Saturday 28 January 2023

भीम और अर्जुन आदि के भय से दुर्योधन के रोकने पर कौरव_सेना का भागना और दोनों ओर की सेनाओं का शिविर में जाना

संजय कहते हैं _महाराज ! उस समय कौरव सैनिक भीमसेन के भय से व्याकुल होकर भाग रहे थे। उनकी यह अवस्था देख दुर्योधन हाहाकार करके उठा और अपने सारथि से बोला, ‘सूत तुम धीरे_धीरे घोड़ों को आगे बढ़ाओ। जब हाथ में धनुष लेकर मैं अपनी संपूर्ण सेना के पीछे खड़ा रहूंगा, उस समय अर्जुन मुझे परास्त नहीं कर सकते। यदि वे मुझसे लड़ने आयेंगे तो नि:संदेह उन्हें मार डालूंगा। आज मैं अर्जुन, श्रीकृष्ण तथा घमंडी भीमसेन को बचे_खुचे अन्य शत्रुओं के साथ मौत के घाट उताकर कर्ण के ऋण से मुक्त होऊंगा।दुर्योधन की यह शूरवीरों के योग्य बात सुनकर सारथि ने घोड़ों को धीरे _धीरे आगे बढ़ाया‌। आपकी ओर से युद्ध के लिये पच्चीस हजार पैदल खड़े थे, उसे भीमसेन और धृष्टद्युम्न ने अपनी चतुरंगिनी सेना से घेर लिया और बाणों से मारना आरंभ किया। वे भी भीम और धृष्टद्युम्न का डटकर मुकाबला करने लगे। उस समय भीमसेन क्रोध में भरकर हाथ में गदा लिये रथ से उतर पड़े और उन सबके साथ युद्ध करने लगे। भीमसेन युद्ध धर्म का पालन करने वाले थे इसीलिये स्वयं रथ पर बैठकर उन्होंने उन पैदलों के साथ युद्ध नहीं किया। उन्हें अपने बाहुबल पर पूरा भरोसा था। गदा हाथ में लिये बाज की तरह बिचरते हुए महाबली भीम ने आपके पच्चीसों हजार योद्धाओं को मार गिराया। एक ओर से अर्जुन ने रथियों की सेना पर धावा किया। दूसरी ओर नकुल, सहदेव और सात्यकि_ ये तीनों मिलकर दुर्योधन की सेना का संहार करते हुए शकुनि के ऊपर जा चढ़े। शकुनि के बहुत से घुड़सवारों को अपने तीखे बाणों से मारकर वे उसकी ओर भी दौड़े। फिर तो उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। बहुतों के रथ टूट गये, बहुत से सायकों की मार से अत्यंत घायल हो गये; इस प्रकार अर्जुन के साथ से भी मारे जाकर पच्चीस हजार योद्धा काल के गाल में समा गये। इधर, धृष्टद्युम्न के डर से आपके सैनिकों में भगदड़ पड़ गयी। चेकितान, शिखण्डी और द्रौपदी के पुत्र आपकी बड़ी भारी सेना का संहार करके शंख बजाने लगे। उन्होंने आपके भागते हुए सैनिकों का पीछा किया। इसके बाद अर्जुन ने पुनः रथ सेना पर चढ़ाई की और अपने विश्वविख्यात गाण्डीव धनुष की टंकार करते हुए उन्होंने सहसा सबको बाणों से ढ़क दिया। पृथ्वी से धूल उठी और चारों ओर घना अंधकार छा गया। किसी को कुछ भी सूझ नहीं पड़ता। उस समय कौरव_सेना में फिर से भगदड़ पड़ी_यह देख आपके पुत्र दुर्योधन ने शत्रुओं पर धावा किया और पाण्डवों को युद्ध के लिये ललकारा। पाण्डव_सेना दुर्योधन पर टूट पड़ी । उसने भी क्रोध में भरकर सैकड़ों और हजारों योद्धाओं को यमलोक पड़ा दिया। उस युद्ध में हम लोगों ने दुर्योधन का अद्भुत पुरुषार्थ देखा, वह अकेला होने पर भी समस्त पाण्डव_सेना से युद्ध कर रहे हैं। दुर्योधन ने जब अपनी सेना पर दृष्टिपात किया तो सबको दु:खी पाया; तब उसने सबका उत्साह बढ़ाते हुए कहा_'योद्धाओं ! मैं जानता हूं तुम भय से कांप रहे हो; परन्तु मेरे देखने में ऐसा कोई देश नहीं है, जहां तुमलोग भागकर जाओ और वहां पाण्डवों से तुम्हारी जान बच जाय। ऐसी दशा में भागने से क्या लाभ है? अब शत्रुओं के पास थोड़ी _सी सेना रह गयी है, श्रीकृष्ण और अर्जुन भी खूब घायल हो चुके हैं, आज मैं इन सब लोगों को मार डालूंगा। हम लोगों की विजय निश्चित है। जितने क्षत्रिय यहां उपस्थित हैं, सब ध्यान देकर सुन ले_जब मौत शूरवीर और कायर दोनों को मारती है तो मेरे जैसा क्षत्रियव्रत का पालन करनेवाला होकर भी कौन ऐसा मूर्ख होगा, जो युद्ध नहीं करेगा ? हमारा शत्रु भीमसेन क्रोध में भरा हुआ है; यदि भागोगे तो उसके वश में पड़कर तुम्हें प्राणों से हाथ धोना होगा। इसलिये बाप_दादों के आचरण किये हुए क्षत्रिय_धर्म का त्याग न करो। क्षत्रिय के लिये युद्ध में पीठ दिखाकर भागने से बढ़कर दूसरा कोई पाप नहीं है तथा युद्धविराम के पालन से बढ़कर स्वर्ग का दूसरा कोई मार्ग नहीं है। संग्राम में मरा हुआ योद्धा तुरंत उत्तम लोक प्राप्त करता है।'
