Friday 19 May 2023

शकुनि और उलूक का वध

संजय कहते हैं _महाराज ! उपर्युक्त संग्राम जब आरम्भ हुआ, उस समय शकुनि ने सहदेव पर धावा किया। सहदेव ने भी सउबलपउत्र पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। शकुनि के साथ उसका पुत्र उलूक भी था, उसने भीमसेन को दस बाणों से बींध डाला। साथ ही शकुनि ने भी भीमसेन को तीन बाणों से घायल करके सहदेव पर नब्बे बाणों की वर्षा की। उस समय दोनों ओर के योद्धाओं द्वारा की हुई बाणों की बौछार से संपूर्ण दिशाएं आच्छादित हो गयीं। क्रोध में भरे हुए भीम और सहदेव दोनों वीर संग्राम में भयंकर संहार मचाते हुए विचर रहे थे। उनके सैकड़ों बाणों से ढंकी हुई आपकी सेना अंधकारपूर्ण आकाश की भांति दिखायी पड़ती थी। इस प्रकार लड़ते_लड़ते जब कौरवों के पास बहुत थोड़ी सी सेना रह गयी तो पाण्डव _योद्धा हर्ष में भरकर बड़े उत्साह से उन्हें यमलोक पहुंचाने लगे। इसी समय शकुनि ने सहदेव के मस्तक पर प्यास का प्रहार किया और सहदेव मूर्छित _सा होकर रथ की बैठक में बैठ गया
 उसकी यह अवस्था देख प्रतापी भीम ने क्रोध में भरकर शकुनि की सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया और नाराचों से मारकर सैकड़ों एवं हजारों सैनिकों का संहार कर डाला। इसके बाद उन्होंने बड़े जोर से सिंहनाद किया, जिसे सुनकर हाथी और घोड़ों सहित समस्त सैनिक थर्रा उठे। डर के मारे वे सहसा भाग चले। उन्हें भागते देख राजा दुर्योधन ने कहा_'अरे पापियों ! लौट आओ, भागने से क्या लाभ होगा ? जो वीर लड़ाई में पीठ न दिखाकर प्राण_त्याग करता है, वह संसार में कीर्ति पाता है और परलोक में उत्तम सुख भोगता है।' उसके ऐसा कहने पर शकुनि के सिपाही मोर की परवाह न करके पुनः पाण्डवों पर टूट पड़े। यह देख पाण्डव योद्धा भी उनका सामना करने को आगे बढ़े। इतने में भी सहदेव ने भी स्वस्थ होकर शकुनि को दस बाणों से बींध डाला और तीन बाणों से उसके घोड़ों को घायल करके हंसते-हंसते उसका धनुष भी काट दिया। शकुनि ने दूसरा धनुष लेकर सहदेव को साफ और भीमसेन को सात बाण मारे। इसी तरह उलूक ने भी भीम को सात और सहदेव को सत्तर बाणों से घायल कर डाला। तब भीमसेन ने उसे तेज किये हुए सायकों से बींध दिया और शकुनि को भी चौंसठ बाण मारकर उसके पार्श्वरक्षकों को तीन_तीन बाणों का निशाना बनाया। भीम के नाराचों से आहत हुए योद्धा क्रोध में भरकर सहदेव के ऊपर बाणों की बौछार करने लगे। तब सहदेव ने एक भल्ल मारकर अपने सामने आये हुए उलूक का मस्तक काट डाला। उसकी लाश जमीन पर गिर पड़ी। बेटे की मृत्यु देखकर शकुनि को विदुरजी की बात याद आ गयी। उसका गला भर आया, उच्छ्वास चलने लगा और वह अपनी आंखों में आंसू भरकर दो घड़ी तक चिंता में डूबा रहा। इसके बाद सहदेव के सामने जाकर उसने तीन बाण मारे, किन्तु सहदेव ने उसे अपने सायकों से का गिराया और शकुनि के धनुष के भी टुकड़े _टुकड़े कर