Tuesday 8 October 2019

द्रुपद_ वृषसेन, प्रतिविन्ध्य_ दुःशासन, नकुल_ शकुनि और शिखण्डी_ कृपाचार्य का युद्ध तथा धृष्टधुम्न, सात्यकि एवं अर्जुन की पराक्रम

संजय कहते हैं___द्रोणाचार्य का मुकाबला करने के लिये राजा द्रुपद अपनी सेना के साथ बढ़े आ रहे थे। उस समय वृषसेन सैकड़ों बाणों की वर्षा करता हुआ उनके सामने आया। यह देख द्रुपद ने कर्णनन्दन की भुजाओं और छाती में साठ बाण मारे। बृषसेन क्रोध में भर गया और उसने रथ पर बैठे हुए राजा की छाती में अनेकों तीखे बाण मारे। इस प्रकार दोनों ने दोनों के शरीर में घाव कर दिये थे, दोनों के ही अंगों में बाण धँसे दिखायी देते थे। दोनों खून से लथपथ हो रहे थे। इसी बीच राजा द्रुपद ने एक भल्ल मारकर बृषसेन के धनुष को काट दिया। बृषसेन ने दूसरा सुदृढ़ धनुष हाथ में लिया और उसपर संधान करके द्रुपद की ओर लक्ष्य कर एक भल्ल छोड़ा। वह भल्ल द्रुपद की छाती छेदकर पृथ्वी में समा गया और उससे आहत हुए राजा को मूर्छा आ गयी। यह देख सारथि अपने कर्तव्य का विचार करके उन्हें वहाँ से दूर हटा ले गया। फिर तो उस भयंकर रात्रि में द्रुपद की सेना रणभूमि से भाग चली। बृषसेन के डर से सोमक क्षत्रिय भी वहाँ नहीं ठहर सके। प्रतापी बृषसेन सोमकों के अनेकों शूरवीर महारथियों को परास्त करके तुरंत ही राजा युधिष्ठिर के पास पहुँचा।
दूसरी ओर प्रतिविन्ध्य क्रोध में भरकर कौरवसेना को दग्ध कर रहा था, उसका सामना करने को आपका पुत्र महारथी दुःशासन पहुँचा। उसने प्रतिविन्ध्य के ललाट में तीन बाण मारकर उसे अच्छी तरह घायल किया। प्रतिविन्ध्य ने भी पहले नौ बाण मारकर फिर सात बाणों से दुःशासन को बिंध डाला। तब दुःशासन ने अपने उग्र सायकों से प्रतिविन्ध्य के घोड़ों को मारकर एक भल्ल से उसके सारथि को भी यमलोक पहुँचाया। इसके बाद उसके रथ के भी टुकड़े_टुकड़े कर दिये। फिर एक क्षरप्र से उसका धनुष भी काट डाला। प्रतिविन्ध्य सुतसोम के रथ पर जा बैठा और हाथ में धनुष ले आपके पुत्र को बाणों से बींधने लगा। तदनन्तर आपके योद्धा बड़ी भारी सेना के साथ आकर आपके पुत्र को सब ओर से घेरकर युद्ध करने लगे। उस समय दोनों सेनाओं में महान् संहारकारी युद्ध हुआ। इसी प्रकार एक ओर नकुल भी आपकी सेना का संहार कर रहा था। उसका सामना करने के लिये क्रोध से भरा हुआ शकुनि जा पहुँचा। वे दोनों ही आपस में वैर रखते थे और दोनों शूरवीर थे; दोनों ही एक_दूसरे के वध की इच्छा से परस्पर बाणों का आघात करने लगे। जैसे नकुल बाणों की झड़ी लगा रहा था, उसी प्रकार शकुनि भी। शरीर में बाण धँसे होने के कारण वे दोनों कंटीले वृक्षों के समान दिखायी पड़ते थे। इतने में ही शकुनि ने नकुल की छाती में एक कर्णी नामक बाण मारा। उसकी करारी चोट से नकुल को मूर्छा आ गयी और वह रथ के पिछले भाग में बैठ गया। फिर होश में आने पर उसने शकुनि को साठ बाण मारे। इसके बाद उसकी छाती में सौ नाराचों का प्रहार किया और उसके बाण चढ़ाये हुए धनुष को भी बीच से काट डाला। तत्पश्चात् ध्वजा काटकर जमीन पर गिरा दी और एक पैने बाण से उसकी दोनों जंघाओं को चीर डाला। इस चोट को शकुनि नहीं संभाल सका और बेहोश होकर रथ की बैठक में धम से गिर पड़ा। तब सारथि उसे रणभूमि से बाहर हटा ले गया और नकुल का सारथि अपने रथ को आचार्य द्रोण के पास ले गया।
