Saturday 17 December 2022

कर्ण और अर्जुन का युद्ध

संजय कहते हैं _महाराज ! भीमसेन तथा श्रीकृष्ण के इस प्रकार कहने पर अर्जुन ने सूतपुत्र के वध का विचार किया। साथ ही भूमि पर आने के प्रयोजन पर ध्यान देकर उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा_’भगवन् ! अब मैं संसार के कल्याण और सूतपुत्र का वध करने के लिये महान् भयंकर अस्त्र प्रकट कर रहा हूं ! इसके लिये आप, ब्रह्माजी, शंकरजी, समस्त देवता तथा संपूर्ण वेदवेत्ता मुझे आज्ञा दें।‘ भगवान् से ऐसा कहकर सव्यसाची ने ब्रह्माजी को नमस्कार किया और जिसका मन_ही_मन प्रयोग होता है, उस ब्रह्मास्त्र को प्रकट किया। परंतु कर्ण ने अपने बाणों की बौछार से उस अस्त्र को नष्ट कर डाला।
यह देख भीमसेन क्रोध से तमतमा उठे, उन्होंने सत्यप्रतिज्ञ अर्जुन से कहा_’सव्यसाचिन् ! सब लोग जानते हैं कि तुम परम उत्तम ब्रह्मास्त्र के ज्ञाता हो, इसलिये अब और किसी अस्त्र का संधान करो।‘ यह सुनकर अर्जुन ने दूसरे अस्त्र को धनुष पर रखा; फिर तो उससे प्रज्ज्वलित बाणों की वर्षा होने लगी, जिससे चारों दिशाएं आच्छादित हो गयीं। कोना_कोना भर गया। केवल बाण ही नहीं, उससे भयंकर त्रिशूल, फरसे, चक्र और नारायण आदि अस्त्र भी सैकड़ों की संख्या में निकलकर सब ओर खड़े हुए योद्धाओं के प्राण लेने लगे। किसी का सिर कटकर गिरा तो कोई यों ही भय के मारे गिर पड़ा, कोई दूसरे को गिरता देख स्वयं वहां से चंपत हो गया। किसी की दाहिनी बांह कटी तो किसी की बायीं। इस प्रकार किरीटधारी अर्जुन ने शत्रुपक्ष के मुख्य_मुख्य योद्धाओं का संहार कर डाला।
दूसरी ओर से कर्ण ने भी अर्जुन पर हजारों बाणों की वर्षा की। फिर भीमसेन श्रीकृष्ण और अर्जुन को ती_तीन बाणों से सींचकर बड़े जोर की गर्जना की। तब अर्जुन ने पुनः अठारह बाण चलाते; उनमें से एक बाण के द्वारा उन्होंने कर्ण की ध्वजा छेद डाली, चार बाणों से राजा शल्य को और तीन से कर्ण को घायल किया, शेष दस बाणों का प्रहार राजकुमार सभापति पर हुआ। दो बाणों से राजकुमार के ध्वजा और धनुष कट गये, पांच से घोड़े और सारथि मारे गये, फिर दो से उनकी दोनों भुजाएं कटीं और एक से मस्तक उड़ा दिया गया। इस प्रकार मृत्यु को प्राप्त होकर वह राजकुमार रथ से नीचे गिर पड़ा।
इसके बाद अर्जुन ने पुनः तीन, आठ, दो, चार और दस बाणों से कर्ण को बींध डाला। फिर अस्त्र_शस्त्रोंसहित चार सौ हाथीसवारों , आठ सौ रथियों, एक हजार घुड़सवारों, आठ सौ रथियों, एक हजार घुड़सवारों तथा आठ हजार पैदल सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। यही नहीं, उन्होंने बाणों से कर्ण को उसके सारथि, रथ और घोड़े और ध्वजा सहित ढ़क दिया; अब वह दिखाती नहीं पड़ता था। तदनन्तर उन्होंने कौरवों को अपने बाणों का निशाना बनाया। उनकी मार खाकर कौरव चिल्लाते हुए कर्ण के पास आते और कहने लगे_’कर्ण ! तुम शीघ्र ही बाणों की वर्षा करके पाण्डु पुत्र अर्जुन को मार डालो। नहीं तो वह पहले कौरवों को ही समाप्त कर देना चाहता है।
