Monday 5 September 2022

कर्ण की मार से कौरव_सेना का पलायन, श्रीकृष्ण और अर्जुन को आते देख शल्य और कर्ण की बातचीत तथा अर्जुन द्वारा कौरव_सेना का विध्वंस

धृतराष्ट्र ने पूछा_संजय ! भीमसेन ने जब कौरव योद्धाओं को तितर_बितर कर दिया, उस समय दुर्योधन, शकुनि, कृतवर्मा, अश्वत्थामा अथवा दु:शासन ने क्या कहा ? सूतपुत्र ने कौन_सा पराक्रम किया ? मेरे पुत्रों तथा अन्य दुर्धर्ष राजाओं ने क्या काम किया ? ये सारी बातें बताओ। संजय ने कहा_महाराज ! उस दिन तीसरे पहर में प्रतापी सूतपुत्र ने भीमसेन के देखते_देखते समस्त सोमकों का संहार कर डाला तथा भीमसेन ने भी कौरवों की अत्यन्त बलवती सेना का विध्वंस कर दिया। तत्पश्चात् कर्ण ने शल्य से कहा_’अब मेरा रथ पांचालों की ओर ही ले चलो।‘ सेनापति की आज्ञा पाकर सारथि ने अपने घोड़ों को चेदि, पांचाल तथा करूषदेशीय वीरों की ओर बढ़ाया। कर्ण का रथ देखते ही पाण्डव और पांचाल वीर थर्रा उठे। तदनन्तर कर्ण अपने सैकड़ों बाणों से मारकर पाण्डव_सेना के सौ_सौ तथा हजार_हजार वीरों को गिराने लगा। यह देख पाण्डव_पक्ष के अनेकों महारथियों ने पहुंचकर कर्ण को चारों ओर से घेर लिया। उस समय सात्यकि ने तेज किये हुए बीस बाणों से कर्ण के गले की हंसली में प्रहार किया। फिर शिखण्डी ने पच्चीस, धृष्टद्युम्न ने सात, द्रौपदी के पुत्रों ने चौंसठ, सहदेव ने सात तथा नकुल ने सौ बाण मारकर कर्ण को घायल कर डाला। इसी तरह भीमसेन ने कर्ण की हंसली पर नब्बे बाण मारे। तदनन्तर, सूतपुत्र ने हंसकर अपने धनुष की टंकार की और तेज किये हुए बाणों का प्रहार कर उन सब योद्धाओं को बींध डाला। उसने सात्यकि का धनुष और ध्वजा काटकर उसकी छाती में नौ बाणों का प्रहार किया। फिर क्रोध में भरकर भीम को भी तीस बाणों से घायल किया। एक भल्ल से सहदेव की ध्वजा काटकर तीन बाणों से उसके सारथि को भी मार डाला तथा द्रौपदी के पुत्रों को रथहीन कर दिया। यह सारा काम पलक मारते_मारते हो गया। देखनेवालों के लिये ये बड़े आश्चर्य की बात हुई। महारथी कर्ण ने चेदि तथा मत्स्यदेश के योद्धाओं को भी अपने तीखे तीरों का निशाना बनाया। उसकी मार खाकर  वे भयभीत होकर भाग चले। कर्ण का यह अद्भुत पराक्रम मैंने अपनी आंखों से देखा था। जैसे भेड़िया पशुओं को भयभीत करके भगा देता है, उसी प्रकार कर्ण ने पाण्डव योद्धाओं को आतंकित करके खदेड़ दिया। पाण्डवों की सेना को भागती देख कौरव_पक्ष के धनुर्धर योद्धा भैरव_गर्जना करते हुए सामने की ओर बढ़ आये। कर्ण ने उनमें से बहुतों के पांव उखाड़ दिये। पांचाल देश के बीस रथियों तथा चेदिदेश के सैकड़ों योद्धाओं को भी अपने हाथों से यमलोक पहुंचा दिया। इस प्रकार पाण्डव_पक्ष के बहुत_से योद्धाओं का नाश हो गया और महाबली भीम के सामने युद्ध करने से आपके भी बहुत_से वीर मारे गये। इधर, अर्जुन कौरवों की चतुरंगिनी सेना का विनाश करके जब आगे बढ़े तब क्रोध में भरे हुए सूतपुत्र पर उनकी दृष्टि पड़ी, तब उन्होंने