Saturday 22 December 2018

द्रोणाचार्य के साथ धृष्टधुम्न और सात्यकि का घोर युद्ध

संजय ने कहा___राजन् ! जब अर्जुन और श्रीकृष्ण कौरवों की सेना में घुस गये और उनके पीछे दुर्योधन भी चला गया, तो पाण्डवों ने सोमकवीरों को साथ ले बड़ा कोलाहल करते हुए द्रोणाचार्य पर धावा बोल दिया। बस दोनों ओर से बड़ी घमासान लड़ाई छिड़ गयी। उस समय जैसा युद्ध हुआ, वैसा हमने न तो कभी देखा है और न सुना ही है। पुरुषसिंह धृष्टधुम्न और पाण्डवलोग बार_बार आचार्य पर प्रहार कर रहे थे और जिस प्रकार आचार्य उन पर बाणों की वर्षा करते थे। उसी प्रकार धृष्टधुम्न ने भी बाणों की झड़ी लगा दी थी। द्रोण पाण्डवों की जिस_जिस रथ_सेना पर बाण छोड़ते थे, उसी_उसी की ओर से बाण बरसाकर धृष्टधुम्न उसे हटा देता था। इस प्रकार बहुत प्रयत्न करने पर भी धृष्टधुम्न से सामना होने पर उनकी सेना के तीन भाग हो गये।
पाण्डवों की मार से घबराकर कुछ योद्धा तो कृतवर्मा की सेना में जा मिले, कुछ जलसन्ध की ओर चले गये और कुछ द्रोणाचार्य के पास ही रहे। महारथी द्रोण तो अपनी सेना को संगठित करने की प्रयत्न करते थे, किन्तु धृष्टधुम्न उसे बार_बार कुचल रहा था। अन्त में आपकी सेना उसी प्रकार छिन्न_भिन्न हो गयी जैसे दुष्ट राजा की देश दुर्भिक्ष, महामारी और लुटेरों के कारण उजड़ जाता है। इस प्रकार जब पाण्डवों की मार से सेना के तीन भाग हो गये तो आचार्य क्रोध में भरकर अपने बाणों से पांचालों को घायल करने लगे। इस समय उनका स्वरूप प्रज्वलित प्रलयाग्नि के समान भयानक हो गया। आचार्य के बाणों से संतप्त होकर धृष्टधुम्न का सेना घाम से तपी हुई_सी होकर भटकने लगी। इस प्रकार द्रोणाचार्य और धृष्टधुम्न के बाणों से व्यथित होने के कारण दोनों ओर के वीर प्राणों की आशा छोड़कर सब ओर पूरी शक्ति लगाकर युद्ध करने लगे। इसी समय कुन्तीनन्दन भीमसेन को विविंशति, चित्रसेन और विकर्ण___इन तीनों भाइयों ने घेर लिया। शिबि के पुत्र राजा गोवासन ने एक हजार योद्धाओं को साथ में लेकर काशीराज अभिभू के पुत्र पराक्रान्त को रोक दिया। मद्रराज राजा शल्य ने महाराज युधिष्ठिर का सामना किया। दुःशासन क्रोध में भरकर सात्यकि पर टूट पड़ा। मैंने अपनी चार सौ वीरों की सेना लेकर चेकितान की प्रगति रोक दी। शकुनि ने चार सौ गान्धारदेशीय योद्धाओं के साथ नकुल का मुकाबला किया। अवन्तिदेशीय विन्द और अनुविन्द मत्स्यराज विराट के सामने आकर डट गये। महाराज बाह्लीक ने शिखण्डी को रोका। अवन्तिनरेश ने प्रभद्रक और सौमक वीरों को साथ लेकर धृष्टधुम्न का सामना किया तथा क्रूरकर्मा राक्षस घतोत्कच पर अलायुध ने चढ़ाई कर दी।
महाराज ! इस समय सिन्धुराज जयद्रथ सारी सेना के पीछे था और कृपाचार्य आदि महान् धनुर्धर उसकी रक्षा के लिये तैनात थे। उसकी दाहिनी ओर अश्त्थामा और बायीं ओर कर्ण थे तथा भूरिश्रवा आदि उसके पृष्ठरक्षक थे। इनके सिवा कृपाचार्य, वृषसेन, शल और शल्य आदि अनेकों रणबाँकुरे वीर भी उसी की रक्षा के लिये युद्ध कर रहे थे। व्यूह के मुहाने पर उक्त वीरों का द्वन्दयुद्ध होने लगा। माद्रीपुत्र नकुल और सहदेव ने बाणों की वर्षा करके अपने प्रति वैरभाव रखनेवाले शकुनि का नाक में दम कर दिया। उस समय उसे कुछ भी उपाय न सूझ पड़ता था, वह सारा पराक्रम खो बैठा था। जब बाणों की चोट से वह बहुत ही तंग आ गया तो बड़ी तेजी से अपने घोड़ों को बढ़ाकर द्रोणाचार्यजी की सेना में जा मिला। इस समय धृष्टधुम्न के साथ लड़ते हुए महाबली द्रोणाचार्यजी ने