दूसरी ओर कृपाचार्य ने शिखण्डी पर धावा किया। उन्हें निकट आते देख शिखण्डी ने नौ बाणों से घायल किया। कृपाचार्य ने भी पहले पाँच बाणों से मारकर फिर बीस बाणों से उसपर आघात किया। फिर तो  उन दोनों में महाभयंकर घोर संग्राम छिड़ गया। शिखण्डी ने एक अर्धचन्द्राकार बाण से कृपाचार्य के धनुष को काट दिया। यह देख उन्होंने शिखण्डी पर शक्ति का प्रहार किया, किन्तु उसने अनेकों बाण मारकर उस शक्ति के टुकड़े_टुकड़े कर दिये। तब कृपाचार्य ने दूसरा धनुष लेकर शिखण्डी को तीखे बाणों से आच्छादित कर दिया। इससे शिथिल होकर वह रथ के पिछले भाग में बैठ गया।उसे उस अवस्था में देख कृपाचार्य उसपर लगातार बाण बरसाने लगे। तब तो वह भाग खड़ा हुआ। यह देख पांचाल और सोमकवीर उसे चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये । इसी प्रकार आपके पुत्र भी बहुत बड़ी सेना के साथ कृपाचार्य के चारों ओर डट गये। फिर दोनों दलों में घोर संग्राम होने लगा। उस समय कोई अपने को भी नहीं पहचान पाते थे। मोहवश पिता पुत्र को और पुत्र पिता को मार रहे थे। मित्र_मित्र के प्राण ले रहे थे। मामा भानजों पर और भानजे मामा पर प्रहार करते थे। दोनों ही पक्ष के लोग स्वजनों पर ही हाथ साफ कर रहे थे। रात्रि के उस भयंकर युद्ध में कोई नियम नहीं, कोई मर्यादा नहीं रह गयी थी।
वह भयंकर युद्ध चल ही रहा था कि धृष्टधुम्न ने भी द्रोण पर आक्रमण किया। वह बारम्बार धनुष टंकारता हुआ द्रोण की ओर बढ़ने लगा। उसे आते देख पाण्डव और पांचाल योद्धा उसको चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये। उसे इस प्रकार सुरक्षित देखकर आपके पुत्र भी बड़ी सावधानी के साथ आचार्य की रक्षा करने लगे। इसी बीच में धृष्टधुम्न ने द्रोण की छाती में पाँच बाण मारकर सिंहनाद किया। तदनन्तर द्रोण का पक्ष ले कर्ण ने दस, अश्त्थामा ने पाँच, स्वयं द्रोण ने सात, शल्य ने दस, दुःशासन ने तीन, दुर्योधन ने बीस और शकुनि ने पाँच बाण मारकर धृष्टधुम्न को बींध डाला। किन्तु वह इससे तनिक भी बिचलित नहीं हुआ। उसने उन सातों महारथियों को बाणों से घायल कर दिया। फिर द्रोण, अश्त्थामा, कर्ण और आपके पुत्रों को तीन_तीन बाणों से बींध डाला। तब उनमें से एक_एक महारथी ने धृष्टधुम्न को पुनः पाँच_ पाँच बाण मारे। फिर द्रुमसेन ने कुपित होकर पहले एक बाण से, उसके बाद तीन सायकों से धृष्टधुम्न को घायल किया। धृष्टधुम्न ने भी उसे तीन बाण मारे, फिर एक भल्ल से उसके सिर को धड़ को अलग कर दिया। तदनन्तर उसने उन महारथी योद्धाओं को भी बाणों से आहत किया। फिर भल्ल मारकर कर्ण का धनुष काट दिया। कर्ण दूसरा धनुष लेकर धृष्टधुम्न पर बाणों की वर्षा करने लगा। इस प्रकार कर्ण को क्रोध में भरा देख शेष छः महारथियों ने धृष्टधुम्न का वध करने की इच्छा से तुरंत ही उसे घेर लिया। इसी समय धृष्टधुम्न को दुश्मनों के चंगुल में फँसा देख सात्यकि बाणों की झड़ी लगाता हुआ वहाँ आ पहुँचा। उस महान् धनुर्धर को देखते ही कर्ण ने उसपर दस बाण मारे। सात्यकि ने भी सब वीरों के देखते_देखते कर्ण को दस बाणों से बींध डाला। तब कर्ण ने विपाट, कर्णी, नाराच, वत्सदन्त और छुरों से सात्यकि को बींधकर पुनः सैकड़ों सायकों से उसे घायल किया। उस युद्ध में आपके पुत्र तथा कवचधारी कर्ण भी सात्यकि पर सब ओर से पैने बाणों का प्रहार करते थे।