डाले। तब शकुनि ने सहदेव के ऊपर तलवार का वार किया, किन्तु उसने हंसते-हंसते उस तलवार के भी दो टुकड़े कर दिये। अब शकुनि ने गदा चलायी, पर उसका वार खाली चला गया, वह जमीन पर जा पड़ी। इससे उसका क्रोध बहुत बढ़ गया और उसने एक भयंकर शक्ति सहदेव के ऊपर छोड़ी; किन्तु सहदेव ने बाण मारकर उसके भी तीन टुकड़े कर डाले। इस प्रकार जब शक्ति भी नष्ट हो गयी और शकुनि भयभीत हो गया तो आपके सैनिकों पर भी आतंक छा गया। वे सब_के_सब शकुनि के साथ भाग चले। उस समय पाण्डव जो_जोर से सिंहनाद करने लगे। प्रायः सभी कौरव_योद्धा रण से पीठ दिखाकर भाग गये। शकुनि को भी सिसकता देख सहदेव ने सोचा 'यह मेरा हिस्सा बाकी रह गया है_ इसका नाश मुझे करना है।' यह विचारकर अपना महान् धनुष टंकारते हुए उसने शकुनि का पीछा किया और तेज किये हुए बाण मारकर उसे अत्यंत घायल कर दिया और कहने लगा, 'मूर्ख शकुनि! तू क्षत्रियधर्म में स्थित होकर युद्ध कर, पराक्रम दिखाकर पुरुषत्व का परिचय दे। उस दिन सभा में पासा फेंकते समय तो तू खुश हो रहा था, उसका फल आज अपनी आंखों से देख। जिन दुरात्माओं ने पहले हमलोगों का उपहास किया था, वे सब मारे जा चुके हैं, केवल कुलांगार दुर्योधन और उसका मामा तू बाकी रह गया है। आज तेरा मस्तक अवश्य काट डालूंगा।' यह कहकर सहदेव ने शकुनि को दस और उसके घोड़ों को चार बाण मारे, फिर उसका छत्र, ध्वजा और धनुष काटकर उन्होंने सिंह के समान गर्जना की तथा अनेकों सायकों का प्रहार करके उसके मर्मस्थानों को बींध डाला। इससे शकुनि को बड़ा क्रोध हुआ। वह सहदेव को मार डालने की इच्छा से दोनों हाथों में प्रकाश लेकर उसपर टूट पड़ा। सहदेव ने शकुनि के उठाये हुए प्राश को तथा उसे पकड़नेवाली उसकी दोनों गोलाकार भुजाओं को तीन भल्ल मारकर एक ही साथ काट डाला। फिर बड़े जोर से गर्जना की। तदनन्तर, खूब सावधानी के साथ एक मजबूत लोहे का भल्ल धनुष पर चढ़ाया और उसके प्रहार से शकुनि का सिर धड़ से अलग कर दिया। उसकी मस्तकसहित लाश जमीन पर गिर पड़ी। शकुनि की यह दशा देख आपके योद्धा डरके मारे अपना साहस को बैठे। उनका मुंह सूख गया, चेतना जाती रही। और वे भयभीत होकर अपने_अपने हथियार लिये चारों दिशाओं में भागने लगे। गाण्डीव की टंकार सुनकर वे अधमरे हो रहे थे, किसी का रथ टूटा था, किसी के घोड़े मर गये थे और किन्हीं के हाथी ही मौत के मुंह में जा चुके थे। ये सब लोग पांव प्यादे सही भाग रहे थे। इस प्रकार शकुनि के मारे जाने से भगवान् श्रीकृष्ण के साथ ही समस्त पाण्डव बड़े प्रसन्न हुए। वे अपने योद्धाओं का हर्ष और उत्साह बढ़ाते हुए शंख बजाने लगे। सभी लोग सहदेव के इस कर्म की प्रशंसा करते हुए कहते हुए कहने लगे, 'वीरवर ! तुमने इस कपटी और दुरात्मा शकुनि को पुत्र सहित मार डाला, यह बड़ा अच्छा हुआ।

Friday 12 May 2023

भीमद्वारा धृतराष्ट्र के बारह पुत्रों का वध, श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत तथा अर्जुन द्वारा त्रिगर्तों का संहार

