Tuesday 28 August 2018

अभिमन्यु के द्वारा कौरववीरों का संहार और छः महारथियों के प्रयत्न से उसका वध


संजय कहते हैं___तदनन्तर, कर्ण और अभिमन्यु दोनों परस्पर युद्ध करते हुए लोहूलुहान हो गये। इसके बाद कर्ण के छः मंत्री सामने आये। वे सभी विचित्र प्रकार से युद्ध करनेवाले थे। किन्तु अभिमन्यु ने उन्हें घोड़े और सारथियों सहित नष्ट कर दिया तथा दूसरे धनुर्धारियों को भी दस_दस बाण मारकर बींध डाला। उसका यह कार्य अद्भुत_सा हुआ। इसके बाद उसने मगधराज के पुत्र को छः बाणों से मृत्यु के मुख में भेजकर घोड़े और सारथिसहित अश्वकेतु को भी मार गिराया  फिर मर्तिकावतक देश के राजा भोज को क्षुरप्र नामक बाण से मौत के घाट उतारकर बाणवर्षा करते हुए सिंहनाद किया। इतने में दुःशासन के पुत्र ने आकर चार बाणों से  घोड़ों को, एक से सारथि को और दस ये अभिमन्यु को भी बींध दिया। तब अभिमन्यु ने भी सात बाणों से दुःशासन के पुत्र को घायल करके कहा___’ अरे ! तेरा पिता तो कायर की भाँति युद्ध छोड़कर भाग गया, अब तू लड़ने चला है ? सौभाग्य की बात है कि तू भी लड़ना जानता है, किन्तु आज तुझे जीवित नहीं छोड़ूँगा।‘ यह कहकर उसने दुःशासन के पुत्र पर एक तीखा बाण चलाया, किन्तु अश्त्थामा ने अपने तीन बाणों से उसे काट दिया। तब अभिमन्यु ने अश्त्थामा की ध्वजा काटकर तीन बाणों से शल्य को पीड़ित किया। शल्य ने भी उसकी छाती में नौ बाण मारे। अभिमन्यु ने शल्य की ध्वजा काटकर उसके पार्श्वरक्षक और सारथि को भी मार डाला, फिर छः बाणों से शल्य को भी बींधा। शल्य उस रथ से भागकर दूसरे रथ में जा बैठे। इसके बाद सुभद्राकुमार ने शत्रुंजय, चन्द्रकेतु, मेघवेग, सुवर्चा और सूर्यभास___ इन पाँच राजाओं का वध करके शकुनि को भी बाणों से घायल किया। शकुनि ने भी तीन बाणों से अभिमन्यु को बींधकर दुर्योधन से कहा___'देखो, यह पहले से एक_एक करके हमलोगों को मार रहा है, अब हम सब लोग मिलकर इसे मार डालें।तदनन्तर कर्ण ने द्रोणाचार्य से कहा_____’ अभिमन्यु पहले से ही हम सब लोगों को कुचल रहा है; अब इसके वध का कोई उपाय हमें शीघ्र बताइये।‘ तब महान् धनुर्धर द्रोण ने सब लोगों से कहा___’इस पाण्डुनन्दन की फुर्ती तो देखो, बाणों को चढ़ाते और छोड़ते समय इस रथमार्ग में केवल इसका मण्डलाकार धनुष ही दिखायी पड़ता है; वह स्वयं कहाँ है, इसका पता नहीं चलता ! सुभद्रानन्दन अपने बाणों ले मुझे क्षत_विक्षत कर रहा है, मेरे प्राण मूर्छित हो रहे हैं; तो भी इसका पराक्रम देखकर मुझे हर्ष ही होता है। अपने हाथों की फुर्ती के कारण यह समस्त दिशाओं में बाणों की वर्षा कर रहा है। इस समय अर्जुन में तथा इसमें कोई अन्तर दिखायी नहीं देता।