Monday 22 November 2021

अर्जुन द्वारा संशप्तकों का संहार

संजय कहते हैं_महाराज ! जिस समय क्षत्रियों का संहार करनेवाला वह भयानक युद्ध चल रहा था, उसी समय दूसरी ओर बड़े जोर_जोर से गाण्डीव धनुष की टंकार सुनाई देती थी। वहां अर्जुन संशप्तकों का तथा नारायणी सेना का संहार कर रहे थे। महारथी सुशर्मा ने अर्जुन पर बाणों की बौछार की तथा संशप्तकों ने भी उन्हें अपने तीरों का निशाना बनाया। तत्पश्चात् सुशर्मा ने अर्जुन को दस बाणों से बींधकर श्रीकृष्ण की दाहिनी भुजा में भी तीन बाण मारे। फिर एक भल्ल मारकर उसने अर्जुन की ध्वजा छेद डाली। ध्वजा पर आघात लगते ही उसके ऊपर बैठे विशाल वानर ने बड़े जोर से गर्जना करके सबको भयभीत कर दिया। उसका भयंकर नाद सुनकर आपकी सेना थर्रा उठी। डर के मारे कोई हिल_डुल तक न सका। थोड़ी देर में जब उसे होश आया तो सब_के_सब अर्जुन पर बाणों की बौछार करने लगे। फिर सबने मिलकर अर्जुन के विशाल रथ को घेर लिया। यद्यपि उनपर तीखे बाणों की मार पड़ रही थी, तो भी वे रथ पकड़कर जोर_जोर से चिल्लाने लगे। किन्हीं ने घोड़ों को पकड़ा, किन्हीं ने पहियों को। कुछ लोगों ने रथ की ईषा पकड़ने का उद्योग किया। इस प्रकार हजारों योद्धा रथ को जबरदस्ती पकड़कर सिंहनाद करने लगे। कुछ लोगों ने भगवान् श्रीकृष्ण की दोनों बाहें पकड़ लीं; कई योद्धाओं ने रथ पर चढ़कर अर्जुन को भी पकड़ लिया। श्रीकृष्ण ने अपनी बांहे झटककर उन लोगों को जमीन पर गिरा दिया तथा अर्जुन ने भी अपने अपने रथ पर चढ़े हुए कितने ही पैदलों को धक्के देकर नीचे गिराया। फिर आसपास खड़े हुए संशप्तक योद्धाओं को निकट से युद्ध करने में उपयोगी बाण मारकर ढ़क दिया। तदनन्तर अर्जुन ने देवदत्त तथा श्रीकृष्ण ने पांचजन्य नामक शंख बजाया। शंखों की आवाज सुनकर संशप्तकों की सेना भय से सिहर उठी। फिर अर्जुन ने नागास्त्र का प्रयोग करके उन सबके पैर बांध दिये। पैर बांध जाने से निश्चेष्ट होकर वे पत्थर के पुतले जैसे दिखायी देने लगे। उसी अवस्था में अर्जुन ने उनका संहार आरंभ किया। जब मार पड़ने लगी तो उन्होंने रथ छोड़ दिया और अपने समस्त अस्त्र-शस्त्रों को अर्जुन पर छोड़ने का प्रयास किया; परंतु पैर बंधे होने के कारण वे हिल भी न सके। अर्जुन उनका वध करने लगे। इसी समय सुशर्मा गारुड़ास्त्र का प्रयोग किया। उससे बहुत से गरुड़ प्रकट हो_होकर सर्पों को खाने लगे। उन गरुड़ों को देख सर्पगण लापता हो गये। इस प्रकार नागपाश से छुटकारा पाने हुए योद्धा अर्जुन के रथ पर सायकों तथा अन्य अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करने लगे। तब बाणों की बौछार से उनकी अस्त्र वर्षा का निवारण करके योद्धाओं का संहार आरंभ किया। इतने में सुवर्णा ने अर्जुन की छाती में तीन बाण मारे। इससे अर्जुन को गहरी चोट लगी और वे व्यथित होकर रथ के पिछले भाग में बैठ गये। थोड़ी ही देर में जब उन्हें चेत हुआ, फिर तो उन्होंने तुरंत ही ऐन्द्रेयास्त्र को प्रकट किया। उससे हजारों बाण निकल_निकलकर चारों दिशाओं में छा गये और आपकी सेना तथा घोड़े_हाथियों का विनाश करने लगे। इस प्रकार सेना का संहार होता देख संशप्तकों तथा नारायणी सेना के ग्वालों को बड़ा भय हुआ।
उस समय वहां एक भी पुरुष ऐसा नहीं था, जो अर्जुन का सामना कर सके। सब वीरों के देखते_देखते आपकी सेना कट रही थी। वह स्वयं निश्चेष्ट हो गयी थी, उससे पराक्रम करते नहीं बनता था। यह सब मेरी आंखों देखी घटना है। अर्जुन ने वहां दस हजार योद्धाओं को मार डाला था। संशप्तकों में से जो शेष बच गये थे उन्होंने मर जाने या विजय पाने का निश्चय करके फिर से अर्जुन को घेर लिया। फिर तो वहां अर्जुन के साथ आपके सैनिकों का बड़ा भारी संग्राम हुआ।

