Saturday 28 December 2019

घतोत्कच की मृत्यु से भगवान् की प्रसन्नता तथा पाण्डवहितैषी भगवान् के द्वारा कर्ण का बुद्धिमोह

संजय कहते हैं___ घतोत्कच के मारे जाने से समस्त पाण्डव शोकमग्न हो गये। सबकी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी। किन्तु वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण को बड़ी खुशी थी, वे आनन्द में डूब रहे थे। उन्होंने बड़े जोर से सिंहनाद किया और हर्ष से झूमकर नाचने लगे। फिर अर्जुन को गले लगाकर उनकी पीठ ठोकी और बार बार गर्जना की। भगवान् को इतना प्रसन्न जान अर्जुन बोले___’मधुसूदन ! आज आपको बेमौके इतनी खुशी क्यों हो रही है ? घतोत्कच के मारे जाने से हमारे लिये शोक का अवसर उपस्थित हुआ है, सारी सेना विमुख होकर भाग रही है। हमलोग भी बहुत घबरा गये हैं तो भी आप प्रसन्न हैं। इसका कोई छोटा_मोटा कारण नहीं हो सकता। जनार्दन !  बताइये, क्या वजह है इस प्रसन्नता की ? यदि बहुत छिपाने की बात न हो तो अवश्य बता दीजिये। मेरा धैर्य टूटा जा रहा है।भगवान् श्रीकृष्ण बोले____ धनंजय ! मेरे लिये सचमुच ही बड़े आनन्द का अवसर आया है। कारण सुनना चाहते हो ? सुनो। तुम जानते हो कर्ण ने घतोत्कच को मारा है; पर मैं कहता हूँ इन्द्र की दी हुई शक्ति को निष्फल करके ( एक प्रकार से ) घतोत्कच ने ही कर्ण को मार डाला है। अब तुम कर्ण को मरा हुआ ही समझो। संसार में कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है, जो कर्ण के हाथ में शक्ति रहने पर उसके सामने ठहर सकता और यदि उसके पास कवच और कुण्डल भी होते, तब तो वह देवताओंसहित तीनों लोकों को भी जीत सकता था। उस अवस्था में इन्द्र, कुबेर, वरुण अथवा यमराज भी युद्ध में उसका सामना नहीं कर सकते थे। हम और तुम सुदर्शनचक्र और गाण्डीव लेकर भी उसे जीतने में असमर्थ हो जाते।तुम्हारा ही हित करने के लिये इन्द्र ने छल से उसे कुण्डल और कवच से हीन कर दिया। उनके बदले में जबसे इन्द्र ने उसे अमोघ शक्ति दे दी थी, तबसे वह सदा तुमको मरा हुआ ही मानता था। आज यद्यपि उसका ये सारा चीजें नहीं हो रहीं तो भी तुम्हारे सिवा दूसरे किसी से वह नहीं मारा जा सकता। कर्ण ब्राह्मणों का भक्त, सत्यवादी, तपस्वी, व्रतधारी और शत्रुओं पर भी दया करनेवाला है; इसलिये वह वृष ( धर्म ) कहलाता है। संपूर्ण देवता चारों ओर से कर्ण पर बाणों की वर्षा करें और दैत्य उसपर मांस और रक्त उछालें तो भी वे उसे जीत नहीं सकते। कवच, कुण्डल तथा इन्द्र की दी हुई शक्ति से वंचित हो जाने के कारण आज कर्ण साधारण मनुष्य_ सा हो गया है; तो भी उसे मारने का एक ही उपाय है।जब उसकी कोई कमजोरी दिखायी दे, वह असावधान हो और रथ का पहिया फँस जाने से संकट में पड़ा हो, ऐसे समय में मेरे संकेत पर ध्यान देने पर सावधानी के साथ इसे मार डालना। तुम्हारे हित के लिये ही मैंने जरासन्ध_ शिशुपाल आदि को एक_एक करके मरवा डाला है तथा हिडिम्बा, किर्मीर, वक, अलायुध आदि राक्षसों को मैंने ही मरवाया है। जरासन्ध और शिशुपाल आदि यदि पहले ही नहीं मारे गये होते तो इस समय बड़े भयंकर सिद्ध होते। दुर्योधन अपनी सहायता के लिये उनसे अवश्य ही प्रार्थना करता और वे हमसे सर्वदा द्वेष रखने के कारण सर्वदा कौरवों का पक्ष लेते ही। दुर्योधन का सहारा लेकर वे संपूर्ण पृथ्वी को जीत लेते। जिन उपायों से मैंने उन्हें नष्ट किया है, उनको सुनो।