‘ यह सुनकर कर्ण ने अभिमन्यु के बाणों से आहत होकर पुनः द्रोण से कहा, ‘आचार्य ! अभिमन्यु मुझे बड़ा कष्ट दे रहा है ! मुझे साहसपूर्वक खड़ा रहना चाहिये___यही सोचकर अभी तक खड़ा हूँ। इस तेजस्वी कुमार के तीखे बाण मेरे हृदय को चीरे डालते हैं।‘ कर्ण की बात सुनकर आचार्य द्रोण हँस पड़े और धीरे से बोले___’एक तो यह तरुण राजकुमार स्वयं ही शीघ्र पराक्रम दिखानेवाला है, दूसरे इसका कवच अभेद्य है। इसके पिता अर्जुन को जो मैंने कवच_धारण की विद्या सिखायी थी, निश्चय ही उस संपूर्ण विद्या को यह भी जानता है। अतः यदि इसका धनुष और प्रत्यंचा काटी जा सके, वागडोर काटकर घोड़े, पार्श्वरक्षक और सारथि मार दिये जा सकें, तो काम बन सकता है। राधानन्दन ! तुम बड़े धनुर्धर हो; यदि कर सके तो यही करो। सब प्रकार से असहाय करके इसे रण से हटाओ और पीछे से प्रहार करो। यदि इसके हाथ में धनुष रहा तो देवता और असुर भी इसे नहीं जीत सकते।‘ आचार्य की बात सुनकर कर्ण ने बाणों से अभिमन्यु के धनुष को काट डाला। कृतवर्मा ने उसके घोड़ों और कृपाचार्य ने पार्श्वरक्षक तथा सारथि को मार डाला। उसे धनुष और रथ से हीन देख बाकी महारथीलोग बड़ी शीघ्रता से,उस पर बाण बरसाने लगे। एक ओर छः महारथी थे, दूसरी ओर असहाय अभिमन्यु; तो भी वे निर्दयी उस अकेले बालक पर बाणवर्षा कर रहे थे। धनुष कट गया, रथ से हाथ धोना पड़ा; तो भी उसने अपने धर्म का पालन किया। हाथ में ढाल_ तलवार लेकर वह तेजस्वी बालक आकाश में उछल पड़ा। अपनी लाघिमा शक्ति से अभी वह गरुड़ की भाँति ऊपर मँडरा ही रहा था, तब तक द्रोणाचार्य ने ‘क्षुरप्र’ नामक बाण से उसकी तलवार के टुकड़े_टुकड़े कर दिये और कर्ण ने ढाल छिन्न_भिन्न कर दी।
अब उसके हाथ में तलवार भी न रही, सारे अंगों में बाण धँसे हुए थे; उसी दशा में वह आकाश से उतरा और क्रोध में भरकर चक्र हाथ में लिये  द्रोणाचार्य पर झपटा। उस समय वह चक्रधारी विष्णु की भाँति शोभायमान हो रहा था। उसे देखकर राजालोग बहुत डर गये और सबने मिलकर उसके चक्र के टुकड़े_टुकड़े कर दिये। तब महारथी अभिमन्यु ने बहुत बड़ी गदा हाथ में ली और अश्त्थामा पर चलायी। जलते हुए वज्र के समान उस गदा को आते देख अश्त्थामा रथ से उतरकर तीन कदम पीछे हट गया। गदा की चोट से उसके,घोड़े, पार्श्वरक्षक और सारथि मारे गये। इसके बाद अभिमन्यु ने सुबाहु के पुत्र कालिकेय को तथा उसके अनुचर सतहत्तर गांधारों को मौत के घाट उतारा। फिर दस बसातीय महारथियों को तथा सात केकय महारथियों का संहार कर दस हाथियों को मार डाला। तत्पश्चात् दुःशासनकुमार के रथ और घोड़ों को गदा से चूर्ण कर डाला। इससे दुःशासन के पुत्र को बड़ा क्रोध हुआ और वह भी गदा उठाकर अभिमन्यु की ओर दौड़ा। फिर तो दोनों एक_दूसरे को मारने की इच्छा से परस्पर प्रहार करने लगे। दोनों पर गदा के अग्रभाग की चोट