जैसी बाणवर्षा की, वह बड़ी ही अचम्भे में डालनेवाली थी। द्रोण और धृष्टधुम्न  दोनों ही ने अनेकों वीरों के सिर उड़ा दिये। जब धृष्टधुम्न ने देखा कि आचार्य बहुत समीप आ गये हैं, तो उसने धनुष रखकर हाथ में ढ़ाल तलवार ले लिये और उनका वध करने के लिये वह अपने रथ के जूए से उनके रथ पर कूद गया। आचार्य ने सौ बाण मारकर उसकी ढाल को और दस बाणों से उसकी तलवार को काट कूट डाला। फिर चौसठ बाणों से उसके घोड़ों का काम तमाम कर दिया तथा दो बाणों से ध्वजा और छत्र काटकर उसके पार्श्वरक्षकों को भी धराशायी कर दिया। इसके पश्चात् उन्होंने धनुष को कान तक खींचकर धृष्टधुम्न पर एक प्राणान्तक बाण छोड़ा। किंतु सात्यकि ने चौदह तीखे बाणों से  उसे बीच में ही काट डाला और आचार्य के चंगुल में फँसे हुए धृष्टधुम्न को बचा लिया। इस प्रकार जब द्रोण के मुकाबले पर सात्यकि आ गया तो पांचाल वीर धृष्टधुम्न को रथ में चढ़ाकर तुरंत ही दूर ले गये।
अब आचार्य ने सात्यकि के ऊपर बाण बरसाना आरम्भ किया। सात्यकि के घोड़े भी बड़े फुर्ती से द्रोण के सामने आकर डट गये। तब वे दोनों वीर परस्पर हजारों बाण छोड़ते हुए घोर युद्ध करने लगे। उन दोनों ने आकाश में बाणों का जाल_सा फैला दिया और दसों दिशाओं को बाणों से व्याप्त कर दिया। बाणों का जाल फैल जाने से सब ओर घोर अन्धकार छा गया तथा सूर्य का प्रकाश तथा वायु का चलना भी बन्द हो गया। दोनों के शरीर खून में लथपथ हो गये। उनके छत्र और ध्वजाएँ कटकर गिर गयीं। वे दोनों प्राणान्तक बाणों का प्रयोग कर रहे थे। उस समय हमारे और राजा युधिष्ठिर के पक्ष के वीर खड़े_खड़े द्रोण और सात्यकि का संग्राम देख रहे थे। विमानों पर चढ़े हुए ब्रह्मा और चन्द्रमा आदि देवता तथा सिद्ध, चारण, विद्याधर और नागगण भी उन पुरुषसिंहों के आगे बढ़ने, पीछे हटने तथा तरह_तरह के शस्त्रसंचालन के कौशल को देखकर बड़े आश्चर्य में पड़े हुए थे। इस प्रकार वे दोनों वीर अपने_अपने हाथ की सफाई दिखाते हुए एक_दूसरे को बाणों से बिंध रहे थे। इतने में ही सात्यकि ने अपने सुदृढ़ बाणों से आचार्य के धनुष_बाण काट डाले। क्षणभर में ही द्रोण ने दूसरा धनुष चढ़ाया। किन्तु सात्यकि ने उसे भी काट डाला। इसी प्रकार द्रोण जो_जो धनुष चढ़ाते गये, सात्यकि उसी को काटता गया। इस तरह उसने उनके सौ धनुष काट डाले। यह काम इतनी सफाई से हुआ कि आचार्य कब धनुष चढ़ाते हैं तथा सात्यकि कब उसे काट डालता है___यह किसी को जान ही नहीं पड़ता था। सात्यकि का यह अतिमानुष कर्म देखकर द्रोण ने मन_ही_मन विचार किया कि जो अस्त्रबल परशुराम, कार्तवीर्य, अर्जुन और भीष्म में है वही सात्यकि में भी है।
इसके बाद द्रोणाचार्य ने एक नया धनुष लिया और उस पर कई अस्त्र चढ़ाये। किन्तु सात्यकि ने अपने अस्त्र_कौशल से उन सब अस्त्रों तो काट डाला और आचार्य पर तीखे बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। इससे सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ। अन्त में आचार्य ने अत्यन्त कुपित होकर सात्यकि का संहार करने के लिये दिव्य आग्नेयास्त्र छोड़ा। यह देखकर सात्यकि ने दिव्य वारुणास्त्र का प्रयोग किया। उस समय दोनों वीरों को दिव्य अस्त्रों का प्रयोग करते देखकर बड़ा हाहाकार होने लगा। यहाँ तक कि आकाश में पक्षियों का उड़ना भी बन्द हो गया। तब राजा युधिष्ठिर, भीमसेन, नकुल और सहदेव सब ओर से सात्यकि की रक्षा करने लगे तथा धृष्टधुम्नादि के साथ राजा विराट और केकयनरेश मत्स्य और शाल्वदेशीय सेनाओं को लेकर द्रोण के सामने आकर डट गये। दूसरी ओर दुःशासन के नेतृत्व में हजारों राजकुमार द्रोण को शत्रुओं से घिरा देखकर उनकी सहायता के लिये आ गये। बस, दोनों ओर के वीरों में बड़ा तुमुल युद्ध छिड़ गया। उस समय धूलि और बाणों की वर्षा के कारण कुछ भी दिखाई नहीं देता था; इसलिये वह युद्ध मर्यादाहीन हो गया___उसमें अपने और हराया पक्ष का भी ज्ञान नहीं रहा।