किन्तु उसने अपने अस्त्रों से सबके बाणों का निवारण करके एक बाण से वृषसेन की छाती छेद डाली। उस चोट से मूर्छित होकर वृषसेन धनुष छोड़ रथ पर गिर पड़ा। फिर तो कर्ण सात्यकि को अपने सायकों से पीड़ित करने लगा। इसी प्रकार सात्यकि भी बारम्बार कर्ण को बींधने लगा। इधर आपके योद्धा सात्यकि को मार डालने की इच्छा से उसपर तीखे बाणों की वृष्टि करने लगे। यह देख उसने उग्र बाणों से शत्रुओं के शीश काटने आरम्भ किये। जब वह आपके वीरों का वध करने लगा, उस समय उनका करुण_क्रन्दन प्रेतों की चीत्कार के समान सुनायी देता था। उस आर्त कोलाहल से सारी रणभूमि गूँज रही थी, जिससे वह रात बड़ी डरावनी मालूम होती थी। दुर्योधन ने देखा सात्यकि के बाणों से पीड़ित होकर मेरी संपूर्ण सेना इधर_उधर भाग रही है। उसने बड़े जोर से आर्तनाद भी सुना। तब सारथि से कहा___’ जहाँ यह कोलाहल हो रहा है, वहीं मेरा रथ ले चल।‘ उसकी आज्ञा पाते ही सारथि ने घोड़ों को सात्यकि के रथ की ओर हाँक दिया। ज्योंही दुर्योधन निकट पहुँचा, सात्यकि ने बारह बाणों से उसे बींध डाला। दुर्योधन ने भी कुपित होकर सात्यकि को दस बाणों से घायल किया। तब सात्यकि ने आपके पुत्र की छाती में अस्सी बाण मारे, फिर उसके घोड़ों को यमलोक पठाया। तत्पश्चात् तुरंत ही सारथि को भी मार गिराया। इसके बाद एक भल्ल मारकर उसके धनुष को भी काट डाला। रथ और धनुष से हीन हो जाने पर दुर्योधन शीघ्र ही कृतवर्मा के रथ पर चढ़ गया। इस प्रकार जब दुर्योधन ने परास्त होकर पीठ दिखा दी, तो सात्यकि अपने बाणों से पुनः आपकी सेना को खदेड़ने लगा। दूसरी ओर शकुनि ने हजारों रथी, हाथीसवार और घुड़सवारों की सेना से अर्जुन के चारों ओर घेरा डाल लिया और उनपर नाना प्रकार के अस्त्र_ शस्त्रों की वर्षा आरम्भ कर दी। वे सभी क्षत्रिय योद्धाकाल की  प्रेरणा से महान् अस्त्र_ शस्त्रों की वृष्टि करते हुए अर्जुन के साथ युद्ध करने लगे। अर्जुन ने महान् संहार मचाते हुए उन हजारों रथ, हाथी और घोड़ों की सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया। तब शकुनि ने हँसते_हँसते अर्जुन को तीखे बाणों से बींध डाला और सौ बाणों से उनके महान् रथ की प्रगति भी रोक दी। अर्जुन ने भी शकुनि को बीस तथा अन्य महारथियों को तीन_तीन बाण मारे।फिर शकुनि का धनुष काटकर उसके चारों घोड़ों को यमलोक भेज दिया। तब वह उस रथ से उतरकर उलूक के रथ पर जा चढ़ा। एक ही रथ पर बैठे हुए वे दोनों महारथी पिता_पुत्र अर्जुन पर बाणों की झड़ी लगाने लगे। अर्जुन भी उन दोनों को तीखे बाणों से घायल कर सैकड़ों और हजारों सायकों की मार से आपकी सेना को खदेड़ने लगे। उस समय सब सेना तितर_बितर होकर चारों दिशाओं में भागने लगी। इस प्रकार उस युद्ध में आपकी सेना पर विजय पाकर श्रीकृष्ण और अर्जुन बहुत प्रसन्न हो शंख बजाने लगे। उधर धृष्टधुम्न ने तीन बाणों से आचार्य द्रोण को बींध डाला और उनके धनुष की प्रत्यंचा काट दी। द्रोण ने उस धनुष को रख दिया और दूसरा हाथ में लेकर धृष्टधुम्न को सात तथा उसके सारथि को पाँच बाण मारे। किन्तु धृष्टधुम्न ने अपने बाणों से उन सब अस्त्रों का निवारण कर दिया और कौरवसेना का संहार करने लगा। देखते_देखते रणभूमि में रुधिर की नदी बहने लगी। इस प्रकार आपकी सेना का पराजय करके धृष्टधुम्न तथा शिखण्डी ने अपने_अपने शंख बजाये।