पड़ी और दोनों साथ ही पृथ्वी पर गिर पड़े। दुःशासनकुमार पहले उठा और अभिमन्यु अभी उठ ही रहा था कि उसने उसके मस्तक पर गदा मारी। उसके प्रचण्ड आघात से बेचारा अभिमन्यु पुनः बेहोश होकर गिर पड़ा। महाराज ! इस प्रकार उस एक बालक को बहुत लोगों ने मिलकर मारा। आकाश से टूटकर गिरे हुए चन्द्रमा की भाँति उस शूरवीर को रणभूमि में गिरा देख अंतरिक्ष में खड़े हुए प्राणी भी हाहाकार करने लगे। सबने एक स्वर से कहा, ‘द्रोण और कर्ण_जैसे छः प्रधान महारथियों ने मिलकर इस अकेले बालक का वध किया है, इसे हमलोग धर्म नहीं मानते।‘ चन्द्रमा और सूर्य के तुल्य कान्तिमान् अभिमन्यु को इस प्रकार पड़ा देख आपके योद्धाओं को बड़ा हर्ष हुआ और पाण्डवों को मन में बड़ी पीड़ा हुई। राजन् ! अभिमन्यु अभी बालक था, युवावस्था में उसका पदार्पण नहीं हुआ था। उस वीर के मरते ही युधिष्ठिर के देखते_देखते संपूर्ण पाण्डवसेना भाग चली। यह देख युधिष्ठिर ने उन वीरों से कहा___’वीरों !  युद्ध में मृत्यु का अवसर आने पर भी अभिमन्यु ने पीठ नहीं दिखायी है। तुम भी उसी की भाँति धीरता सीखो, डरो मत। हमलोग निश्चय ही शत्रुओं पर विजय पायेंगे।‘ ऐसा कहकर धर्मराज ने अपने दुःखी सैनिकों का शोक दूर किया। राजन् ! अभिमन्यु श्रीकृष्ण और अर्जुन के समान पराक्रमी था, वह दस हजार राजकुमारों और महारथी कौसल्य को मारकर मरा है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि वह पुण्यवानों के अक्षय लोकों में गया है; अतः वह शोक करने योग्य नहीं है। महाराज ! इस प्रकार हमलोग पाण्डवों के उस श्रेष्ठ वीर को मारकर और उनके बाणों से पीड़ित एवं लोहूलुहान हो सायंकाल अपनी छावनी में चले गये। आते समय देखा, शत्रु भी बहुत दुःखी और उदास हो अपने शिविर को जा रहे हैं। उस समय श्रेष्ठ योद्धाओं ने रक्त की नदी बहा दी थी, जो वैतरणी के समान भयंकर और दुस्तर थी। रणभूमि के मध्य में बहती हुई वह नदी जीवित और मृतक सबको अपने प्रवाह में बहाये जा रही थी। अनेकों धड़ वहाँ नाच रहे थे। रणस्थल को देखने में डर मालूम होता था।

अभिमन्यु के द्वारा कौरव_सेना के कई प्रमुख वीरों का संहार

संजय कहते हैं___ तदनन्तर दुर्धर्ष वीर अभिमन्यु ने उस सेना के भीतर घुसकर इस प्रकार तहलका मचाया, जैसे बड़ा भारी मगर समुद्र में हलचल पैदा कर देता है। आपकी सेना के प्रधान वीरों ने रथों से अभिमन्यु को घेर रखा था तो भी उसने वृषसेन के सारथि को मारकर उसके धनुष को भी काट डाला। बलवान् वृषसेन भी अपने बाणों से अभिमन्यु के घोड़ों को बींधने लगा। घोड़े रथ लिये हुए वहाँ से हवा हो गये। यह विघ्न आ पड़ने से सारथि रथ को दूर हटा ले गया। थोड़ी ही देर में शत्रुओं को रौंदते हुए अभिमन्यु को पुनः आते देख बसातीय ने तुरंत उनका सामना