एक समय की बात है___ युद्ध में रोहिणीनन्दन बलदेवजी ने जरासन्ध राजा तिरस्कार किया। इससे क्रोध में भरकर उसने हमलोगों को मारने के लिये उसने सर्वसंहारिणी गदा का प्रहार किया। उस गदा को अपने ऊपर आते देख भैया बलराम ने उसका नाश करने के लिये स्थूणाकर्ण नाम का अस्त्र प्रयोग किया। उस अस्त्र के वेग से प्रतिहत होकर वह गदा पृथ्वी पर गिर पड़ी, गिरते ही धरती में दरार पड़ गये और पर्वत हिल उठे। जिस स्थान पर गदा गिरी, वहाँ जरा नामक एक भयंकर राक्षसी रहती थी। गदा के आघात से वह अपने पुत्र और बान्धवोंसहित मारी गयी।  जरासन्ध अलग_अलग दो टुकड़ों के रूप में पैदा हुआ था; उन टुकड़ों को इसी जरा नामवाली राक्षसी ने जोड़कर जीवित किया था, इसी से इसका नाम जरासन्ध हुआ। उसके दो ही प्रधान सहारे थे___ गदा और जरा। इन दोनों से वह हीन हो गया था, इसीसेे भीमसेन तुम्हारे सामने उसका वध कर सके। इसी प्रकार तुम्हारा हित करने के लिये ही एकलव्य का अंगूठा अलग करवा दिया। चेदिराज शिशुपाल को तुम्हारे सामने ही मार डाला। उसे भी देवता तथा असुर संग्रामों में नहीं जीत सकते थे। उनका तथा अन्य देवद्रोहियों का नाश करने के लिये ही मेरा अवतार हुआ है।हिडिम्बासुर, वक और किर्मीर___ ये रावण के समान बली तथा ब्राह्मणों और यज्ञ से द्वेष रखनेवाले थे। लोक_ कल्याण के लिये ही इन्हें भीमसेन से मरवा डाला। इसी प्रकार घतोत्कच के हाथ से अलायुध का नाश कराया और कर्ण के द्वारा शक्ति प्रहार करवाकर घतोत्कच का भी काम तमाम किया। यदि इस महासमर में कर्ण अपनी शक्ति के द्वारा घतोत्कच को नहीं मार डालता तो मुझे उसका वध करना पड़ता।
इसके द्वारा तुमलोगों का प्रिय कार्य कराना था, इसीलिये मैंने पहले ही इसका वध नहीं किया। घतोत्कच ब्राह्मणों का द्वेषी और यज्ञों का नाश करनेवाला था। वह पापात्मा धर्म का लोप कर रहा था, इसी से इस प्रकार इसका विनाश करवाया है। जो धर्म का लोप करनेवाले हैं, वे सभी मेरे वध्य हैं। मैंने धर्म स्थापना के लिये प्रतिज्ञा कर ली है। जहाँ वेद, सत्य, दम्य, पवित्रता, धर्म, लज्जा, श्री, धैर्य और क्षमा का वास है, वहाँ मैं सदा ही क्रीडा किया करता हूँ। यह बात मैं सत्य की शपथ खाकर कहता हूँ। अब तुम्हें कर्ण का नाश करने के विषय में विषाद नहीं करना चाहिये। मैं वह उपाय जाऊँगा, जिससे तुम कर्ण को और भीमसेन दुर्योधन को मार सकेंगे। इस समय तो दूसरी ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। तुम्हारी सेना चारों ओर भाग रही है और कौरव_सैनिक तक_तककर मार रहे हैं।
