Wednesday 18 April 2018

भीष्मजी का वध

राजा धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! शान्तनुकुमार भीष्म और कौरवों ने दसवें दिन पाण्डवों के साथ किस प्रकार युद्ध किया ? उस महायुद्ध का विवरण मुझे सुनाओ।
संजय ने कहा___राजन् ! जब कौरवों के सहित भीष्म और पांचाल_वीरों के सहित अर्जुन आपस में युद्ध करने लगे तो कोई भी यह निश्चय नहीं कर सकता था कि उनमें कौन जीतेगा। उस दसवें दिन तो इन दोनों का समागम होने पर बहुत ही सैन्य_संहार हुआ। भीष्मजी ने उस संग्राम में हजारों वीरों को धराशायी कर दिया। धर्मात्मा भीष्म दस दिन तक पाण्डवों की सेना को संतप्त कर अब अपने जीवन से उदासीन हो गये। उन्होंने युद्ध करते हुए प्राणत्याग की इच्छा से यह विचार किया कि अब मैं बहुत वीरों को नहीं मारूँगा और पास ही खड़े हुए राजा युधिष्ठिर से कहा, ‘बेटा युधिष्ठिर ! मैं तुमसे एक धर्मानुकूल बात कहता हूँ, सुनो। भैया ! इस शरीर से मैं बहुत उदासीन हो गया हूँ। इस संग्राम में बहुत से प्राणियों का संहार करते_करते मेरा समय बीता है। इसलिये यदि तुम मेरा प्रिय करना चाहते हो तो अर्जुन और पांचाल तथा संजयवीरों को आगे करके मेरे वध का प्रयत्न करो।‘ भीष्मजी का ऐसा आशय समझकर सत्यदर्शी युधिष्ठिर ने संजयवीरों को साथ लेकर उनपर आक्रमण किया और अपनी सेना को आज्ञा दी ‘आगे बढ़ो, युद्ध में डट जाओ; आज शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनेवाले वीर अर्जुन से सुरक्षित होकर भीष्मजी को परास्त कर दो। महान् धनुर्धर सेनापति धृष्टधुम्न और भीमसेन भी अवश्य तुम्हारी रक्षा करेंगे। संजयवीरों ! आज तुम भीष्मजी से तनिक भी मत घबराना, हम शिखण्डी को आगे करके उन्हें अवश्य परास्त कर देंगे। बस, अब सब योद्धा क्रोधातुर होकर रणक्षेत्र में कदम बढ़ाने लगे और शिखण्डी तथा अर्जुन को आगे रखकर भीष्मजी को धराशायी  करने का पूरा प्रयत्न करने लगे। इधर आपके पुत्र की आज्ञा से देश_देश के राजा, द्रोणाचार्य, अश्त्थामा तथा अपने सब भाइयों के सहित दुःशासन बहुत_सी सेना लेकर भीष्मजी की रक्षा करने लगे। इस प्रकार आपके अनेकों वीर शिखण्डी आदि पाण्डवों के योद्धाओं से लड़ने लगे। चेदि और पांचालवीरों के सहित अर्जुन शिखण्डी को आगे रखकर भीष्मजी के सामने आये। इसी प्रकार सात्यकि अश्त्थामा से, धृष्टकेतू पौरव से, अभिमन्यु दुर्योधन और उसके मंत्रियों से, सेना के सहित विराट जयद्रथ से, राजा युधिष्ठिर राजा शल्य से और भीमसेन आपकी गजारोही सेना के साथ संग्राम करने लगे। आपके पुत्र और अनेकों राजा अर्जुन और शिखण्डी को मारने के लिये टूट पड़े। इस भयानक मुठभेड़ में दोनों सेनाओं के इधर_उधर दौड़ने से पृथ्वी डगमगाने लगी और उसका भीषण शब्द सब ओर गूँजने लगा। रथी रथियों से लड़ने लगे, घुड़सवार घुड़सवारों पर टूट पड़े, गजारोही गजारोहियों से भिड़ गये और पैदल पैदलों से लोहा लेने लगे। दोनों ही पक्ष विजय के लिये उतावले हो रहे थे, अतः