किया। उसने अभिमन्यु को साठ बाणों से घायल कर डाला। तब अभिमन्यु ने बसातीय की छाती में एक ही बाण मारा, जिससे वह प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। यह देख आपकी सेना के बड़े_बड़े क्षत्रियों ने क्रोध में भरकर अभिमन्यु को मार डालने की इच्छा से घेर लिया। उसके साथ उनका बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। अभिमन्यु ने कुपित हो उनके धनुष और बाणों के टुकड़े_टुकड़े करके कुण्डल और मालाओं से मण्डित मस्तक भी काट डाले। तत्पश्चात् मद्रराज का बलवान पुत्र रुक्मरथ आया और डरी हुई सेना को आश्वासन देता हुआ बोला___'वीरों ! डरो मत। मेरे रहते इस अभिमन्यु की कोई हस्ती नहीं है। संदेह न करो, मैं इसे जीते_जी पकड़ लूँगा।‘ यह रहकर वह अभिमन्यु की ओर दौड़ा और उसकी छाती तथा दायीं_बायीं भुजाओं में तीन_ तीन बाण मारकर गर्जने लगा। तब अभिमन्यु ने उसका धनुष काट दिया और शीघ्र ही उसकी दोनों भुजाओं तथा मस्तक को काटकर पृथ्वी पर गिरा दिया।
राजकुमार रुक्मरथ के कई मित्र थे, वे भी रण में उन्मत्त होकर लड़नेवाले थे। उन्होंने अपने महान् धनुष चढ़ाकर बाणों की वर्षा से अभिमन्यु को ढक दिया। यह देख दुर्योधन को बड़ा हर्ष हुआ; उसने यही समझा कि बस, अब तो अभिमन्यु यमलोक में पहुँच गया। किन्तु अभिमन्यु ने उस समय गन्धर्वास्त्र का प्रयोग किया। वह अन्य बाणों की वृष्टि करता हुआ युद्ध में कभी एक, कभी सौ और कभी हजार का संख्या में दिखाई देता था। अभिमन्यु ने गन्धर्वास्त्र की माया से उन राजकुमारों को मोहित करके उनके शरीर के सैकड़ों टुकड़े कर डाले। कितनों के धनुष, ध्वजा, घोड़े, सारथि, भुजाएँ तथा मस्तक काट डाले। एक अभिमन्यु के द्वारा इतने राजपुत्रों को मारा गया देख दुर्योधन भयभीत हो गया। रथी, हाथी, घोड़ों और पैदलों को रणभूमि में गिरते देख वह क्रोध से भरा हुआ अभिमन्यु के पास आया। उन दोनों में युद्ध छिड़ गया। अभी क्षणभर भी पूरा नहीं होने पाया कि सैकड़ों बाणों से आहत होकर दुर्योधन भाग गया। धृतराष्ट्र ने कहा___सूत ! जैसा कि तुम बता रहे हो, अकेले अभिमन्यु का बहुत से योद्धाओं के साथ संग्राम हुआ तथा उसमें विजय भी उसी की हुई___ सहसा इस बात पर विश्वास नहीं होता। वास्तव में सुभद्राकुमार का यह पराक्रम आश्चर्यजनक है। किन्तु जिन लोगों के धर्म पर भरोसा है, उनके लिये यह कोई अद्भुत बात नहीं है। संजय ! जब दुर्योधन भाग गया और सैकड़ों राजकुमार मारे गये, उस समय मेरे पुत्रों ने अभिमन्यु के लिये क्या उपाय किया? संजय ने कहा___ महाराज ! उस समय आपके योद्धाओं के मुँह सूख गये थे, आँखें कातर हो रहीं थी, शरीर में रोमांच हो आया था और पसीने चू रहे थे। शत्रु को जीतने का उत्साह नहीं रह गया था, सब भागने की तैयारी  में