संजय कहते हैं_महाराज ! हाथियों के समुदाय का नाश हो जाने पर आपकी अन्य सेनाओं का संहार करने लगे। वे क्रोध में भरे हुए दण्डधारी यमराज की भांति हाथ में गदा लिये रणभूमि में विचर रहे थे। उस समय ढ़ूंढ़ने पर भी जब दुर्योधन का कहीं पता न लगा तो मरने से बचे हुए आपके पुत्र भीमसेन पर टूट पड़े। दुर्मर्षण, श्रुतान्त, जैत्र, भूरीबल, रवि, जयत्सेन, सुजात, दुविर्षह, दुष्प्रधर्ष तथा श्रुतर्वा ने धावा करके भीम को चारों ओर से घेर लिया। तब भीमसेन पुनः अपने रथ पर जा बैठे और आपके पुत्रों के मर्मस्थानों में तीखे बाणों का प्रहार करने लगे। उन्होंने एक क्षुरप्र मारकर दुर्मर्षण का मस्तक काट गिराया। फिर एक भल्ल के द्वारा श्रुतान्त का अन्त कर दिया। तत्पश्चात् हंसते-हंसते जयत्सेन पर नाराच पर प्रहार किया और उसे रथ की बैठक से भूमि पर गिरा दिया। गिरते ही उसके प्राण निकल गये। यह देख श्रुतर्वा कुपित हो उठा और उसने भीम को सौ बाण मारे। अब भीमसेन का क्रोध और भी बढ़ गया। उन्होंने जैत्र, भूरिबल और रवि_इन तीनों को अपने तीखे बाणों का निशाना बनाया। बाणों की चोट खाकर वे तीनों महारथी प्राणहीन होकर रथ से नीचे गिर पड़े। इसके बाद भीम ने एक तीखे नाराच से दुर्विमोचन को मौत के घाट उतार दिया। फिर दुष्प्रधर्ष और सुजात को दो_दो बाण मारकर यमलोक भेज दिया। यह देख दुर्विषह भीम पर चढ़ आया, उसे आते देख भीम ने उसके ऊपर भल्ल का प्रहार किया, उससे आहत होकर वह सबके देखते-देखते रथ से घिरा और मर गया। श्रुतर्वा ने जब देखा कि भीमसेन ने अकेले ही मेरे बहुत_से भाइयों का काम तमाम कर डाला तो अमर्ष में भरकर धनुष की टंकार करता हुआ वह उनपर टूट पड़ा वह उन्हें अपने बाणों का निशाना बनाने लगा। उसने भीमसेन के धनुष को काटकर उन्हें भी बीस बाणों से घायल कर डाला। तब महारथी भीम ने दूसरा धनुष उठाया और आपके पुत्र पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। श्रुतर्वा ने भी कुपित होकर भीम की भुजाओं और छाती में बाण मारे। इससे भीम बहुत घायल हो गये। उन्होंने अत्यंत रोष में भरकर श्रुतर्वा के सारथि और चारों घोड़ों को यमलोक भेज दिया। रथहीन होने पर श्रुतर्वा ढ़ाल और तलवार लेने लगा_इतने में ही भीम ने क्षुरप्र मारकर उसका मस्तक धड़ से अलग कर दिया। उसके मरते ही आपके सैनिक भय से विह्वल हो गये और युद्ध की इच्छा से भीमसेन की ओर दौड़े। भीमसेन भी उनका सामना करने के लिये आगे बढ़े। भीम के पास पहुंचकर उन वीरों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। तब भीमसेन अपने तीखे बाणों से उन्हें  पीड़ा देने लगे उन्होंने कवच से सुसज्जित पांच सौ महारथियों का काम तमाम करके सात सौ हाथियों का सफाया कर डाला। फिर आठ सौ घुड़सवारों और दस हजार पैदलों को मौत के घाट उतारकर वे विजयश्री से सुशोभित