Tuesday 12 April 2022

अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय, कर्ण द्वारा भार्गवास्त्र का प्रयोग, श्रीकृष्ण और अर्जुन का युधिष्ठिर से मिलने के रिमेक छावनी पर जाना तथा युधिष्ठिर का उनसे कर्ण के मारे जाने का समाचार पूछना

संजय कहते हैं_’महाराज ! इसी समय अश्वत्थामा रथियों की बहुत बड़ी सेना साथ लेकर, जहां अर्जुन खड़े थे, वहां ही सहसा आ धमका। उसे आते देख अर्जुन ने एकबारगी उसका बढ़ाव रोक दिया। अश्वत्थामा झल्ला उठा, वह बाणों की मार से श्रीकृष्ण और अर्जुन को आच्छादित करने लगा। यह देख अर्जुन ने हंसते_हंसते दिव्यास्त्र का प्रयोग किया किन्तु अश्वत्थामा ने उसका निवारण कर दिया। उस समय अर्जुन ने अश्वत्थामा का वन करने के रिमेक जिस जिस अस्त्र का प्रहार किया, उन सबको द्रोण कुमार ने काट डाला। उसने अपने बाणों से दिशाओं तथा उपदिशाएं को ढ़ककर श्रीकृष्ण की दाहिनी बांह में तीन बाण मारे। तब अर्जुन ने उसके घोड़ों को घायल करके संग्राम में खून की नदी बहा दी। उन्होंने अश्वत्थामा का धनुष काट डाला। यह देख उसने अर्जुन पर वज्र के समान भयंकर परिघ का प्रहार किया। किन्तु अर्जुन ने उसे हंसते_हंसते काट डाला। अब अश्वत्थामा का क्रोध और बढ़ गया।
उसने ऐन्द्रास्त्र का प्रयोग किया, परन्तु अर्जुन ने महेन्द्रास्त्र से उसे शान्त किया। साथ ही अश्त्थामा को भी अपने बाणों से ढ़क दिया। द्रोणकुमार ने अपने सायकों से उन बाणों को काट गिराया और सौ बाणों से श्रीकृष्ण को तथा तीन सौ से अर्जुन को बींध डाला। तब अर्जुन ने भी अश्वत्थामा के मर्मस्थानों में सौ बाण मारे और उसके सारथि को एक भल्ल से मारकर रथ से नीचे गिरा दिया।
उस समय अश्वत्थामा ने स्वयं ही घोड़ों की बागडोर संभाली और श्रीकृष्ण तथा अर्जुन को बाणों से ढ़कना आरंभ  उसके इस पराक्रम की सभी योद्धा प्रशंसा कर रहे थे। इसी बीच में अर्जुन ने हंसते_हंसते उसके घोड़ों की बागडोर को क्षुरप्रों से तुरंत काट डाला। अब वे घोड़े बाणों की मार से अत्यंत पीड़ित होकर भाग चले। उस समय पाण्डव विजय पाकर चारों ओर तीखे बाणों की वर्षा करते हुए आपकी सेना को खदेड़ने लगे। उन्होंने कौरव_सैनिकों को इतनी पीड़ा पहुंचाई कि वे आपके पुत्रों के रोकने पर भी न रुक सके।
तदनन्तर दुर्योधन ने बड़े स्नेह के साथ कर्ण से कहा_’महाबाहो ! देखो, पाण्डवों ने हमारी इस विशाल सेना को बड़ा कष्ट पहुंचाया है, तुम्हारे रहते हुए यह भय के कारण भागी जा रही है। यह जानकर जो उचित समझो, करो। पाण्डवों के खदेड़े हुए हमारे हजारों योद्धा अब तुम्हें ही सहायता के लिये पुकार रहे हैं।‘ दुर्योधन की यह बात सुनकर कर्ण ने हंसते_हंसते अपने धनुष पर भार्गवास्त्र का संधान किया। फिर तो उससे लाखों, करोड़ों और अरबों बाण प्रकट हुए, जो अग्नि के समान प्रज्वलित हो रहे थे। उन भयंकर बाणों से समस्त पाण्डव_सेना आच्छादित हो गयी। उस समय कुछ भी सूझ नहीं पड़ता था। उस युद्ध में भार्गवास्त्र की मार से हजारों हाथी, घोड़े, रथी और पैदल प्राणहीन होकर गिरने लगे। पृथ्वी कांप उठी। पाण्डवों की संपूर्ण सेना व्याकुल हो गयी। कर्ण द्वारा मारे जाते हुए पांचाल और चेदिदेशीय योद्धा भय के मारे भागने और चिल्लाने लगे। साथ ही श्रीकृष्ण भगवान् और अर्जुन की पुकार करने लगे। कर्ण के बाण से मारे जाते हुए सृंजयों का आर्तनाद सुनकर कुन्तीनन्दन अर्जुन ने भगवान् वासुदेव से कहा_’महाबाहो श्रीकृष्ण ! आप इस भार्गवास्त्र के पराक्रम को तो देखिये। युद्ध में किसी भी तरह से इसका नाश नहीं किया जा सकता। उधर कर्ण अपने घोड़ों को बढ़ाता हुआ बारंबार मेरी ओर देख रहा है; इस समय उसके सामने से भाग जाना भी मैं ठीक नहीं समझता।‘ श्रीकृष्ण ने कहा_’पार्थ ! कर्ण ने राजा युधिष्ठिर को बहुत घायल कर दिया है। इस समय उनसे मिलकर और धीरज देकर फिर कर्ण का वध करना। यह कहकर जनार्दन युधिष्ठिर से मिलने के लिये आगे बढ़े।  