एक_दूसरे को तहस_नहस करने के लिये बड़ी करारी मुठभेड़ हुई। राजन् ! अब महापराक्रमी अभिमन्यु सेना के सहित आपके पुत्र दुर्योधन के साथ युद्ध करने लगा। दुर्योधन ने क्रोध में आकर नौ बाणों से अभिमन्यु की छाती पर वार किया और फिर उस पर तीन बाण छोड़े। तब अभिमन्यु ने बड़े रोष से उस पर एक भयंकर शक्ति का वार किया। उसे आती देखकर आपके पुत्र ने एक तेज बाण से उसके दो टुकड़े कर दिये। यह देखकर अभिमन्यु ने उसकी छाती और भुजाओं में तीन बाण मारे। इसके बाद उसने दस बाणों से, फिर उसकी छाती पर वार किया। यह दुर्योधन और अभिमन्यु का युद्ध बड़ा ही भयंकर और विचित्र हुआ। उसे देखकर सब राजा उनकी बड़ाई करने लगे।
अश्त्थामा ने सात्यकि पर नौ बाण छोड़कर फिर तीस बाणों से उसकी छाती और भुजाओं को घायल कर दिया। इस तरह अत्यंत बाणविद्ध होकर यशस्वी सात्यकि ने अश्त्थामा पर तीस तीर छोड़े। महारथी पौरवक ने धनुर्धर धृष्टकेतू को बाणों से आच्छादित कर बहुत ही घायल कर दिया तथा धृष्टकेतू ने तीस तीखे तीरों से पौरव को बींध दिया। फिर दोनों ने दोनों के धनुष काट डाले और एक_दूसरे के घोड़ों को मारकर दोनों ही रथहीन होकर युद्ध करने लगे। दोनों ने गेंडे के चमड़े की ढाल और चमचमाती हुई तलवारें ले लीं तथा एक_दूसरे के सामने आ तरह_तरह के पैंतरे बदलते हुए युद्ध के लिये ललकारने लगे। पौरव ने बड़े रोष से धृष्टकेतू के ललाट पर प्रहार किया तथा धृष्टकेतू ने अपनी तीखी तलवार से पौरव की हँसली पर चोट की। इस प्रकार एक_दूसरे के वेग से अभिहत होकर वे पृथ्वी पर लोटने लगे। इसी समय आपका पुत्र जयत्सेन पौरव को और माद्रीनन्दन सहदेव धृष्टकेतू को रथ में डालकर युद्धक्षेत्र से बाहर ले गये। दूसरी ओर द्रोणाचार्यजी ने धृष्टधुम्न का धनुष काटकर उसे पचास बाणों से बींध दिया। तब शत्रुदमन धृष्टधुम्न ने दूसरा धनुष लेकर आचार्य के देखते_देखते बाणों की झड़ी लगा दी। किन्तु महारथी द्रोण ने अपने बाणों की बौछार से उन्हें काटकर धृष्टधुम्न पर पाँच तीर छोड़े। तब धृष्टधुम्न ने क्रोध में भरकर आचार्य पर एक गदा छोड़ी। उसे आचार्य ने पचास बाण छोड़कर बात में ही गिरा दिया। यह देखकर धृष्टधुम्न ने एक शक्ति फेंकी। उसे द्रोणाचार्य ने नौ बाणों से काट डाला और फिर संग्रामभूमि में धृष्टधुम्न के दाँत खट्टे कर दिये। इस प्रकार यह द्रोण और धृष्टधुम्न का बड़ा ही भीषण और घमासान युद्ध हुआ। इधर अर्जुन भीष्मजी के सामने आकर उन्हें अपने तीखे बाणों से व्यथित करने लगे। यह देखकर राजा भगदत्त अपने मतवाले हाथी पर बैठकर उनके सामने आ गये। उन्होंने अपनी बाणवर्षा से अर्जुन का गति रोक दी। तब अर्जुन ने अपने तीखे तीरों से भगदत्त के हाथी को घायल कर दिया और शिखण्डी को,आदेश दिया कि ‘आगे बढ़ो, आगे बढो; भीष्मजी के पास पहुँचकर उनका अंत कर दो।