थे। मरे हुए भाई, पिता, पुत्र, सुहृद्, संबंधी तथा बन्धु_बान्धवों को छोड़_छोड़कर अपने हाथी और घोड़ों को जल्दी_ जल्दी हाँकते हुए रणभूमि से दूर निकल गये। उन्हें इस प्रकार हतोत्साह होकर भागते देख द्रोण, अश्त्थामा, बृहद्वल, कृपाचार्य, दुर्योधन, कर्ण, कृतवर्मा और शकुनि____ ये सब क्रोध में भरे हुए समरविजयी अभिमन्यु की ओर दौड़े। किन्तु अभिमन्यु ने इन्हें फिर अनेकों बार रण से बिमुख किया। केवल लक्ष्मण ही सामने डटा रहा। पुत्र के स्नेह से उसके पीछे दुर्योधन भी लौट आया; फिर दुर्योधन के पीछे अन्य महारथी भी लौट पड़े। अब सबने मिलकर अभिमन्यु पर बाण बरसाना आरम्भ किया। किन्तु अभिमन्यु ने अकेले ही उन सब महारथियों को परास्त कर दिया और लक्ष्मण के सामने जाकर कहा___ ‘भाई ! एक बार इस संसार को अच्छी तरह देख लो; क्योंकि अभी तुम्हें परलोक की यात्रा करनी है। आज तुम्हारे बन्धु_बान्धवों के देखते_देखते तुम्हें यमलोक भेज रहा हूँ।‘ यह कहकर महाबाहु सुभद्राकुमार ने लक्ष्मण की,ओर एक भल्ल चलाकर उसके सुन्दर नासिका, मनोहर भृगुटि तथा घुँघराले बालोंवाले कुण्डलमण्डित मस्तक को धड़ से अलग कर दिया। कुमार लक्ष्मण को मरा देख लोगों में हाहाकार मच गया। अपने प्यारे पुत्र के गिरते ही दुर्योधन के क्रोध की सीमा नहीं रही। उसने समस्त क्षत्रियों से पुकारकर कहा___’मार डालो इसे ।‘ तब द्रोण, कृप, कर्ण, अश्त्थामा, बृहद्वल तथा कृतवर्मा____ इन छः महारथियों ने अभिमन्यु को चारों ओर से घेर लिया। किन्तु अर्जुनकुमार ने अपने तीखे बाणों से घायल करके उन सबको पुनः भगा दिया और बड़े वेग से जयद्रथ के सेना की ओर धावा किया। यह देख कलिंग और निषादवीरों के साथ क्राथपुत्र ने आकर हाथियों की सेना से अभिमन्यु का मार्ग रोक दिया। फिर तो उनके साथ बड़ा भयानक युद्ध हुआ। अभिमन्यु ने उस गजसेना का संहार कर दिया। तदनन्तर क्राथ अर्जुनकुमार पर बाण_समूहों की वर्षा करने लगा। इतने में भागे हुए द्रोण आदि महारथी भी लौटे और अपने धनुष की टंकार करके हुए अभिमन्यु पर चढ़ आये। किंतु उसने अपने बाणों से उन सब महारथियों को रोककर क्राथपुत्र को भलीभाँति पीड़ित किया। फिर असंख्य बाणों की वर्षा करके उसके धनुष, बाण, केयूर, बाहु, मुकुट तथा मस्तक को भी काट डाला। साथ ही उसके छत्र, ध्वजा, सारथि और घोड़ों तो भी रणभूमि में गिरा दिया। क्राथ के गिरते ही सेना के अधिकांश योद्धा विमुख होकर भागने लगे। तब द्रोण आदि छः महारथियों ने पुनः अभिमन्यु को घेरा। यह देख अभिमन्यु ने द्रोण को पचास, बृहद्वल को बीस, कृतवर्मा को अस्सी, कृपाचार्य को साठ और अश्त्थामा को दस बाणों से बींध डाला। तदनन्तर, उसने कौरवों की कीर्ति बढ़ानेवाले वीर वृन्दारक को आपके पुत्रों के देखते_ देखते मार डाला। तब