भगवान् वासुदेव से कहा_ जनार्दन ! वह देखिये, रण में सूतपुत्र की ध्वजा दिखाई दे रही है तथा ये भीमसेन आदि योद्धा कौरव महारथियों से लड़ रहे हैं। इधर पांचाल योद्धा कर्ण के भय से भागे जाते हैं। इधर कर्ण के संरक्षण में रहकर कृपाचार्य, कृतवर्मा तथा अश्वत्थामा राजा दुर्योधन की रक्षा कर रहे हैं। यदि हम लोगों ने इन्हें मारा नहीं तो ये सोमकों का संहार कर डालेंगे। अतः मेरा विचार यह है कि आप महारथी कर्ण के पास मुझे ले चलें, अब मैं संग्राम में कर्ण का वध किये बिना पीछे नहीं लौटूंगा। तब भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन के साथ द्वयरथ युद्ध कराने के लिये आपकी सेना में कर्ण की ओर अपना रथ बढ़ाया। वे रथ पर बैठे_ही_बैठे चारों तरफ खड़ी हुई पाण्ड_सेना को धीरज बंधाते जाते थे। वीरवर अर्जुन आपकी सेना को परास्त करते हुए आगे बढ़ रहे थे। श्वेत घोड़े वाले रथ पर बैठकर अपने सारथि भगवान् श्रीकृष्ण के साथ अर्जुन को आते देख मद्रराज शल्य ने कर्ण से कहा _’कर्ण ! तुम दूसरे लोगों से जिनका पता पूछते फिरते थे, वे कुन्तीनन्दन अर्जुन अपना गाण्डीव धनुष लिये हुए सामने खड़े हैं, वह उनका रथ आ रहा है। यदि आज उन्हें मार डालोगे तो हमलोगों का भला होगा। अर्जुन के धनुष की प्रत्यंचा में चन्द्रमा एवं छात्राओं के चिह्न हैं, उनकी ध्वजा के शिखर पर भयंकर वानर दिखाई पड़ता है, जो चारों ओर ताक_ताककर वीरों का भी भय बढ़ा रहा है। ये अर्जुन के रथ पर बैठकर घोड़े हांकते हुए भगवान् श्रीकृष्ण के शंख, चक्र, गदा तथा शाड़्ंग धनुष दीख रहे हैं। यह गांडीव टंकार रहा है तथा अर्जुन के छोड़े हुए तीखे तीर शत्रुओं के प्राण ले रहे । आज यह रणभूमि राजाओं के कटे हुए मस्तकों से पटी जा रही है। जैसे सिंह हजारों सरियों के झुंड को घबराहट में डाल देता है, उसी प्रकार अर्जुन ने अपने शत्रुओं की सेना को अत्यंत व्याकुल कर डाला है। अर्जुन तनिक_सी देर में बहुसंख्यक शत्रुओं का अंत कर देते हैं इसलिये उनके भय से वह कौरव_सेना चारों ओर से छिन्न_भिन्न हो रही है। यह देखो, अर्जुन सब सेनाओं को छोड़कर तुम्हारे पास पहुंचने की जल्दी कर रहे हैं। भीमसेन को पीड़ित देख वे क्रोध से तमतमा उठे हैं, इसलिये आज तुम्हारे सिवा और किसी से युद्ध करने के लिए नहीं रुके।  तुमने धर्मराज को रथहीन करके उन्हें बहुत घायल कर डाला है, शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, द्रौपदी के पुत्र, सात्यकि, उत्तमौजा, नकुल तथा सहदेव को भी तुम्हारे हाथों बहुत चोट पहुंची है; यह सब देखकर अर्जुन की आंखें क्रोध से लाल हो गयी हैं, वे समस्त राजाओं का संहार करने की इच्छा से अकेले ही तुम्हारे ऊपर चढ़े आ रहे हैं। कर्ण ! अब तुम भी इनका सामना करने के लिये आओ , क्योंकि तुम्हारे सिवा, दूसरा कोई ऐसा धनुर्धर नहीं है, जो अर्जुन से लोहा ले सके। केवल तुम्हीं युद्ध में श्रीकृष्ण और अर्जुन को परास्त करने की शक्ति रखते हो, तुम्हारे ही ऊपर यह भार रखा गया है, इसलिये धनंजय का मुकाबला करो।  