Monday 7 December 2020

अंगराज का वध, सहदेव के द्वारा दुःशासन की तथा कर्ण के द्वारा नकुल की पराजय और कर्ण द्वारा पांचालों का संहार

संजय कहते हैं_महाराज ! आपके पुत्र की आज्ञा से बड़े_बड़े हाथीसवार हाथियों के साथ ही क्रोध में भरकर धृष्टधुम्न को मार डालने की इच्छा से उसकी ओर बढ़े। पूर्व और दक्षिण देश के रहनेवाले गजयुद्ध में कुशल जो प्रधान_ प्रधान वीर थे, वे सभी उपस्थित थे। इसके सिवा अंग, बंग, पुण्ड्र, मगध, मेकल, कोसल, मद्र, दशार्ण, निषध और कलिंगदेशीय योद्धा भी, जो हस्तियुद्ध में निपुण थे, वहाँ आए। वे सब लोग पांचालों की सेना पर बाण, तोमर और नाराचों की वर्षा करते हुए आगे बढ़े। उन्हें आते देख धृष्टधुम्न उनके हाथियों पर नाराचों की वर्षा करने लगा। प्रत्येक हाथी को उसने दस_दस, छः_छः और आठ_आठ  बाणों से मारकर घायल कर दिया।उस समय धृष्टधुम्न को हाथियों की सेना से घिर गया देख पाण्डव और पांचाल योद्धा तेज किये हुए अस्त्र_शस्त्र लेकर गर्जना करते हुए वहाँ आ पहुँचे और उन हाथियों पर बाणों की बौछार करने लगे। नकुल, सहदेव, द्रौपदी के पुत्र, प्रभद्रक, सात्यकि, शिखण्डी तथा चेकितान_ ये सभी वीर चारों ओर से बाणों की झड़ी लगाने लगे। 
तब म्लेच्छों ने अपने हाथियों को शत्रुओं की ओर प्रेरित किया। वे हाथी अत्यन्त क्रोध में भरे हुए थे; इसलिये रथों, घोड़ों और मनुष्यों को सूड़ों से खींचकर पटक देते और पैरों से दबाकर कुचल डालते थे। कितने ही योद्धाओं को उन्होंने दाँतों की नोक से चीर डाला और कितनों को सूँड़ में लपेटकर ऊपर फेंक दिया।
दाँतों से कुचले हुए जो लोग जमीन पर गिरते थे, उनकी सूरत बड़ी भयानक  हो जाती थी। 
इसी समय अंगराज के हाथी का सात्यकि से सामना हुआ। सात्यकि ने भयंकर वेगवाले नाराच से हाथी के मर्मस्थानों को बींध डाला। हाथी वेदना से मूर्छित होकर गिर पड़ा। अंगराज  उसकी ओट में अपने शरीर को छिपाये बैठा थ, अब वह हाथी से कूदना ही चाहता था कि सात्यकि ने उसकी छाती पर नाराच से प्रहार किया। चोट को न सँभाल सकने के कारण वह पृथ्वी पर गिर पड़ा।
इसके बाद नकुल ने यमदण्ड के समान तीन नाराच हाथ में लिये और उनके प्रहार से अंगराज से पीड़ित करके फिर सौ बाणों से उसके हाथी को भी घायल किया। तब अंगराज ने नकुल पर एक सौ आठ तोमरों का प्रहार किया, किन्तु उसने प्रत्येक तोमर के तीन_तीन टुकड़े कर डाले और एक अर्धचन्द्राकार बाण मारकर उसके मस्तक को भी काट लिया। फिर तो वह म्लेच्छराज हाथी के साथ ही भूमि पर गिर पड़ा। इस प्रकार अंगदेशीय राजकुमार के मारे जाने पर वहाँ के महावत क्रोध में भर गये और हाथियोंसहित नकुल पर चढ़ गये। उनके साथ ही मेकल, उत्कल, कलिंग, निषध और ताम्रलिप्त आदि देशों के योद्धा भी नकुल को मार डालने की इच्छा से उसपर बाणों और तोमरों की वर्षा करने लगे।
