Friday 2 October 2020

संशप्तकों और अश्त्थामा के साथ अर्जुन का घोर संग्राम, अर्जुन के हाथ से दण्डधार और दण्ड का वध

धृष्टराष्ट्र ने पूछा__संजय ! अर्जुन का संशप्तकों और अश्त्थामा के साथ किस प्रकार युद्ध हुआ ?
संजय ने कहा_महाराज ! सुनिये। संशप्तकों की सेना समुद्र के समान दुर्लंघ्य थी, तो भी अर्जुन ने उसमें प्रवेश कर तूफान सा खड़ा कर दिया।
वे तेज किये हुए बाणों से कौरवों के मस्तक काट_काटकर गिराने लगे। थोड़ी ही देर में वहाँ जमीन पट गयी और वहाँ पड़े हुए ढ़ेर_के_ढ़ेर मस्तक बिना नाल के कमल जैसे दिखायी देने लगे। हजारों बाणों की वर्षा करके उन्होंने रथों, हाथियों और घोड़ों को उनके सवारों_सहित यमलोक भेज दिया। तीखे बाण मार_मारकर शत्रुओं के सारथि, ध्वजा, धनुष, बाण तथा रत्नजटित मुद्रिका से सुशोभित हाथों को काट गिराया। यह देख बड़े_बड़े योद्धा साँड़ों के समान हुँकारते हुए अर्जुन पर टूट पड़े और तीखे तीरों से उन्हें घायल करने लगे। उस समय अर्जुन और उन योद्धाओं में रोमांचकारी संग्राम आरम्भ हो गया।  अर्जुन पर सब ओर अस्त्रों की वर्षा हो रही थी, तो भी वे अपने अस्त्रों से उसका निवारण करके बाणों से मार_मारकर शत्रुओं के प्राण लेने लगे। जैसे हवा बादलों को छिन्न_भिन्न कर देती है, उसी प्रकार वे विपक्षियों के रथों की धज्जियाँ उड़ा रहे थे। उस समय अर्जुन अकेले होने पर भी एक हजार महारथियों के समान पराक्रम दिखा रहे थे। उनका यह पुरुषार्थ देख, सिद्ध,  ऋषि और चारण भी उनकी प्रशंसा करने लगे। देवताओं ने दुंदुभी बजायी और  अर्जुन तथा श्रीकृष्ण पर फूलों की वर्षा की। फिर वहाँ इस प्रकार आकाशवाणी हुई। ‘ जिन्होंने चन्द्रमा की कान्ति, अग्नि की दीप्ति, वायु का बल और सूर्य का प्रताप धारण किया है, वे ही ये श्रीकृष्ण और अर्जुन रणभूमि में विराज रहे हैं। एक रथ पर बैठे हुए ये दोनों वीर ब्रह्मा तथा शंकर की भाँति अजेय हैं। ये संपूर्ण प्राणियों से श्रेष्ठ नर तथा नारायण हैं।‘ इस आश्चर्यमय वृतांत को देख और सुनकर भी अश्त्थामा ने युद्ध के लिये भली_भाँति तैयार हो श्रीकृष्ण तथा अर्जुन पर धावा किया। उसने श्रीकृष्ण को साठ तथा अर्जुन को तीन बाण मारे। तब अर्जुन ने क्रोध मेंभरकर तीन बाणों से उसकाधनुष काट दिया। यह देख उसने दूसरा अत्यन्त भयंकर धनुष हाथ में लिया तथा श्रीकृष्ण पर तीन सौ तथा अर्जुन पर एक हजार बाणों का प्रहार किया।
इतना ही नहीं, अश्त्थामा ने अर्जुन को आगे बढ़ने से रोककर उनके ऊपर हजारों, लाखों और अरबों बाण बरसाये। उस समय ऐसा जान पड़ता था मानो उसके तरकस, धनुष, प्रत्यंचा, रथ, ध्वजा तथा कवच से बाँह, हाथ, छाती, मुँह, नाक, कान तथा मस्तक आदि अंगों एवं रोम_रोम से बाण छूट रहे हैं। इस प्रकार अपने सायकसमूहों की बौछार से उसने श्रीकृष्ण और अर्जुन को बींध डाला और अत्यन्त प्रसन्न होकर महामेघ के समान भयंकर गर्जना की। अश्त्थामा की गर्जना सुनकर अर्जुन ने उसके चलाये हुए प्रत्येक बाण के तीन_तीन टुकड़े कर डाले। इसके बाद उन्होंने संशप्तकों के रथ, हाथी, घोड़े, सारथि, ध्वजा और पैदल सिपाहियों को भयंकर बाणों से मारना आरम्भ कर दिया। गाण्डीव से छूटे हुए नाना प्रकार के बाण तीन मील पर खड़े हुए हाथी और मनुष्यों को भी मार गिराते थे। उस समय अर्जुन ने शत्रुओं के बहुत_से सजे_सजाये घुड़सवारों और पैदल सैनिकों का सफाया कर डाला। शत्रुओं में से जो लोग रण में पीठ दिशखाकर भाग नहीं गये, बराबर सामने डटे रहे, उसके धनुष, बाण, तरकस, प्रत्यंचा, हाथ, बाँह, हाथ के हथियार, छत्र, ध्वजा, घोड़े, रथ की ईषा, ढ़ाल, कवच और मस्तक को अर्जुन ने काट डाला। पार्थ के बाणों के प्रहार से रथ, घोड़े, और हाथियों के साथ उनके सवार भी धराशायी हो गये। यह देख अंग, बंग, कलिंग और निषाद देशों के वीर अर्जुन को मार डालने की इच्छा से हाथियों पर सवार हो वहाँ चढ़ आये। किन्तु अर्जुन ने उनके हाथियों के कवच, मर्मस्थान, सूँढ़, महावत, ध्वजा और पताका आदि को काट डाला। इससे वे हाथी वज्र के मारे हुए पर्वतशिखर की भाँति जमीन पर ढ़ह पड़े।
