख अश्त्थामा उनका सामना करने के लिये आया। उसने राजा पाण्ड्य के ऊपर पहले प्रहार किया, तब उन्होंने एक कर्णी नामक बाण मारकर अश्त्थामा को बींध डाला। इसके बाद अश्त्थामा ने मर्मस्थान को विदीर्ण कर देनेवाले अत्यंत भयंकर बाण हाथ में लिये और राजा पाण्ड्य के ऊपर हँसते_हँसते उनका प्रहार किया। तत्पश्चात् उसने तेज की हुई धारवाले कई तीखे नाराच उठाये और पाण्ड्य पर उनका दशमी गति से ( दशमी गति से मारा हुआ बाण मस्तक को धड़ से अलग कर देता है।) प्रयोग किया। परन्तु पाण्ड्य ने नौ तीखे बाण मारकर उन नाराचों को काट डाला और उसके पहियों की रक्षा करनेवाले योद्धाओं को भी मार डाला।
अपने शत्रु की यह फुर्ती देखकर अश्त्थामा ने धनुष को मण्डलाकार बना लिया और बाणों की बौछार करने लगा। आठ_आठ बैलों से खींचे जानेवाले आठ गाड़ियों में जितने बाण लदे थे, उन सबको अश्त्थामा ने आधे पहर में ही समाप्त कर दिया। उस समय उसका स्वरूप क्रोध से भरे हुए यमराज के समान हो रहा था। जिन लोगों ने उसे देखा, वे प्रायः होश_हवास खो बैठे। अश्त्थामा के चलाये हुए उन सभी बाणों ने पाण्ड्य ने वयव्यास्त्र से उड़ा दिया और उच्चस्वर से गर्जना की।
तब द्रोणकुमार ने उनकी ध्वजा काटकर चारों घोड़ों और सारथि को यमलोक भेज दिया तथा अर्धचन्द्राकार बाण से धनुष काटकर रथ की भी धज्जियाँ उड़ा दीं। उस समय यद्यपि महारथी पाण्ड्य रथ से शून्य हो गये थे, तो भी अश्त्थामा ने उन्हें मारा नहीं। उनके साथ युद्ध करने की इच्छा अभी बनी ही हुई थी। इसी समय एक महाबली गजराज बड़े वेग से दौड़ता हुआ वहाँ आ पहुँचा, उसका सवार मारा जा चुका था। राजा पाण्ड्य हाथी के युद्ध में बड़े निपुण थे। उस पर्वत के समान ऊँचे गजराज को देखते ही वे उसकी पीठ पर जा बैठे। अब तो क्रोध के मारे द्रोणकुमार के बदन में आग लग गयी, उसने शत्रु  को पीड़ा देनेवाले यमदण्ड के समान भयंकर चौदह बाण हाथ में लिये। उनमें से पाँच बाणों से तो उसने हाथी को  पैरों से लेकर सूँड़ तक बींध डाला, तीन से राजा की दोनों भुजाओं और मस्तक को काट गिराया तथा शेष छः बाणों पाण्ड्य के अनुयायी छः महारथियों को यमलोक पठाया। इस प्रकार मबाबली पाण्ड्य को मारकर जब अश्त्थामा ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया तो आपका पुत्र दुर्योधन अपने मितेरों के साथ उसके पास आया और बड़ी प्रसन्नता के साथ उसने उसका स्वागत_सत्कार किया।

No comments:

Post a Comment