‘ ऐसा कहकर अर्जुन शिखण्डी को आगे रखकर बड़े वेग से,भीष्मजी की ओर चले। बस, दोनों ओर से बड़ा घोर युद्ध होने लगा। आपके शूरवीर कोलाहल करते हुए बड़ी तेजी से अर्जुन की ओर दौड़े। किन्तु अर्जुन ने आपकी उस विचित्र वाहिनी को बात_की_बात में कुचल डाला। शिखण्डी झटपट भीष्मपितामह के सामने आया और बड़े उत्साह से उन पर बाण बरसाने लगा। भीष्मजी ने भी अनेकों दिव्य अस्त्र छोड़कर शत्रुओं को भष्म करना आरम्भ कर दिया। उन्होंने अर्जुन के अनुयायी अनेक सोमक वीरों को मार डाला और पाण्डवों की उस सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया। बात_की_बात में अनेकों रथ, हाथी और घोड़े बिना सवारों के हो गये। इस समय भीष्म का एक भी बाण खाली नहीं जाता था। वे विश्वभक्षी काल के समान हो रहे थे। अतः उनकी चपेट में आकर चेदि, काशी और करूष देश के चौदह हजार वीर अपने हाथी, घोड़े और रथों के सहित रणक्षेत्र में धराशायी हो गये। सोमकों में से ऐसा एक भी महारथी नहीं था, जो इस समय संग्रामभूमि में भीष्मजी के सामने अपने जीवन की आशा रखता हो। इसलिये उनके मुकाबले पर जाने की किसी की भी हिम्मत नहीं होती थी। बस, केवल वीराग्रणी अर्जुन और अतुलित तेजस्वी शिखण्डी ही उनके आगे चुकाने का साहस रखते थे। शिखण्डी ने भीष्मजी के सामने आकर उनकी छाती में दस बाण मारे। किन्तु भीष्मजी ने उसके स्त्रीत्व का विचार करके उस पर वार नहीं किया। पर शिखण्डी इस बात को नहीं समझ सका। तब उससे अर्जुन ने कहा, ‘ वीर ! झटपट आगे बढ़कर भीष्मजी का वध करो। बार_बार मुझसे कहलाने की क्या आवश्यकता है ? तुम महारथी भीष्म को फौरन मार डालो। मैं सच कहता हूँ, युधिष्ठिर की सेना में मुझे तुम्हारे सिवा और ऐसा कोई वीर दिखायी नहीं देता जो संग्राम में भीष्मजी के आगे ठहर सके।‘
अर्जुन के ऐसा कहने पर शिखण्डी ने तुरंत ही तरह_तरह के तीरों से पितामह को बींध दिया। परन्तु उन्होंने  उन बाणों की कुछ भी परवा न कर अपने बाणों से अर्जुन को रोक दिया। इसी प्रकार उन्होंने बाणों की बौछार से बहुत सी पाण्डवसेना को भी परलोक भेज दिया। दूसरी ओर से पाण्डवों ने,भी अपने तीरों से पितामह को बिलकुल ढक दिया। इस समय हमने आपके पुत्र दुःशासन का बड़ा अद्भुत पराक्रम देखा। बस एक ओर तो अर्जुन को साथ युद्ध कर रहा था और दूसरी ओर पितामह की रक्षा करने में भी तत्पर था। इस संग्राम में उसने अनेकों रथियों को रथहीन कर दिया तथा अनेकों अश्वारोही और गजारोही उसके पैने बाणों से कटकर पृथ्वी पर लोटने लगे। यही नहीं, बहुत से हाथी भी उसके बाणों से व्यथित होकर इधर_उधर भाग निकले। इस समय दुःशासन को जीतने या उसके सामने जाने का किसी भी महारथी का साहस नहीं हुआ। केवल अर्जुन ही उसके सामने आ सके। उन्होंने उसे परास्त करके फिर भीष्मजी पर ही धावा किया। इधर शिखण्डी को अपने वज्रतुल्य बाणों से पितामह पर प्रहार कर ही रहा था। किन्तु उनसे आपके पिताजी को कुछ भी कष्ट नहीं जान पड़ता था। वे उन्हें हँसते हुए झेल रहे थे। तब आपके पुत्र ने अपने समस्त योद्धाओं से कहा___’वीरों ! तुमलोग अर्जुन पर चारों ओर से धावा करो। डरो मत, धर्मात्मा भीष्मजी तुम सब लोगों की रक्षा करेंगे। यदि संपूर्ण देवता भी एकत्र होकर आवें तो भी वे भीष्मजी के सामने टिक नहीं सकते, फिर पाण्डवों की तो विसात ही क्या है ! इसलिये अर्जुन को सामने आते देख पीछे न भागो, मैं स्वयं प्रयत्नपूर्वक इसका सामना करूँगा। आपलोग भी सावधानतापूर्वक मेरी सहायता करें।