दुर्योधन के उलाहना देने पर द्रोणाचार्य का उसे अभेद्य कवच पहनाकर अर्जुन के साथ युद्ध करने के लिये भेजना

संजय ने कहा___राजन् ! इस प्रकार अर्जुन जब सिंधुराज जयद्रथ का वध करने की इच्छा  से द्रोणाचार्य और कृतवर्मा की सेनाओं को चीरकर व्यूह में घुस गये तथा उनके हाथ से सुदक्षिण और श्रुतायु का वध हो गया, तो आपकी सेना को भागती देखकर आपका पुत्र दुर्योधन अकेला ही अपने रथ पर चढ़ा हुआ बड़ी फुर्ती से द्रोणाचार्य के पास आया और कहने लगा, ‘आचार्य ! पुरुषसिंह अर्जुन हमारी इस विशाल वाहिनी को कुचलकर भीतर घुस गया है। अब आप विचार करें कि हमें उसके नाश के लिये क्या करना चाहिये। हमें तो आपही का सबसे बढ़कर भरोसा है। आग जिस प्रकार घास_फूस को जला डालती है, उसी प्रकार अर्जुन हमारी सेना का संहार कर रहा है। इस समय जयद्रथ की रक्षा करनेवाले बड़े संदेह में पड़ गये हैं। हमारे पक्ष के राजाओं को पूरा विश्वास था कि अर्जुन जीते_जी आपको लाँघकर सेना में नहीं घुस सकेगा। परंतु मैं देखता हूँ वह आपके सामने ही व्यूह में घुस गया है। आज मुझे अपनी सारी सेना विकल और विनष्ट_सी जान पड़ती है। सिंधुराज तो अपने घर को जा रहे थे। यदि आप मुझे यह वर न देते कि मैं अर्जुन को रोक लूँगा तो मैं उन्हें कभी न रोकता।  मैंने मूर्खता से आपकी रक्षा में विश्वास करके सिंधुराज को समझा_बुझा दिया।
मेरा विश्वास है कि मनुष्य यमराज की दाढ़ों में पड़कर भले ही बच जाय, किन्तु रणभूमि में अर्जुन के हाथ में आकर जयद्रथ के प्राण किसी प्रकार नहीं बच सकते। अतः आप कोई ऐसा उपाय कीजिये, जिससे सिंधुराज की रक्षा हो सके। मैंने घबराहट में कुछ अनुचित कह दिया हो, तो उससे कुपित न होकर आप किसी प्रकार इन्हें बचाइये।‘ द्रोणाचार्य ने कहा___राजन् ! मैं तुम्हारी बात का बुरा नहीं मानता। मेरे लिये तुम अश्त्थामा के समान हो। किन्तु जो सच्ची बात है, वह मैं तुमसे कहता हूँ; ध्यान देकर सुनो। अर्जुन के सारथि श्रीकृष्ण हैं और उनके घोड़े भी बड़े तेज हैं। इसलिये थोड़ा_सा रास्ता मिलने पर भी वे तत्काल घुस जाते हैं। मैंने सभी धनुर्धरों के सामने युधिष्ठिर को पकड़ने की प्रतिज्ञा की थी। इस समय अर्जुन उनके पास नहीं है और वे अपनी सेना के आगे खड़े हुए हैं। इसलिये अब मैं व्यूह के द्वार को छोड़कर अर्जुन से लड़ने के लिए नहीं जाऊँगा। तुम कुल और पराक्रम में अर्जुन के समान ही हो और इस पृथ्वी के स्वामी हो। इसलिये अपने सहायकों को लेकर तुम्हीं अकेले अर्जुन से युद्ध करो, किसी बात का भय मत मानो। दुर्योधन ने कहा___आचार्यचरण ! जो आपको भी लाँघ गया, उस अर्जुन को मैं कैसे रोक सकूँगा। वह तो सभी शस्त्रधारियों में बढ़ा_चढ़ा है। मेरे विचार से संग्राम में वज्रधर इन्द्र को जीत लेना तो आसान है, किन्तु अर्जुन से पार पाना सहज नहीं है। जिसने कृतवर्मा और आपको भी परास्त कर दिया, श्रुतायुध, सुदक्षिण, अम्बष्ठ, श्रुतायु और अच्युतायु को नष्ट कर डाला और सहस्त्रों म्लेच्छों का संहार कर दिया, उस शस्त्रकुशल दुर्जय वीर अर्जुन के मुकाबले