तुम, भीष्म, द्रोण, अश्वत्थामा तथा कृपाचार्य के समान बली हो, इस महासमर में आगे बढ़ते हुए अर्जुन को रोको। देखो, ये कौरव_सेना के महारथी अर्जुन के भय से भागे जाते हैं, सूतनन्दन ! तुम्हारे सिवा दूसरा कोई ऐसा वीर नहीं है, जो इनका भय दूर करे। ये समस्त कौरव दीप के समान अपना रक्षक मानकर तुम्हारे ही पास आ रहे हैं और तुमसे शरण पाने की आशा रखकर यहां खड़े हुए हैं।
कर्ण ने कहा_शल्य ! अब तुम राह पर आते हो और मुझसे सहमत जान पड़ते हो। महाबाहो ! अर्जुन का भय मत करो। आज मेरी इन भुजाओं और शिक्षा का बल देखना। मैं अकेला ही पाण्डवों की विशाल सेना तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन का वध करूंगा।  यह तुमसे सच्ची बात बता रहा हूं। उन दोनों वीरों को मारे बिना आज मैं किसी तरह पीछे पैर नहीं हटाऊंगा। दो में से एक काम करके कृतार्थ होउंगा_या तो उन्हें मारूंगा या स्वयं मर जाऊंगा। शल्य ने कहा_कर्ण ! महारथी लोग अर्जुन को अकेले होने पर भी युद्ध में जीतना असंभव मानते हैं, फिर जब वे श्रीकृष्ण से सुरक्षित हों, तब तो कहना ही क्या है ? ऐसी दशा में यहां उन्हें जीतने का साहस कौन कर सकता है ? कर्ण ने कहा_मैं मानता हूं, अर्जुन जैसा महारथी इस संसार में कभी हुआ ही नहीं। उनके हाथ प्रत्यंचा के चिह्न से अंकित है, उनमें न कभी पसीना आता है और न वे कांपते ही हैं। अर्जुन का धनुष भी मजबूत है। वे बड़े कार्यकुशल और शीघ्रतापूर्वक हाथ चलानेवाले । पाण्डव नन्दन अर्जुन के समान दूसरा कोई योद्धा है ही नहीं। उनके बाण दो मील के निशाने मारने में भी नहीं चूकते और उनके जैसा योद्धा इस पृथ्वी पर और कौन है ? अतिरथी वीर अर्जुन केवल श्रीकृष्ण की सहायता से खाण्डववन में अग्निदेव को तृप्त किया, जहां महात्मा श्रीकृष्ण को चक्र मिला था और श्रीकृष्ण को गाण्डीव धनुष, श्वेत घोड़ों से जुताई हुआ रथ, कभी खाली न होने वाले दो तरकस तथा बहुत से दिव्यास्त्र प्राप्त हुए।
ये सभी वस्तुएं अग्निदेव ने भेंट की थी। इसी प्रकार उन्होंने इन्दलोक में जाकर असंख्य कालकेयों का संहार किया था जहां उन्हें देवदत्त नामक शंख की प्राप्ति हुई। अतः इस भूमंडल में  उनसे बढ़कर योद्धा कौन होगा ? जिन महानुभाव ने अपनी सुंदर युद्धकला के द्वारा साक्षात् महादेवजी को प्रसन्न किया  उनसे अत्यंत भयंकर पाशुपत नामक महान् अस्त्र प्राप्त किया जो त्रिभुवन का संहार करने में समर्थ है।
जिन्हें समस्त लोकपालों ने अलग_अलग अनेकों अनुपम  दिव्यास्त्र प्रदान किये हैं तथा जिन्होंने विराटनगर में अकेले ही हम सब महारथियों को जीतकर सारा गोधन छीन लिया और महारथियों के वस्त्र भी उतार लिये, ऐसे पराक्रम और गुणों से सम्पन्न अर्जुन को, जिनके साथ श्रीकृष्ण भी मौजूद हैं, युद्ध के लिये ललकारना बड़े दु:साहस का काम है_इस बात को मैं अच्छी तरह समझता हूं इसके सिवा समस्त संसार मिलकर दस हजार वर्षों में भी नहीं गिन सकता, जो शंख, चक्र धारण करनेवाले हैं, वे अत्यंतपराक्रमी साक्षात् भगवान् नारायण ही अर्जुन की रक्षा कर रहे हैं।