‘ आपके पुत्र की जोशभरी बातें सुनकर सभी योद्धा आवेश में भर गये। इनमें कलिंग, कैसे रह, विषाद, सौवीर, बाह्लीक, दरद, प्रतीच्य, मालव, अभिषेक, शूरसेन, शिबि, बसाति,  शाल्व, शक, त्रिगर्त अम्बष्ठ और केकय आदि देशों के राजा थे। ये सब_के_सब एक साथ ही अर्जुन पर टूट पड़े। तब अर्जुन ने दिव्य बाणों का स्मरण करके धनुष पर उनका संधान किया और जैसे अग्नि पतंगों को जला देती है, उसी प्रकार वे इन राजाओं को भष्म करने लगे। महाराज ! उस समय अर्जुन के बाणों से घायल होकर रथ की ध्वजा के साथ रथी, घुड़सवारों के साथ घोड़े और हाथीसवारों के साथ हाथी गिरने लगे। सारी पृथ्वी बाणों से ढक गयी। आपकी सेना चारों ओर भागने लगी।  इस प्रकार सेना को भागकर अर्जुन ने दुःशासन के ऊपर प्रहार करना शुरु किया, उनके बाण दुःशासन के शरीर को छेदकर पृथ्वी में समा जाते थे। थोड़ी देर में उन्होंने उसके घोड़ों और सारथि को मार गिराया। फिर बीस बाण मारकर  विविंशति के रथ को तोड़ डाला और पाँच बाणों से उसे भी घायल किया। तत्पश्चात् कृपाचार्य, विकर्ण और शल्य को भी बींधकर उन्हे रथहीन कर दिया। तब तो वे सभी महारथी पराजित होकर भाग चले। दोपहर के पहले_पहले इन सब योद्धाओं को हराकर अर्जुन धूमरहित अग्नि के समान देदीप्यमान होने लगे। प्रखर किरणों से जगत् को तपानेवाले सूर्य की भाँति वे अपने बाणों से अन्यान्य राजाओं को भी ताप देने लगे। बाणों की वर्षा से समस्त महारथियों को भागाकर उन्होंने संग्राम में कौरव_पाण्डवों के बीच रक्त की एक बहुत बड़ी नदी बहा दी। इतने में ही अपने दिव्य अस्त्रों का प्रयोग करते हुए भीष्मजी अर्जुन के ऊपर चढ़ आये। यह देख शिखण्डी ने उन पर धावा किया। उसे देखते ही भीष्म ने अपने अग्नि के समान तेजस्वी अस्त्रों को समेट लिया। तब अर्जुन पितामह को मूर्छित करके आपकी सेना का संहार करने लगे। तदनन्तर शल्य, कृपाचार्य, चित्रसेन, दुःशासन और विकर्ण, देदीप्यमान रथों पर बैठकर पाण्डवों पर चढ़ आये और उनकी सेना को कँपाने लगे। इन शूरवीरों के हाथ से मारी जाती हुई वह सेना सब ओर भागने लगी। इधर, पितामह भीष्म भी सजग होकर पाण्डवों के मर्म पर आघात करने लगे। इसी प्रकार अर्जुन ने आपकी सेना के बहुत से हाथियों को मार गिराया। उनकी बाणों की मार से हजारों मनुष्यों की लाशें गिरती दिखायी देती थीं। योद्धाओं के कुण्डलों सहित मस्तक से रणभूमि आच्छादित हो गयी थी। उस वीरविनाशक संग्राम में भीष्म और अर्जुन दोनों ही अपना पराक्रम दिखा रहे थे। इसी बीच में पाण्डवों का सेनापति महारथी धृष्टधुम्न आकर अपने सैनिकों से बोला, ‘सोमकों ! तुमलोग संजयों को साथ लेकर भीष्म पर धावा करो।