में मैं कैसे युद्ध कर सकूँगा ? द्रोणाचार्य बोले___ कुरुराज ! तुम ठीक कहते हो, अर्जुन अवश्य दुर्जय है; किन्तु मैं एक ऐसा उपाय किये देता हूँ, जिससे तुम उसकी टक्कर झेल सकोगे। आज श्रीकृष्ण के सामने ही तुम अर्जुन से युद्ध करोगे। इस अद्भुत प्रसंग को आज सभी वीर देखेंगे। मैं तुम्हारे इस सुवर्ण के कवच को इस प्रकार बाँध दूँगा जिससे बाण या दूसरे प्रकार के अस्त्रों का तुम्हारे ऊपर कोई असर नहीं होगा। यदि मनुष्यों के सहित देवता, असुर, यक्ष, नाग, राक्षस और तीनों लोक भी तुमसे युद्ध करने के लिये सामने आयेंगे, तो भी तुम्हें कोई भय नहीं होगा। इसलिये इस कवच को धारण करके तुम स्वयं ही क्रोधातुर अर्जुन के सामने युद्ध के लिये जाओ। ऐसा कहकर आचार्य ने तुरंत ही आचमन कर शास्त्रविधि से मंत्रोच्चारण करते हुए दुर्योधन को वह चमचमाता हुआ कवच पहना दिया और कहा, ‘परमात्मा, ब्रह्मा और ब्राह्मण तुम्हारा कल्याण करे।‘  इसके बाद वे फिर कहने लगे, ‘भगवान् शंकर ने यह मंत्र और कवच इन्द्र को दिया था, इसी से उन्होंने संग्राम में वृत्रासुर का वध किया था। फिर इन्द्र ने यह मंत्रियों कवच अंगिराजी को दिया। अंगिरा ने इसे अपने पुत्र बृहस्पति को और बृहस्पतिजी ने अग्निवेश्य को बताया। अग्निवेश्यजी ने यह कवच मुझे दिया था जो आज मैं तुम्हारे शरीर की रक्षा के लिये मंत्रोच्चारणपूर्वक तुम्हें पहनाता हूँ।‘ आचार्य द्रोण के हाथ से इस प्रकार युद्ध के लिये तैयार हो राजा दुर्योधन त्रिगर्तदेश के सहस्त्रों रथी और अनेकों अन्य महारथियों को साथ ले गाजे_बाजे को साथ ले अर्जुन की ओर चला।

Sunday 9 December 2018

द्रोणाचार्यजीका शकटव्यूह और कई वीरों का संहार करते हुए अर्जुन का उसमें प्रवेश

संजय ने कहा___वह रात बीतने पर आचार्य द्रोण ने अपनी सब सेना को शकटव्यूह  में खड़ा किया। उस समय वे शंख बजाते हुए बड़ी तेजी से इधर_उधर घूम रहे थे। जब वह सारी सेना युद्ध के लिये उत्साहित होकर खड़ी हो गयी तो आचार्य ने जयद्रथ से कहा, ‘ तुम, भूरिश्रवा, कर्ण, अश्त्थामा, शल्य, वृषसेन और कृपाचार्य एक लाख घुड़सवार, साठ हजार रथी, चौदह हजार गजारोही और इक्कीस हजार पैदल सेना लेकर हमारे छः कोस पीछे रहो। वहाँ इन्द्रादि देवता भी तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकेंगे तो फिर पाण्डवों की बात ही क्या है ? वहाँ तुम बेखटके रहना।‘
द्रोणाचार्य के इस प्रकार ढाढ़स बाँधने पर सिंधुराज जयद्रथ गान्धार महारथियों और घुड़सवारों के साथ चला। ये दस हजार सिंधुदेशीय घोड़े बड़े सधे हुए और धीमी चाल से चलनेवाले थे। इसके बाद आपके पुत्र दुःशासन और विकर्ण सिंधुराज को लिये सेना के अग्रभाग में आकर डट गये। द्रोणाचार्यजी का बनाया हुआ यह चक्रशटक व्यूह चौबीस कोस लम्बा और पीछे की ओर दस कोस तक फैला हुआ था। इसके पीछे पद्मगर्भ नाम का अभेद्य व्यूह था और उस पद्मगर्भव्यूह में सूचीमुख नाम का एक गुप्त व्यूह बनाया गया था। इस प्रकार इस महाव्यूह की रचना करके आचार्य उसके आगे खड़े हुए। सूचीव्यूह के मुखभाग पर महान् धनुर्धर कृतवर्मा नियुक्त किया गया। इसके पीछे काम्बोजनरेश और जलसन्ध तथा उसके पीछे दुर्योधन और कर्ण थे। शकटव्यूह के अग्रभाग की रक्षा के लिये एक लाख योद्धा तैनात किये गये थे। इन सबके पीछे सूचीव्यूह के पार्श्वभाग में बड़ी भारी सेना के सहित राजा जयद्रथ खड़ा था। द्रोणाचार्यजी के बनाये हुए इस शकटव्यूह को देखकर राजा दुर्योधन बड़ा प्रसन्न हुआ। इस प्रकार जब कौरवसेना