उनकी प्रेरणा से कर्ण ने पूरी शक्ति लगाकर लगातार बहुत_से बाणों की वर्षा की, इससे पाण्डव और पांचाल सैनिकों का नाश होने लगा।
कर्ण और अर्जुन दोनों ही अस्त्र_शस्त्र विद्या के ज्ञाता थे, इसलिये बड़े _बड़े अस्त्रों का प्रयोग करके वे अपने _अपने शत्रुओं की सेना का संहार करने लगे। इतने में ही राजा युधिष्ठिर यन्त्र तथा औषधियों के बल से पूर्ण आये। हितैषी वैद्यों ने उनके शरीर से बाण निकालकर घाव अच्छा कर दिया था। धर्मराज को संग्राममभूमि में उपस्थित देखकर सबको बड़ी प्रसन्नता हुआ।
उस समय सूतपुत्र कर्ण ने अर्जुन को क्षुद्रक नामवाले सौ बाण मारे, फिर श्रीकृष्ण को साफ बाणों से बींधकर अर्जुन को भी आठ बाणों से घायल किया। साथ ही भीमसेन पर भी उसने हजारों बाणों का प्रहार किया। तब पाण्डव और सोमवीर कर्ण को तेज किये हुए बाणों से आच्छादित करने लगे। किन्तु उसने अनेकों बाण मारकर उन योद्धाओं को आगे बढ़ने से रोक दिया और उसने अपने अस्त्रों को उनके अस्त्रों को नष्ट करके रथ, घोड़े तथा हाथियों का भी संहार कर डाला। अब तो आपके योद्धा यह समझकर कि कर्ण की विजय हो गरी, ताली पीटने और सिंहनाद करने लगे।
इसी समय अर्जुन ने हंसते _हंसते दस बाणों से राजा शल्य के कवच को बींध डाला, फिर बारह तथा सात बाण मारकर कर्ण को भी घायल कर दिया। कर्ण के शरीर में बहुत से घाव हो गये, वह खून से लथपथ हो गया। 
तदनन्तर कर्ण ने भी अर्जुन को तीन बाण मारे और श्रीकृष्ण को मारने की इच्छा से उसने पांच बाण चलाये। वे बाण श्रीकृष्ण के कवच को छेदकर पृथ्वी पर जा गिरे। यह देख अर्जुन क्रोध से जल उठे, उन्होंने अनेकों दमकते हुए बाण मारकर कर्ण के मर्मस्थानों को बींध डाला। इससे कर्ण को बड़ी पीड़ा हुई, वह विचलित हो उठा; किन्तु किसी तरह धैर्य धारण कर रणभूमि में डटा रहा। तत्पश्चात् अर्जुन ने बाणों का ऐसा जाल फैलाया कि दिशाएं, कोने, सूर्य की प्रभा तथा कर्ण का रथ_इन सबका दीवाना बंद हो गया।
उन्होंने कर्ण के पहियों की रक्षा करनेवाले, आगे चलनेवाले और पीछे रहकर रक्षा करने वाले समस्त सैनिकों की बात_की_बात में सफाया कर डाला। इतना ही नहीं; दुर्योधन जिनका बड़ा आदर करता था, उन दो हजार कौरव_वीर को भी उन्होंने रथ, घोड़े और सारथि सहित मौत के मुख में पहुंचा दिया। अब तो आपके बचे हुए पुत्र कर्ण का आसरा छोड़कर भाग चले।