‘ सेनापति की आज्ञा सुनकर  समेत और संजयवंशी क्षत्रिय  बाणवर्षा से पीड़ित होने पर भी भीष्मजी पर चढ़ आये। राजन् ! जब आपके पिता उनके बाणों से बहुत घायल हो गये तो बड़े अमर्ष में भरकर संजयों के साथ युद्ध करने लगे। पूर्वकाल में परशुरामजी ने जो उन्हें शत्रुसंहारिणी अस्त्रविद्या सिखायी थी, उसका उपयोग करके भीष्मजी ने शत्रुसेना का संहार आरम्भ किया। वे प्रतिदिन पाण्डवों के दस हजार योद्धाओं का संहार करते थे। उस दसवें दिन भी भीष्मजी ने अकेले ही मत्स्य और पांचालदेश के असंख्य हाथी_घोड़े मार डाले तथा उनके साथ महारथियों को यमलोक भेज दिया। इसके बाद उन्होंने पाँच हजार रथियों का संहार किया; फिर चौदह_हजार पैदल, एक हजार हाथी और दस हजार घोड़े मार डाले। इस प्रकार समस्त राजाओं की सेना का संहार करके भीष्मजी ने विराट के भाई शतानीक को मार गिराया। इसके बाद एक हजार और राजाओं को मृत्यु का ग्रास बनाया। पाण्डवसेना के जो_जो वीर अर्जुन के पीछे चले गये थे, वे सभी भीष्मजी के सामने जाते ही यमलोक के अतिथि बन गये। भीष्मजी यह महान् पराक्रम करके हाथ में धनुष लिये दोनों सेनाओं के बीच में खड़े हो गये। उस समय कोई राजा उनकी ओर आँख उठाकर देखने का साहस भी न कर सका। भीष्मजी के उस पराक्रम को देखकर भगवान् श्रीकृष्ण ने धनन्जय से कहा___’अर्जुन ! देखो, ये शान्तनुनन्दन भीष्मजी दोनों सेनाओं के बीच में खड़े हैं; अब तुम जोर लगाकर इनका वध करो, तभी तुम्हारी विजय होगी। जहाँ ये सेना का संहार कर रहे हैं, वहाँ पहुँचकर जबरदस्ती इनकी गति रोक दो। तुम्हारे सिवा दूसरा कोई वीर ऐसा नहीं है जो भीष्मजी को बाणों का आघात सह सके।‘ भगवान् की प्रेरणा से अर्जुन ने उस समय इतनी बाणवर्षा की कि भीष्मजी के रथ, ध्वजा और घोड़ों के साथ उससे आच्छादित हो गये। परन्तु पितामह ने अपने बाण छोड़कर अर्जुन के बाणों के टुकड़े_ टुकड़े कर दिये। तब शिखण्डी अपने उत्तम अस्त्र_ शस्त्रों को लेकर बड़े वेग से भीष्म की ओर दौड़ा, उस समय अर्जुन उसकी रक्षा कर रहे थे। भीष्म के पीछे चलनेवाले जितने योद्धा थे, उन सबको अर्जुन ने मार गिराया और स्वयं भी भीष्म पर धावा किया। इनके साथ सात्यकि, चेकितान, धृष्टधुम्न, विराट, द्रुपद, नकुल, अभिमन्यु और द्रौपदी के पाँच पुत्र भी थे। वे सब लोग एक साथ भीष्मजी पर बाणों की वर्षा करने लगे। किन्तु इससे उन्हें तनिक भी घबराहट नहीं हुई। इन सब योद्धाओं के बाणों को पीछे लौटाकर वे पाण्डवसेना में घुस गये और मानो खेल कर रहे हों, इस प्रकार उनके अस्त्र_शस्त्रों का उच्छेद करने लगे। शिखण्डी के स्त्री_भाव का स्मरण करके वे बारम्बार मुस्कराकर रह जाते, उस पर बाण नहीं मारते थे। जब उन्होंने द्रुपद की सेना के सात महारथियों को मार डाला, तब रणभूमि में महान् कोलाहल होने लगा। इसी समय अर्जुन शिखण्डी को आगे करके भीष्म के निकट पहुँच गये। इस प्रकार शिखण्डी को आगे रखकर