धृतराष्ट्र ने पूछा___ संजय ! यदि कर्ण की शक्ति एक ही वीर का वध करके निष्फल हो जानेवाली थी तो उसने सबको छोड़कर अर्जुन पर ही उसका प्रहार क्यों नहीं किया ? अर्जुन के मारे जाने पर समस्त पाण्डव और सृंजय अपने_ आप नष्ट हो जाते। यदि कहो अर्जुन सूतपुत्र लड़ने नहीं आये तो उसे स्वयं ही उनकी तलाश करनी चाहिये थी। अर्जुन की तो यह प्रतिज्ञा है कि ‘ युद्ध के लिये ललकारने पर पीछे पैर नहीं हटा सकता।‘
संजय ने कहा___महाराज ! भगवान् श्रीकृष्ण की बुद्धि हमलोगों से बड़ी है। वे जानते थे कि कर्ण अपनी शक्ति से अर्जुन को मारना चाहता है। इसीलिये उन्होंने कर्ण के साथ द्वैरथ_ युद्ध में राक्षसराज घतोत्कच को नियुक्त किया। ऐसे_ऐसे अनेकों उपायों से भगवान् अर्जुन की रक्षा करते आ रहे हैं। विशेषतः कर्ण की अमोघ शक्ति से उन्होंने ही अर्जुन की रक्षा की है, नहीं तो वह अवश्य ही उनका नाश कर डालती। धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! कर्ण भी तो बड़ा बुद्धिमान है, उसने स्वयं भी अर्जुन पर अबतक उस शक्ति का प्रहार क्यों नहीं किया ? तुम भी तो बड़े समझदार हो, तुमने ही कर्ण को यह बात क्यों नहीं बुझा दी ?संजय ने कहा___ महाराज ! प्रतिदिन रात्रि में दुर्योधन, शकुनि, मैं और दुःशासन___ ये सब लोग कर्ण से प्रार्थना करते थे कि ‘भाई ! कल के युद्ध में तुम सारी सेना को छोड़कर पहले अर्जुन को ही मार डालना। फिर तो हमलोग पाण्डवों और पांचालों पर दास की भाँति शासन करेंगे। यदि ऐसा न हो तो तुम श्रीकृष्ण को ही मार डालो, क्योंकि वे ही पाण्डवों के बल हैं, वे ही रक्षक हैं और वे ही उनके सहारे हैं।
राजन् ! यदि कर्ण श्रीकृष्ण को मार डालता तो निःसंदेह आज सारी पृथ्वी उसके वश में हो जाती। उसने भी उनपर शक्ति_ प्रहार का विचार किया था; पर युद्ध में भगवान् श्रीकृष्ण के निकट जाते ही उसपर ऐसा मोह छा जाता कि यह बात भूल जाती थी। उधर से भगवान् सदा ही बड़े_ बड़े महारथियों को कर्ण से लड़ने भेजा करते थे, वे निरंतर इसी फिक्र में लगे रहते थे कि कैसे कर्ण की शक्ति को व्यर्थ कर दूँ। महाराज ! जो कर्ण से अर्जुन की इस प्रकार रक्षा करते थे, वे अपनी रक्षा क्यों नहीं करते? तीनों लोकों में कोई भी ऐसा पुरुष नहीं है, जो जनार्दन पर विजय पा सके। घतोत्कच के मारे जाने पर सात्यकि ने भी भगवान् कृष्ण से यही प्रश्न किया था कि ‘भगवन् ! जब कर्ण ने वह अमोघ शक्ति अर्जुन पर ही छोड़ने का निश्चय किया था तो अबतक उनपर छोड़ी क्यों नहीं ?’ भगवान् श्रीकृष्ण बोले___ दुर्योधन, दु:शासन, शकुनि और जयद्रथ___ ये सब मिलकर यही सलाह दिया करते थे कि ‘ कर्ण ! तुम अर्जुन के सिवा दूसरे किसी पर शक्ति का प्रयोग न करना। उनके मारे जाने पर पाण्डव और सृंजय स्वयं ही नष्ट हो जायँगे।