होने लगे। जिस समय भीमसेन आपके पुत्रों का संहार कर रहे थे, उस समय आपके सैनिकों का उनकी ओर आंख उठाकर देखने का भी साहस नहीं होता था। उन्होंने समस्त कौरवों और उनके अनुचरों को मार भगाया; फिर ताल ठोंककर उसकी विकट आवाज से बड़े_बड़े गजराजों को भयभीत करने लगे। उस लड़ाई में आपके बहुत _से सिपाही काम आये। जो बचे थे उनकी हिम्मत भी टूट गयी थी। महाराज ! दुर्योधन और सुदर्शन_ये ही दो आपके पुत्र बचे हुए थे। ये दोनों घुड़सवारों के बीच खड़े थे। दुर्योधन को वहां खड़ा देख देवकीनन्दन भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा_'अर्जुन ! अब शत्रुओं के अधिकांश योद्धा मारे जा चुके हैं। वह देखो, सात्यकि सृंजय को कैद करके लिये आ रहा है। उधर कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामा_ये तीनों राजा दुर्योधन को अलग छोड़कर रण में डटे हुए हैं। इधर, प्रभद्रकोंसहित दुर्योधन की सेना का संहार करके पांचालराजकुमार धृष्टद्युम्न अपनी सुन्दर कान्ति से शोभायमान हो रहा है। और वह है दुर्योधन, जो अपनी सेना का व्यूह बनाकर रण में खड़ा है। अर्जुन ! कौरव पक्ष के योद्धा तुम्हें आये देख जबतक भाग नहीं जाते, उसके पहले ही दुर्योधन को मार डालो। इसकी सेना बहुत तक गयी है, अतः इस समय आक्रमण करने से यह पापी छूटकर जा नहीं सकता।' श्रीकृष्ण की बात सुनकर अर्जुन ने कहा_'माधव ! धृतराष्ट्र के सभी पुत्र भीमसेन के साथ से मारे जा चुके हैं, ये दो, जो अभी बचे हुए हैं, ये भी रह नहीं जायेंगे। शकुनि की सेना में अभी भी पांच सौ घुड़सवार, दो सौ रथी, सौ से कुछ अधिक हाथी और तीन हजार ही पैदल बच गये हैं। दुर्योधन की सेना में अश्वत्थामा, कृपाचार्य, त्रिगर्तों, उलूक, शकुनि, कृतवर्मा आदि कुछ ही योद्धा बचे हैं, बाकी सब मारे गये। अब इनका भी का काल आ ही पहुंचा है। आज वे मेरे सामने आकर भाग नहीं जायेंगे, वे देवता ही क्यों न हो, उन सबको मार डालूंगा। आज सारा झगड़ा समाप्त हो जायेगा। दुर्योधन भी यदि मैदान छोड़कर भाग नहीं गया तो आज अपनी उद्दीप्त राज्यलक्ष्मी तथा प्राणों से हाथ धो बैठेगा। आप घोड़े बढ़ाइये, मैं सबको अभी मारे डालता हूं।' अर्जुन के ऐसा कहने पर भगवान् ने दुर।योधन की सेना की ओर घोड़े बढ़ाये, भीमसेन और सहदेव ने भी अर्जुन का साथ दिया। तीनों महारथी दुर्योधन को मार डालने की इच्छा से सिंहनाद करते हुए आगे बढ़े। उस समय आपके पुत्र सुदर्शन ने भीमसेन का सामना किया। सुवर्णा और शकुनि अर्जुन से लड़ने लगे। दुर्योधन घोड़े पर सवार हो सहदेव से जा भिड़ा। उसने बड़ी फुर्ती के साथ सहदेव के मस्तक पर एक प्रास से प्रहार किया। सहदेव उस चोट से मूर्छित होकर रथ के पिछले भाग में बैठ गया, उसका सारा शरीर खून से तय हो गया। फिर थोड़ी ही देर में, जब होश हुआ, तो वह क्रोध में भरकर दुर्योधन पर तीखे बाणों की बौछार करने लगा। उधर, अर्जुन भी घोड़ों की पीठ पर