आपका पुत्र इस प्रकार व्याख्यान देता ही रह गया किन्तु घायल सैनिकों में से किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। सब_के_सब चारों ओर भाग गये। उस समय मद्रराज शल्य ने दुर्योधन से कहा_'राजन् ! जरा इस रणभूमि की ओर दृष्टि डालो, कितने मनुष्यों और घोड़ों की लाशें बिछि हुई हैं, पर्वताकार गजराज बाणों से छिन्न_भिन्न होकर मरे पड़े हैं, और ये शूरवीर सैनिक नाना प्रकार के भोग, वस्त्राभूषण, मनोरम सुख तथा शरीर को भी त्यागकर धर्म की पराकाष्ठा का पालन करते हुए अपने यश के साथ ही स्वर्गादपि लोकों तक पहुंच गये हैं। दुर्योधन ! अब ये सूर्यदेव अस्ताचल को जाना ही चाहते हैं, तुम भी छावनी की ओर लौट चलो।'
राजा शल्य इतना कहकर चुप हो गये। उनका चित्त शोक से व्याकुल हो रहा था। उधर दुर्योधन की भी बड़ी दयनीय अवस्था थी, वह आर्य होकर 'हा कर्ण ! हां कर्ण !' पुकार रहा था। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी। अश्वत्थामा तथा दूसरे_दूसरे राजा लोग आकर उसे बारंबार धीरज बंधाते और रक्त से भीगी हुई रणभूमि को देखते हुए छावनी की ओर लौट जाते थे। समस्त कौरव सूतपुत्र के वध से दु:की थे, अंत: 'हा कर्ण ! हा कर्ण ! !' पुकारते हुए बड़ी तेजी के साथ शिविर की ओर लौट आये। देवता और ऋषि भी अपने_अपने स्थान को चल दिये। नभचर और थलचर जीव अपनी अपनी मौज के अनुसार आकाश और पृथ्वी के स्थानों में चले आते। दर्शक मनुष्य कर्ण और अर्जुन का अद्भुत संग्राम देखकर आश्चर्यमग्न हो दोनों की प्रशंसा करते हुए गये। महाराज ! उत्तम याचकों के मांगने पर जिसने सदा यही कहा कि 'मैं दूंगा', 'मेरे पास नहीं है' ऐसी बात जिसके मुंह से कभी निकली ही नहीं, ऐसा सत्पुरुष कर्ण द्वैरथ युद्ध में अर्जुन के साथ से मारा गया। जिसका धन ब्राह्मणों के अधीन था, ब्राह्मणों के लिये जो अपना प्राण तक देने में  आनाकानी नहीं करता था, जो महान् दानी और महारथी था, वहीं कर्ण अब आपके पुत्रों की विजय की आशा, भलाई और रक्षा_सबकुछ साथ लेकर स्वर्ग को चला गया। कर्ण के मारे जाने पर जब सूर्य अस्त हो गया तो मंगल और बुध संक्रांति से उदित हुए, पृथ्वी में गड़गड़ाहट होने लगी, चारों दिशाओं में आग लग गयी, उनमें धुआं जा गया, समुद्रों में तूफान आ गया, गर्जनाएं होने लगीं, समस्त प्राणी व्यथित हो उठे और बृहस्पति रोहिणी को घेरकर चन्द्रमा तथा सूर्य के समान तेजस्वी रूप में प्रकट हुए। उस समय पृथ्वी कांप उठी, उल्कापात होने लगा तथा आकाश में खड़े हुए देवता सहसा हाहाकार करने लगे । इस प्रकार कर्ण को मारने के पश्चात् प्रसन्नता से भरे हुए श्रीकृष्ण तथा अर्जुन ने सोने की जाली से मढ़े हुए श्वेत शंख हाथों में लेकर उन्हें ओठों से लगाया और एक ही साथ बजाना आरंभ किया। उनकी आवाज़ सुनकर शत्रुओं का हृदय विदीर्ण होने लगा। पांचजन्य और देवदत्त के गम्भीर घोष से पृथ्वी, आकाश तथा दिशाएं गूंज उठीं। वह शंखनाद सुनते ही समस्त कौरव_सैनिक मद्रराज शल्य तथा दुर्योधन को रणभूमि में ही छोड़कर भाग गये। उस समय सब लोगों ने एकत्र होकर श्रीकृष्ण और अर्जुन का सम्मान किया। वे दोनों उदित हुए सूर्य और चन्द्रमा की भांति शोभा पा रहे थे। उनके पराक्रम की कहीं तुलना नहीं थी, वे अपने शरीर से बात निकालकर मित्रमंडली से घिरे हुए आनन्दपूर्वक अपनी छावनी में जा पहुंचे। जब कर्ण मारा गया था उस समय छावनी में जा पहुंचा। जब कर्ण मारा गया था उस समय देवता, मनुष्य, चारण, महर्षि, यक्ष तथा नागों ने विजय एवं अभ्युदय की शुभकामना प्रकट करते हुए उन दोनो की पूजा की। सभी ने उनके गुणों की प्रशंसा की।