की व्यूहरचना हो गयी तथा भेरी और मृदंगों का शब्द एवं वीरों का कोलाहल होने लगा, तो रौद्रमुहूर्त में रणांगण में वीरवर अर्जुन दिखायी दिये। इधर नकुल के पुत्र शतानीक तथा धृष्टधुम्न ने पाण्डवसेना की व्यूहरचना की थी। इसी समय कुपित काल और वज्रधर इन्द्र के समान तेजस्वी, सत्यनिष्ठ और अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करनेवाले, नारायणानुयायी नरमूर्ति वीरवर अर्जुन ने अपने दिव्य रथ पर चढ़कर गाण्डीव धनुष की टंकार करके हुए युद्धभूमि में पदार्पण किया। उन्होंने अपनी सेना के अग्रभाग में खड़े होकर शंखध्वनि की।
उनके साथ ही श्रीकृष्णचन्द्र ने भी अपना पांचजन्य शंख बजाया। उन दोनों के शंखनाद से आपके सैनिकों के रोंगटे खड़े हो गये, शरीर काँपने लगे और वे अचेत_से हो गये कथा उनके जो हाथी, घोड़े आदि वाहन थे, वे मल_मूत्र छोड़ने लगे। इस प्रकार आपकी सारी सेना व्याकुल हो गयी। तब उसका उत्साह बढ़ाने के लिये फिर शंख, भेरी, मृदंग और नगारे आदि बजने लगे।
अब अर्जुन ने अत्यन्त हर्षित होकर श्रीकृष्ण से कहा, ‘ हृषिकेश ! आप घोड़ों को दुर्मर्षण की ओर बढ़ाइये। मैं उसकी हस्तिसेना को भेदकर शत्रु के दल में प्रवेश करूँगा।‘ यह सुनकर श्रीकृष्ण ने दुर्मर्षण की ओर रथ हाँका। बस, दोनों ओर से बड़ा तुमुल संग्राम छिड़ गया। आपकी ओर के सभी रथी श्रीकृष्ण और अर्जुन पर बाणों की वर्षा करने लगे। तब महाबाहु अर्जुन ने क्रोध में भरकर अपने बाणों से उनके सिर उड़ाने आरम्भ कर दिये। बात_की_बात में सारी रणभूमि वीरों के मस्तकों से छा गयी। यही नहीं, घोड़ों के सिर और हाथियों की सूड़ें भी सर्वत्र दिखायी देने लगीं। आपके सैनिकों को सब ओर से अर्जुन ही दिखायी देता था। वे बार_बार ‘अर्जुन यह है !’ ‘ अर्जुन कहाँ है ?’ ‘अर्जुन यह खड़ा हुआ है !’ इस प्रकार चिल्ला उठते थे। इस भ्रम में पड़कर उनमें से कोई_कोई तो आपस में और कोई अपने पर ही प्रहार कर बैठते थे। उस समय काल के पराभूत होकर वे सारे संसार को अर्जुनमय ही देखने लगे थे। कोई लोहूलुहान होकर मरणासन्न हो गये थे, कोई गहरी वेदना के कारण बेहोश हो रहे थे और कोई पड़े_पड़े अपने भाई_बन्धुओं को पुकार रहे थे।
इस प्रकार अर्जुन ने अपने बाणों से दुर्मर्षण की गजसेना का संहार कर डाला। इससे आपके पुत्र की बची हुई सेना भयभीत होकर भागने लगी। अर्जुन की मार के कारण वह उनकी ओर मुँह फेड़कर देख भी नहीं सकती थी। इस प्रकार सभी वीर मैदान छोड़कर भाग गये। उन सभी का उत्साह नष्ट हो गया। तब अपनी सेना को इस प्रकार छिन्न_भिन्न होते देखकर आपका पुत्र दुःशासन बड़ी भारी गजसेना लेकर अर्जुन के सामने आया और उन्हें चारों ओर से घेर लिया। इधर पुरुषसिंह अर्जुन ने बड़ा भीषण सिंहनाद किया और वे अपने बाणों से शत्रुओं की हस्तिसेना को कुचलने लगे। वे हाथी गाण्डीव_धनुष से छूटे हुए हजारों तीखे बाणों से घायल होकर भयंकर चित्कार करते पट_पट पृथ्वी पर गिरने लगे। उनके कन्धों पर जो पुरुष बैठे थे, उनके मस्तक भी अर्जुन ने अपने बाणों से उड़ा दिये। उस समय अर्जुन की फुर्ती देखने योग्य थी। वे कब बाण चढ़ाते हैं, कब धनुष की डोरी खींचते हैं, कब बाण छोड़ते हैं और कब तरकस में से नया बाण निकालते हैं___यह जान ही नहीं पड़ता था। वे मण्डलाकार धनुष के सहित नृत्य _सा करते जान पड़ते थे। इस प्रकार  अर्जुन के हाथ से व्यथित होकर दुःशासन की सेना अपने नायक के सहित भाग उठी और बड़ी तेजी से द्रोणाचार्य से सुरक्षित होने की आशंका से शकटव्यूह में घुस गयी। अब महारथी अर्जुन दुःशासन की सेना का संहार कर जयद्रथ के समीप पहुँचने के विचार से द्रोणाचार्य की सेना पर टूट पड़े। आचार्य व्यूह के द्वार पर खड़े थे। अर्जुन ने उनके सामने पहुँचकर श्रीकृष्ण की सम्मति से हाथ जोड़कर कहा, ‘ब्रह्मन् !  