उनका उद्देश्य यह था कि जबतक अर्जुन धर्मराज से मिलेंगे, जबतक कर्ण युद्ध करते_करते खूब थक जायगा। भगवान् की आज्ञा के अनुसार अर्जुन अपने घायल हुए भाई को देखने के लिये रथ पर बैठे_बैठे चल दिये। चलते_चलते उन्होंने अपनी सेना में सब ओर दृष्टि डाली; परंतु कहीं भी अपने बड़े भाई को नहीं देखा। तब वे बड़ी तेजी के साथ भीमसेन के पास पहुंचकर उन्हें बोले_’राजा युधिष्ठिर कहां हैं ?’ भीम ने कहा_धर्मराज युधिष्ठिर यहां से छावनी पर चले आते। कर्ण के बाणों से घायल होने के कारण उनके शरीर में बड़ी पीड़ा हो रही थी। सम्भव है, किसी तरह जीवित हों।
अर्जुन बोले_यदि ऐसी बात है तो आप शीघ्र ही उनका समाचार लेने जाइये। कर्ण के बाणों से अत्यंत घायल हो जाने के कारण वे अवश्य ही छावनी की ओर चले आते हैं। उनकी क्या हालत है ? यह जानने के लिये आप शीघ्र चले जाइये। मैं यहां खड़ा हो शत्रुओं को रोके रहूंगा। भीम ने कहा_अर्जुन ! यदि मैं चला जाऊंगा तो शत्रुपक्ष के वीर यही कहेंगे कि ‘भीमसेन डर गये' ! इसलिये तुम्हीं जाकर महाराज की खबर लो।
अर्जुन बोले_मेरे शत्रु संशप्तक सामने खड़े हैं, आज इन्हें मारे बिना मैं भी यहां से नहीं जा सकता। भीम ने कहा_धनंजय ! मैं अपने पराक्रम से संशप्तकों का सामना करूंगा। तुम निश्चिंत होकर जाओ। भीमसेन की बात सुनकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा_’हृषीकेश ! अब मैं राजा युधिष्ठिर का दर्शन करना चाहता हूं,  शीघ्र ही घोड़े हांकिये।‘ तब भगवान् गरुड़ के समान तेज चलनेवाले घोड़ों को हांककर बहुत शीघ्र राजा युधिष्ठिर के पास पहुंच गया। फिर दोनों ने रथ से उतरकर धर्मराज के चरणों में प्रणाम किया और उन्हें सकुशल देख वे बड़े प्रसन्न हुए। तदनन्तर, राजा युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण और अर्जुन का अभिनन्दन किया। उस समय धर्मराज ने यह समझ लिया कि कर्ण मारा गया, इससे उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई और वे हर्ष गद्गद् वाणी से बोले, ‘देवकीनन्दन ! तुम्हारा स्वागत है ! धनंजय ! तुम्हारा भी स्वागत है ! इस समय तुम दोनों को देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है; तुमलोगों ने स्वयं सकुशल रहकर महारथी कर्ण को मार डाला है। वह सब प्रकार की शस्त्रविद्या में निपुण तथा कौरवों का अगुआ था। परशुरामजी ने अस्त्रविद्या सिखाकर उसे महान् शक्तिशाली बना दिया था। युद्ध में उसपर विजय पाना कठिन था। वह विश्वविख्यात महारथी और संसार का सर्वश्रेष्ठ वीर था। दुर्योधन का हित साधन करता और हमलोगों को दु:ख देने के लिये ही तो वह काल के समान था। ऐसे महाबली कर्ण को तुम दोनों ने युद्ध में मार डाला_यह बड़े आनन्द की बात हुई। भैया श्रीकृष्ण और अर्जुन ! आज कर्ण ने मेरे साथ भयंकर युद्ध किया था। उसने मेरे दोनों चक्ररक्षकों तथा सारथि को मार डाला, घोड़ों को यमलोक पठाया और मेरे पक्ष के बहुत से योद्धाओं को जीतकर मुझे भी परास्त कर दिया।
इतना ही नहीं, उसने मेरा अपमान करके मुझे बहुत_से कटुवचन भी सुनाये। धनंजय ! अधिक क्या कहूं, इस समय जो मैं जीवित हूं_यह भीमसेन का प्रभाव है। मुझसे तो यह अपमान सहा ही नहीं जाता। कर्ण ने मुझे इतना घायल और अपमानित कर दिया तो अब मेरे जीने से क्या लाभ ? अब मैं राज्य लेकर भी क्या करूंगा। पहले कभी भीष्म, द्रोण और कृपाचार्य से भी मुझे जो अपमान नहीं मिला, वह आज सूतपुत्र से प्राप्त हुआ है। इसलिये अर्जुन ! मैं पूछता हूं कि किस प्रकार सकुशल रहकर तुमने कर्ण का वध किया है ? यह सब समाचार मुझे सुनाओ। वीरवर ! कर्ण के बाणों से जब मैं बहुत घायल हो गया तो उसका वध करने के लिये मैंने तुम्हारा ही स्मरण किया था, उस समय कर्ण का वध करके तुमने मेरे उस स्मरण को सफल बना दिया न ? बताओ तो सूतपुत्र को तुमने किस तरह मारा ?