बैठे हुए योद्धाओं के मस्तक काट_काटकर गिराने लगे। उन्होंने बहुत_से बाण मारकर सारी सेना का संहार कर डाला। तदनन्तर त्रिगर्तों की रथ सेना पर धावा किया। उन्हें आये देख सारे त्रिगर्त महारथी एक साथ होकर श्रीकृष्ण तथा अर्जुन पर बाणों की वर्षा करने लगे। तब अर्जुन ने सत्कर्मा को एक क्षुरप्र से घायल कर उसके रथ का हरसा ( ईषा) काट डाला, फिर दूसरे क्षुरप्र से उसका मस्तक भी धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद उन्होंने सब योद्धाओं के सामने ही सत्येषु के पकड़कर मार डाला। तत्पश्चात् प्रस्तर देश के अधिपति सुवर्णा को तीन बाणों से बींधकर वहां एकत्रित हुए समस्त रथियों को अपने बाणों का निशाना बनाया। फिर, सुवर्णा को सौ बाण मारकर उसके घोड़ों को भी घायल किया, इसके बाद उन्होंने हंसते _हंसते सुवर्णा पर यमदण्ड के समान एक भयंकर बाण चलाया। उससे उसकी छाती छिद गयी और वह प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। इस प्रकार सुवर्णा को मारकर अर्जुन ने उसके पैंतालीस पुत्रों को भी मौत के घाट उतार दिया। फिर उसके समस्त अनुयायियों को यमलोक भेजकर उन्होंने मरने से बची हुई कौरव_सेना में प्रवेश किया। दूसरी ओर भीमसेन हंसते-हंसते बाणों की वर्षा करके सुदर्शन को ढंक दिया, अब वह दिखायी नहीं पड़ता था। प्रहार करते _करते उन्होंने एक तीखे क्षुरप्र से सुदर्शन का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। यह देख उसके अनुचरों ने भीम को चारों ओर से घेरकर उनपर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। तब भीमसेन ने तेज किये हुए बाणों की वर्षा करके उन्हें सब ओर से आच्छादित कर दिया और एक ही क्षण में सबका संहार कर डाला। उस समय परस्पर प्रहार करते हुए दोनों दलों के योद्धाओं में कोई अन्तर नहीं रह गया, दोनों सेनाएं मिलकर एक_सी हो गयीं।



Wednesday 3 May 2023

अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन की अनीति का कुपरिणाम बताया जाना तथा कौरवों की रथ सेना और गजसेना का संहार

संजय कहते हैं _तदनन्तर, कौरव_वीरों को बड़े वेग से धनुष उठाये देख अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा_" जनार्दन ! आप घोड़ों को हांकते और इस सैन्य सागर में प्रवेश कीजिये। आज मैं तीखे बाणों से शत्रुओं का अन्त कर डालूंगा। इस संग्राम के आरंभ हुए आज अठारह दिन हो गये। कौरवों के पास समुद्र जैसी अपार सेना थी, हो हमलोगों के पास आकर अब गाय के खुरकी_सी हो गयी। मुझे आशा थी कि पितामह भीष्म के मारे जाने पर दुर्योधन संधि कर लेगा, किन्तु उस मूर्ख ने ऐसा नहीं किया। भीष्म जी ने सच्ची और हितकर बात बतायी थी, किन्तु बुद्धि मारी जाने के कारण उसने उसे भी नहीं स्वीकार किया। फिर क्रमशः आचार्य द्रोण, कर्ण और विकर्ण आदि के मारे जाने के पर बहुत थोड़ी सी सेना बच रही है, तो भी युद्ध बन्द नहीं