आप मेरे लिये कल्याण कामना कीजिये। मेरे लिये आप पिता के समान हैं। जिस तरह अश्त्थामा की रक्षा करना आपका कर्तव्य है, उसी प्रकार आपको मेरी भी रक्षा करनी चाहिये। आज आपकी कृपा से मैं सिंधुराज जयद्रथ को मारना चाहता हूँ। आप मेरी प्रतिज्ञा की रक्षा करें।‘ अर्जुन के इस प्रकार कहने पर आचार्य ने मुस्कराकर कहा, ‘अर्जुन ! मुझे परास्त किये बिना तुम जयद्रथ को नहीं जीत सकोगे।‘ इतना कहकर उन्होंने हँसते_ हँसते अर्जुन को उनके रथ, घोड़े, ध्वजा और सारथि के सहित पैने बाणों से आच्छादित कर दिया। तब तो अर्जुन ने भी द्रोणाचार्य के बाणों को रोककर अपने अत्यन्त भीषण बाणों से उन पर आक्रमण किया। द्रोण ने तुरंत उनके बाण काट डाले और अपने विषाग्नि के समान धधकते हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों ही पर चोट की। इस पर धनंजय लाखों बाण छोड़कर आचार्य की सेना का संहार करने लगे। उनके बाणों से कट_कटकर अनेकों योद्धा, घोड़े और हाथी धराशायी होने लगे। अब द्रोण ने पाँच बाणों से श्रीकृष्ण और तिहत्तर से अर्जुन को घायल कर डाला तथा तीन बाणों से उनकी ध्वजा को बींध दिया। फिर एक क्षण में ही बाणों की  वर्षा करके अर्जुन को अदृश्य कर दिया। द्रोण और अर्जुन के युद्ध को इस प्रकार बढ़ता देख श्रीकृष्ण ने उस दिन के प्रभाव कार्य का विचार किया और अर्जुन से कहा, ‘अर्जुन !  देखो, हमें यहाँ समय नष्ट नहीं करना चाहिये। आज हमें बहुत बड़ा काम करना है। इसलिये द्रोणाचार्य को छोड़कर आगे बढ़ना चाहिये।‘ अर्जुन ने कहा, ‘आपकी जैसी इच्छा हो, वही काजिये।‘ तब अर्जुन आचार्य की प्रदक्षिणा कर बाण छोड़ते हुए आगे बढ़ने लगे। इस पर द्रोण ने कहा, ‘पार्थ ! तुम कहाँ जा रहे हो ? संग्राम में शत्रु को परास्त किये बिना तो तुम कभी नहीं हटते थे।‘ अर्जुन ने कहा, ‘आप मेरे शत्रु नहीं, गुरु हैं। मैं भी आपका शिष्य और पुत्र के समान हूँ। संसार में ऐसा कोई पुरुष नहीं है, जो युद्ध में आपको परास्त कर सके।‘ इस प्रकार कहते_कहते अर्जुन जयद्रथ के वध के लिये उत्सुक होकर बड़ी तेजी से कौरवों की सेना में घुस गये। उनके पीछे_पीछे उनके चक्ररक्षक पांचालराजकुमार युधामन्यु और उत्तमौजा भी चले गये। अब जय, कृतवर्मा, कम्बोजनरेश और श्रुतायु वे उन्हें आगे बढ़ने से रोका। उन विजयाभिलाषी वीरों के साथ अर्जुन का घोर संग्राम होने लगा। कृतवर्मा ने अर्जुन को दस बाण मारे। अर्जुन ने उसके एक सौ तीन बाण मारकर उसे अचेत_सा कर दिया। तब उसने हँसकर श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों ही पर पच्चीस_पच्चीस बाण छोड़े। इस पर अर्जुन ने उसका धनुष काटकर उसे तिहत्तर बाणों से घायल किया। कृतवर्मा ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर पाँच बाणों से अर्जुन की छाती में वार किया। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, ‘पार्थ ! तुम कृतवर्मा पर दया करो। इस समय संबंध का विचार छोड़कर बलात् इसे मार डालो।