इसी बीच अश्त्थामा ने अपने धनुष पर दस बाण चढ़ाये और मानो एक ही बाण छोड़ा हो, इस प्रकार उन दसों को एक ही साथ छोड़ दिया। उनमें से पाँच बाणों ने तो अर्जुन को घायल किया और पाँच ने श्रीकृष्ण को क्षत_विक्षत कर दिया। उन दोनों के शरीर से खून की धारा बहने लगी। उनका इस प्रकार पराभव देखकर सबने यही माना कि अब वे मारे गये। उस समय भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा_’अर्जुन ! ढ़िठाई क्यों कर रहे हो; मारो इसे। जैसे चिकित्सा न कराने पर रोग बढ़कर कष्टदायक हो जाता है, उसी प्रकार लापरवाही करने से यह शत्रु भी प्रबल होकर महान् दु:खदायीहो जायगा।‘ ‘बहुत अच्छा’ कहकर अर्जुन ने भगवान् की आज्ञा स्वीकार की और सावधान होकर उन्होंने अश्त्थामा की बाँह,छाती,सिर और जंघा को बाणों से छेद डाला।
फिर घोड़ों की बागडोर काटकर उन्हें बाणों से बींधना आरम्भ कर दिया। घोड़े घबराकर भागे और अश्त्थामा को रणभूमि से दूर हटा ले गये।
अश्त्थामा अर्जुन के बाणों से इतना घायल हो चुका था कि फिर लौटकर उनसे लड़ने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। थोड़ी देर तक घोड़ों को रोककर उसने आराम किया और कर्ण की सेना में प्रवेश कर गया। तदनन्तर श्रीकृष्ण और अर्जुन संशप्तकों का सामना करने चल दिये। इसी समय उत्तर की ओर पाण्डवसेना में बड़े जोर का आर्तनाद सुनाई पड़ा। वहाँ दण्डधार पाण्डवों की चतुरंगिणी सेना का संहार कर रहा था। यह देख भगवान् कृष्ण ने रथ को लौटाकर उधर ही घुमा दिया और अर्जुन से कहा_’मगधदेश का राजा दण्डधार बड़ा पराक्रमी है, वह कहीं भी अपना सानी नहीं रखता। इसके पास शत्रुओं का संहार करनेवाला एक महान् गजराज है, इसे युद्ध की उत्तम शिक्षा मिली है और बल तो सबसे अधिक है ही। इनमें से किसी भी दृष्टि से यह राजा भगदत्त से कम नहीं है। पहले तुम इसी का संहार कर डालो, फिर संशप्तकों को मारना।‘
इतना कहकर भगवान् ने अर्जुन को दण्डधार के निकट पहुँचा दिया। वह काले लोहे के कवच पहने हुए घुड़सवार और पैदल सैनिकों को अपने मदोन्मत्त गजराज के द्वारा कुचलवाकर गिरा रहा था। वहाँ पहुँचते ही श्रीकृष्ण को बारह और अर्जुन को सोलह बाण मारकर दण्डधार ने उनके घोड़ों को भी तीन_तीन बाणों से घायल किया। इसके बाद वह बारंबार हँसने और गरजने लगा।
तब अर्जुन ने भल्लों से उसके धनुष_बाण, प्रत्यंचा, और ध्वजा को काट दिया। इससे कुपित हो श्रीकृष्ण और अर्जुन को घबराहट में डालने की इच्छा से अपने मदोन्मत्त गजराज को उनकी ओर बढ़ाया और तोमरों से उन दोनों पर वार किया। यह देख पाण्डुनन्दन अर्जुन ने तीन क्षुर चलाकर उसकी दोनों भुजाओं और मस्तक को एक ही साथ काट डाला, इसके बाद उसके हाथी को भी सौ बाण मारे।
उनकी चोट से पीड़ित होकर हाथी जोर_जोर से चिघ्घारने लगा और चक्कर काटता त़था लड़खड़ाचा हुआ इधर_उधर भागता तथा इधर_उधर भागने लगा। अन्त में ठोकर खाकर वह महावत के साथ ही गिरा और मर गया।
युद्ध में दण्डधार के मारे जाने पर उसका भाई दण्ड श्रीकृष्ण और अर्जुन का वध करने के लिये चढ़ आया। आते ही वह श्रीकृष्ण को तीन  और अर्जुन को तेज किये हुए पाँच तोमर मारकर भीषण गर्जना करने लगा। तब अर्जुन ने उसकी दोनों बाँहें काट डालीं और उसके मस्तक पर एक अर्धचन्द्राकार बाण मारा।
उसकी चोट से दण्ड का मस्तक कटकर हाथी पर से जमीन पर जा पड़ा। इसके बाद उन्होंने दण्ड के हाथी को भी बाणों से विदीर्ण कर डाला। उसकी चोट से अत्यन्त व्यथित वह हाथी चिघ्घारता हुआ गिरकर मर गया।
तत्पष्चात् दूसरे_दूसरे योद्धा भी उत्तम हाथियों पर सवार होकर विजय की इच्छा से चढ़ आये, परन्तु सव्यसाची ने औरों की भाँति उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया। फिर भी शत्रु की बहुत बड़ी सेना भाग खड़ी हुई। और अर्जुन संशप्तकों का संहार करने चल दिये।