हुआ। भूरीश्रवा शल्य, शाल्व तथा अवन्ती के राजकुमार मारे गये, फिर भी इस मार_काट का अन्त हो सका। जयद्रथ, बाह्लीक, राक्षस अलआयउध, सोमदत्त, वीरवर भगदत्त, कआम्बओजरआज तथा दु:शासन की मृत्यु हो जाने पर भी यह संहार रुक न सका। भैया भीमसेन के साथ से अनेकों अक्षौहिणी पति मारे गये_यह देखकर भी लोभ या मोह के कारण लड़ाई बन्द नहीं हुई। जिसको अपने हिताहित का ज्ञान है, जो मूर्ख नहीं है, ऐसा कौन पुरुष होगा जो शत्रु को गुण, बल और वीरता में अपने से अधिक जानकर भी उससे लोहा लेने का साहस करेगा ? आपने भी पाण्डवों से सन्धि करने के विषय में उससे हितकारक वचन कहा था, किन्तु वह उनके मन में नहीं बैठा। जब आपकी ही बात पर वह ध्यान न दे सका तो दूसरे की कैसे सुन सकता था ? जिसने संधि के विषय में कहने पर भीष्म, द्रोण और विदुर की भी बात टाल दी, उसे राह पर लाने के लिये अब कौन_सी दवा है? जिसने मूर्खतावश अपने बूढ़े पिता की बात नहीं मानी, हित की बात बतानेवाली माता का अपमान किया, उसे और किसी की बात कैसे अच्छी लगेगी ? निश्चय ही दुर्योधन का जन्म इस कुल का अन्त करने के लिये हुआ है। महात्मा विदुर ने मुझसे बहुत बार कहा था कि 'दुर्योधन जीते_जी तुमलोग को राज्य का भाग नहीं देगा। सदा ही तुम्हारा बुराई किया करेगा। उसके युद्ध के सिवा और किसी प्रकार जीतना असंभव है।' 
आज ये सारी बातें सत्य जान पड़ती हैं। जिस मूर्ख ने परशुरामजी के मुख से यथार्थ और हितकर वचन सुनकर भी उसकी अवहेलना कर दी, वह तो निश्चय ही विनाश के मुख में स्थित है। दुर्योधन के जन्म लेते ही बहुतेरे सिद्ध पुरुषों ने कहा था कि 'इस दुरात्मा के कारण क्षत्रियकुल का महान् संहार होगा।' उनकी बात आज सत्य हो रही है; क्योंकि दुर्योधन के लिये ही वहां असंख्य राजाओं का संहार हुआ है। अतः: आज मैं समस्त कौरव_योद्धाओं का वध करूंगा। आप मुझे दुर्योधन की सेना में ले चलिये, जिससे उसको और उसकी सेना को मैं अपने तीखे बाणों का निशाना बना सकूं।" घोड़ों की बागडोर हाथ में लिये भगवान् श्रीकृष्ण से जब अर्जुन ने उपर्युक्त बात कही तो उन्होंने घोड़े बढ़ा दिये और निर्भय होकर शत्रुओं की सेना में प्रवेश किया। उस समय अर्जुन के सफेद घोड़े चारों ओर दिखाई पड़ते थे। फिर जैसे बादल पानी की धारा बरसाता है, उसी प्रकार अर्जुन बाणों की बौछार करने लगे। उनके छोड़े हुए बाण योद्धाओं के कवच फाड़कर वज्र के समान चोट करते हुए धरती पर गिर जाते थे। उनके द्वारा कितने ही मनुष्यों, घोड़े, हाथियों और प्राणों से हाथ धोना पड़ा। अर्जुन के बाणों पर उनका नाम खुदा हुआ था, उनके चलिये हुए वैसे बाणों से मानो सारा जगत् आच्छादित हो गया। जैसे धधकती हुई आग घास की ढ़ेरी को जला डालती है, उसी प्रकार अर्जुन भी शत्रु सैनिकों को भस्म करने लगे। वे मनुष्य, घोड़ा अथवा हाथी पर दुबारा बाण नहीं छोड़ते थे, उनके एक ही बात से सबका काम तमाम हो जाता था। अनेकों प्रकार के सायकों की वर्षा करके उन्होंने अकेले ही आपके पुत्र की सेना का संहार कर डाला।