कर्ण की मृत्यु के पश्चात् जब कौरव_पक्ष के हजारों योद्धा भयभीत होकर भाग गये तो आपके पुत्र ने राजा शल्य की सलाह मानकर युद्ध बन्द करने की आज्ञा दी और सेना को एकत्रित कर पीछे लौटाया। मरने से बची हुई नारायणी सेना के साथ कृतवर्मा, हजारों गान्धारों के साथ शकुनि तथा हाथियों की सेना के साथ कृपाचार्य भी शिविर की ओर लौटे। अश्वत्थामा भी पाण्डवों की विजय देखकर बारंबार उच्छवास लेता हुआ छावनी की ओर ही चल दिया। बचे हुए संशप्तकोंसहित सुशर्मा और टूटी ध्वजावाले राजा शल्य भी डरते और लजाते हुए छावनी की ओर चले। कर्ण की मृत्यु देखकर समस्त कौरव भय से व्याकुल होकर कांप रहे थे, उनके शरीर से खून की धारा बह रही थी; अतः सब_के_सब उद्विग्न होकर भाग गये। अब उन्हें अपने जीवन और राज्य की आशा न रही। दुर्योधन दु:आ और शोक में डूब रहा था, वह बड़े यत्न से सबको एकत्र करके छावनी में ले गया। राजा की आज्ञा मान सभी सैनिकों ने शिविर में आकर विश्राम किया। उस समय सबका चेहरा फीका पड़ गया था।

Tuesday 10 January 2023

कर्ण का वध और शल्य का दुर्योधन को शान्तवना देना

संजय कहते हैं_महाराज ! तदनन्तर कर्ण धनुष उठाकर बड़े वेग से अर्जुन के साथ युद्ध करने लगा। उस समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा_'तुम कर्ण को दिव्यास्त्र से ही घायल करके मार गिराओ।‘ भगवान् के ऐसा कहने पर अर्जुन को कर्ण के अत्याचारों का स्मरण हो आया। फिर तो उन्हें भयंकर क्रोध चढ़ा, उनके रोम_रोम से आग की चिंगारियां फूटने लगीं_यह एक अद्भुत बात हुई। यह देख कर्ण ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र से उसके अस्त्र को दबा दिया। इसके बाद उन्होंने कर्ण को लक्ष्य करके आग्नेय अस्त्र छोड़ा जो अपने तेज से प्रज्जवलित हो उठा। किन्तु कर्ण ने उसे वारुणास्त्र से शान्त कर दिया; साथ ही आकाश में बादलों की घटा घिर आयी, संपूर्ण दिशाओं में अंधेरा छा गया। परंतु अर्जुन इससे विचलित नहीं हुए, उन्होंने कर्ण के देखते _देखते वायव्यास्त्र से उन बादलों को उड़ा दिया। तब सूतपुत्र ने अर्जुन का वध करने के लिये जलती हुई आग के समान एक भयंकर बाण हाथ में लिया और ज्यों ही उसे धनुष पर चढ़ाया पर्वत, वन और काननोंसहित सारी पृथ्वी डगमगाने लगी। कर्ण ने उसे छोड़ दिया; उस वज्र सरीखे बाण ने अर्जुन की छाती छेद डाली। गहरी चोट लगने से उन्हें चक्कर आ गया। हाथ ढ़ीला पर गया, गाण्डीव धनुष खिसकने लगा और उनका सारा शरीर कांप उठा। इसी बीच में मौका पाकर कर्ण पहिया निकालने के लिये रथ से कूद पड़ा। उसने दोनों हाथों से पकड़कर पहिये को ऊपर उठाने की बहुत कोशिश की, किन्तु दैववश वह अपने प्रयत्न में सफल न हो सका। इतने में अर्जुन को चेत हुआ और उन्होंने यमदण्ड के समान भयानक बाण हाथ में उठाया। इसी समय श्रीकृष्ण ने कहा_’कर्ण जबतक रथ पर नहीं चढ़ जाता, तबतक ही इसका मस्तक काट डालो।‘ ‘बहुत अच्छा’ कहकर अर्जुन ने भगवान् की आज्ञा स्वीकार की और कर्ण की ध्वजा पर दहकते हुए बाण का प्रहार किया। ध्वजा टूट गयी और उसके गिरने के साथ ही कौरवों के यश, घमंड, विजय, मनोवांछित कामनाओं तथा हृदय का भी पतन हो गया। उस समय बड़े जोर से हाहाकार मचा। अब अर्जुन कर्ण को मारने के लिए बड़ी शीघ्रता करने लगे। उन्होंने अपने भाथे से इन्द्र के वज्र और यमराज के दण्ड के समान एक आंजलिक नामक बाण निकालकर हाथ में लिया। उसकी लम्बाई लगभग ढ़ाई हाथ की थी। उसमें छः पर लगे हुए थे; इसलिए वह बहुत तीव्र गति से चलता था। वह बाण सब ओर फैली हुई कामाग्नि के समान घोर तथा पिनाक और सुदर्शन चक्र के समान भयंकर था। अर्जुन ने उस अस्त्र को गाण्डीव धनुष पर चढ़ाया और उसे खैंचकर कहा_’यदि मैंने तप किया हो, गुरुजनों को सेवा से प्रसन्न रखा हो, यज्ञ किया हो और हितैषी मित्रों की बातें ध्यान देकर सुनी हों तो इस सत्य के प्रभाव से यह बात मेरे प्रचण्ड शत्रु कर्ण का नाश कर डाले।‘ ऐसा कहकर उन्होंने वह भयानक बाण कर्ण का वध करने के उद्देश्य से उसकी ओर छोड़ दिया। उनके हाथ से छूटते ही वह सूर्य के समान तेजस्वी बाण ने समस्त दिशाओं और आकाश में प्रकाश फैला दिया। दिन का तीसरा पहर बीत रहा था। उसी समय अर्जुन ने उस बाण से कर्ण का मस्तक काट डाला। आंजलिक से कटा हुआ वह मस्तक पृथ्वी पर गिर पड़ा,  इसके बाद उसका धड़ भी खून की धारा बहाता हुआ धराशाही हो गया। उस समय कर्ण के शरीर से एक तेज निकलकर आकाश में फ़ैल गया और फिर सूर्यमण्डल में विलीन हो गया। इस अद्भुत दृश्य को वहां खड़े हुए सब लोगों ने अपनी आंखों से देखा था।