Sunday 14 November 2021

भीमसेन के द्वारा धृतराष्ट्र के पुत्रों तथा कौरव योद्धाओं का भीषण संहार

धृतराष्ट्र बोले_संजय ! भीमसेन ने जो कर्ण को रथ की बैठक में गिरा दिया_यह तो उन्होंने बड़ा दुष्कर काम किया। उसी के भरोसे दुर्योधन मुझसे बार_बार कहा करता था कि’अकेले कर्ण ही पाण्डवों और सृंजयों को युद्ध में मार डालेगा।‘ अब भीम के हाथों कर्ण को पराजित देख मेरे पुत्र दुर्योधन ने क्या किया ? संजय ने कहा_महाराज ! उस महासंग्राम में कर्ण को युद्ध से विमुख होते देख दुर्योधन ने अपने भाइयों से कहा_’तुमलोग शीघ्र जाकर कर्ण की रक्षा करो। वह भीमसेन के भय के कारण अगाध संकट_समुद्र में डूब रहा है।‘ राजा की आज्ञा पाकर वे क्रोध में भर गये और जिस प्रकार पतंगे आग की ओर दौड़ते हैं, उसी प्रकार भीमसेन को मार डालने की इच्छा से उनपर टूट पड़े। श्रुतर्वा, दुर्धर, क्राथ, विवित्सु, विकट, सम निषंगी, नन्द, उपनन्द, दुष्प्रधर्ष, सुबाहु, वातवेग, सुवर्चा, धनुर्गाह, दुर्मुद, जलसन्ध, शल और सह_ ये लोग रथियों से घिरे हुए दौड़े और भीमसेन को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये। फिर तो उन्होंने नाना प्रकार के बाणों की झड़ी लगा दी। महाबली भीमसेन उनके प्रहारों से पीड़ित हो रहे थे, तो भी  आपके पुत्रों के पांच सौ रथों की धज्जियां उड़ा दीं और पचास रथियों को यमलोक भेज दिया।। तदनन्तर क्रोध में भरे हुए भीम ने एक भल्ल मारकर विवित्सु के मस्तक को धड़ से अलग कर दिया। उसकी मृत्यु होते  सभी भाई भीम पर टूट पड़े। तब उन्होंने दो भल्लों से आपके दो पुत्र विकट और सह के प्राण ले लिये। लगे हाथ भीमसेन ने तेज किये हुए नाराच से मारकर क्राथ को भी यमलोक भेज दिया। महाराज ! इस प्रकार जब आपके वीर धनुर्धर पुत्र मारे जाने लगे तो रणभूमि में बड़े जोर का हाहाकार  मचा। उनकी सेना का संहार करके भीम ने नन्द और उपनन्द को भी मौत के घाट उतारा। अब तो आपके पुत्र भय से घबरा उठे।
वे भीम को प्रलयकालीन यमराज के समान भयंकर जानकर वहां से भाग गये। आपके इतने पुत्र मारे गये_यह देख कर्ण का मन बहुत उदास हो गया। उसकी आज्ञा से मद्रराज ने पुनः घोड़े बढ़ाये। वे घोड़े बड़े वेग से आकर भीमसेन के रथ से भिड़ गये।  फिर तो एक_दूसरे का वध चाहनेवाले कर्ण और भीमसेन में बालि_सुग्रीव की भांति भयंकर युद्ध होने लगा। कर्ण ने अपने सुदृढ़ धनुष को कानतक खींचकर तीन बाणों से भीमसेन को बींध दिया। उन्होंने भी एक भयंकर बाण हाथ में लेकर उसे कर्ण पर चलाया।
उस बाण ने कर्ण का कवच फाड़कर उसके शरीर को छेद दिया। उस प्रचंड प्रहार से कर्ण को बड़ी व्यथा हुई, वह व्याकुल होकर कांपने लगा। तदनन्तर रोष और अमर्ष में भरकर उसने  भीमसेन को पच्चीस बाण मारे। फिर अनेकों साधकों का प्रहार करके एक बाण से उनकी ध्वजा काट डाली। इसके बाद एक भल्ल से मारकर उनके सारथि को भी मौत के घाट उतार दिया। लगे हाथ धनुष भी काट डाला; फिर एक ही मुहूर्त में हंसते_हंसते उसने भीमसेन को रथहीन कर दिया। रथ के टूटते ही महाबाहु भीमसेन गदा हाथ में लिये हंसते_हंसते कूद पड़े। फिर वेग से उछलकर वे आपकी सेना में घुस गये और गदा मार_मारकर समस्त सैनिकों का संहार करने लगे। पैदल होते हुए भी उन्होंने अपनी गदा में सात सौ हाथियों को उनके सवारों, ध्वजाओं एवं अस्त्र-शस्त्रों सहित नष्ट कर डाला। इसके बाद शकुनि के अत्यन्त बलवान बावन हाथियों को मार गिराया तथा एक सौ से अधिक रथों और सैकड़ों सैनिकों का संहार कर डाला।