कौरव योद्धा मरे हुए अथवा घायल होकर चीखते_चिल्लाते हुए बाप_बेटों को भी छोड़कर पलायन कर गये। उस समय कर्ण ने जब चारों ओर दृष्टि डाली तो उसे सब सूना ही दिखाती पड़ा; भयभीत होकर भागे हुए कौरवों ने उसे अकेला ही छोड़ दिया था; किन्तु इससे उसको तनिक भी घबराहट नहीं हुई। उसने पूर्ण उत्साह के साथ अर्जुन पर धावा किया।





Saturday 3 December 2022

अश्वत्थामा का दुर्योधन से सन्धि के लिये प्रस्ताव, दुर्योधन द्वारा उसकी अस्वीकृति तथा कर्ण और अर्जुन के युद्ध में भीम और श्रीकृष्ण का अर्जुन को उत्तेजित करना

संजय कहते हैं _महाराज ! तदनन्तर दुर्योधन, कृतवर्मा, शकुनि, कृपाचार्य और कर्ण_ये पांच महारथी श्रीकृष्ण और अर्जुन पर प्राणान्तकारी बाणों का प्रहार करने लगे। यह देख धनंजय ने उनके धनुष, बाण, तरकस, घोड़े, हाथी, रथ और सारथि आदि को अपने बाणों से नष्ट कर डाला; साथ ही उन शत्रुओं का मान_मर्दन करके सूतपुत्र कर्ण को बारह बाणों का निशाना बनाया। इतने में ही वहां सैकड़ों रथी, सैकड़ों हाथीसवार और शक, तुषार, यवन तथा कम्बोज देश के बहुतेरे घुड़सवार अर्जुन ने को मार डालने की इच्छा से दौड़े आते; पर अर्जुन ने अपने बाणों तथा क्षुरों की मार से उन सबके उत्तम_उत्तम अस्त्रों तथा मस्तकों को काट गिराया। उनके घोड़ों, हाथियों और रथों को भी काट डाला। यह देख आकाश में देवताओं की दुंदुभी बज उठी, सभी अर्जुन को साधुवाद देने लगे। साथ ही वहां फूलों की वर्षा भी होने लगी। उस समय द्रोणकुमार अश्वत्थामा दुर्योधन के पास गया और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर सान्त्वना देते हुए बोला _’दुर्योधन ! अब प्रसन्न होकर पाण्डवों से सन्धि कर लो; विरोध से कोई लाभ नहीं। आपस के इस झगड़े को धिक्कारा है ! तुम्हारे गुरुदेव अस्त्र विद्या के महान् पण्डित थे, किन्तु इस युद्ध में मारे गये। यही दशा भीष्म आदि महारथियों की भी हुई।
मैं और मामा कृपाचार्य तो अवश्य हैं, इसलिये अबतक बचे हुए हैं। अतः अब तुम पाण्डवों से मिलकर चिरकाल तक राज्य शासन करो। मेरे मना करने से अर्जुन शान्त हो जायेंगे। श्रीकृष्ण भी विरोध नहीं चाहते। युधिष्ठिर तो सभी प्राणियों के हित में लगे रहते हैं, अतः वे भी मान लेंगे। बाकी रहे भीमसेन और नकुल_सहदेव; हो ये भी धर्मराज के अधीन हैं, उनकी इच्छा के विरुद्ध कुछ भी नहीं करेंगे। तुम्हारे साथ पाण्डवों की सन्धि हो जाने पर सारी प्रजा का कल्याण होगा। फिर तुम्हारी अनुमति लेकर ये राजा लोग भी अपने _अपने देश को लौट जायं और समस्त सैनिकों को युद्ध से छुटकारा मिल जाय।