‘ युयुधान ! कर्ण भी उनसे ऐसा ही करने की प्रतिज्ञा कर चुका था, उसके हृदय में सदा अर्जुन का वध करने का विचार रहा भी करता था, परन्तु मैं ही उसे मोह में डाल देता था। यही कारण है, जिससे उसने अर्जुन पर शक्ति का प्रहार नहीं किया। सात्यके ! वह शक्ति अर्जुन के लिये मृत्युरूप है__ यह सोच_सोचकर मुझे रात में नींद नहीं आती थी। अब वह घतोत्कच पर पड़ने से व्यर्थ हो गयी___ यह देखकर मैं ऐसा समझता हूँ कि अर्जुन मौत के मुख से छूट गये। मैं युद्ध में अर्जुन की रक्षा करना जितना आवश्यक समझता हूँ उतनी पिता, माता, तुम जैसे भाइयों और अपने प्राणों की भी रक्षा आवश्यक नहीं मानता। तीनों लोकों के राज्य की अपेक्षा भी यदि कोई दुर्लभ वस्तु हो तो उसे भी मैं अर्जुन के बिना नहीं चाहता। इसीलिये आज अर्जुन मानो मरकर जी उठे हैं, ऐसा समझकर मुझे बड़ा आनन्द हो रहा है। यही वजह है कि इस रात्रि में मैंने राक्षस को ही कर्ण से लड़ने के लिये भेजा था; उसके सिवा दूसरा कोई कर्ण को नहीं दबा सकता था। महाराज ! अर्जुन का प्रिय और हित करने में निरंतर लगे रहनेवाले भगवान् श्रीकृष्ण ने सात्यकि के पूछने पर यही उत्तर दिया था।
धृतराष्ट्र ने कहा___ संजय ! इसमें कर्ण, दुर्योधन और शकुनि का तथा सबसे बढ़कर तुम्हारा अन्याय है। तुम सब लोगों को मालूम था कि वह शक्ति केवल एक वीर को मार सकती है, इन्द्र आदि देवता भी उसकी चोट बर्दाश्त नहीं कर सकते। तो भी कर्ण ने उसे श्रीकृष्ण अथवा अर्जुन पर क्यों नहीं  छोड़ा ? ( तुमलोग युद्ध के समय क्यों नहीं याद दिलाते थे? ) संजय बोले___ महाराज ! हमलोग तो रोज ही रात में उसे ऐसा करने की सलाह देते थे, पर प्रात:काल होते ही दैववश कर्ण की तथा दूसरे योद्धाओं की भी बुद्धि मारी जाती थी। हाथ में शक्ति के रहते हुए भी जो उसने श्रीकृष्ण या अर्जुन को उससे नहीं मारा, इसमें मैं देव को ही प्रधान कारण समझता हूँ।

Friday 27 December 2019

घतोत्कच का पराक्रम और कर्ण की अमोघशक्ति से उसका वध

संजय कहते हैं____ महाराज ! राक्षस अलायुध का वध करके घतोत्कच मन_ही_मन बहुत प्रसन्न हुआ और आपकी सेना के सामने खड़ा हो सिंहनाद करने लगा। उसकी गर्जना सुनकर आपके योद्धाओं को बड़ा भय हुआ। इधर कर्ण पर उसके शत्रु बाण बरसाते थे और वह धैर्यपूर्वक उनके अस्त्र_ शस्त्रों का नाश करता जाता था और उसने वज्र के समान बाणों से शत्रुओं का संहार आरम्भ कर दिया। उसके सायकों से कितने ही वीरों के अंग छिन्न_ भिन्न हो गये।  किन्हीं के सारथि मारे गये और किन्हीं के घोड़े नष्ट हो गये। कर्ण के सामने किसी तरह अपना बचाव न देखकर वे योद्धा युधिष्ठिर की सेना में भाग गये। अपने योद्धाओं को कर्ण के द्वारा पराजित होकर भागते देख घतोत्कच को क्रोध हुआ और वह उत्तम रथ में बैठकर सिंह के समान दहाड़ता हुआ कर्ण का सामना करने के लिये आ पहुँचा। आते ही उसने वज्र सरीखे बाणों से कर्ण को बींध डाला। फिर दोनों ही एक दूसरे पर कर्णी, नाराच, सिलीमुख, नालीक, दण्ड, अशनि, वत्सदन्त, वाराहकर्ण, विपाट, श्रृंग तथा क्षुरप्र की वर्षा करने लगे। उनकी अस्त्रवर्षा से आकाश छा गया। महाराज ! जब कर्ण युद्ध में किसी तरह घतोत्कच से बढ़ न सका तो उसने अपना भयंकर अस्त्र प्रकट किया और उससे उसके रथ, घोड़े और सारथि को नाश कर डाला। हिडिम्बाकुमार रथहीन होते ही अन्तर्धान हो गया। उसे अदृश्य होते देख कौरव योद्धा चिल्ला_ चिल्लाकर कहने लगे____’ माया से युद्ध करनेवाला यह राक्षस जब युद्ध में स्वयं नहीं दिखायी देता तो कर्ण को कैसे नहीं मार डालेगा ?’  