 उन सबके अस्त्रों की बौछार से नकुल को ढ़क गया देख पाण्डव, पांचाल और सोमक क्षत्रिय बड़े क्रोध में भरकर वहाँ आ पहुँचे। फिर तो पाण्डवपक्ष के रथी वीरों का उन हाथियों के साथ घोर युद्ध होने लगा। उन्होंने बाणों की झड़ी लगा दी और हजारों तोमरों का वार किया। 
उनकी मार से हाथियों के कुम्भस्थल फूट गये, मर्मस्थानों में घाव हो गया, दाँत टूट गये और उनकी सारी सजावट बिगड़ गयी। उनमें से आठ बड़े_बड़े गजराजों का सहदेव ने चौंसठ बाण मारे, जिनकी चोट से पीड़ित हो वे हाथी अपने सवारोंसहित गिरकर मर गये। महाराज ! सहदेव जब क्रोध में भरकर आपकी सेना को भष्मसात् कर रहा था, उसी समय दुःशासन उसके मुकाबले में आ गया। आते ही उसने सहदेव की छाती में तीन बाण मारे। तब सहदेव ने सत्तर नाराचों से दुःशासन को तथा तीन से उसके सारथि को बींध डाला। यह देख दुःशासन ने सहदेव का धनुष काटकर उसकी छाती और भुजाओं में तिहत्तर बाण मारे। अब तो सहदेव के क्रोध की सीमा न रही, उसने बड़ी फुर्ती से दुःशासनके रथ पर तलवार का वार किया। वह तलवार प्रत्यंचासहित उसके धनुष को काटकर जमीन पर गिर पड़ी। फिर सहदेव ने दूसरा धनुष लेकर दुःशासन पर प्राणान्तकारी बाण छोड़ा, किन्तु उसने तीखी धारवाली तलवार से उसके दो टुकड़े कर डाले और सहदेव को घायल करके उसके सारथि को भी नौ बाण मारे। इससे सहदेव का क्रोध बहुत बढ़ गया और और उसने काल के समान विकराल बाण हाथ में लेकर उसे आपके पुत्र पर चला दिया। वह बाण दुःशासन का कवच छेदकर शरीर को विदीर्ण करता हुआ जमीन में घुस गया। इससे आपका पुत्र बेहोश हो गया। यह देख सारथि तीखे बाणों की मार सहता हुआ रथ को रणभूमि से दूर हटा ले गया। इस प्रकार दुःशासन को परास्त करके सहदेव ने दुर्योधन की सेना पर दृष्टि डाली और उसका सब ओर से संहार आरंभ कर दिया। दूसरी ओर नकुल भी कौरव_सेना को पीछे भगा रहा था। यह देख कर्ण क्रोध में भरा हुआ वहाँ आया और नकुल को रोककर सामना करने लगा। उसने नकुल का धनुष काटकर उसे तीस बाणों से घायल किया। तब नकुल ने दूसरा धनुष लेकर कर्ण को सत्तर और उसके सारथि को तीन बाण मारे। फिर एक क्षुरप्र से कर्ण के धनुष को काटकर उसपर तीन सौ बाणों का प्रहार किया।
नकुल के द्वारा कर्ण को इस तरह पीड़ित होते देख सभी रथियों को बड़ा आश्चर्य हुआ; देवता भी अत्यन्त विस्मित हो गये। तदनन्तर कर्ण ने दूसरा धनुष उठाया और नकुल के भी सात बाणों से कर्ण को बींधकर उसके धनुष का एक किनारा काट दिया। कर्ण ने पुनः दूसरा धनुष लिया और नकुल के चारों ओर की दिशाएँ बाणों से आच्छादित कर दीं। किन्तु महारथी नकुल ने कर्ण के छोड़े हुए उन सभी बाणों को काट डाला।
उस समय सायकसमूहों से भरा हुआ आकाश ऐसा जान पड़ता था मानो उसमें टिड्डियाँ छा रही हो। उन दोनों के बाणों से आकाश का मार्ग रुक गया था, अन्तरिक्ष की कोई भी वस्तु उस समय जमीन पर नहीं पड़ती थी। उन दोनों महारथियों के दिव्य बाणों से जब दोनों ओर की सेनाएँ नष्ट होने लगीं तो सभी योद्धा उनके बाणों के गिरने के स्थान से दूर हट गये और दर्शकों की भाँति तमाशा देखने लगे। जब सब लोग वहाँ से दूर हो