राजन् ! यदि मेरी यह बात नहीं सुनोगे तो निश्चय ही शत्रुओं के हाथ से मारे जाओगे और उस समय तुम्हें बहुत पश्चाताप होगा। आज तुमने और सारे संसार ने यह देख लिया कि अकेले अर्जुन ने जो पराक्रम किया है कि इन्द्र, यमराज, वरुण और कुबेर भी नहीं कर सकते। अर्जुन गुणों में मुझसे बढ़कर हैं, तो भी मुझे पूर्ण विश्वास है कि वे मेरी बात नहीं टालेंगे। यही, वे सदा तुम्हारे अनुकूल वर्ताव भी करेंगे। इसलिये राजन् ! तुम प्रसन्नतापूर्वक संधि हो जाने पर सारी प्रजा का कल्याण होगा।  फिर तुम्हारी अनुमति लेकर ये राजालोग भी अपने_अपने देश को लौट जायं और समस्त सैनिकों को युद्ध से छुटकारा मिल जाय। राजन् यदि मेरी यह बात नहीं सुनोगे तो निश्चय ही शत्रुओं के हाथ से मारे जाओगे और उस समय तुम्हें बहुत पश्चाताप होगा। आज तुमने और सारे संसार ने यह देख लिया कि अकेले अर्जुन ने जो पराक्रम किया है उसे इन्द्र, यमराज, वरुण और कुबेर भी नहीं कर सकते अर्जुन गुणों में मुझसे बढ़कर हैं, तो भी मुझे पूर्ण विश्वास है कि वे मेरी बात नहीं टालेंगे। यही नहीं, वे सदा तुम्हारे अनुकूल ही व्यवहार करेंगे। इसलिये राजन् ! तुम प्रसन्नतापूर्वक संधि कर लो। अपनी घनिष्ठ मित्रता के कारण ही मैं तुमसे यह प्रस्ताव कर रहा हूं। जब तुम इसे प्रेम पूर्वक स्वीकार कर लोगे तो मैं कर्ण को भी युद्ध से रोक दूंगा। विद्वान लोग चार प्रकार के मित्र बतलाते हैं, एक सहज मित्र होते हैं, जिनकी मैत्री स्वाभाविक होती है। दूसरे होते हैं संधि करके बनाते हुए मित्र। तीसरे वे हैं, जो धन देकर अपनाते गये हैं। किसी का प्रबल प्रताप देखकर जो स्वत: चरणों के निकट आ जाते हैं _शरणागत हो जाते हैं, वे चौथे प्रकार के मित्र हैं।
पाण्डवों के साथ तुम्हारी सभी प्रकार की मित्रता सम्भव है। वीरवर ! यदि तुम प्रसन्नतापूर्वक पाण्डवों से मित्रता स्वीकार कर लोगे तो तुम्हारे द्वारा संसार का बहुत बड़ा कल्याण है।
इस प्रकार जब अश्वत्थामा ने दुर्योधन से हित की बात कही तब उसने मन_ही_मन खिन्न होकर कहा_’मित्र ! तुम जो कुछ कहते हो, वह सब ठीक है; किन्तु इसके सम्बन्ध में मेरी कुछ बात भी सुन लो।
इस दुर्बुद्धि भीमसेन ने दु:शासन को मार डालने के पश्चात् जो बात कही थी, वह अब भी मेरे हृदय से दूर नहीं होती। ऐसी दशा में कैसे शान्ति मिले ? क्यों कर सन्धि हो ? गुरुपुत्र ! इस समय तुम्हें कर्ण से युद्ध बन्द कर देने की बात भी नहीं करनी चाहिए; क्योंकि अर्जुन बहुत तक गये हैं, अंत: अब कर्ण उन्हें बलपूर्वक मार डालेगा।
अश्वत्थामा से यों  दुर्योधन ने अनुनय_विनय करके उसे प्रसन्न कर लिया, फिर अपने सैनिकों से कहा_’ अरे !  तुमलोग हाथों में बाण लिये चुप क्यों बैठ गये ? शत्रुओं पर धावा करके उन्हें मार डालो।‘ इसी बीच में श्वेत घोड़ोंवाले कर्ण तथा अर्जुन युद्ध के लिये आमने _सामने आकर डट गये। दोनों ने एक_दूसरे पर महान् अस्त्रों का प्रहार आरम्भ किया। दोनों के ही सारथि और घोड़ों के शरीर बाणों से बिंध गये। खून की धारा बहने लगी। वे अपने वज्र के समान बाणों से इन्द्र और वृत्रासुर की भांति एक दूसरे पर प्रहार कर रहे थे। उस समय हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों से युक्त दोनो ओर की सेनाएं भय से कांप रही थी।