अर्जुन ने कर्ण को मार गिराया_यह देख पाण्डव पक्ष के योद्धा बड़े जोर जोर से शंख बजाने लगे। श्रीकृष्ण, अर्जुन तथा नकुल_सहदेव ने भी हर्ष में भरकर अपने _अपने शंख बजाये। सोमकों ने सेनासहित सिंहनाद किया। दूसरे योद्धाओं ने भी अत्यन्त प्रसन्न होकर बाजा बजाना आरम्भ कर दिया। कितने ही राजा आकर अर्जुन से गले मिले। कितने ही एक_दूसरे को गले लगाकर नाचने लगे। कर्ण के शरीर को खून से लथपथ हो पृथ्वी पर पड़ा देख महाराज शल्य उस टूटी हुई ध्वजा वाले रथ के द्वारा ही वहां से भाग गये। कर्ण की मृत्यु देख कौरव_पक्ष के अन्य योद्धा भी भयभीत होकर भाग चले। उस समय दुर्योधन की आंखों में आंसू भर आते। वह बारंबार उच्छवास लेने लगा। दोनों पक्ष के योद्धा कर्ण की लाश देखने के लिये उसे घेरकर खड़े हो गये। कोई प्रसन्न था, कोई भयभीत। किसी के चेहरे पर विषाद की छाया थी तो कोई आश्चर्य में डूबा हुआ था। सारांश यह कि जिसकी जैसी प्रकृति थी, वे उसी प्रकार हर्ष या शोक में मग्न हो रहे थे।
कर्ण के मरने पर भीम ने भयंकर सिंहनाद करके पृथ्वी और आकाश को कंपा दिया। वे धृतराष्ट्र के पुत्रों को डराते हुए ताल ठोककर नाचने कूदने लगे। सोमक, सृंजॉय तथा दूसरे क्षत्रिय भी अत्यन्त हर्ष में भरकर अर्जुन को छाती से लगाकर शंखनाद करने लगे। उस समय मद्रराज शल्य का चित्त ठिकाने नहीं था, वे दुर्योधन के पास पहुंचकर आंसू बहाते हुए बड़े दुःख के साथ बोले_’राजन् ! तुम्हारी सेना के हाथी_घोड़े, रथ और सेना नष्ट_भ्रष्ट हो गये, मानो उनपर यमराज का आधिपत्य हो गया है। आज कर्ण और अर्जुन में जैसा युद्ध हुआ है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। कर्ण ने चढ़ाई करके श्रीकृष्ण, अर्जुन तथा अन्य शत्रुओं को प्रायः काबू में कर लिया था; किन्तु कुछ फल नहीं हुआ। निश्चय ही दैव पाण्डवों के अधीन होकर काम कर रहा है। वह उनकी तो रक्षा करता है और हमारा नाश। यही कारण है कि तुम्हारे अर्थ की सिद्धि के लिये प्रयत्न करनेवाले सभी वीर शत्रुओं के हाथ से बलपूर्वक मारे गये। तुम्हारी सेना के प्रमुख योद्धा इन्द्र, यम और कुबेर के समान प्रभावशाली थे। उनमें पराक्रम, बल, शौर्य, तेज तथा और भी बहुत _से उत्तम गुण मौजूद थे। वे एक प्रकार से अवध्य थे; तो भी उन्हें पाण्डव योद्धाओं ने रण में मार डाला। अतः भारत ! तुम सोच न करो। यह सब प्रारब्ध का खेल है। सबको सदा ही सिद्धि नहीं मिलती, ऐसा जानकर धैर्य धारण करो।‘

अर्जुन के प्रहार से कर्ण की मूर्छा, पृथ्वी में धंसे हुए पहिये को निकालते समय कर्ण का धर्म की दुहाई देना औरऔर भगवान् श्रीकृष्ण का उसको फटकारना

संजय कहते हैं_महाराज ! कर्ण ने हंसकर जो अपनी प्रसन्नता प्रकट की थी, वह अर्जुन से नहीं सही गयी। उन्होंने सैकड़ों बाण मारकर उसके मर्मस्थानों को बींध डाला। फिर कालदण्ड के समान नब्बे सायकों से उसको घायल किया। इन प्रहारों के कारण कर्ण के शरीर में बहुत _से घाव हो गये और उसे बड़ी वेदना होने लगी। उसके मस्तक पर एक सुन्दर मुकुट था जिसमें उत्तम_उत्तम मणि, हीरे और सुवर्ण जड़े हुए थे। कानों में सुन्दर कुण्डल शोभा पा रहे थे। अर्जुन के बाणों की चोट खाकर कर्ण का वह मुकुट कुण्डलो के साथ ही जमीन पर जा पड़ा। उसने जो कवच पहन रखा था वह भी बड़ा कीमती और चमकीला था। उस कवच को कारीगरों ने बहुत दिनों में बनाया था, परन्तु अर्जुन ने एक ही क्षण में बाण