इतने में ही कर्ण ने सायकों के जाल से संपूर्ण दिशाओं को आच्छादित कर दिया। उस समय बाणों से आकाश में अंधेरा छा गया था तो भी कोई प्राणी ऊपर से मरकर गिरा नहीं। इसके बाद हमलोगों ने अंतरिक्ष में उस राक्षस की भयंकर माया देखी। पहले वह लाल रंग के बादलों के रूप में प्रकाशित हुई, फिर जलती हुई आज के लपट के समान भयंकर दिखायी देने लगी। तत्पश्चात् उससे बिजली प्रकट हुई, उल्कापात होने लगा और हजारों दुंदुभियों के बजने के समान भयंकर आवाज होने लगी। इसके बाद बाण, शक्ति, प्रास, मूसल, फरसा, तलवार, पट्टिश, तोमर, परिघ, गदा, शूल और शताध्नियों की वृष्टि होने लगी। हजारों की संख्या में पत्थरों  की बड़ी_ बड़ी चट्टान गिरने लगीं। वज्रपात होने लगा। आग के समान प्रज्वलित चक्र गिरने लगे। कर्ण ने बाणों से उस अस्त्रवर्षा को रोकने का बड़ा प्रयत्न किया, पर उसे सफलता नहीं मिली। बाणों से आहत होकर घोड़े गिरने लगे। वज्रों की मार से हाथी धराशायी होने लगे और अन्य बहुत से अस्त्रों के प्रहार से बड़े_ बड़े महारथियों का संहार होने लगा। गिरते समय इनका महान् आर्तनाद चारों ओर फैल रहा था। घतोत्कच के छोड़े हुए नाना प्रकार के भयंकर अस्त्र_ शस्त्रों से आहत होकर दुर्योधन के सैनिक बड़ी घबराहट के साथ इधर_उधर भाग रहे थे। सब ओर हाहाकार मचा था। सभी लोग विषादमग्न और भयभीत हो गये थे। उस समय आपके पुत्र की सेना पर भयंकर मोह छा रहा था। कितने ही शूरवीरों की आँतों छितरा गयी थीं, उनके मस्तक कट गये थे और सारे अंग छिन्न_भिन्न हो रहे थे। इस दशा में वे रणभूमि में पड़े हुए थे जगह_जगह चट्टानों से कुचले हुए घोड़े और हाथी दिखायी देते थे;  रथ चकनाचूर हो गये थे।
उस समय काल का प्रेरणा से क्षत्रियों का विनाश हो रहा था। समस्त कौरव योद्धा घायल होकर भागते हुए चिल्ला_ चिल्लाकर कह रहे थे___’ कौरवों ! भागो, यह सेना नहीं है; इन्द्र आदि देवता पाण्डवों का पक्ष लेकर हमारा नाश कर रहे हैं।‘ इस प्रकार जब कौरव विपत्ति के महासागर में डूब रहे थे, उस समय सूतपुत्र कर्ण ने ही द्वीप बनकर उनकी रक्षा की। वह सारी शस्त्रवर्षा को अपनी छाती पर झेलता हुआ अकेला ही मैदान में डटा रहा। इतने में ही घतोत्कच ने कर्ण के चारों घोड़ों को लक्ष्य करके एक शतघ्नी चलायी। उसके प्रहार से घोड़ों ने धरती पर घुटने टेक दिये, उनके दाँत गिर गये, आँखें और जीभें बाहर निकल आयीं। वे भी निष्प्राण होकर गिर पड़े। घोड़ों के मर जाने पर कर्ण अपने रथ से उतर पड़ा और मन_ही_मन कुछ सोचने लगा। उस समय कौरव_योद्धा भाग रहे थे, राक्षसी माया से उसके दिव्यास्त्रों का नाश हो गया था; तो भी कर्ण घबराया नहीं। वह समयोचित कर्तव्य का विचार करने लगा। इसी समय उस भयंकर माया का प्रभाव देख समस्त कौरवों ने मिलकर कर्ण से कहा___’भाई ! अब तुम इस राक्षस का तुरंत वध करो, नहीं तो यह सभी कौरव अभी नष्ट हुए जाते हैं। भीमसेन और अर्जुन हमारा क्या कर लेंगे ? इस समय आधी रात में इस राक्षस का प्रताप बहुत बढ़ा हुआ है, अत: इसका ही नाश करो। हमलोगों में से जो इस भयंकर संग्राम से छुटकारा पा जायगा, वही सेनासहित पाण्डवों से युद्ध करेगा। इसलिये तुम इन्द्र की दी हुई शक्ति से इस भयंकर राक्षस का संहार कर डालो। कर्ण ! सभी कौरव इन्द्र के समान बलवान हैं; कहीं ऐसा न हो कि इस रात्रियुद्ध में ये सब_के_सब अपने सैनिकों सहित मारे जायँ।