इतने में ही कर्ण मतवाले हाथी की तरह अर्जुन को मारने की इच्छा से आगे बढ़ा। यह देख सोमकों ने चिल्लाकर कहा _’अर्जुन ! अब विलम्ब करना व्यर्थ है। कर्ण सामने है, इसे छेद डालो; इसका मस्तक उड़ा दो।‘ इसी प्रकार हमारे पक्ष के बहुतेरे योद्धा भी कर्ण से कहने लगे _’कर्ण ! जाओ, जाओ अपने तीखे बाणों से अर्जुन को मार डालो।‘ तब पहले कर्ण ने दस बड़े_बड़े बाणों से अर्जुन को बींध दिया। फिर अर्जुन ने तेज की हुई धारवाले दस सायकों से कर्ण के कांख में हंसते_हंसते प्रहार किया। अब दोनों एक_दूसरे को अपने _अपने बाणों का निशाना बनाने लगे और हर्ष में भरकर भयंकर रूप से आक्रमण करने लगे। अर्जुन ने गाण्डीव धनुष की प्रत्यंचा सुधारकर कर्ण पर नाराच, नालीक, वराहकर्ण, क्षुर, आंतरिक और अर्धचन्द्र आदि नामों की झड़ी लगा दी। किन्तु अर्जुन जो_जो बाण उसपर छोड़ते थे, उसी_उसी को वह अपने हाथों को नष्ट कर डालता था। तदनन्तर उसने आग्नेयास्त्र का प्रहार किया। इससे पृथ्वी से लेकर आकाश तक आग की ज्वाला फैल गयी। योद्धाओं के वस्त्र जलने लगे, वे रण से भाग चलें। जैसे जंगल के बीच बांस का वन जलते समय जोर_जोर से चटखने की आवाज करता है, उसी तरह आग की लपट में झुलसते हुए सैनिकों का भयंकर आर्तनाद होने लगा। आग्नेयास्त्र को बढ़ते देख उसे शान्त करने के लिये कर्ण ने वारुणास्त्र का प्रयोग किया। उससे वह आग बुझ गयी। उस समय मेघों की घटा घिरी आती और चारों दिशाओं में अंधेरा छा गया। सब ओर पानी_ही_पानी नजर आने लगा। तब अर्जुन ने वायव्यास्त्र से कर्ण के छोड़े हुए वारुणास्त्र को शान्त कर दिया; बादलों की वह घटा छिन्न_भिन्न हो गयी।  तत्पश्चात् उन्होंने गाण्डीव धनुष, उसकी प्रत्यंचा और बाणों को अभिमंत्रित करके अत्यंत प्रभावशाली ऐन्द्रेयास्त्र वज्र को प्रकट किया। उससे क्षुरप्र, आंज्लिक, अर्धचन्द्र, नालीक, नारायण और वराह कर्ण आदि तीखे अस्त्र हजारों की संख्या में छूटने लगे। उन अस्त्रों से कर्ण के सारे अंग, घोड़े, धनुष, दोनों पहिये और ध्वजाएं बिंध गयीं। उस समय कर्ण का शरीर बाणों से आच्छादित होकर खून से लथपथ हो रहा था, क्रोध के मारे उसकी आंखें बदल गयीं। अतः उसने भी समुद्र के समान गर्जना करनेवाले भागवास्त्र को प्रकट किया और अर्जुन के महेन्द्रास्त्र से प्रकट हुए बाणों के टुकड़े _टुकड़े कर डाले। इस प्रकार अपने अस्त्र से शत्रु के अस्त्र को दबाकर कर्ण ने पाण्डव सेना के रथी, हाथीसवार और पैदलों का संहार आरंभ किया। भार्गवास्त्र के प्रभाव से जब वह पांचालों और सोमकों को भी पीड़ित करने लगा तो वे भी क्रोध में भरकर उनपर टूट पड़े और चारों ओर से तीखे बाण मारकर उसे बींधने लगे। किन्तु सूतपुत्र ने पांचालों के रथी, हाथीसवार और घुड़सवारों के समुदायों को अपने बाणों से विदीर्ण कर डाला; वे चीखते _चिल्लाते हुए प्राण त्यागकर धराशाही हो गये। उस समय आपके सैनिक कर्ण की विजय समझकर सिंहनाद करने और ताली पीटने लगे।