सभी पाण्डवों ने भीष्म को चारों और से घेर लिया और उन्हें बाणों से बींधना आरम्भ कर दिया। शतन्घी, परिघ, फरसा, मुद्गल, प्रास, बाण, शक्ति, तोमर, कम्पन, नाराच, वत्सदत् और भुसुण्डी आदि अस्त्र_ शस्त्रों का प्रहार होने लगा। उस समय तो भीष्म अकेले थे और उन्हें मारनेवालों की संख्या बहुत थी। इससे उनका कवच छिन्न_भिन्न हो गया। उन्हें विशेष कष्ट पहुँचा तथा उनके मर्मस्थानों में गहरी चोट लगी; तो भी वे विचलित नहीं हुए। वे एक ही क्षण में रथ की पंक्ति तोड़कर बाहर निकल आते और पुनः सेना के मध्य में प्रवेश कर जाते थे। द्रुपद और धृष्टकेतू की कुछ भी परवा न करके वे पाण्डवसेना में घुस आये और अपने पाने बाणों से भीमसेन, सात्यकि, अर्जुन, द्रुपद, विराट और धृष्टधुम्न___इन छः महारथियों को बींधने लगे। इन महारथियों ने भी उनके बाणों का निवारण करके पृथक्_पृथक् दस_दस बाणों से भीष्मजी को बींध दिया। महारथी शिखण्डी ने बाणों का प्रबल प्रहार किया, किन्तु उससे उन्हें तनिक भी कष्ट नहीं हुआ। तब अर्जुन ने कुपित होकर भीष्मजी के धनुष को काट दिया। उनके धनुष का कटना कौरव महारथियों से नहीं सहा गया। उस समय आचार्य द्रोण, कृतवर्मा, जयद्रथ, भूरिश्रवा, शल, शल्य तथा भगदत्त___ये सात वीर क्रोध में भरकर धनन्जय पर टूट पड़े और अपने दिव्य अस्त्रों का कौशल दिखाते हुए उन्हें बाणों से आच्छादित करने लगे। अर्जुन पर धावा करनेवाले इन कौरव वीरों ने महान् कोलाहल मचाया। उस समय उनके रथ के पास, ‘मारे, यहाँ लाओ, पकड़े, छेद डाले, टुकड़े_टुकड़े कर दो' आदि की आवाज सुनायी देने लगी। वह आवाज सुनकर पाण्डवों के महारथी भी अर्जुन की रक्षा के लिये दौड़े। सात्यकि, भीमसेन, धृष्टधुम्न, विराट, द्रुपद, घतोत्कच और अभिमन्यु___ये सात वीर अपने_अपने विचित्र धनुष लिये क्रोध में भरे हुए कौरवों के सामने आ डटे। फिर तो दोनों दलों में रोमांचकारी  तुमुल युद्ध छिड़ गया। मानो देवता और दानव लड़ रहे हों। भीष्मजी का धनुष कट गया था, उसी अवस्था में शिखण्डी ने उन्हें दस बाणों से बींध दिया। फिर दस बाणों से उनके सारथि को मारकर एक से रथ की ध्वजा काट डाली। तब भीष्मजी ने दूसरा धनुष हाथ में लिया, किन्तु अर्जुन ने उसे भी काट दिया। इस प्रकार भीष्म ने अनेकों धनुष लिये, पर अर्जुन सबको काटते गये। बारम्बार धनुष कटने से भीष्मजी को बड़ा क्रोध हुआ और उन्होंने पर्वतों को भी विदीर्ण करनेवाली एक बहुत बड़ी शक्ति अर्जुन के रथ पर फेंकी। यह देख अर्जुन ने पाँच बाण मारकर उस शक्ति के टुकड़े_टुकड़े कर दिये।