मारकर उसके टुकड़े _टुकड़े कर डाले। इसके बाद तेज किये हुए चार बाण मारकर उन्होंने उसे और भी घायल कर दिया। जैसे वात, पित्त और कफ के प्रकोप से होनेवाले सन्निपात जड़ में रोगी को विशेष व्यथा होती है, वैसे ही शत्रु का बारंबार प्रहार होने से कर्ण को बड़ी पीड़ा हुई। अर्जुन में कार्यकुशलता, उद्योग और बल सभी कुछ था; इसके सहारे वे अपने धनुष से तेज किये हुए बाणों की वर्षा करके कर्ण के मर्मस्थानों को छेदने लगे। फिर उन्होंने उसकी छाती में यमदण्ड के समान नौ बाण मारे। इस प्रकार चोट पर चोट खाकर कर्ण एकदम आहत हो गया, उसकी मुट्ठी खुल गयी, धनुष और तरकस गिर पड़े और वह रथ पर ही गिरकर बेहोश हो गया। अर्जुन श्रेष्ठ थे और श्रेष्ठ पुरुषों के व्रत का पालन करते थे; उन्होंने जब कर्ण को संकट में पड़ा देखा तो उस समय उसे मारने का विचार छोड़ दिया। यह देख भगवान् कृष्ण सहसा बोल उठे_’पाण्डुनन्दन ! यह लापरवाही कैसी ? बुद्धिमान पुरुष संकट में पड़े हुए शत्रु को मारकर धर्म और यश प्राप्त करते हैं। तुम भी इसका नाश करने के लिये शीघ्रता करो; यदि यह पहले ही के समान शक्तिशाली हो जायगा तो फिर तुम पर आक्रमण करेगा।‘ तब अर्जुन ने ‘बहुत अच्छा भगवन् ! ऐसा ही करूंगा’ यों कहकर श्रीकृष्ण का सम्मान किया और शीघ्र ही उत्तम बाणों से  कर्ण को बींधना आरम्भ किया। उन्होंने ‘वत्सदन्त’ नामवाले सायकों से कर्ण को उसके रथ और घोड़ों सहित ढ़क दिया और पूरी शक्ति लगाकर चारों दिशाओं को बाणों से आच्छादित कर दिया। तदनन्तर, कर्ण को जब चेत हुआ तो उसने धैर्य धारण करके अर्जुन को दस और श्रीकृष्ण को छ: बाणों से बींध डाला। अब अर्जुन ने कर्ण पर एक भयंकर बाण छोड़ने का विचार किया। इधर, उसके वध का समय भी आ पहुंचा था। उस समय काल ने अदृश्य रहकर कर्ण को ब्राह्मण के कोपवश दिये हुए शाप की याद दिला दी और उसके वध की सूचना देते हुए कहा, ‘अब पृथ्वी तुम्हारे पहिये को निगलना ही चाहती है।‘ इसी समय परशुरामजी के द्वारा मिले हुए ब्राह्म अस्त्र की याद उसके मन से जाती रही। उधर, पृथ्वी ब्राह्मण के शाप के अनुसार उसके बाद पहिये को निगलने लगी। रथ डगमग करता रहा और उसका एक पहिया जमीन में धंस गया।
इस प्रकार जब पहिया फंसा, परशुरामजी का दिया हुआ अस्त्र भूल गया और घोर सर्पमुख बाण भी कट गया, तब कर्ण बहुत घबराया। वह एक साथ इतने संकटों को न सह सकने के कारण विषाद में डूब गया और हाथ हिला_हिलाकर धर्म की निंदा करने लगा_’ धर्मवेत्ता लोग हमेशा कहा करते थे कि धर्म अवश्य ही मनुष्य की रक्षा करता है। मैं भी शास्त्र में जैसा सुना गया है और जैसी अपनी शक्ति है, उसके अनुसार धर्मपालन के लिये सदा ही प्रयत्न करता रहा हूं। किन्तु आज वह भी मुझे मार ही रहा है, बचाता नहीं। इसलिये मेरी समझ में तो यही बात आती है कि धर्म भी अपने भक्तों की सदा रक्षा नहीं करता।‘ कर्ण ये बातें कर रहा था, उस समय उसके घोड़े और सारथि लड़खड़ा रहे थे। वह स्वयं भी अर्जुन के बाणों की मार से विचलित हो उठा था। मर्मस्थानों में चोट लगने से वह शिथिल हो गया था, काम करने की शक्ति नहीं रह गयी थी। अतः रह_रहकर धर्म की ही निंदा करता था। इसके बाद उसने कृष्ण के हाथ में तीन और अर्जुन के साथ भयंकर बाण मारे। तब अर्जुन ने भी कर्ण पर वज्र के समान भयंकर सत्रह बाणों का प्रहार किया, वे उसके शरीर को छेदते हुए पृथ्वी पर जा पड़े। उस प्रहार से कर्ण कांप उठा, किन्तु बलपूर्वक अपने शरीर को स्थिर रखकर उसने ब्रह्मास्त्र प्रकट किया। यह देख अर्जुन ने भी अपने बाणों को अभिमंत्रित करके कर्ण पर उनकी वर्षा आरम्भ कर दी। किन्तु महारथी कर्ण ने सामने आते ही अर्जुन के बाणों को नष्ट कर डाला। तब भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा_’पार्थ ! राधानन्दन कर्ण तुम्हारे बाणों को नष्ट किये डालता है। अतः तुम किसी उत्तम अस्त्र का प्रयोग करो।