यद्यपि कौरव_योद्धा रण में पीठ नहीं दिखानेवाले शूरवीर थे और पूरी शक्ति लगाकर लड़ रहे थे, तो भी अर्जुन ने अपने गाण्डीव से उनके विजय के संकल्प को व्यर्थ कर दिया। धनंजय के वाणी वज्र के समान असह्य और तेजस्वी थे; उनकी मार पड़ने से आपकी सेना साहस को बैठे और दुर्योधन के देखते _देखते रणभूमि से भाग चली। उस समय कोई पिता को पुकारते थे, कोई सहायकों को। कुछ लोग अपने भाई _बन्धु और सम्बन्धितों को जहां_के_तहां छोड़कर भाग गये। बहुत _से महारथी पार्थ के बाणों से अत्यंत घायल हो जाने के कारण मूर्छित हो रणभूमि में पड़े_पड़े उच्छ्वास ले रहे थे। उनको दूसरे लोग रथ पर चढ़ाकर घड़ी_दो_घड़ी आश्वासन देते थे। कुछ लोग उन घायलों को वैसे ही छोड़कर आपके पुर के आज्ञा का पालन करते हुए युद्ध  के लिये चले जाते थे। बहुतेरे योद्धा स्वयं पानी पीकर घोड़ों की भी थकावट दूर करते, उसके बाद कवच पहनकर लड़ने जाते थे। कुछ लोग अपने भाइयों, पुत्रों अथवा पिताओं को धीरज दे दे उन्हें छावनी में ही छोड़कर युद्ध के लिये निकल पड़ते थे। कोई_कोई अपने रथ को रण_सामग्री से सजाकर पाण्डव_सेना में प्रवेश करते थे। इस प्रकार कौरव_पक्ष के योद्धाओं ने पाण्डव_सेना पर चढ़ाई करके धृष्टद्युम्न के साथ युद्ध छेड़ दिया। उधर से धृष्टद्युम्न, शिखण्डी और शतानीक_ये लोग आपकी रथ सेना का सामना करने लगे। उस समय धृष्टद्युम्न को बड़ा क्रोध हुआ। वह अपनी विशाल सेना के साथ आपके सैनिकों का संहार करने को तैयार हो गया। यह देख आपके पुत्र ने उसके ऊपर नाना प्रकार के बाणों की झड़ी लगा दी। तब धृष्टद्युम्न ने भी नाराच, अर्धनाराच और वत्सदन्त आदि शीघ्रगामी बाणों से दुर्योधन की भुजाओं और छाती पर प्रहार किया। धृष्टद्युम्न आपके पुत्र के प्रहार से पहले बहुत घायल हो चुका था, इसलिये उसने दुर्योधन को बींध कर  उसके चारों घोड़ों को भी मौत के घाट उतार दिया; फिर एक भल्ल मारकर उसके सारथि का मस्तक भी धड़ से अलग कर दिया। अब दुर्योधन दूसरे घोड़े की पीठ पर चढ़कर शकुनि के पास भाग गया। इस प्रकार जब रथ सेना का संहार हो गया, उस सइस प्रकार जब रथ सेना का संहार हो गया, उस समय हमारे पक्ष के तीन हजार हाथी सवारों ने आकर पांचों पाण्डवों को चारों ओर से घेर लिया। भगवान् श्रीकृष्ण जिनके सारथि हैं; वे अर्जुन पर्वताकार गजराजों से गिरकर उन्हें अपने तीखे नाराचों का निशाना बनाने लगे। वहां हमने देखा, उनके एक ही बाण से विदीर्ण होकर बड़े _बड़े गजराज धराशायी हो रहे हैं। दूसरी ओर महाबली भीमसेन भी अपने रथ से कूदे और बहुत बड़ी गदा हाथ में लेकर दण्डधारी यमराज की भांति उन हाथियों पर टूट पड़े। उन्हें गदा हाथ में लिये देख आपके सैनिक थर्रा उठे, उनका मल_मूत्र निकल पड़ा और सबपर उद्वेग छा गया। भीम की गदा के आघात से