शक्ति को कटी हुई देख भीष्मजी मन_ही_मन विचार ने लगे___'यदि भगवान् कृष्ण रक्षा न करते होते, तो मैं एक ही धनुष से संपूर्ण पाण्डवों का वध कर सकता था। इस समय मेरे सामने पाण्डवों के साथ युद्ध न करने के दो कारण उपस्थित हैं___एक तो ये पाण्डु की संतान होने के कारण मेरे लिये अवध्य हैं; दूसरे मेरे समक्ष शिखण्डी आ गया है, जो पहले स्त्री था। जिस समय मेरे पिता ने माता सत्यवती से विवाह किया, उस समय उन्होंने संतुष्ट होकर मुझे दो वर दिये थे___'जब तुम्हारी इच्छा होगी, तभी मरोगे तथा युद्ध में कोई भी मुझे मार न सकेगा। जब ऐसी बात है, तो मैं इस समय अपनी स्वच्छन्द मृत्यु ही क्योंन स्वीकार कर लूँ; क्योंकि अब उसका भी अवसर आ गया है।‘ भीष्मजी के इस निश्चय को आकाश में स्थित ऋषिगण और वसु देवता जान गये। उन्होंने भीष्मजी को संबोधित करके कहा___’तात ! तुमने जो विचार किया है, वह हमलोगों को भी प्रिय है। बस, अब वही करो, युद्ध की ओर से चित्तवृत्ति हटा लो।‘ उनकी बात पूरी होते ही शीतल मन्द_सुगन्ध वायु चलने लगी, जल की फुहारें पड़ने लगीं, देवताओं की दुन्दुभियाँ बज उठीं और भीष्मजी पर फूलों की वर्षा होने लगी। ऋषियों की वह बात दूसरे किसी को नहीं सुनाई पड़ी, केवल भीष्मजी सुन सके और व्यास मुनि के प्रभाव से मैंने भी सुन लिया। वसुओं की उपर्युक्त बात सुनकर पितामह ने अपने ऊपर तीक्ष्ण बाणों की वर्षा होती रहने पर भी अर्जुन पर हाथ नहीं उठाया। उस समय शिखण्डी ने कुपित होकर भीष्म की छाती में नौ बाण मारे, किन्तु वे तनिक भी विचलित नहीं हुए। तब अर्जुन ने मुस्कराकर पितामह के ऊपर पहले पच्चीस बाण मारे, फिर शीघ्रतापूर्वक सौ बाणों से उनके सारे अंगों तथा मर्मस्थानों को बींध डाला। इसी प्रकार दूसरे राजा भी भीष्म पर सहस्त्रों बाणों का प्रहार करने लगे। भीष्मजी भी अपने बाणों से उन राजाओं के अस्त्रों का निवारण कर उन्हें बींधने लगे। तत्पश्चात् अर्जुन ने पुनः भीष्मजी के धनुष को काट दिया और नौ बाणों से उन्हें बींधकर एक से उनके रथ की ध्वजा काट दी, फिर दस बाण मारकर उनके सारथि को पीड़ित किया। जब भीष्मजी ने दूसरा धनुष लिया तो अर्जुन ने उसे भी काट दिया।  एक_एक क्षण में वे धनुष उठाते और अर्जुन उसे काट देते थे। फाइल प्रकार जब बहुत से धनुष कट गये तो भीष्मजी ने अर्जुन के साथ युद्ध बन्द कर दिया। तब अर्जुन ने शिखण्डी को आगे करके पितामह को पुनः पच्चीस बाण मारे। उससे अत्यन्त आहत होकर पितामह ने दुःशासन से कहा___’देखो, यह महारथी अर्जुन आज क्रोध में भरकर मुझे हजारों बाण से बींध चुका है। इसके बाण मेरे कवच को छेदकर शरीर में घुस जाते हैं और मूसल के समान चोट करते हैं। ये शिखण्डी के बाण नहीं हैं। वज्र के समान इन बाणों का स्पर्श होते ही शरीर में बिजली_सी दौड़ जाती है। ये ब्रह्मदण्ड के समान दुर्दम्य हैं तथा मेरे मर्मस्थानों को विदीर्ण किये डालते हैं। अर्जुन के सिवा और किसी के बाण मुझे इतनी पीड़ा नहीं दे सकते।‘ ऐसा कहकर भीष्मजी, मानो पाण्डवों को भष्म कर डालेंगे, इस प्रकार क्रोध में भर गये और अर्जुन के उन्होंने पुनः एक शक्ति छोड़ी; किन्तु अर्जुन ने उसके तीन टुकड़े कर दिये। तब भीष्मजी ढाल और तलवार हाथ में लेकर रथ से उतरने लगे, अभी ऊपर ही थे कि अर्जुन ने बाण मारकर उनकी ढाल के सैकड़ों टुकड़े कर डाले। यह देखकर सबको बड़ा विस्मय हुआ। अर्जुन ने पैने बाणों से भीष्मजी का रोम_रोम बींध डाला था। उनके शरीर में  दो अँगुल भी ऐसा स्थान नहीं बचा था, जहाँ बाण न लगा हो। इस प्रकार कौरवों के देखते_देखते बाणों ले छलनी होकर आपके पिताजी सूर्यास्त के समय रथ से गिर पड़े। उस समय उनका मस्तक पूर्व दिशा की ओर था। उनके गिरते ही देवताओं और राजाओं में हाहाकार मच गया।