ऊपर से सूर्यदेव तपा रहे और सामने भीमसेन संताप दे रहे थे; इससे समस्त योद्धा भीम के डर से मैदान छोड़कर भाग निकले। इतने में ही दूसरी ओर से  पांच सौ रथियों ने आकर भीम पर चारों ओर से बाणवर्षा आरंभ कर दी। परन्तु भीम ने उन सबको गदा से मारकर यमलोक पठा दिया।
साथ ही उनकी ध्वजा_पताका और आयुधों के भी टुकड़े_टुकड़े कर डाले। तत्पश्चात् शकुनि के भेजे हुए तीन हजार घुड़सवारों ने हाथों में शक्ति, श्रष्टि और प्रकाश लेकर भीमसेन पर हमला किया। भीमसेन ने बड़े वेग से आगे बढ़कर उनका मुकाबला किया और तरह_तरह के पैंतरे बदलते हुए उन्होंने उन सबको गदा से मार डाला।
इसके बाद भीमसेन दूसरे रथ पर सवार हुए और क्रोध में भरकर कर्ण का सामना करने के लिये पहुंच गये। उस समय कर्ण और युधिष्ठिर में युद्ध चल रहा था। कर्ण ने अपने बाणों से युधिष्ठिर को आच्छादित कर दिया और उनके सारथि को भी मार गिराया। सारथि के न होने से घोड़े भाग चले। उनके रथ को पलायन करते देख महारथी कर्ण बाणों की बौछार करते हुए उनका पीछा करने लगा। कर्ण को धर्मराज का पीछा का पीछा करते देख भीमसेन क्रोध से जल गये। उन्होंने अपने बाणों से पृथ्वी और आकाश को चारों ओर से ढ़क दिया। इसके बाद कर्ण पर भी भीषण बाणवर्षा की। कर्ण लौट पड़ा। उसने भी सब ओर से तीखे बाणवर्षा करके भीम को आच्छादित कर दिया। कर्ण और भीम दोनों ही धनुर्धरों में श्रेष्ठ थे। उस समय एक_दूसरे पर विचित्र_विचित्र बाणों का प्रहार करते हुए उन दोनों ने अन्तरिक्ष में बाणों का जाल_सा बुन दिया। यद्यपि उस वक्त मध्याह्न का सूर्य तप रहा था, तो भी उन दोनों के सायक_समूहों से रुक जाने के कारण उसकी प्रखर प्रभा नीचे नहीं आने पाती थी। 
 उस समय शकुनि, कृतवर्मा, अश्वत्थामा, कर्ण और कृपाचार्य_ये पांच वीर पाण्डव_सेना से लोहा ले रहे थे। उनको डटे हुए देख भागने वाले  कौरव_योद्धा भी पीछे लौट पड़े। फिर तो दोनों पक्ष की सेनाएं एक_दूसरे से गुंथ गयीं।
उस दुपहरी में जैसा भयंकर युद्ध हुआ, वैसा मैंने न तो न कभी देखा था और न सुना ही था। एक ओर के सैनिकों का झुंड दूसरी ओर के झुंड से जा भिड़ा। भीषण मारकाट मच गयी।
छूटते हुए बाणसमूहों की आवाजें बहुत दूर तक सुनाई देने लगीं। उस समय महान् सुयश चाहनेवाले दोनों पक्ष के योद्धाओं की सिंहगर्जना एक क्षण के लिये भी बंद नहीं होती थी। दोनों दल में इतना भयानक युद्ध हुआ कि खून की नदियां बह चलीं। कितने ही क्षत्रिय उनमें डूबकर यमलोक पहुंच जाते थे। सब ओर मांसभोजी जन्तुओं का चित्कार हो रहा था। कौए, गीध और वक आदि पक्षी मंडरा रहे थे। उस भयंकर संग्राम में कौरव सेना बहुत कष्ट पाने लगी। उस समय उनकी दशा समुद्र में टूटी हुई नौका के समान हो रही थी।