‘ यह सुनकर अर्जुन सावधान हो गया, उन्होंने मंत्र पढ़कर अपने धनुष पर ब्रह्मास्त्र को चढ़ाया और बाणों से समस्त दिशाओं को आच्छादित करके कर्ण को मारना आरम्भ किया। तब कर्ण ने तेज किये हुए बाणों से उनके धनुष की डोरी काट दी। अर्जुन ने दूसरी डोरी चढ़ायी, किन्तु कर्ण ने उसे भी काट दिया। इस प्रकार तीसरी,  चौथी, पांचवीं, छठीं, सातवीं, आठवीं,  नवीं, दशमी और ग्यारहवीं बार चढ़ाती हुई डोरी को भी उसने काट दिया। परन्तु अर्जुन के पास सौ डोरियां मौजूद थीं, इस बात को कर्ण नहीं जानता था। उन्होंने फिर  डोरी चढ़ायी और उसे अभिमंत्रित करके कर्ण पर बाणों की झड़ी लगा दी। उस समय कर्ण अपने अस्त्रों से अर्जुन के अस्त्रों को काटकर पुनः उन्हें बींध डालता था। इस प्रकार उसने अर्जुन की अपेक्षा बढ़कर पराक्रम दिखाया। इधर श्रीकृष्ण ने जब अर्जुन को कर्ण के बाणों से पीड़ित देखा तो कहा_’अर्जुन ! अस्त्र उठाओ और तीर से प्रहार करो।‘ तब उन्होंने मंत्र पढ़कर रौद्रास्त्र को धनुष पर चढ़ाया और उसे कर्ण पर छोड़ने का विचार किया। इतने में कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में अधिक धंस गया; यह देख वह तुरंत रथ से उतर पड़ा और दोनों भुजाओं से पहिये को पकड़कर ऊपर उठाने का उद्योग करने लगा। उसने सात द्वीपों वाली इस पृथ्वी को पर्वत और वन सहित चार अंगुल ऊपर उठा दिया, मगर फंसा हुआ पहिया नहीं निकल सका। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे और वह अर्जुन की ओर देखकर बोला_’कुन्तीनन्दन ! तुम बड़े धनुर्धर हो; जबतक मैं अपना यह फंसा हुआ पहिया निकाल न लूं, जबतक क्षणभर के लिये ठहर जाओ। तुम्हें नीच पुरुषों के मार्ग पर नहीं चलना चाहिये। तुम्हारे लिये तो श्रेष्ठ आचरण ही उचित है। जिसके सिर के बाल बिखरे गये हों, जो पीठ दिखाकर भाग जाता हो, ब्राह्मण हो, हाथ जोड़ रहा हो, शरण में आया हो और प्राण रक्षा के लिये प्रार्थना कर रहा हो, जिसने अपने हथियार रख दिये हों, जिसके पास बाण न हो, जिसका कवच कट गया हो, अस्त्र_शस्त्र गिर गये या टूट गये हों, ऐसे योद्धा पर उत्तम व्रत का आचरण करनेवाले शूरवीर अस्त्र नहीं चलाते। तुम भी संसार के बहुत बड़े वीर और सदाचारी हो। युद्ध_धर्म को जानते हो। तुमने उपनिषदों के गहन ज्ञान में डुबकी लगाई है। तुम दिव्यास्त्रों के ज्ञाता हो और उदार हृदय वाले हो। युद्ध में कार्तवीर्य को भी मात करते हो। महाबाहो ! जबतक मैं इस फंसे हुए चक्के को ऊपर उठा न लूं, जबतक रुक जाओ। तुम रथ पर हो और मैं जमीन पर। साथ ही मैं बहुत घबराया हुआ हूं, इसलिये मेरे ऊपर प्रहार करना उचित नहीं है। कर्ण की बात सुनकर रथ बैठे हुए भगवान् श्रीकृष्ण ने उससे कहा_’राधानन्दन ! सौभाग्य की बात है कि इस समय तुम्हें धर्म की याद आ रही है। प्रायः ऐसा देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में फंसने पर प्रारब्ध की ही निंदा करते हैं, अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं। कर्ण ! पाण्डवों के वनवास का तेरहवां बीत जाने पर भी जब तुमने उनका राज्य नहीं लौटाने दिया, उस समय तुम्हारा धर्म कहां चला गया था ? तुम्हारी ही सलाह लेकर जब राजा दुर्योधन ने भीमसेन को जहर मिलाया हुआ भोजन करवाया और उन्हें सांपों से डंसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहां गया था ? वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोते हुए पाण्डवों जलाने का जब तुमने प्रबंध किया, उस समय तुम्हारा धर्म कहां था ? भरी सभा के अंदर दु:शासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया, उस समय तुम्हारा धर्म कहां चला गया था ? याद है न ? तुमने द्रौपदी से कहा था_’कृष्णे ! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये; अब तू किसी दूसरे पति का वरण कर ले।