अभिमन्यु के ऊपर द्रोण ने सौ, अश्त्थामा ने आठ, कर्ण ने बाईस, कृतवर्मा ने बीस, बृहद्वल ने पचास और कृपाचार्य ने दस बाण मारे। इस प्रकार उनके द्वारा सब ओर से पीड़ित होते हुए भी सुभद्राकुमार ने उन सबको दस_दस बाणों से मारकर घायल कर दिया। इसके बाद कोसलनरेश ने अभिमन्यु की छाती में एक बाण मारा। अभिमन्यु ने उसके घोड़े, ध्वजा, धनुष और सारथि को काटकर पृथ्वी पर गिरा दिया। रथ से हीन कोसलनरेश ने ढाल_तलवार हाथ में ले ली और अभिमन्यु के कुण्डलयुक्त मस्तक को काट लेने का विचार किया; इतने में ही अभिमन्यु ने उसकी छाती में बाण मारा। उसके लगते ही कोसलराज का हृदय फट गया और वे उस रण_भूमि में गिर गये। साथ ही अभिमन्यु ने वहाँ उन दस हजार महाबली राजाओं का भा वध कर दिया जो खड़े_खड़े अमंगलसूचक बातें निकाल रहे थे। इस प्रकार सुभद्रानन्दन बाणों की वर्षा से आपके योद्धाओं की गति रोककर रणभूमि में विचरने लगा।

Sunday 12 August 2018

दुःशासन और कर्ण की पराजय तथा जयद्रथ का पराक्रम

संजय कहते हैं___ राजन् ! उस समय अभिमन्यु ने दुःशासन से हँसकर कहा___’दुर्मते !  तूने मेरे पितृवर्ग का राज्य हर लिया है, उसके कारण तथा तेरे लोभ, अज्ञान, द्रोह और दुःसाहस के कारण महात्मा पाण्डव तुझ पर अत्यन्त कुपित हैं, इसी से आज तुझे यह दिन देखना पड़ा है। आज उस पाप का भयंकर फल तू भोग। क्रोध से भरी हुई माता द्रौपदी की तथा बदला लेने वाले पिता भीमसेन की इच्छा पूर्ण करके आज मैं उनके ऋण से उऋण हो जाऊँगा। यदि तू युद्ध छोड़कर भाग नहीं गया तो मेरे हाथ से जीता नहीं बच सकता।‘ यह कहकर अभिमन्यु ने दुःशासन की छाती में कालाग्नि के समान तेजस्वी बाण मारा। वह बाण उसकी छाती में लगा और गले की हँसली छेदकर निकल गया। इसके बाद धनुष को कान तक खींचकर पुनः उसने दुःशासन को पच्चीस बाण मारे। इससे अच्छी तरह घायल होकर वह व्यथा के मारे रथ के पिछले भाग में जा बैठा और बेहोश हो गया। यह देख सारथि उसे रण से बाहर ले गया। उस समय युधिष्ठिर आदि पाण्डव, द्रौपदी के पुत्र, सात्यकि, चेकितान, धृष्टधुम्न, शिखण्डी, केकय, धृष्टकेतु तथा मत्स्य, पांचाल और संजयवीर बड़ी प्रसन्नता के साथ द्रोण की सेना को नष्ट करने की इच्छा से आगे बढ़े। फिर तो कौरवों और पाण्डवों की सेना में महान् युद्ध होने लगा। इधर कर्ण अत्यन्त क्रोध में भरकर अभिमन्यु के ऊपर तीक्ष्ण बाणों की वर्षा करने लगा और उसका तिरस्कार करते हुए उसके अनुचरों को भी बाणों से बींधने लगा। अभिमन्यु ने भी तुरंत ही उसे तिहत्तर बाणों से बींध डाला। उस समय उसकी गति कोई नहीं रोक सका। तदनन्तर, कर्ण ने अपनी उत्तम अस्त्र_विद्या का प्रदर्शन करते हुए सैकड़ों बाणों से अभिमन्यु को बींध डाला। कर्ण के द्वारा पीड़ित होकर भी