Tuesday 16 January 2018

छठे दिन के दोपहरसे पीछे का युद्ध

संजय ने कहा___महाराज ! जब सूर्यदेव आकाश के बीचेबीच आ गये तो राजा युधिष्ठिर ने श्रुतायु को देखकर उसकी ओर अपने घोड़े बढ़ा दिये तथा नौ बाण छोड़कर उसे घायल कर दिया। श्रुतायु ने उन बाणों को हटाकर युधिष्ठिर पर सात बाण छोड़े। वे उनके कवच को फोड़कर उनका रक्त पीने लगे। आपकी सेना ने तो अपने जीवन की आशा ही छोड़ दी। किन्तु यशस्वी युधिष्ठिर ने धैर्य धारणकर अपने क्रोध को दबा दिया और श्रुतायु के धनुष को काटकर उसकी छाती को बींध दिया। फिर शीघ्र ही उसके सारथि और घोड़ों को भी मार डाला। राजा युधिष्ठिर का ऐसा पुरुषार्थ देखकर श्रुतायु अपना अश्वहीन रथ छोड़कर भाग गया। इस प्रकार जब धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने श्रुतायु को परास्त कर दिया तो राजा दुर्योधन की सारी सेना पीठ दिखाकर भागने लगी। दूसरी ओर चेकितान महारथी कृपाचार्य को बाणों से आच्छादित करने लगा। तब कृपाचार्य ने उन बाणों को रोककर स्वयं अपने बाणों से चेकितान को घायल कर दिया। फिर उन्होंने उसके धनुष को काट डाला, सारथि को मार गिराया तथा घोड़ा और दोनों पार्श्वरक्षकों को भी धराशायी कर दिया। तब चेकितान ने रथ से कूदकर हाथ में गदा ले ली। उस गदा से उसने कृपाचार्य के घोड़ों और सारथि को मार डाला। कृपाचार्य ने पृथ्वी पर खड़े_खड़े ही उस पर सोलह बाण छोड़े। वे बाण चेकितान को घायल करके धरती में घुस गये। इससे उसका क्रोध और बढ़ गया और उसने अपनी गदा कृपाचार्यजी पर छोड़ी। आचार्य ने उसे आती देखकर अपने सहस्त्रों बाणों से रोक दिया। तब चेकितान हाथ में तलवार लेकर उनके सामने आया। इधर आचार्य ने भी तलवार लेकर उस पर बड़े वेग से धावा किया। अब वे दोनों वीर एक_दूसरे पर तीखी तलवारों से वार करते हुए पृथ्वी पर लोट_पोट हो गये। युद्ध में अत्यन्त परिश्रम पड़ने के कारण उन दोनों को ही मूर्छा आ गयी। इतने में ही सौहार्दवश वहाँ करकर्ष दौड़ आया और चेकितान की ऐसी दशा देखकर उसे अपने रथ में चढ़ा लिया। इसी प्रकार शकुनि ने बड़ी फुर्ती से कृपाचार्य को अपने रथ में बैठा लिया। धृष्टकेतू ने नब्बे बाणों से भूरिश्रवा को घायल कर दिया। इस पर भूरिश्रवा ने अपने चोखे_चोखे बाणों से महारथी धृष्टकेतू के सारथि और घोड़ों को मार डाला। तब महामना धृष्टकेतू उस रथ को छोड़कर शतानीक के रथ पर चढ़ गया। इसी समय चित्रसेन, विकर्ण और दुर्मर्षण ने अभिमन्यु पर धावा किया। अभिमन्यु ने आपके इन सब पुत्रों को रथहीन तो कर दिया, किन्तु भीमसेन की प्रतिज्ञा याद करके उनका वध नहीं किया।‘ फिर सेना सहित पितामह भीष्म को अकेले बालक अभिमन्यु की ओर जाते देख अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा, ‘हृषिकेश ! ये बहुत से रथ दिखायी दे रहे हैं, उधर ही आप अपने घोड़ों को भी बढ़ाइये।