‘ इस पर अर्जुन ने अपने बाणों से कृतवर्मा को अचेत कर काम्बोजवीरों की सेना की ओर चले। अर्जुन को इस प्रकार बढ़ते देखकर महाप्रतापी राजा श्रुतायुध अपना विशाल धनुष चढ़ाता बड़े क्रोध से उनके सामने आया। उसने अर्जुन के तीन और श्रीकृष्ण के सत्तर बाण मारे तथा एक तेज बाण से उसकी ध्वजा पर वार किया। अर्जुन ने तुरंत ही उसका धनुष काटकर तरकस के भी टुकड़े_टुकड़े कर दिये। तब उसने दूसरा धनुष लेकर अर्जुन की छाती और भुजाओं में नौ बाण मारे। इसपर अर्जुन ने हजारों बाण छोड़कर श्रुतायुध को तंग कर डाला और उसके सारथि और घोड़ों को भी मार डाला। तब महाबली श्रुतायु रथ से उतरकर हाथ में गदा ले अर्जुन की ओर दौड़ा। यह कर्ण का पुत्र था। महानदी पर्णाशा इसकी माता थी। उसने अपने पुत्र के स्नेहवश वरुण से कहा था कि ‘मेरा पुत्र संसार में शत्रुओं के लिये अवध्य हो।‘ इस पर वरुण ने प्रसन्न होकर कहा था कि ‘मेरा पुत्र संसार में शत्रुओं के लिये अवध्य हो।‘
इसपर वरुण ने प्रसन्न होकर कहा था, ‘मैं तुझे यह वर देता हूँ और साथ ही यह दिव्य अस्त्र भी देता हूँ। इसके कारण तेरा पुत्र अवध्य हो जायगा। परन्तु संसार में मनुष्य का अमर होना किसी प्रकार सम्भव नहीं है। जो उत्पन्न हुआ है,’ उसे अवश्य मरना होगा।‘ ऐसा कहकर वरुण ने श्रुतायुध को एक अभिमन्त्रित गदा दी और कहा, ‘यह गदा तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति पर नहीं छोड़नी चाहिये, जो युद्ध न कर रहा हो। ऐसा करने पर तुमपर ही गिरेगी।‘ किन्तु इस समय श्रुतायुध के मस्तक पर काल मँडरा रहा था। इसलिये उसने वरुण की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और उससे श्रीकृष्ण पर वार किया। भगवान् ने उसे अपने विशाल वक्षःस्थल पर लिया और उसने वहाँ से लौटकर श्रुतायुध का काम तमाम कर दिया। श्रुतायुध ने युद्ध न करनेवाले श्रीकृष्ण पर गदा का वार किया था। इसलिये उसने लौटकर उसी को नष्ट कर दिया। इस प्रकार वरुण के कथनानुसार ही श्रुतायुध का अन्त हुआ और वह सब योद्धाओं के देखते_देखते प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर गया।
श्रुतायुध को मरा देखकर कौरवों की सारी सेना और उसके नायकों के भी पैर उखड़ गये। इसी समय कम्बोजनरेश का शूरवीर पुत्र सुदक्षिण अर्जुन के सामने आया। अर्जुन ने उसके ऊपर सात बाण छोड़े। वे उस वीर को घायल करके पृथ्वी में घुस गये। तब सुदक्षिण ने तीन बाणों से श्रीकृष्ण को बींधकर पाँच बाण अर्जुन पर छोड़े। अर्जुन ने उसका धनुष काटकर ध्वजा भी काट डाली और दो अत्यन्त पैने बाणों से उसे भी घायल कर दिया। अब सुदक्षिण ने अत्यन्त कुपित होकर धनंजय के ऊपर एक भयंकर शक्ति छोड़ी। वह उन्हें घायल करके चिनगारियों की वर्षा करती पृथ्वी पर गिर गयी। शक्ति की चोट से अर्जुन को गहरी मूर्छा आ गयी। चेत होने पर उन्होंने कंकपत्रवाले चौदह बाणों से सुदक्षिण को तथा उसके घोड़े, ध्वजा, धनुष और सारथि को भी घायल कर दिया। फिर और भी बहुत_ से बाण छोड़कर उसके रथ के टुकड़े_टुकड़े कर दिये। इसके पश्चात् एक तीखी धारवाले बाण से उन्होंने सुदक्षिण की छाती फाड़ डाली। इससे उसका कवच टूट गया, अंग छिन्न_भिन्न हो गये और मुकुट तथा आभूषण इधर_उधर बिखर गये। फिर एक कर्णी नाम के बाण से उन्होंने उसे भी धराशायी कर दिया। राजन् ! इस प्रकार वीर श्रुतायुध और सुदक्षिण के मारे जाने पर आपके सैनिक क्रोध में भरकर अर्जुन पर टूट पड़े तथा अभिशाह, शूरसेन, शिबि और बसाति जाति के वीर उन पर बाणों की वर्षा करने लगे। अर्जुन ने अपने बाणों से उनमें से छः हजार योद्धाओं का सफाया कर दिया। तब उन्होंने चारों ओर से अर्जुन को घेर लिया। किन्तु वे जैसे_जैसे धनंजय की ओर गये, वैसे ही उन्होंने