‘ यह कहकर जब तुम उसकी ओर आंख फाड़_फाड़कर देखने लगे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहां गया था ? फिर राज्य के लोभ से तुमने शकुनि की सलाह लेकर जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहां चला गया था ? अभिमन्यु बालक था और अकेला भी; तो भी तुम अनेक महारथियों ने जब चारों ओर से घेरकर उसे मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहां चला गया था ? यदि उस समय भी यह धर्म नहीं था, तो आज भी धर्म की दुहाई देकर अधिक बकवाद करने से क्या लाभ है? इस समय यहां कितने ही धर्म क्यों न कर डालो, अब जीते जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता। पुष्कर ने राजा नल को जूए में जीत लिया था, किन्तु उन्होंने अपने ही पराक्रम से पुनः अपना राज्य भी पाया और यश भी। इसी तरह निर्लोभी पाण्डव भी अपने भुजाओं के बल से शत्रुओं का संहार करके फिर अपना राज्य प्राप्त करेंगे तथा इन महापुरुषों के हाथ से ही धृतराष्ट्र के पुत्रों का नाश हो जायगा।‘
भगवान् वासुदेव के ऐसा कहने पर कर्ण ने लज्जा से अपना सिर झुका लिया और उससे कोई जवाब देते नहीं बना। 

Tuesday 3 January 2023

भगवान् द्वारा अर्जुन के सर्पमुख बाण से रक्षा तथा अश्र्वसेन नाग का वध

संजय कहते हैं_राजन् ! तदनन्तर भागे हुए कौरव सैनिक धनुष से छोड़ा हुआ बाण जहां तक पहुंचता है, उतनी दूरी पर जाकर खड़े हो गये। वहां से उन्होंने देखा कि अर्जुन का अस्त्र चारों ओर बिजली के समान चमक रहा है। फिर यह भी देखने में आया कि कर्ण अपने भयंकर बाणों से उनके अस्त्र को नष्ट किये डालता है। अब अर्जुन प्रचंड रूप धारण कर कौरवों को भस्म करने लगे। यह देख कर्ण ने आथर्वण अस्त्र का प्रयोग किया। वह शत्रुनाशक अस्त्र उसे परशुराम जी से प्राप्त हुआ था। उसके द्वारा कर्ण ने अर्जुन के अस्त्र को शान्त कर दिया और उन्हें भी तेज किये हुए सहायकों से बींध डाला। 
उस समय कर्ण और अर्जुन ने इतनी बाणवर्षा की कि सारा आकाश ढ़क गया, उसमें तनिक भी जगह खाली नहीं रह गयी। कौरवों और सोमकों को चारों ओर बाणों के जाल जैसा फैला दिखायी देने लगा। घोर अन्धकार छा गया। बाणों के सिवा और कुछ नहीं सूझता था। वहां युद्ध करते समय वीरता, अस्त्र_संचालन, मायाबल तथा पुरुषार्थ में कभी सूतपुत्र कर्ण बढ़ जाता था और कभी अर्जुन। दोनों एक_दूसरे का छिद्र देखते हुए भयंकर प्रहार कर रहे थे; यह देखकर समस्त योद्धाओं को बड़ा आश्चर्य हो रहा था। उस समय अंतरिक्ष में खड़े हुए प्राणी कर्ण और अर्जुन की प्रशंसा करने लगे_’वाह रे कर्ण ! शाबाश अर्जुन !’ यही बात आकाश में सब ओर सुनाई पड़ती थी। 
 इसी समय पाताल लोक में रहनेवाला अश्वसेन नाम का नाग, जो अर्जुन से वैर मानता था, कर्ण तथा अर्जुन का युद्ध होता जान बड़े वेग से उछलकर वहां आ पहुंचा और अर्जुन से बदला लेने का यही उपयुक्त समय है, ऐसा सोच बाण का रूप बनाकर वह कर्ण के तरकस में समा गया। उस युद्ध में जब कर्ण किसी तरह अर्जुन से बढ़कर पराक्रम न दिखा सका तब उसे अपने सर्पमुख बाण की याद आयी। वह बाण बड़ा भयंकर था, आग में तपाया होने के कारण वह सदा देदीप्यमान रहता था। कर्ण ने अर्जुन को ही मारने के लिये उसे बड़े यत्न से बहुत दिनों तक सुरक्षित रखा था। वह नित्य उसकी पूजा करता और सोने के तरकस में चन्दन के चूर्ण के अन्दर उसे रखता था। उसी बाण को उसने धनुष पर चढ़ाया और अर्जुन की ओर ताककर निशाना ठीक किया। परन्तु उस बाण के धोखे में अश्र्वसेन नाम का नाग ही धनुष पर चढ़ चुका था_यह देख इन्द्रादि लोकपाल ‘हाय ! हाय !’ करने लगे।