‘ निशीथ का समय था, राक्षस कर्ण पर निरंतर प्रहार कर रहा था, सारी सेना पर उसका आतंक छाया हुआ था; इधर कौरव वेदना से कराह कहे थे। यह सब देख_सुनकर कर्ण ने राक्षस के ऊपर शक्ति छोड़ने का विचार किया। अब उससे संग्राम में शत्रु का आघात नहीं सहा गया, उसके वध की इच्छा से कर्ण ने वह ‘वैजन्ती’ नामवाली असह्य शक्ति हाथ में ली। महाराज ! यह वही शक्ति थी, जिसे न जाने कितने वर्षों से कर्ण ने अर्जुन को मारने के लिये सुरक्षित रखा था। वह सदा उसका पूजा किया करता था। मृत्यु की  बहन अथवा लपलपाती हुई काल के जिह्वा के समान वह शक्ति कर्ण ने घतोत्कच के ऊपर चला दी। उसे देखते ही राक्षस भयभीत हो गया और विंध्याचल के समान विशाल शरीर धारण कर वहाँ से भागा।
रात्रि में प्रज्वलित हुई उस शक्ति ने राक्षस का सारी माया भष्म करके उसकी छाती में गहरी चोट की और उसे विदीर्ण करके ऊपर नक्षत्रमण्डल में समा गयी। घतोत्कच भैरवनाद करता हुआ अपने प्यारे प्राणों से हाथ धो बैठा। उस समय शक्ति के प्रहार से उसके मर्मस्थल विदीर्ण हो गये थे तो भी शत्रुओं का नाश करने के लिये उसने आश्चर्यजनक रूप धारण किया। अपना शरीर पर्वत के समान बना लिया। इसके बाद वह नीचे गिरा। यद्यपि मर गया था तो भी उसने अपने पर्वताकार शरीर से कौरव_ सेना के एक भाग का संहार कर डाला। उसकी देह के नीचे एक अक्षौहिणी सेना रहकर मर गयी। इस प्रकार मरते_मरते भी उसने पाण्डवों का हितसाधन किया। माया नष्ट हुई और राक्षस मारा गया____ यह देखकर कौरव योद्धा हर्षनाद करने लगे; साथ ही शंख,भेरी, ढोल और नगाड़े भी बज उठे। कर्ण की प्रशंसा होने लगी और दुर्योधन के रथ में बैठकर उसने अपनी सेना में प्रवेश किया।

Sunday 8 December 2019

भीमसेन के साथ अलायुध का युद्ध तथा घतोत्कच के हाथ से अलायुध का वध

संजय कहते हैं___ राजन् ! इस प्रकार कर्ण और घतोत्कच का युद्ध हो ही रहा था कि अलायुध नामवाला एक राक्षस पूर्वकालीन वैर का स्मरण करके अपनी बड़ी भारी सेना के साथ दुर्योधन के पास आया और युद्ध की लालसा से बोला___’ महाराज ! आपको तो मालूम ही होगा कि भीमसेन ने हमारे बान्धव हिडिम्बा, बकासुर और किर्मीर का वध कर डाला है। इसलिये आज हम स्वयं ही घतोत्कच का वध करेंगे और श्रीकृष्ण और पाण्डवों को अनुचरोंसहित मारकर खा जायँगे। आप अपनी सेना को पीछे हटा लीजिये। आज पाण्डवों के साथ हम राक्षसों का युद्ध होगा।‘ उसकी बात सुनकर दुर्योधन को बड़ी खुशी हुई। उसने अपने बन्धुओं के साथ ही उससे कहा___’भाई ! तुम्हें तो तुम्हारी सेनासहित आगे रखेंगे और साथ रहकर हम स्वयं भी शत्रुओं के साथ लड़ेंगे। मेरे योद्धाओं के हृदय में वैर की आग जल रही है, वे चैन से बैठेंगे नहीं।