सुभद्राकुमार शिथिल नहीं हुआ; उसने तेज बाणों से शूरवीरों के धनुष काटकर कर्ण को भी खूब घायल किया। साथ ही उसके छत्र, ध्वजा, सारथि और घोड़ों को भी हँसते_ हँसते बींध डाला। फिर कर्ण ने भी उसे कई बाण मारे, किन्तु अभिमन्यु ने अविचल भाव से सबको झेल लिया और उस मुहूर्त में एक ही बाण से कर्ण के धनुष और ध्वजा को काटकर पृथ्वी पर गिरा दिया। इस प्रकार कर्ण को संकट में फँसा देखकर उसका छोटा भाई सुदृढ़ धनुष ले अभिमन्यु का सामना करने को आ गया। उसने आते ही दस बाण मारकर अभिमन्यु को छत्र, ध्वजा, सारथि और घोड़ों सहित बींध डाला। यह देख आपके पुत्र बहुत प्रसन्न हुए। तब अभिमन्यु ने मुस्कराकर एक ही बाण से उसका मस्तक काट गिराया। राजन् ! भाई को मरा देख कर्ण बहुत दुःखी हुआ। इधर सुभद्राकुमार ने कर्ण को विमुख करके दूसरे धनुर्धरों पर धावा किया। क्रोध में भरकर वह हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों से युक्त उस विशाल सेना का संहार करने लगा। कर्ण तो उसके बाणों से बहुत पीड़ित हो चुका था, इसलिये अपने शीघ्रगामी घोड़ों को हाँककर रणभूमि से भाग गया। इससे व्यूह टूट गया। उस समय टिड्डियों या जल की धाराओं के समान अभिमन्यु के बाणों से आकाश आच्छादित हो जाने के कारण कुछ सूझ नहीं पड़ता था। सिंधुराज जयद्रथ के सिवा दूसरा कोई रथी वहाँ टिक न सका। अभिमन्यु अपने बाणों से शत्रुसेना को दग्ध करता हुआ व्यूह में विचरने लगा। रथ, घोड़े, हाथी और मनुष्यों का संहार होने लगा। पृथ्वी पर बिना मस्तक की लाशों बिछ गयीं। कौरव_योद्धा अभिमन्यु के बाणों से क्षत_विक्षत हो प्राण बचाने के लिये भागने लगे। उस समय वे सामने खड़े हुए अपने ही दल के लोगों को मारकर आगे बढ़ रहे थे और अभिमन्यु उस सेना को खदेड़_खदेड़कर मार रहा था। व्यूह के बीच तेजस्वी अभिमन्यु ऐसा दीख पड़ता था, जैसे तिनकों के ढेर में प्रज्वलित अग्नि। धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! अभिमन्यु ने जिस समय व्यूह में प्रवेश किया, उसके साथ युधिष्ठिर की सेना कोई और वीर गया था या नहीं ? संजय ने कहा___महाराज ! युधिष्ठिर, भीमसेन, शिखण्डी, सात्यकि,नकुल, सहदेव, धृष्टधुम्न, विराट, द्रुपद, केकय, धृष्टकेतु और मत्स्य आदि योद्धा व्यूहाकार में संगठित होकर अभिमन्यु की रक्षा के लिये उसके साथ_साथ चले। उन्हें धावा करते देख आपके सैनिक भागने लगे। तब आपके जामाता जयद्रथ ने दिव्य अस्त्रों का प्रयोग करके पाण्डवों को सेनासहित रोक दिया। धृतराष्ट्र ने कहा___संजय ! मैं तो समझता हूँ जयद्रथ के ऊपर यह बहुत बड़ा भार आ पड़ा, जो अकेले होने पर भी उसने क्रोध में भरे हुए पाण्डवों को रोका। भला जयद्रथ ने कौन_सा ऐसा महान् तप किया था जिससे पाण्डवों को रोकने में समर्थ हो सका ?