गये तो दोनों महारथी परस्पर बाणों की बौछार से एक_दूसरे को चोट पहुँचाने लगे। कर्ण ने हँसते_हँसते उस युद्ध में बाणों का जाल_सा फैला दिया, उसने सैकड़ों और हजारों बाणों का प्रहार किया। जैसे बादलों की घटा घिर आने पर उसकी छाया से अन्धकार_सा हो जाता है, वैसे ही कर्ण के बाणों से अंधेरा_सा छा गया। इसके बाद कर्ण ने नकुल का धनुष काट दिया और मुस्कराते हुए उसके सारथि को भी रथ से मार गिराया। फिर तेज किये हुए चार बाणों ले उसके चारों घोड़ों को तुरत यमलोक भेज दिया। तत्पश्चात् अपने बाणों की मार से उसने नकुल के दिव्य रथ के तिल के समान टुकड़े करके उसकी धज्जियाँ उड़ा दीं। पहियों के रक्षकों को मारकर ध्वजा, पताका, गदा, तलवार, ढ़ाल तथा अन्य सामग्रियों को भी नष्ट कर दिया। रथ घोड़े और कवच से रहित हो जाने पर नकुल ने एक भयानक परिघ उठाया, किंतु कर्ण ने तीखे बाणों से उनके भी टुकड़े_टुकड़े कर डाले। उस समय उसकी इन्द्रियाँ व्याकुल हो गयीं और वह सहसा रणभूमि छोड़कर भाग खड़ा हुआ। कर्ण ने हँसते हँसते उसका पीछा किया और उसके गले में अपना धनुष डाल दिया। फिर वह कहने लगा, ‘पाण्डुनन्दन ! अब बलवानों के साथ युद्ध करने का साहस न करना। जो तुम्हारे समान हों, उन्हीं से भिड़ने का हौसला करना चाहिए। माद्रीकुमार ! हार गये तो क्या हुआ? लजाओ मत । जाओ घर में जाकर छिप रहो अथवा जहाँ श्रीकृष्ण तथा अर्जुन हों वहीं चले जाओ। यह कहकर कर्ण ने नकुल को छोड़ दिया। यद्यपि उस समय कर्ण के लिये नकुल का मारना सहज था, तो भी कुन्ती को दिये हुए वचन याद करके उसने उसे जीवित ही छोड़ दिया; क्योंकि कर्ण धर्म का ज्ञाता था। नकुल को इस पराजय से बड़ा दुःख हुआ। वह उचछ्वास लेता हुआ अत्यन्त संकोच के साथ जाकर युधिष्ठिर के रथ में बैठ गया। इतने में सूर्यदेव आकाश मे मध्यभाग में आ गये। उस दुपहरी में सूतपुत्र कर्ण चारों ओर चक्र के समान घूमता हुआ पांचालों का संहार करने लगा। शत्रुओं के रथ टूट गये, ध्वजा पताकाएँ कट गयीं, घोड़े और सारथि मारे गये तथा बहुतों के रथ के धुरे खण्डित हो गये।
कुछ ही देर में पांचालसेना के रथी भागते देखे गये। हाथियों के शरीर खून से लथपथ हो गये। वे उन्मत्त की भाँति इधर_उधर भागने लगे।
ऐसा जान पड़ता था, मानो वे किसी बड़े भारी जंगल में जाकर दावानल से दग्ध हो गये हैं। उस समय हमें सब ओर कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों से कटे अनेकों सिर, भुजा और जंघाएँ दिखायी देती थीं। संग्रामभूमि में सृंजयवीरों पर कर्ण की बड़ी भीषण मार पड़ रही थी, तो भी पतंग जैसे अग्नि पर टूट पड़ते हैं, उसी प्रकार कर्ण की ओर ही बढ़ते जा रहे थे। महारथी कर्ण जहाँ_तहाँ पाण्डव_सेनाओं को भष्म कर रहा था; अतः क्षत्रियलोग उसे प्रलयकालीन अग्नि के समान समझकर उसके आने से भागने लगे। पांचालवीरों में से भी जो योद्धा मरने से बचे थे, वे सब मैदान छोड़कर भाग गये। 

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