अपने गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाणों से उसके सिर और भुजाओं को उड़ा दिया। उनके कटे हुए सिरों से सारी रणभूमि पट गयी। जिस प्रकार वीर धनंजय उनका इस प्रकार संहार कर रहे थे, महाबली श्रुतायु और अच्युतायु उनके सामने आकर युद्ध करने लगे। उन दोनों वीरों ने उनकी दायीं और बायीं ओर से बाण बरसाना आरम्भ किया और हजारों बाण छोड़कर उन्हें बिलकुल ढक दिया। इसी समय श्रुतायु ने अत्यन्त क्रोध में भरकर अर्जुन पर बड़े जोर से तोमर का वार किया। उससे घायल होकर वे एकदम अचेत हो गये। इतने में ही अच्युतायु ने  उनके ऊपर एक अत्यन्त तीक्ष्ण त्रिशूल फेंका। उसकी चोट ने अर्जुन के घाव पर नमक का काम किया और वे बहुत घायल हो जाने के कारण अपने रथ की ध्वजा के डंडे का सहारा लेकर बैठे रह गये। तब अर्जुन को मरा हुआ समझकर आपकी सारी सेना में बड़ा कोलाहल होने लगा। अर्जुन को अचेत देखकर श्रीकृष्ण बड़े चिन्तित हुए और अपनी मधुर वाणी ले उन्हें सचेत करने लगे। उससे बल पाकर वे धीरे_धीरे होश में आने लगे। इस प्रकार मानो उनका यह नया जन्म ही हुआ। उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण और उनका रथ बाणों से ढके हुए हैं तथा दोनों शत्रु सामने डटे हुए हैं। बस, उन्होंने तुरंत ही ऐन्द्रास्त्र प्रकट किया। उससे हजारों बाण निकलने लगे। उन्होंने उन दोनों वीरों पर वार किया और उनके छोड़े हुए बाण भी अर्जुन के बाणों से विदीर्ण होकर आकाश में उड़ने लगे। बात_की_बात में उनके बाणों से मस्तक और भुजाएँ कट जाने के कारण वे दोनों महारथी धराशायी हो गये। इस प्रकार श्रुतायु और अच्युतायु का वध हुआ देखकर सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। इसके पश्चात् अर्जुन उनके अनुयायी पचास रथियों को मारकर और भी अच्छे_अच्छे वीरों का संहार करते कौरवों की सेना की ओर बढ़े। श्रुतायु और अच्युतायु का वध हुआ देखकर उनके पुत्र नियतायु और दीर्घायु क्रोध में भरकर बाणों की वर्षा करते अर्जुन के सामने आये। किन्तु अर्जुन ने अत्यन्त कुपित होकर अपने बाणों से एक मुहूर्त में ही उन्हें यमराज के पास भेज दिया। हाथी जिस प्रकार कमलवन को खूँद डालता है, उसी प्रकार महावीर अर्जुन कौरवों की सेना को कुचल रहे थे। उस समय कोई भी क्षत्रियवीर उन्हें रोक नहीं पाता था। इतने में ही गजसेना के सहित अंगदेशीय, पूर्वीय, दक्षिणात्य और  राजाओं ने दुर्योधन की आज्ञा से उनपर आक्रमण किया। किन्तु अर्जुन ने गाण्डीव से छोड़े हुए बाणों से तत्काल ही उनके सिर और भुजाओं को उड़ा दिया। इस युद्ध में अनेकों गजारोही म्लेच्छ धनंजय के बाणों से बिंधकर धराशायी हो गये। अर्जुन ने अपने बाणजाल से सारी सेना को आच्छादित कर दिया और मुण्डित, अर्धमुण्डित, जटाधारी एवं दाढ़ीवाले आचारहीन म्लेच्छों को अपने शस्त्रकौशल से काट_कूट डाला। उनके बाणों से बिंधकर वे सैकड़ों पर्वतीय योद्धा भयभीत होकर संग्रामभूमि से भाग उठे। इस प्रकार घोड़े, हाथी और रथों के सहित अनेकों वीरों का संहार करते हुए वीर धनंजय रणभूमि में विचार रहे थे। अब राजा अम्बष्ठ ने उनकी गति को रोका। अर्जुन ने बड़ी फुर्ती से अपने तीखे बाणों से उसके घोड़ों को मार डाला और धनुष कोनभी काट गिराया। अम्बष्ठ एक भारी गदा लेकर बार_बार अर्जुन और श्रीकृष्ण पर चोट करने लगा। तब अर्जुन ने दो बाणों से गदा के सहित उसकी दोनों भुजाएँ काट डाली और एक बाण से उसका मस्तक भी उड़ा दिया। इस प्रकार वह मरकर धमाक से पृथ्वी पर गिरा।