‘ अर्जुन के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने, जहाँ संग्राम हो रहा था, उस ओर रथ हाँका। अर्जुन को आपके वीरों की ओर बढ़ते देखकर आपकी सेना बहुत घबरा गयी। अर्जुन ने भीष्मजी की रक्षा करनेवाले राजाओं के पास पहुँचकर उनमें से सुशर्मा से कहा, ‘मैं जानता हूँ कि तुम बड़े उत्तम योद्धा हो और हमारे पुराने शत्रु हो। किन्तु देखो, आज तुम्हें तुम्हारी अनीति का कठोर फल मिलनेवाला है। आज मैं तुम्हारे परलोकवासी पितामहों का दर्शन करा दूँगा।‘ सुशर्मा ने अर्जुन के ऐसे कठोर वचन सुनकर भी भला_बुरा कुछ नहीं कहा। बल्कि बहुत_से राजाओं के सहित अर्जुन के आगे आकर उन्हें सब ओर से घेरकर बाण बरसाना आरम्भ कर दिया। अर्जुन ने एक क्षण में ही उन सबके धनुष काट डाले और  एक साथ  सबको अपने बाणों से बींध दिया। अर्जुन की मार से वे खून में लथपथ हो गये, उनके अंग छिन्न_भिन्न हो गये, सिर धरती पर लुढ़कने लगे, कवचों के धुर्रे उड़ गये और उनके प्राण शरीरों से कूच कर गये। इस प्रकार पार्थ के पराक्रम से पराभूत होकर वे एक साथ ही धराशायी हो गये। अपने साथी राजाओं को इस प्रकार मारा गया देखकर त्रिगर्तराज सुशर्मा बड़ी फुर्ती से बचे हुए राजाओं को साथ लेकर आगे आया। जब शिखण्डी आदि वीरों ने देखा कि अर्जुन पर शत्रुओं ने धावा किया है तो वे उनके रथ की रक्षा के लिये तरह_तरह के अस्त्र_शस्त्र लेकर उनकी ओर चले। अर्जुन ने भी त्रिगर्तराज के साथ अनेकों राजाओं को आते देख अपने गाण्डीव धनुष से अनेकों तीखे बाण छोड़कर उन सभी का सफाया कर दिया। फिर दुर्योधन और जयद्रथ आदि राजाओं को भी खदेड़कर वे भीष्मजी के पास पहुँच गये। महाराज युधिष्ठिर भी मद्रराज को छोड़कर भीमसेन तथा नकुल_सहदेव के सहित भीष्मजी से ही युद्ध करने के लिये आ गये। किन्तु भीष्मजी समस्त पाण्डुपुत्रों के सामने आ जाने पर भी घबराये नहीं। इस समय शिखण्डी तो पितामह का वध करने पर ही उतारू हो गया। उसे इस प्रकार बड़े वेग से धावा करते देख राजा शल्य अपने भीषण शस्त्रों से रोकने लगे। किन्तु इससे शिखण्डी की गति में कोई अन्तर नहीं पड़ा। उसने वारुणास्त्र लेकर शल्य के सब अस्त्रों को छिन्न_भिन्न कर दिया। भीमसेन गदा लेकर पैदल ही जयद्रथ की ओर दौड़े। उन्हें अपनी ओर बडे वेेग से आते देख जयद्रथ ने पाँच सौ तीखे बाण छोड़कर सब ओर से घायल कर दिया। किन्तु भीमसेन ने उसकी कुछ परवा नहीं की। वे और भी क्रोध में भर गये और उन्होंने सिंधुराज के घोड़ों को मार डाला। यह देखकर आपके मित्र चित्रसेन भीमसेन को काबू में करने के लिये झपटा और इधर भीमसेन भी गरजकर गदा घुमाते हुए उस पर टूटे। भीम की वह यमदण्ड के समान प्रचंड गदा देखकर सब कौरव उसके प्रहार से बचने के लिये आपके पुत्र को छोड़कर भाग गये। गदा को अपनी ओर आती देखकर भी चित्रसेन घबराया नहीं। वह ढाल_तलवार लेकर अपने रथ से कूद पड़ा और एक दूसरे स्थान पर चला गया। उस गदा ने चित्रसेन के रथ पर गिरकर उसे सारथि और घोड़ों के सहित चूर_चूर कर दिया। इतने में ही चित्रसेन को रथहीन देखकर विकर्ण ने उसे अपने रथ पर चढ़ा लिया। इस प्रकार जब संग्राम बहुत घोर होने लगा तो भीष्मजी राजा युधिष्ठिर के सामने आये। उस समय पाण्डवपक्ष के सब वीर काँपने लगे और उन्हें ऐसा मालूम मानो अब युधिष्ठिर भी मृत्यु के मुँह में पड़ना ही चाहते हैं। इधर महाराज