उस समय मद्रराज शल्य ने उस भयंकर बाण को धनुष पर चढ़ा हुआ देखा तो कहा_’कर्ण ! तुम्हारा यह बात शत्रु के कण्ठ में नहीं लगेगा; जरा सोच_विचारकर फिर से निशाना ठीक करो, जिससे यह मस्तक काट सके।‘ यह सुनकर कर्ण की आंखें क्रोध से उद्दीप्त हो उठीं। वह शल्य से कहने लगा_’महाराज ! कर्ण दो बार निशाना नहीं साधता। मेरे जैसे वीर कपटपूर्वक युद्ध नहीं करते।‘ यह कहकर कर्ण ने जिसकी वर्षों से पूजा की थी, उस बाण को शत्रु की ओर छोड़ दिया और उनका तिरस्कार करते हुए उग्र स्वर से कहा_’अर्जुन ! अब  तू मारा गया। कर्ण के धनुष से छूटा हुआ वह बाण अन्तरिक्ष में पहुंचते ही प्रज्वलित हो उठा। उसे बड़े वेग से आते देख भगवान् श्रीकृष्ण ने खेल_सा करते हुए अपने रथ को तुरंत पैर से दबा दिया, मार पड़ने से रथ के पहिये कुछ_कुछ जमीन से धंस ग्रे। साथ ही सोने के गहनों से सजे हुए घोड़े भी पृथ्वी पर घुटने टेक कर जरा_सा झुक गये। भगवान् का यह कौशल देखकर आकाश में उनकी प्रशंसा से भरी हुई दिव्य वाणी सुनामी देने लगे। कर्ण का छोड़ा हुआ वह बाण रथ नीचा हो जाने के कारण अर्जुन के कण्ठ में न लगकर मुकुट में लगा। वह मस्तक के नीचे जा पड़ा। अर्जुन का वह मुकुट पृथ्वी, अन्तरिक्ष, स्वर्ग और वरुण लोक में भी विख्यात था; सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि की प्रभा के समान उसकी चमक थी। साक्षात् ब्रह्माजी ने बड़े प्रयत्न और तपस्या से उसको इन्द्र के लिये तैयार किया था। उससे बड़ी मीठी सुगंध फैलती रहती थी। साक्षात् ब्रह्माजी ने बड़े प्रयत्न और तपस्या से उसको इन्द्र के लिये तैयार किया था। उससे बड़ी मीठी सुगंध फैलती रहती थी। अर्जुन ने दैत्यों को मारने की इच्छा से जब रणयात्रा की थी, उस समय इन्द्र ने प्रसन्न होकर अपने हाथ से यह मुकुट पहनाया था। वहीं मुकुट कर्ण के साथ युद्ध करते समय सर्प की विषाग्नि से जीर्ण_शीर्ण होकर जलता हुआ जमीन पर जा गिरा। इससे अर्जुन को तनिक भी घबराहट नहीं हुई, वे अपने सिर के बालों पर सफेद साफा बांधकर धैर्यपूर्वक डटे रहे। उस समय वे मौत के मुख से बचें थे; क्योंकि सर्पमुख बाण के रूप में अर्जुन के साथ वैर रखनेवाला तक्षक का पुत्र था। किरीट पर आघात करके वह पुनः तरकस में घुसना ही चाहता था किन्तु कर्ण ने उसे देख लिया। कर्ण के पूछने पर वह कहने लगा_कर्ण ! तुमने अच्छी तरह सोच_विचारकर बाण नहीं छोड़ा था, इसीलिये मैं अर्जुन का मस्तक उड़ा सकता; अब जरा निशाना साथ साधकर चलाओ, फिर मैं अपने और तुम्हारे इस शत्रु का सिर अभी काट डालता हूं। कर्ण ने पूछा _तुम कौन हो ? नाग ने उत्तर दिया_’मैं नाग हूं। अर्जुन ने खाण्डव_वन में मेरी माता का वध करके बहुत बड़ा अपराध किया है, इसके कारण मेरी उससे दुश्मनी हो गयी है। यदि स्वयं वज्रधारी इन्द्र उसकी रक्षा करने आवे तो भी उसे यमराज के घर जाना होगा।‘ कर्ण बोला_’नाग ! आज कर्ण दूसरों का आश्रय लेकर विजय पाना नहीं चाहता। यदि तुम्हारा संधान करने से मैं सैकड़ों अर्जुनों को मार सकूं, तो भी मैं एक बाण को दो बार संधान नहीं कर सकता। मेरे पास सर्पबाण है, उत्तम प्रयत्न है और मन में रोष भी है; इन सबके द्वारा मैं स्वयं ही अर्जुन को मार डालूंगा, तुम प्रसन्नतापूर्वक लौट जाओ।‘ कर्ण की यह बात नागराज से नहीं सही गयी, वह स्वयं ही अर्जुन का वध करने के लिये अपना भयंकर रूप प्रकट करके उनकी ओर दौड़ा। यह देख श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा_’यह महान् सर्प तुम्हारा दुश्मन है, इसे मार डालो।‘ अर्जुन ने पूछा _’यह कौन है ?’ भगवान् ने कहा_’खाण्डव वन में जब तुम अग्निदेव को तृप्त कर रहे थे, उस समय इसकी जान बचाने के लिये इसे निगल लिया था। इस प्रकार मां के पेट में अपने शरीर को छिपाकर जब वह आकाश में उड़ रहा था, उसी समय तुमने दोनो को एकरूप मानकर केवल इसकी माता को मार डाला था। उसी वैर को याद करके आज यह तुम्हारी ओर आ रहा है।‘ तब अर्जुन ने आकाश में तिरछी गति से उड़ते हुए उस नाग को तेज किये हुये छः बाण मारे। बाणों के प्रहार से उसके शरीर के टुकड़े _टुकड़े हो गये और वह जमीन पर गिर पड़ा। उसके मारे जाने के बाद भगवान ने पृथ्वी में धंसे हुए रथ को अपनी दोनों भुजाओं से ऊपर निकाला। उस समय कर्ण ने श्रीकृष्ण को बारह तथा अर्जुन को नब्बे बाणों से घायल कर दिया। फिर एक भयंकर बाण से अर्जुन को बींध करके वह बड़े जोर से गरजने और हंसने लगा।