‘ ‘अच्छा ऐसा ही हो’ यह कहकर राक्षसराज अलायुध राक्षसों को लेकर बड़ी उतावली के साथ युद्ध के लिये चला। घतोत्कच के पास जैसा तेजस्वी रथ था, वैसा ही अलायुध के पास भी था। उसकी भी घरघराहट अनुपम थी, उसपर भी रीछ का चमड़ा मढ़ा हुआ था। लम्बाई_चौड़ाई भी वही चार सौ हाथ की थी। वैसे ही हाथी के समान मोटेताजे सौ घोड़े जुते हुए थे। उसका धनुष भी बहुत बड़ा था, जिसकी प्रत्यंचा सुदृढ़ थी। उसके बाण भी रथ के धुरे के समान मोटे और लम्बे थे। वह भी वैसा ही वीर था, जैसा घतोत्कच; किन्तु रूप में वह घतोत्कच की अपेक्षा सुन्दर था। महाराज ! अलायुध के आने से कौरवों को बड़ी प्रसन्नता हुई। मानो समुद्र में डूबते हुए को जहाज मिल गया हो। उन्होंने अपना नया जन्म हुआ समझा। उस समय कर्ण और घतोत्कच में अलौकिक युद्ध चल रहा था। द्रोण, अश्त्थामा और कृपाचार्य आदि घतोत्कच के पुरुषार्थ को देखकर थर्रा उठे थे। सबके मन में घबराहट थी, सर्वत्र हाहाकार मचा हुआ था। सारी सेना कर्ण के जीवन से निराश हो चुकी थी। दुर्योधन ने देखा कि कर्ण बड़ी विपत्ति में फँस गया है तो उसने अलायुध को बुलाकर कहा.___’यह कर्ण घतोत्कच के साथ भिड़ा हुआ है और युद्ध में जहाँतक इसकी शक्ति है महान् पराक्रम दिखा रहा है। वीरवर ! तुम्हारी जैसी इच्छा थी, उसके अनुसार ही इस संग्राम में घतोत्कच को तुम्हारे हिस्से में कर दिया गया है; अब तुम पुरुषार्थ करके इसका नाश करो। यह पापी अपने मायाबल का आश्रय लेकर पहले ही कहीं कर्ण को मार न डाले___इसका खयाल रखना।‘ दुर्योधन के ऐसा कहने पर अलायुध ने ‘बहुत अच्छा’ कहकर घतोत्कच पर धावा किया। भीमसेन के पुत्र ने जब अपने शत्रु को सामने आते देखा तो कर्ण को छोड़ दिया और उसी को बाणों के प्रहार से पीड़ित करने लगा। फिर दोनों राक्षस क्रोध में भरकर एक_ दूसरे से भिड़ गये। भीमसेन ने देखा कि घतोत्कच अलायुध के चंगुल में फँस गया है और वे अपने तेजस्वी रथ पर बैठे बाणवृष्टि करते हुए वहाँ आ पहुँचे। यह देख अलायुध ने घतोत्कच को छोड़कर भीमसेन को ललकारा और उसके साथी राक्षस भी अनेक प्रकार के अस्त्र_ शस्त्र लेकर भीमसेन पर ही टूट पड़े।
जब बहुत_से राक्षस बाणों से बींधने लगे तो महाबली भीम ने भी प्रत्येक को पाँच_पाँच तीखे बाण मारकर सबको घायल कर दिया। भीम के साथ युद्ध करनेवाले क्रूर राक्षस उनकी मार से पीड़ित हो भयंकर चीत्कार करते हुए दसों दिशाओं में भागने लगे। यह देख अलायुध भीमसेन की ओर बड़े वेग से दौड़ा और उनपर बाणों की वृष्टि करने लगा। उसने भीमसेन के छोड़े हुए कितने ही बाण काट डाले और कितनों को ही हाथ में पकड़ लिया। भीम ने पुनः उसके ऊपर बाण बरसाये, किन्तु उसने अपने तीखे सायकों से मारकर उन्हें भी पुनः व्यर्थ कर डाला। फिर उसने भीम के धनुष के भी टुकड़े_टुकड़े कर दिये, घोड़ों और सारथि का भी काम तमाम कर दिया। घोड़ों और सारथि के मर जाने पर भीमसेन ने रथ से उतरकर भयंकर गर्जना की और उस राक्षस पर