युधिष्ठिर भी नकुल_सहदेव के सहित भीष्मजी पर टूट पड़े। उन्होंने भीष्मजी पर सहस्त्रों बाण छोड़कर उन्हें बिलकुल ढक दिया। किन्तु भीष्मजी ने उन सबको आधे निमेष में ही अपने बाण समुदाय से युधिष्ठिर को अदृश्य कर दिया। राजा युधिष्ठिर ने क्रोध में भरकर भीष्मजी पर नाराच बाण छोड़ा, पर पितामह ने बीच में ही उसे काटकर युधिष्ठिर को घोड़े भी मार डाले। धर्मपुत्र युधिष्ठिर तुरत ही नकुल के रथ पर चढ़ गये। भीष्मजी ने सामने आने पर नकुल और सहदेव को भी बाणों से आच्छादित कर दिया। तब राजा युधिष्ठिर भीष्मजी का लक्ष्य करने के लिये बहुत विचार करने लगे। उन्होंने अपने पक्ष के सब राजाओं और सुहृदों से कहा कि सब लोग मिलकर भीष्मजी को मारो। यह सुनकर सब राजाओं ने भीष्मजी को घेर लिया। किन्तु भीष्मजी सब ओर से घिर जाने पर भी अपने धनुष से अनेकों महारथियों को धराशायी करते हुए क्रीड़ा करने लगे। जब यह घनघोर युद्ध बहुत ही भयानक हो गया तो दोनों ओर की सेनाओं में बड़ी खलबली मच गयी। दोनों ओर की व्यूह_रचना टूट गयी। इस समय शिखण्डी बड़े वेग से पितामह के सामने आया। किन्तु भीष्मजी उसके पूर्व स्त्रीत्व का विचार करके उसकी ओर कुछ भी ध्यान न दे संजय_वीरों की ओर चले गये। भीष्म को अपने सामने देखकर वे सब बड़े हर्ष से सिंहनाद और शंखध्वनि करने लगे। अब भगवान् भास्कर पश्चिम की ओर ढुलक चुके थे। इस युद्ध ने ऐसा घमासान रूप धारण किया कि दोनों ओर के रथी और गजारोही एक_दूसरे में मिल गये।पांचालकुमार धृष्टधुम्न और महारथी सात्यकि शक्ति और तोमरादि की वर्षा करके कौरवों की सेना को पीड़ित करने लगे। इससे आपके योद्धाओं में बड़ा हाहाकार होने लगा। उनका आर्तनाद सुनकर अवन्तिदेशीय विन्द और अनुविन्द धृष्टधुम्न के सामने आये। उन दोनों ने उसके घोड़ों को मारकर उसे बाणों की वर्षा से बिलकुल ढक दिया। पांचालकुमार तुरंत ही अपने रथ से कूदकर सात्यकि के रथ पर चढ़ गया। तब महाराज युधिष्ठिर बड़ी भारी सेना लेकर उन दोनों राजकुमारों पर टूट पड़े। इसी प्रकार आपका पुत्र धृष्टधुम्न भी पूरी तैयारी के साथ विन्द और अनुविन्द को घेरकर खड़ा हो गया। अब सूर्यदेव अस्ताचल के शिखर पर पहुँचकर प्रभाहीन हो रहे थे। इधर युद्धभूमि में रक्त की भीषण नदी बहने लगी थी तथा सब ओर राक्षस, पिशाच एवं अन्य मांसाहारी जीव दूर वे लगे थे। इसी समय अर्जुन ने सुशर्मा आदि राजाओं को परास्त कर अपने शिविर को कूच किया। धीरे_धीरे रात्रि होने लगी। महाराज युधिष्ठिर और भीमसेन भी सेना के सहित अपने शिविर को लौटे। इधर दुर्योधन, भीष्म, द्रोणाचार्य, अश्त्थामा, कृपाचार्य, शल्य और कृतवर्मा आदि कौरव वीर अपनी_ अपनी सेना के सहित अपने_ अपने डेरों पर चले गये। इस प्रकार रात होने पर कौरव और पाण्डव दोनों ही अपनी_ अपनी छावनियों में चले आये। वहाँ दोनों पक्षों के वीर एक_दूसरे की वार्ता का बड़ाई करने लगे। उन्होंने अपने शरीरों में से बाण निकालकर तरह_तरह के जलों से स्नान किया तथा पहरा देने के लिये विधिवत् चौकीदारों को नियुक्त किया।

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