महाराज ! महात्मा भीष्म को उस अवस्था में देख हमलोगों का दिल बैठ गया। पृथ्वी पर वज्रपात के समान शब्द हुआ। उनके शरीर में सब ओर बाण बिंधे हुए थे; इसलिये वे उन पर ही टँगे रह गये, धरती से उनका स्पर्श नहीं हुआ। बाण_शय्या पर सोये हुए भीष्म के शरीर में दिव्यभाव का आवेश हुआ। गिरते_गिरते उन्होंने देखा कि सूर्य तो अभी दक्षिणायण में हैं, यह मरणोपरांत का उत्तम काल नहीं है; इसलिये अपने प्राणों का त्याग नहीं किया, होश_हवास ठीक रखा। उसी समय आकाश में उन्हें ये दिव्य वाणी सुनायी दी, ‘महात्मा भीष्मजी तो संपूर्ण शास्त्रवेत्ताओं में श्रेष्ठ हैं, उन्होंने इस दक्षिणायन में अपनी मृत्यु क्यों स्वीकार की ?’ यह सुनकर पितामह ने उत्तर दिया___’मैं अभी जीवित हूँ।‘ हिमालय की पुत्री श्रीगंगाजी को यह मालूम हुआ कि कौरवों के पितामह भीष्म पृथ्वी पर गिरकर अपने प्राणों को बचाये हुए उत्तरायण की बाट जोहते हैं, तो उन्होंने महर्षियों को हँस के रूप में उनके पास भेजा। उन्होंने आकर शरशय्या पर पड़े हुए भीष्मजी का दर्शन करके उनकी प्रदक्षिणा की। फिर परस्पर कहने लगे ‘ भीष्मजी तो बड़े महात्मा हैं। ये दक्षिणायन में भला, अपना शरीर क्यों छोडेंगे ?’ यों कहकर जब वे जाने लगे तो भीष्मजी वे उनसे कहा, ‘हंसगण ! मैं आपसे सत्य कहता हूँ, मैं दक्षिणायन में देह त्याग नहीं करूँगा___यह मेरे मन में पहले से ही निश्चित है। पिता के वरदान से मृत्यु मेरे अधीन है; इसलिये नियत समय तक प्राण धारण करने  मुझे विशेष कठिनाई नहीं होगी।
यह कहकर वे पूर्ववत् शर_शैय्या पर सोये रहे और हंसगण चले गये। उस समय कौरव शोक से मूर्छित हो रहे थे। कृपाचार्य और दुर्योधन आदि आह भर_भरकर रो रहे थे। कौरवों को विषाद के मारे बेहोशी छा गयी थी, उनकी इन्द्रियाँ जडवत् हो गयीं थीं। कुछ लोग गहरी चिंता में डूबे हुए थे। युद्ध में किसी का भी मन नहीं लगता था। कोई भी पाण्डवों पर धावा न कर सका, मानो किसी महान् ग्राह ने उनके पैर पकड़ लिये हों। उस समय सब लोग यही अनुमान लगाते थे, अब कौरवों के विनाश होने में अधिक देर नहीं है। पाण्डव विजयी हुए थे, अतः उनके दल में शंखनाद होने लगा। संजय और समेत खुशी के मारे फूल उठे। भीमसेन ताल ठोंकते हुए सिंह के समान दहाड़ने लगे। कौरव_सेना में कुछ लोग बेहोश थे और कुछ फूट_फूटकर रो रहे थे। कितने ही पिछड़ खा_खाकर गिर रहे थे। कुछ लोग क्षत्रियधर्म की निंदा करते थे और कुछ भीष्मजी की प्रशंसा। भीष्मजी उपनिषदों में बतायी हुई योगधारणा का आश्रय लेने प्रणव का जप करते हुए उत्तरायणकाल की प्रतीक्षा करने लगे।