यह देख भीमसेन क्रोध में भरकर अर्जुन से बोले_’विजय ! धर्म की अवहेलना करनेवाले इस पापी कर्ण ने आज तुम्हारे सामने ही पांचालों के प्रधान _प्रधान वीरों को कैसे मार डाला ? तुम्हें तो कालिकेय नाम के दानव भी नहीं परास्त कर सके, साक्षात् महादेवीजी से तुम्हारी हाथापाई हो चुकी है; फिर भी इस सूतपुत्र ने तुम्हें पहले ही बाण मारकर कैसे बींध डाला ? तुम्हारे चलाते हुए बाणों को इसने नष्ट कर दिया ! यह तो मुझे एक अचंभे की बात मालूम हो रही है।
अरे ! सभा में जो द्रौपदी को कष्ट दिये गये ह हैं, उनको याद करो; इस पापी ने निर्भय होकर जो हमलोगों को नपुंसक कहा तथा जो तीखी और कठोर बातें सुनायी न, उन्हें भी स्मरण करो। इन सारी बातों का ध्यान रखकर शीघ्र ही कर्ण का नाश कर डालो। तुम इतनी लापरवाही क्यों कर रहे हो ? यह लापरवाही का समय नहीं है।
तदनन्तर श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन से कहा _वीरवर ! यह क्या बात है ? तुमने जितने बार प्रहार किते, कर्ण ने प्रत्येक बार तुम्हारे अस्त्र को नष्ट कर दिया। आज तुमपर कैसा मोह छा रहा है ? ध्यान नहीं देते ? ये तुम्हारे शत्रु कौरव कितने हर्ष में भरकर गले रहे हैं ! जिस धैर्य से तुमने प्रत्येक युग में भयंकर राक्षसों को मारा और दम्भोद्भव नामक असुरों का विनाश किया है, उसी धैर्य से आज कर्ण को भी नष्ट करो।‘






इन्द्रादि देवताओं की प्रार्थना से बह्मा और शिवजी का अर्जुन की विजय घोषित करना तथा कर्ण का शल्य से और अर्जुन का श्रीकृष्ण से वार्तालाप

संजय कहते हैं_महाराज ! उधर जब कर्ण ने देखा कि वृषसेन मारा गया तो उसे बड़ा दु:ख हुआ, वह दोनों नेत्रों से आंसू बहाने लगा। फिर क्रोध से लाल आंखें किये कर्ण अर्जुन को युद्ध के लिये ललकारता हुआ आगे बढ़ा। उस समय त्रिभुवन पर विजय पाने के लिये उद्यत हुए इन्द्र और बलि के भांति उन दोनों वीरों तैयार देख संपूर्ण प्राणियों को आश्चर्य होने लगा। कौरव और पाण्डव दोनों दलों के लोग शंख और भेरी बजाने लगे। शूरवीर अपनी भुजाएं ठोकने और सिंहनाद करने लगे। उन सबकी तुमुल आवाज चारों ओर गूंजने लगी।