बड़ी भारी गदा का प्रहार किया। अलायुध ने गदा से ही उस गदा को मार गिराया। तब भीम ने दूसरी गदा हाथ में ली  और उस राक्षस के साथ उनका तुमुल युद्ध होने लगा। उस समय एक दूसरे पर गदा के आघात से जो भयंकर शब्द होता था, उससे पृथ्वी काँप उठती थी। थोड़ी ही देर में गदा फेंककर दोनों मुक्के मारते हुए लड़ने लगे। उनके मुक्कों की आवाज से बिजली कड़कने की आवाज_सी होती थी। इस तरह युद्ध करते_ करते दोनों अत्यन्त क्रोध में भर गये और रथ, पहिये, जुए, धुरे तथा अन्य उपकरणों में से जो भी निकट दिखायी देता था, उसे ही उठा_उठाकर एक_दूसरे को,मारने लगे। दोनों के शरीर से रक्तधारा बह रही थी। भगवान् श्रीकृष्ण ने जब यह अवस्था देखी तो उन्होंने भीमसेन की रक्षा के लिये घतोत्कच से कहा___’महाबाहो ! देखो, तुम्हारे सामने ही सब सेना के देखते_ देखते अलायुध ने भीम को अपने चंगुल में फँसा लिया है। इसलिये पहले राक्षसराज अलायुध का ही वध करो, फिर कर्ण को मारना। श्रीकृष्ण की बात सुनकर घतोत्कच कर्ण को छोड़ अलायुध से ही जा भिड़ा। फिर तो उस रात्रि के समय उन दोनों राक्षसों में तुमुल युद्ध होने लगा। अलायुध क्रोध में भरा हुआ था, उसने एक बहुत बड़ी परिघ लेकर घतोत्कच के मस्तक पर दे मारा। उससे घतोत्कच को तनिक मूर्छा_सी आ गयी, किन्तु उस बलवान् ने अपने को संभाल लिया और अलायुध के ऊपर एक बहुत बड़ी गदा चलायी। वेग से फेंकी हुई उस गदा ने अलायुध के घोड़े, सारथि और रथ का चूरन बना डाला। अलायुध राक्षसी माया का आश्रय ले उछलकर आकाश में उड़ गया। उसके ऊपर जाते ही खून की वर्षा होने लगी। आकाश में मेघों की काली घटा छा गयी, बिजली चमकने लगी, कड़ाके की आवाज के साथ वज्रपात होने लगा। उस महासमर में बड़े जोर का कड़कड़ाहट फैल गयी। उसकी माया देखकर घतोत्कच भी आकाश में उड़ गया और दूसरी माया रचकर उसने अलायुध की माया का नाश कर दिया। यह देख अलायुध घतोत्कच के ऊपर पत्थरों का वर्षा करने लगा। किन्तु घतोत्कच ने अपने बाणों की बौछार से उन पत्थरों को नष्ट कर डाला। फिर दोनों ही दोनों पर नाना प्रकार के आयुधों की वर्षा करने लगे। लोहे के परिघ, शूल, गदा, मूसल, मुगदर, तलवार, तोमर प्रास, कम्पन, नाराच, भाला, बाण, चक्र, फरसा, लोहे की गोलियाँ, भिन्दीपाल, गोशीर्ष और उलूखन आदि अस्त्र_ शस्त्रों से तथा पृथ्वी से उखाड़े हुए शमी, बरगद, पाकर, पीपल और सेमर आदि बड़े_बड़े वृक्षों से वे परस्पर प्रहार करने लगे। नाना प्रकार के पर्वतों के शिखर लेकर भी वे एक_दूसरे को मारते थे। उन दोनों राक्षसों का युद्ध पूर्वकालीन बाली और सुग्रीव के युद्ध की तरह रोमांच कर रहा था। दोनों ने दौड़कर एक_दूसरे की चोटी पकड ली, फिर भुजाओं से लड़ते हुए गुत्थमगुत्थ हो गये। इसी समय घतोत्कच ने अलायुध को बलपूर्वक पकड़ लिया और बड़े वेग से घुमाकर जमीन पर दे मारा। फिर उसके कुण्डलमण्डित मस्तक को काटकर उसने भयंकर गर्जना की और उसे दुर्योधन के सामने फेंक दिया। अलायुध को मारा गया देख दुर्योधन अपनी सेना के साथ ही अत्यन्त व्याकुल हो उठा।