Monday 3 May 2021

शल्य को सारथि बनाकर कर्ण का युद्ध के लिये प्रयाण

राजा दुर्योधन ने कहा_वीरवर ! सारथि तो रथी से भी बढ़कर होना चाहिये। इसलिये आप संग्रामभूमि में कर्ण के घोड़ों का नियंत्रण कीजिये। जिस प्रकार त्रिपुरों के नाश के लिये देवताओं ने कोशिश करके ब्रह्माजी को भगवान् शंकर का सारथि बनाया था उसी प्रकार हम कर्ण से भी श्रेष्ठ आपको उसका सारथि बनाना चाहते हैं। शल्य ने कहा_राजन् ! जिस प्रकार ब्रह्माजी ने महादेवजी का सारथ्य किया था और जिस प्रकार एक ही बाण से सम्पूर्ण दैत्यों का संहार हुआ था वह सब मुझे मालूम है। यह प्रसंग श्रीकृष्ण को भी विदित ही है। वे भूत, भविष्य सब बातों को पूरी तरह जानते हैं। यह सब जानकर ही उन्होंने अर्जुन का सारथ्य ग्रहण किया है। यदि किसी प्रकार कर्ण ने अर्जुन को मार डाला तो उसे मरा देखकर श्रीकृष्ण स्वयं युद्ध करने लगेंगे और जब वे कोप करेंगे तो तुम्हारी सेना का कोई भी राजा शत्रुओं की सेना का सामना नहीं कर सकेगा। संजय ने कहा_राजन् ! जब मद्रराज शल्य ने ऐसा कहा तो दुर्योधन कहने लगा, ‘महाराज ! आप कर्ण का अपमान न करें। वह समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ और संपूर्ण अस्त्रविद्या में पारंगत हैं। यह बात प्रत्यक्ष ही है कि उस रात्रि में घतोत्कच ने सैंकड़ों मायाएं रची थीं, तब उसे कर्ण ने ही मारा था। इन दिनों में अर्जुन भी डर के मारे कभी डटकर कर्ण के सामने खड़ा नहीं हुआ है। महाबली भीम को भी कर्ण ने धनुष की नोक से युद्ध के लिये उत्तेजित किया था और उसे ‘ओ मूढ़ ! ओ पेट पाल !’ ऐसा कहकर संबोधन किया था।
उसने माद्रीपुत्र शूरवीर नकुल को भी संग्राम में परास्त कर दिया था और किसी विशेष कारण से ही उसे नहीं मारा था। कर्ण ने ही वृष्णिकुलतिलक सात्यकि को युद्ध में परास्त किया था और उसे बलात् रथहीन कर दिया था। उसने धृष्टद्युम्नादि सृंजय वीरों को तो संग्रामभूमि में हंसते_हंसते ही नीचा दिखाया था। भला, ऐसे महारथी कर्ण को पाण्डवलोग कैसे परास्त कर सकते हैं। कर्ण तो कुपित होने पर वज्रधर इन्द्र को भी मार सकता है। आप भी संपूर्ण अस्त्रों के ज्ञाता और संपूर्ण विद्याओं में पारंगत हैं। पृथ्वी में आपके समान किसी का भी बाहुबल नहीं है। आप शत्रुओं के लिये शल्य के समान हैं, इसी से आप ‘शल्य' नाम से प्रसिद्ध हैं। सारे यदुवंशी मिलकर भी आपके बाहुपाश में पड़ने पर छुटकारा नहीं पा सकते।
राजन् ! कृष्ण क्या आपके बाहुबल से भी बल में चढ़े_बढ़े हैं ? जिस प्रकार अर्जुन के मारे जाने पर श्रीकृष्ण पाण्डव सेना की रक्षा करेंगे उसी  यदि कर्ण मारा गया तो आपको हमारी विशाल वाहिनी की रक्षा करनी होगी। महाराज ! मैं तो आपके बल से ही अपने भाइयों और समस्त राजाओं के ऋण से मुक्त होना चाहता हूं।‘ कर्ण ने कहा_मद्रराज ! जिस प्रकार ब्रह्माजी भगवान् शंकर के और श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथि बनकर हित करते रहे हैं, उसी प्रकार आप सर्वदा हमारे हित में तत्पर रहें। शल्य बोले_अपनी या दूसरे की निंदा अथवा स्तुति करना श्रेष्ठ पुरुषों का काम नहीं है तो भी तुम्हारे विश्वास के लिये मैं अपने विषय में जो प्रशंसा की बातें कहता हूं वह सुनो।