वे दोनों वीर जब एक_दूसरे का सामना करने के लिये दौड़े,  उस समय और काल के समान प्रतीत होते थे तथा इन्द्र एवं वृत्रासुर के समान क्रोध में भरे हुए थे। वे रूप और बल में देवताओं के तुल्य थे, उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था मानो सूर।यह और चन्द्रमा दैवेच्छा से एकत्र हो गये हों। दोनों महाबली युद्ध के लिये नाना प्रकार के शस्त्र धारण किये हुए थे। उन्हें आमने_सामने खड़े देख आपके योद्धाओं को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन दोनों में किसकी विजय होगी इस विषय में सबको संदेह होने लगे। महाराज ! कर्ण और अर्जुन का युद्ध देखने के लिये देवता, दानव, गन्धर्व, नाग, यक्ष, पक्षी, वेदवेत्ता महर्षि, श्राद्धान्भोजी पितर तथा तप विद्या एवं औषधियों के अधिष्ठाता देवता नाना प्रकार के रूप धारण किये अन्तरिक्ष में खड़े थे। वहां उनका कोलाहल सुनाई दिया। ब्रह्मर्षियों और प्रजापतियों के साथ ब्रह्माजी तथा भगवान् शंकर भी दिव्य विमानों में बैठकर वहां युद्ध देखने आये थे। देवताओं ने ब्रह्माजी से पूछा_’भगवन् ! कौरव और पाण्डव के इन दो महान् वीरों में कौन विजयी होगा ? देव ! हम तो चाहते हैं_इनकी एक_सी विजय हो। कर्ण और अर्जुन के विवाद से सारा संसार संदेह में पड़ा हुआ है। प्रभो ! आप सभी बात बताते, इनमें से किसकी विजय होगी ?
यह प्रश्न सुनकर इन्द्र ने देवाधिदेव महादेव को प्रणाम किया और कहा_’भगवन् ! आप पहले बता चुके हैं कि श्रीकृष्ण और अर्जुन की ही विजय निश्चित है। आपकी यह बात सच्ची होनी चाहिए। प्रभो ! मैं आपके चरणों में प्रणाम करता हूं, मुझपर प्रसन्न होइये।‘ इन्द्र की प्रार्थना सुनकर ब्रह्मा और शंकरजी ने कहा_’देवराज ! महात्मा अर्जुन की ही विजय निश्चित है। उन्होंने खाण्डव_वन में अग्निदेव को तृप्त किया है, स्वर्ग से आकर तुम्हे भी सहायता पहुंचाई है। अर्जुन ने सत्य और धर्म में अटल रहनेवाले हैं; इसलिये उनकी विजय अवश्य होगी, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। संसार के स्वामी साक्षात् भगवान् नारायण ने उनका सारथि होना स्वीकार किया है; वे मनस्वी, बलवान्, शूरवीर, अस्त्र विद्या के ज्ञाता और तपस्या के धनी हैं। उन्होंने धनुर्विद्या का पूर्ण अध्ययन किया है। इस प्रकार अर्जुन विजय दिलानेवाले संपूर्ण सद्गुणों से युक्त हैं; इसके अलावे, उनकी विजय देवताओं का ही कार्य है। अर्जुन मनुष्यों में श्रेष्ठ और तपस्वी हैं।
वे अपनी महिमा से दैव के विधान को भी टाल सकते हैं; यदि ऐसा हुआ तो निश्चय ही संपूर्ण लोकों का अन्त हो जायगा। श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के क्रोध करने पर यह संसार कहीं नहीं टिक सकता। ये ही दोनों संसार की सृष्टि करते हैं। ये ही प्राचीन ऋषि नर_नारायण हैं। इनपर किसी का शासन नहीं चलता और वे सबको अपने शासन में रखते हैं। देवलोक या मनुष्यलोक में इन दोनों की बराबरी करनेवाला कोई नहीं है। देवता, ऋषि और चारणों के साथ ये तीनों लोकएवं संपूर्ण भूत यानि सारा विश्व ब्रह्माण्ड ही इनके शासन में हैं; इनकी ही शक्ति से