हाथियों के कुम्भस्थल फूट जाते और वे धूल में भरे हुए इधर_उधर भागते देखें जाते थे। कितने ही हाथी गदा की चोट से आहत हो चिग्घाड़ कर गिर पड़ते थे। गजसेना की यह दुर्दशा देखकर आपके सारे सैनिक भय से कांप उठे। इस प्रकार युधिष्ठिर और नकुल_सहदेव भी आपके हाथी सवारों को यमलोक भेज रहे थे। हमारे पक्ष के तीन हजार हाथी सवारों ने आकर पांचों पाण्डवों को चारों ओर से घेर लिया। भगवान् श्रीकृष्ण जिनके सारथि हैं; वे अर्जुन पर्वताकार गजराजों से गिरकर उन्हें अपने तीखे नाराचों का निशाना बनाने लगे। वहां हमने देखा, उनके एक ही बाण से विदीर्ण होकर बड़े _बड़े गजराज धराशायी हो रहे हैं। दूसरी ओर महाबली भीमसेन भी अपने रथ से कूदे और बहुत बड़ी गदा हाथ में लेकर दण्डधारी यमराज की भांति उन हाथियों पर टूट पड़े। उन्हें गदा हाथ में लिये देख आपके सैनिक थर्रा उठे, उनका मल_मूत्र निकल पड़ा और सबपर उद्वेग छा गया। भीम की गदा के आघात से हाथियों के कुम्भस्थल फूट जाते और वे धूल में भरे हुए इधर_उधर भागते देखें जाते थे। कितने ही हाथी गदा की चोट से आहत हो चिग्घाड़ कर गिर पड़ते थे। गजसेना की यह दुर्दशा देखकर आपके सारे सैनिक भय से कांप उठे। इस प्रकार युधिष्ठिर और नकुल_सहदेव भी आपके हाथी सवारों को यमलोक भेज रहे थे। इसी समय अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा ने रथ सेना में दुर्योधन को ढ़ूंढ़ा, जब वह नहीं मिला, तो उन्होंने वहां खड़े हुए क्षत्रियों से पूछा_'राजा दुर्योधन कहां गये ?' उत्तर मिला_'सारथि के मारे जाने पर वे पांचालराज की दुर्धर्ष सेना का सामना करना छोड़ शकुनि के पास चले गये हैं। तब वे तीनों वीर पांचालराज की उस दुर्धर्ष सेना का व्यूह तोड़कर शकुनि के पास जा पहुंचे। उनके चले जाने पर पाण्डवपक्ष के योद्धा आपके सैनिकों का संहार करते हुए उनपर चढ़ आये। उन्हें आक्रमण करते देख हमारे पक्ष के बहुत _से योद्धा जीवन से निराश हो गये। उनका चेहरा फीका पड़ गया। उनके अस्त्र_शस्त्र कम हो गये थे और चारों ओर से घिर भी गये थे। उनकी यह दशा देख मैं अन्य चार महारथियों को साथ लेकर प्राणों की परवाह न करके पांचालों की सेना से युद्ध करने लगा। किन्तु अर्जुन के बाणों से पीड़ित हो जाने के कारण वहां से हम पांचों को भागना पड़ा। तब सेनासहित धृष्टद्युम्न के साथ हमारी मुठभेड़ हुई; किन्तु द्रुपद कुमार ने हम सब लोगों को परास्त कर दिया। वहां से भागकर हम दूसरी ओर आये तो महारथी सात्यकि दिखाई पड़ा। वह बिलकुल पास आ गया था। मुझे देखते ही उसने चार सौ रथियों के साथ धावा कर दिया। धृष्टद्युम्न के चंगुल से किसी तरह निकला तो सात्यकि की सेना में आ फंसा। थोड़ी देर तक वहां बड़ा भयंकर संग्राम हुआ। सात्यकि ने मेरी सारी युद्ध सामग्री नष्ट कर दी और मुझे भी पकड़ लिया। इतने में भीमसेन की गदा और अर्जुन के नाराचों से वहां सारी गजसेना का संहार हो गया।