श्रीकृष्ण और अर्जुन को एक रथ पर बैठे देख मुझे भय लगता है, हृदय कांप उठता है। अर्जुन समस्त धनुर्धारियों से बढ़कर हैं तथा चक्र युद्ध में नारायण स्वरूप श्रीकृष्ण का मुकाबला करनेवाला भी कोई नहीं है। वे दोनों वीर ऐसे पराक्रमी हैं। हिमालय अपने स्थान से हट जाय, पर श्रीकृष्ण और अर्जुन नहीं विचलित हो सकते। वे दोनों महारथी शूरवीर और अस्त्र विद्या के विद्वान हैं। शल्य ! बताओ तो सही, ऐसे पराक्रमी श्रीकृष्ण और अर्जुन का मुकाबला मेरे सिवा दूसरा कौन कर सकता है ? आज ऐसा युद्ध होगा, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। या तो मैं ही इन दोनों को मार गिराऊंगा या ये ही मेरा वध कर डालेंगे। ऐसा कहकर शत्रुहंता कर्ण ने मेघ के समान गर्जना की। फिर वह आपके पुत्र दुर्योधन के निकट गया। दुर्योधन ने उसका अभिनन्दन किया और छाती से लगाया। तब कर्ण ने कुरुराज दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, भाइयोंसहित शकुनि, अश्वत्थामा और अपने छोटे भाई से हाथीसवार, घुड़सवार और पैदल सैनिकों से कहा_’राजाओं ! आपलोग श्रीकृष्ण और अर्जुन पर धावा करके उन्हें चारों ओर से घेर लें और सब ओर से युद्ध छेड़कर अच्छी तरह थका डालें। आपके द्वारा जब वे बहुत घायल हो जायेंगे तो मैं उन दोनों को सुगमता से मार डालूंगा। ‘बहुत अच्छा' कहकर अर्जुन को मारने की इच्छा से वे सभी वीर उनपर टूट पड़े और अपने कबाणों का प्रहार करने लगे। उन महारथियों के चलाते हुए बाणों को अर्जुन ने हंसते_हंसते काट डाला और आपकी सेना को भस्म करना आरंभ किया। यह देख कृपाचार्य, कृतवर्मा, दुर्योधन तथा अश्वत्थामा अर्जुन की ओर दौड़े और उनके ऊपर बाणों की वर्षा करने लगे। अर्जुन ने अपने सायकों से उनके बाणों के टुकड़े_टुकड़े कर दिये और बड़ी फुर्ती के साथ उन्होंने प्रत्येक महारथी की छाती में तीन_तीन बाण मारे। तब अश्वत्थामा ने दस बाणों से धनंजय को, तीन से श्रीकृष्ण को और चार से उनके घोड़ो को बींध डाला, फिर उनकी ध्वजा पर बैठे हुए वानर को उसने अनेकों बाणों तथा नाराचों का निशाना बनाया। यह देख अर्जुन ने तीन बाणों से अश्वत्थामा के धनुष को, एक से सारथि के मस्तक को, चार सायकों से उसके चारों घोड़ों को तथा तीन से उसकी ध्वजा को काटकर रथ से नीचे गिरा दिया। इसके बाद कृपाचार्य के भी बाण सहित धनुष, ध्वजा, पताका, घोड़े तथा सारथि को नष्ट कर दिया। फिर उन्हें भी हजारों बाणों के घेरे में कैद कर लिया। तत्पश्चात् अर्जुन ने दहाड़ते हुए दुर्योधन के ध्वजा और धनुष काट दिये, कृतवर्मा के घोड़ों को मार डाला तथा उसके रथ की ध्वजा भी खण्डित कर दी। फिर बड़ी फुर्ती के साथ उन्होंने आपकी सेना के घोड़ों, सारथियों, तरकसों, ध्वजाओं, हाथियों और रथों का सफाया कर डाला। उस समय आपकी विशाल सेना छिन्न_भिन्न होकर इधर_उधर बिखर गयी।