मैं सावधानी से घोड़ों  को हांकने, उनके गुण_दोषों के जानने तथा उनकी चिकित्सा करने में इन्द्र के सारथि मातली के समान हूं। अतः तुम चिंता न करो। अर्जुन के साथ युद्ध करते समय मैं तुम्हारा रथ हांकूंगा। दुर्योधन ने कहा_कर्ण ! महाराज शल्य श्रीकृष्ण से भी बड़े सारथि हैं। अब ये तुम्हारा सारथ्य करेंगे। मातलि जैसे इन्द्र के रथ को हांकता है, उसी प्रकार ये तुम्हारे रथ के घोड़ों को हांकेंगे। अब तुम निःसंदेह पाण्डवों को नीचा दिखा सकते हो। राजन् ! तब कर्ण ने प्रसन्न होकर अपने सारथि से कहा_’सूत ! तुम फौरन मेरा रथ तैयार करके लाओ।‘ सारथि ने कर्ण के विजयी रथ को विधिवत् सजाकर ‘महाराज की जय हो !’ ऐसा कहकर निवेदन किया। कर्ण ने शास्त्रविधि से उस श्रेष्ठ रथ का पूजन किया और उसकी परिक्रमा करके सूर्यदेव की स्तुति की। फिर उसने पास ही खड़े मद्रराज से कहा, ‘राजन् ! रथ पर बैठिये।‘ महातेजस्वी शल्य रथ के अग्रभाग में बैठे। इसके बाद कर्ण भी उसपर सवार हुआ। 
उस समय वहां दोनों तेजस्वी वीरों का स्तुतिगान हो रहा था। महाराज शल्य ने घोड़ों की रासें संभालीं और कर्ण रथ पर बैठकर धनुष की टंकार करने लगा। तब दुर्योधन ने कर्ण से कहा_’वीरवर ! मैं समझता था कि महारथी भीष्म और द्रोण अर्जुन और भीमसेन को मार डालेंगे। किन्तु वे इस कर्म को नहीं कर सके। अब तुम या तो धर्मराज को कैद कर कर लो, या अर्जुन, भीमसेन और नकुल_सहदेव को मार डालो। अच्छा, तुम युद्ध के लिये प्रस्थान करो। तुम्हारी जय हो, कल्याण हो। तुम पाण्डवपुत्रों की सारी सेना को भस्म कर दो।‘ कर्ण ने दुर्योधन की बात स्वीकार करके राजा शल्य से कहा_’महाबाहो ! घोड़ों को बढ़ाते, जिससे कि मैं अर्जुन, भीम, नकुल_सहदेव और युधिष्ठिर को मार सकूं। आज पाण्डवों के नाश और दुर्योधन की विजय के लिये मैं हजारों तीखे बाण छोड़ूंगा।‘ शल्य बोले_सूतपुत्र ! तुम पाण्डवों का अपमान  क्यों करते हो ? वे तो समस्त शास्त्रों के पारगामी, महान् धनुर्धर, रण में पीठ न दिखाने वाले, अजेय और अत्यन्त पराक्रमी हैं। वे साक्षात् इन्द्र को भी भयभीत कर सकते हैं। जिस समय तुम गाण्डीव धनुष की वज्र के समान भीषण टंकार सुनोगे उस समय इस प्रकार गाल बजाना भूल जाओगे।
जिस समय भीमसेन हाथियों का दांत उखाड़_उखाड़कर हाथियों की सेना का संहार करेगा उस समय तुम इस प्रकार बातें न बना सकोगे। जिस समय तुम धर्मराज युधिष्ठिर और नकुल_सहदेव को अपने पैने बातों से शत्रुओं का संहार करते देखोगे उस समय ऐसी कोई बात नहीं कह सकोगे। संजय ने कहा_राजन् ! तब मद्रराज की इन सब बातों की उपेक्षा करके कर्ण ने उनसे कहा, ‘अच्छा, अब रथ बढ़ाइये।'