सब अपने _अपने कर्मों में प्रवृत हो रहे हैं। अतः विजय तो श्रीकृष्ण और अर्जुन की ही होगी। कर्ण वसुओं अथवा मरुतों के लोक में जायगा। ‘ब्रह्मा और शंकरजी के ऐसा कहने पर इन्द्र ने संपूर्ण प्राणियों को बुलाकर उनकी आज्ञा सुनायी। वे बोले _’हमारे पूज्य प्रमुखों ने संसार के हित  के लिये जो कुछ कहा है, उसे तुमलोगों ने सुना ही होगा। वह वैसे ही होगा, उसके विपरीत होना असंभव है; अंत: अब निश्चिंत हो जाओ। इन्द्र की बात सुनकर समस्त प्राणी ही विस्मित हो गये और हर्ष में भरकर श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा करते हुए उनपर सुगंधित फूलों की वर्षा करने लगे। देवता लोग कई तरह के दिव्य बाजे बजाने लगे।
तत्पश्चात् श्रीकृष्ण और अर्जुन ने तथा शल्य और कर्ण ने अलग_अलग अपने _अपने शंख बजाये। उस समय  उन दोनों में कायरों को डराने वाला युद्ध आरंभ हुआ। दोनों के रथों  निर्मल ध्वजाएं शोभा पा रही थीं। कर्ण की ध्वजा का डंडा रत्न का बना हुआ था, उसपर हाथी की सांकल का चिह्न था। अर्जुन की ध्वजा पर एक श्रेष्ठ वानर बैठा था, जो यमराज के समान मुंह बाये रहता था। वह अपनी झाड़ों से सबको डराया करता था, उसकी ओर देखना कठिन था। भगवान् श्रीकृष्ण ने शल्य की ओर आंखों की त्योरी और करके देखा, मानो उसे नेत्ररुपी बाणों से बींध रहे हों। शल्य ने भी उनकी ओर दृष्टि डाली। किन्तु इसमें विजय श्रीकृष्ण की ही हुई, शल्य की पलकें झंप गयीं। इसी प्रकार कुन्तीनन्दन धनंजय ने भी दृष्टि द्वारा कर्ण को परास्त किया। तदनन्तर कर्ण शल्य से हंसकर बोला_’शल्य ! यदि कदाचित् इस संसार में अर्जुन मुझे मार डाले तो तुम क्या करोगे ? शल्य ने कहा_’कर्ण ! यदि वे आज तुझे मार डालेंगे तो मैं श्रीकृष्ण तथा अर्जुन दोनों को ही मौत के घाट उतार दूंगा।‘ इसी तरह अर्जुन ने भी श्रीकृष्ण से पूछा; तब वे हंसकर कहने लगे _’पार्थ ! क्या यह भी सच हो सकता है ? कदाचित् सूर्य अपने स्थान से गिर जाय, समुद्र सूख जाय और आग अपना उष्ण स्वभाव छोड़कर शीतलता स्वीकार कर ले_ये सभी बातें संभव हो जायं; किन्तु कर्ण तुम्हें मार डाले, यह कदापि संभव नहीं है। यदि किसी तरह ऐसा हो जाय तो संसार उलट जायगा। मैं अपनी भुजाओं से ही कर्ण तथा शल्य को मसल डालूंगा।‘भगवान् की बात सुनकर अर्जुन हंस पड़े और बोले_’जनार्दन ! ये शल्य और कर्ण तो मेरे लिये काफी नहीं है। आज आप देखिएगा मैं छत्र, कवच, शक्ति, धनुष, बाण, रथ, घोड़े तथा राजा शल्य के सहित कर्ण को अपने बाणों से टुकड़े _टुकड़े कर डालूंगा। आज सूतपुत्र के स्त्रियों के विधवा होने का समय आ गया है। इस अदूरदर्शी मूर्ख ने द्रौपदी को सभा में आती देख बारंबार उसपर आक्षेप किया और हमलोगों की खिल्लियां भी उड़ायी थीं। अतः आज उसको अवश्य रौंद दूंगा।