संजय ने कहा___जयद्रथ ने वन में द्रौपदी का अपहरण किया था, उस समय भीमसेन से उसे परास्त होना पड़ा। इस अपमान से दुःखी होकर उसने भगवान् शंकर की अराधना करते हुए बड़ी कठोर तपस्या की। भक्तवत्सल भगवान् ने उस पर दया की और स्वप्न में दर्शन देकर कहा___’जयद्रथ ! मैं तुझपर प्रसन्न हूँ, इच्छानुसार वर माँग ले।‘ वह प्रणाम करके बोला___’मैं चाहता हूँ अकेले ही समस्त पाण्डवों को युद्ध में जीत सकूँ।‘ भगवान् ने कहा___’ सौम्य ! तुम अर्जुन को छोड़ शेष चार पाण्डवों को युद्ध में जीत सकोगे।‘ ‘ अच्छा, ऐसा हूँ हो'___यह कहते_कहते उसकी नींद टूट गयी। उस वरदान से और दिव्यास्त्र के बल से ही जयद्रथ ने अकेले होने पर भी पाण्डवसेना को आगे नहीं बढ़ने दिया। उसकी प्रत्यंचा की टंकार होते ही शत्रुवीरों को भय छा गया और आपके सैनिकों को बड़ा हर्ष हुआ। उस समय सारा भार जयद्रथ के ऊपर ही पड़ा देख आपके क्षत्रियवीर कोलाहल करते हुए युधिष्ठिर की सेना पर टूट पड़े। अभिमन्यु ने व्यूह के जिस भाग को तोड़ डाला था, उसे जयद्रथ ने तुरंत योद्धाओं से भर दिया। फिर उसने सात्यकि को तीन, भीमसेन को आठ, धृष्टधुम्न को साठ और विराट को दस बाण मारे। इसी प्रकार द्रुपद को पाँच, शिखण्डी को सात, केकयराजकुमारों को पच्चीस द्रौपदी के प्रत्येक पुत्र को तीन_तीन और युधिष्ठिर को सत्तर बाणों से बींध डाला। साथ ही दूसरे योद्धाओं को भी बाणों की भारी वर्षा से पीछे हटा दिया। उसका यह काम अद्भुत ही हुआ। तब राजा युधिष्ठिर ने हँसते_ हँसते एक तीक्ष्ण बाण से जयद्रथ का धनुष काट डाला। जयद्रथ ने पलक मारते ही दूसरा धनुष लेकर युधिष्ठिर को दस और अन्य योद्धाओं को तीन_तीन बाणों से बींध दिया। उसके हाथ की फुर्ती देखकर भीमसेन ने तीन बाणों से उसके धनुष, ध्वजा और छत्र को काट गिराया। जयद्रथ ने पुनः दूसरा धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाकर भीम के धनुष, ध्वजा और घोड़ों का संहार कर डाला। घोड़ों के मर जाने पर भीमसेन उस रथ से कूदकर सात्यकि के रथ पर जा बैठे। जयद्रथ का यह पराक्रम देख आपके सैनिक प्रसन्न होकर उसे शाबाशी देने लगे। इतने में अभिमन्यु ने,उत्तर दिशा की ओर युद्ध करनेवाले हाथीसवारों को मारकर पाण्डवों के लिये मार्ग दिखाया, किन्तु जयद्रथ ने उसे भी रोक लिया। मत्स्य, पांचाल, केकय और पाण्डववीरों ने बहुत कोशिश की, पर वे जयद्रथ को हटा न सके। आपके शत्रुओं में से जो भी द्रोण_सेना का व्यूह तोड़ने का प्रयत्न करता, उसे जयद्रथ वरदान के प्रभाव से रोक देता था।